प्रेरणादायक चेतावनी Sant mat chetavniyan 26.

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जयगुरुदेव चेतावनी 141.
*Mitti me mili mitti pani me mila pani*
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मिट्टी में मिली मिट्टी पानी में मिला पानी,
के पानी के बबूले जैसी तेरी जिंदगानी।।

यह महल मकान तेरे काम नही आयेगा।
खाली हाथ आया बन्दे खाली हाथ जायेगा।
माता पिता बहना नाना और नानी, 
पानी के बबूले जैसी तेरी जिंदगानी।।

खाना पीना सोना यह तो पशुओं का भी काम है।
हाथ से दियो न दान लियो न हरी को नाम।
यही दो बात तेरा मन नहीं मानी है।
पानी के बबूले जैसी तेरी जिंदगानी।।

रही न जग में बादशाह बाजिरों की।
एक एक सांस तेरी लाख लाख हीरों की।
ढाई गज कपड़ा तेरी होएगी रवानगी।
ढाई मीटर कपड़ा तेरी होएगी रवानगी।
पानी के बबूले जैसी तेरी जिंदगानी।।

करले भलाई जग में काम तेरे आयेगी।
अंत के समय में तुझे दुनिया सरायेगी।
कहें जयगुरुदेव तेरी थोड़ी है जिंदगानी।
कहें जयगुरुदेव तेरी थोड़ी है जवानी।
पानी के बबूले जैसी तेरी जिंदगानी।।


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जयगुरुदेव चेतावनी 142.
*Jitne aye sabhi gaye parlok ko*
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जितने आये सभी गये परलोक को ;
यहाँ आसन किसी का जमा न रहा |

प्राण निकले भस्म कर दिया देह को ;
फिर कोई भी उन का सगा न रहा ||१||

काम आई न जग की रिश्तेदारियां ;
अंत त्याग चले धन, पुत्र, नारियां |

कर नष्ट महल ऊंची अट्टारियाँ ;
मान इज्ज़त का तम्बू तना न रहा ||२||

प्राण परलोक को जब हवा हो गये;
सुख के साथी तभी सब जुदा हो गये |

पाप-पुण्य ले सभी से विदा हो गये ;
अंत कोई मीत सच्चा बना न रहा ||३||

चक्रवर्ती मदमाते यहाँ राजा हुए ; 
मौत का मनभाता वे खाजा हुए |

मुख मैले हुए फिर न ताज़ा हुए ;
मौत सम्मुख पैर जमा न रहा ||४ ||

काल-वश प्राणी दुनिया के होंगे सभी ;
त्यागें आलस भाई ! प्रभु सिमरें अभी |

मौत को जीत जायेंगे निश्चय तभी ;
शस्त्र मौत का यहाँ पर ठना न रहा ||५||

भय ह्रदय में "प्रकाश"रक्खें सदा ;
भूल कर भी न अहंकार करिये कदा |

त्यागें ममता होना है सब से जुदा ;
बिना गुरु के कोई अपना न रहा ||६||


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जयगुरुदेव चेतावनी 143.
*Suno re bhai nam ratan*
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सुनो रे भाई! नाम रतन अनमोल।।

सतगुरु नाम का पावन हीरा,
कहता मन का मगन मजीरा।
कौन लगाए मोल, सुनो रे भाई...

पापों में क्यों खोया भाई,
इधर है कुआ उधर है खाई।
अपनी आँखें खोल, सुनो रे भाई...

नाम रतन है सबसे प्यारा,
जयगुरुदेव नाम है सबसे न्यारा।
ये अमृत का है घोल, सुनो रेड l भाई...

नाम रतन की मिली है पूंजी,
सतगुरु जी ने दी है पूंजी
ऐसी पूंजी और न दूजी।
तौल सके तो तौल, सुनो रे भाई...

सतगुरु शरण गहो तुम भाई,
जीवन तेरा सफल होई जाई,
कंचन जैसी तेरी काया, क्यों मिट्टी में रोल।।

सुनो रे भाई! नाम रतन अनमोल।।

जयगुरुदेव

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जयगुरुदेव चेतावनी 144.
*Karo re man*
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करो रे मन वा दिन की तदवीर।
जब जमराजा आन अड़ेंगे, 
नेक धरत नहीं धीर।। करो रे मन...

मारि मारि सोंटन प्राण निकारत, 
नैनन भरि आयो नीर।। करो रे मन...

घर तिरिया अरधंगी बैठी, 
मात पिता सुत वीर।। करो रे मन...

माल मुलक की कौन चलावे, 
संग न जात शरीर ।। करो रे मन...

ले के बोरत नरक कुण्ड में, 
व्याकुल होत शरीर।।  करो रे मन...

कहत कबीर नर अब से चेतो, 
माफ होय तकसीर।। करो रे मन वा दिन की तदवीर।।

जयगुरुदेव

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जयगुरुदेव चेतावनी 145.
*Vahi hain vahi hain jo*
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वही हैं वही हैं जो आये हुए है,
जमाने मे हलचल मचाये हुए हैं।

गगन के फरिस्ते है तरस्ते हैं दम दम,
जमीं पर सैलाब ये लाये हुए हैं।।


वहां चलकर देखो मची भीड़ कैसी,
ये उज्जैन के महाराज आये हुए हैं।।

अजूबा हुस्न उनका सबसे जुदा है,
वो नजरों में जादू छिपाए हुए हैं।।

अभी नाम उनका बताऊ मै कैसे,
अनामी नगर से जो आये हुए हैं।।

रामायण रचयिता का जो नाम सुंदर,
वही नाम अपना धराये हुए हैं।।

जुलाई थी १० सन था वाबन सुहावन,
वो काशी में सत्संग सुनाए हुए हैं।।

जयगुरुदेव प्रभु नाम पावन प्रचारक,
वो उज्जैन में कुटिया बनाये हुए हैं।।

जमाने की कुटिया में सतयुग मंगाने को,
सत्संग सागर बहाये हुए हैं।।

बड़े प्रश्न पर प्रश्न दुनिया में उठते,
कहाँ से किधर से वो आये हुए हैं।।

हाथों के इनके करिश्मा न पूछो,
वो कुदरत नियायत लुटाये हुए हैं।।

आंखों के इनके करिश्मा न पूछो,
मुहब्बत का चश्मा लगाये हुए हैं।।

वो बन्दों की बस्ती में बन्दा बने हैं,
और पहचान अपनी बताए हुए हैं।।

जिस्मानी रूहानी पहचान अपनी,
मुरीदों को अपने बताये हुए हैं।।

बड़ी इनकी सौहरत बड़ी अथाह महिमा,
रहनुमा वो रहमत के लाए हुए हैं।।

इशारे से सबको बताते हैं बाबा,
पता वे-पता का वो लाये हुए हैं।।

जयगुरुदेव...
शेष क्रमशः पोस्ट 27. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼

baba umakantji maharaj


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