*सन्तमत की चेतावनियाँ* 27.

जयगुरुदेव  चेतावनी 146.
★ Is desh ka har bachcha 
 ======================

इस देश का हर बच्चा जयगुरुदेव कहेगा,
इस देव भूमि पर नहीं अब गाय कटेगा।।

हत्यारों जरा सोच लो वध करने से पहले,
गऊ माता का इस देश में जब लहु बहेगा।
माता के आंसुओं से तब ये देश बहेगा।
इस देव भूमी पर नहीं अब गाय कटेगा।।

पीते हो जिसका दूध उसका मांस खाते हो,
हे न्याय कहां का जो तू इसको निभाते हो।
रोयेगी गाय माता तो फिर कौन बचेगा,
इस देव भूमी पर नहीं अब गाय कटेगा।।

कानून ऐसा कर दो कि वो दहल जायेंगे,
हत्या करे जो इन गऊओं की वो फांसी पे चढ़ेगा।
न गाय रहेगी न तू वैतरणी तरेगा,
इस देव भूमी पर नहीं अब गाय कटेगा।।

इस देश के मुखिया को अब हम पत्र लिखेंगे,
मुखिया नहीं करते तो ये करके दिखायेंगे।
गऊ माता राष्ट्रीय पशु होकर ही रहेगी,
इस देव भूमी पर नहीं अब गाय कटेगी।।

बचना है तो पहनो अभी गुलाबी कपड़े को,
जो देखे इसे तो भी बचा लेगा अपने को।
ऐसा सरल उपाय भला कौन करेगा,
इस देव भूमी पर नहीं अब गाय कटेगा।।

गुरु वचनों पर आ जाओगे बच जाओगे अभी,
मानोगे नहीं बात तो पछताओगे सभी।
महाराज जी कहते हैं तब ये देश बचेगा।
इस भूमी पर नहीं अब गाय कटेगा।।

जयगुरुदेव

 जयगुरुदेव  चेतावनी 147.
★ Hokar lachar nam loge 
 ======================

होकर लाचार नाम लोगे हमारा, 
जयगुरुदेव जी देते हैं इशारा।
लूटो लुटालो चाहे फूके फुकालो, 
दुनिया को चाहे जिस भांति बना लो।
बांकि न छोड़ो अपनी कसिस को, 
बांकि न रहे तुम्हें कल कहने को।
राजा योगी गुणी ज्ञानी सभी को इशारा, 
होकर लाचार...

जग में भयंकर अब तो घटना घटेगी, 
अस्त व्यस्त होकर बहुत जनता मरेगी।
तड़पेगा सूरज खूब सूखा पडे़गा, 
पानी बिना जीव अधिक मरेगा।
यह विज्ञान न देगा सहारा, होकर लाचार....

बरसेगा पानी जल जल ही दिखेगा, 
डूब मरेगा कोई कोई बचेगा।
तड़पे गगन नभ मंडल फटेगा, 
उसी समय में भूकम्प उठेगा।
दुनिया में आयेगा अजब नजारा, होकर लाचार...

जाते रहेागे जहां कोई न होगा, 
शब्द अचानक इसी नाम का होगा।
सुनने को आगे अपने आप मिलेगा, 
ऐसी ही हालत अपने आप बनेगा।
तब चले आना अभी सुन लो इशारा, होकर लाचार...

इसी बीच यु़द्ध सारे जग में मचेगा, 
चीन अमरीका रूस खूब लड़ेगा।
अरब इसराइल अभी ओर लडे़ंगे, 
दुनिया में लोग बहुत थोड़े बचेंगे।
हिन्दु धरम का होगा पसारा, 
जयगुरुदेव जी हैं देते इशारा।
होकर लाचार नाम लोगे हमारा।।

जयगुरुदेव


जयगुरुदेव  चेतावनी 148.
Man mahin kar lijiye 
 ======================

मन महीन कर लीजिए जब पिउ लागें हाथ।
जब पिउ लागें हाथ नीच होय सबसे रहना।
पच्छा पच्छी त्याग ऊँच वाणी नहिं कहना।
सबकी करे तारीफ आप को छोटा जाने।
पहले हाथ उठाय शीश पर सबको आने।
पल्टू वही सुगागिनी हीरा झलके माथ।
मन महीन कर लीजिए जब पिउ लागें हाथ।।


जयगुरुदेव  चेतावनी 149.
★ Satguru k sang fag aj 
 ======================
सतगुरु के संग फाग आज सखि अद्भुत खेली ॥ टेक ॥ 
अबीर गुलाल कपूर कुसुम चंदन केशन जल धोरी । 
भरि भरि पिचुकारि गुरु मारहिं , पाँच तीन संग छोड़ी , 
प्रगट भई पाँच सहेली । 
सो पांचों सखियां निज बहियां प्रेम सहित गल मेली , 
शीतल भई तपनि गई सारी , तन मन की सुधि भूली , 
धन्य सतगुरु की चेली । 
पुनि का भयो कहूँ कस सजनी कहि न सकूं मुख खोली, 
छिन मह भयो श्रृंगार विविध विधि मैं बन गई नवेली, 
हार गूरु गल विच मेली। 
गुरु के अंक प्यार मोहि किन्ही अचल सुहाग दियो री , 
बाहर नैन खुले तो देखा गले विरह की सेली ,जरे तन मर की होली।


जयगुरुदेव  चेतावनी 150.
★ Jhula ajab piya ne dari 
 ======================
झूला अजब पिया ने डारी झूले सब जीव झारी ना। 
शब्द हिंडोला टंगा अधर में जाको वार न पारी ना। 

ब्रह्मा विष्णु ऋषि मुनि झूले पावें डोर ना डारी ना । 
पंडित ज्ञानी भेद ना जानें पढ़त पढ़त बुद्धि हारी ना । 

उलटि गगन कोई गुरमुख झूलै पावै अगम अटारी ना । 
जहं गुरु स्वेत सिंहासन बैठे देखें लीला सारी ना । 

कोटिन भानु लजाय रोम एक ऐसी छटा निहारी ना। 
देख छटा अटा प्रियतम की सुधि बुधि सुरत विषारी ना ।
 
सदा बिहार करें वा घर में संत सूरत पिव प्यारी ना ।
जय गुरुदेव कृपा से अबकी हमरो आइल बारी ना ।


जयगुरुदेव  चेतावनी 151.
★ Pachrangi piya ki chunariya 
 ======================
पंचरंगी पिया की चूनरिया॥ टेक॥ 
पवन अकाश अग्नि जल, पृथ्वी, निज रंग रंगी डोरिया। 
निरगुन तार चमाचम चमकै मोतियन की गूथीं लरिया।
यह चुनरी देवन को दुर्लभ पाई भाग से गुजरिया । 
चतुर सखी कोई जुगति से ओढी मैली कीनी फूहरिया । 
जयगुरुदेव कृपा साबुन लै हमहूँ मैल धौय डरिया।


जयगुरुदेव  चेतावनी 152.
★ O din ki sudhi aye he 
 ======================
ओ दिन की सुधि आये है गुरुजी, जलति रही भव आगि हो। 
रोवत ढहकति खोजति शीतलि , छाँड़ि चलि गृह त्यागि हो ।

कोई ना अपना कतहूं। दिखावत देत हमारे मन शांति हो। 
तुम्हारी दया बल पाई तुम्हें गुरु शरन लियो मोहि राखि हो । 

शीतल दर्शन वचन प्यार करि राख्यो मोर दुलार हो । 
योगिन बनि सुख साथ तुम्हारे धरब न दूसर डारि हो । 

यह तन मन सब तुम पर वारी औरन से नहि काम हो। 
 कौन कसूर बना यह तन से कहुह धरन पर डारि हो। 

सुनहुँ ये बेटी मेरी बात ये मानहु एक पेड़ बहू डारि हो । 
 डारी डारी सब हिल मिल झूलहिं जब जब बहति बय़ारि हो । 

रक्षा करत तन पेड़ सबहि कर अपनेहि संग सब डारि हो । 
ऐसे हि ये बेटी गुरु तन पोषित , वर कन्या अनुहारि हो । 

भव वन में मिली समुझि के खेलहु कतहुँ न बंधन हारि हो । 
लेहु आशीष दोऊ वर कन्या तरहु सिन्ध भव पार हो ।

जयगुरुदेव  
शेष क्रमशः पोस्ट 28. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼

Jaigurude chetavni


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ