कहानी संख्या 24.
*पौराणिक कथा*
महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया, युधिष्ठिर की विजय हुई तो उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ रचाया। कृष्ण भगवान ने कहा कि यज्ञ तभी सम्पूर्ण होगा जब आकाश में घण्टा बजेगा।
विधिवत तैयारियां की गयीं। सभी लोगों ने भोजन किया, साधु महात्माओं ने भी भोजन किया, किन्तु घण्टा नहीं बजा।
पाण्डवों ने कृष्ण भगवान से भी प्रार्थना किया तो उन्होंने भी भोजन किया फिर भी आकाश में घण्टा नहीं बजा।
सब लोग चिन्तित हुए कि अब क्या किया जाय ?
कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि सुपच नीची जाति के महात्मा हैं उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। उन्हें भोजन कराओ तब घण्टा बजेगा।
युधिष्ठिर राजा थे और विचार होने लगा कि भंगी को बुलाने कौन जायेगा। अन्ततः भीम गए और अहंकार भरे शब्दों में कहा कि "महाराज युधिष्ठिर ने भोजन के लिए बुलाया है।"
सुपच बैठे थे। उन्होंने कहा कि थोड़ी देर बैठ जाइये! जरा सुमिरन कर लूं और साथ में प्रार्थना किया कि मेरी सुमरनी (माला) खुटी पर टंगी है उसे मुझे दे दें।
समस्या थी कि राजघराने का भीम भंगी की माला को स्पर्श कैसे करें। लेकिन आमंत्रित करने गये थे तो थोड़ी बहुत बात तो माननी ही थी। हाथ से न छूकर अपनी गदा से माला को उतारने लगे।
माला टस से मस नही हुयी। उन्होने जोर लगाया फिर भी बे-असर।
सुपच महाराज दूसरी तरफ मुंह किए बैठे थे। भीम ने गुस्से में गदा का प्रहार किया, किन्तु माला का कुछ न बिगड़ा न उसका एक दाना इधर उधर हुआ। भीम को पसीना पसीना आ गया किन्तु माला को नहीं उतार सके, अहंकार चूर हुआ।
सुपच ने मुंह को घुमाया तो देखा कि भीम दीन भाव में उन्हें देख रहे हैं। बोले, कि जब तुम मेरी सुमिरनी को नहीं उतार सके तो मुझे कैसे दरबार में ले जाते ?
भीम ने युधिष्ठिर से कहा था कि अगर वो नहीं आएगा तो उठाकर ले आऊंगा।
सुपच ने उनकी उस बात का जबाव दे दिया।
खैर, सुपच महाराज गए। द्रोपदी ने अपने हाथ से छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाये और विधिवत परोसे।
सुपच सभी चीजों को एक साथ मिलाकर खाने लगे। द्रोपदी ने देखा तो दुखी हुई और मन में सोचने लगी कि आखिर नीची जाति का ही तो है, क्या जाने भोजन का स्वाद।
सुपच महाराज भोजन करके चले गए फिर भी घण्टा नहीं बजा।
पूछा गया कि हे प्रभु! अब किस बात की भूल चूक हो गई ?
कृष्ण भगवान तो अंतर्यामी थे। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि सन्त का अपमान हुआ है।
सुपच महाराज सन्त हैं उनकी महिमा और शक्ति का ज्ञान मुझे भी नही है उनसे माफी मांगनी पड़ेगी।
युधिष्ठिर ने जानना चाहा कि क्या गलती हुयी है तो कृष्ण ने कहा कि द्रोपदी से पूछो। द्रोपदी ने सबकुछ सच सच बता दिया।
द्रोपदी ने दुबारा भोजन बनाया। सुपच महाराज को सम्मान सहित बुलाकर भोजन कराया गया, तब जाकर आकाश में घण्टा बजा और यज्ञ सफल हुआ।
*किया युधिष्ठिर यज्ञ, बटोरा सकल समाजा।*
*मरदा सबका मान, सुपच बिनु घंटा न बाजा।।*
अतः ध्यान रखें,
कभी किसी भी सन्त का अपमान मन में भी मत कीजिए।
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जयगुरुदेव।
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संत महिमा |
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Jaigurudev