सब मुंह देखा प्यार है. कहानी संख्या 23.

कहानी संख्या  23.  
अमृत वाणी 
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एक नदी के किनारे एक पुराना बरगद का पेड़ था। नदी और पेड़ में बड़ी दोस्ती हो गयी। जब कोई ना होता तो दोनों आपस में बातें करते। नदी अपनी सुनाती पेड़ अपनी सुनाता। 

एक दिन गांव के लोग एक स्त्री की लाश लेकर दाह संस्कार करने के लिए नदी के किनारे आए। स्त्री का पति दहाड़ें मार मारकर रो रहा था। और  चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था कि मैं तेरे बिना जी नही सकता।

दाह संस्कार हुआ और  सब लोग अपने अपने घर लौट गए। नदी उस आदमी का रोना देखकर बड़ी दुखी थी। उसने बरगद से कहा कि यह आदमी इतना रो रहा था कि अपनी पत्नी का वियोग सह नहीं पायेगा और ऐसा  लगता है कि अब बहुत दिन जी नहीं सकेगा।

बरगद मुस्कुराया और बोला अरे बहना तू ब़ड़ी भोली है। दुनिया ऐसे ही चलती  है। आज जो आदमी रो रहा था वह कल फिर घर बसा लेगा और इसको भूल जायेगा। नदी कुछ बोली तो नहीं पर उसको बरगद की बात पर पूरा विश्वाश नहीं हुआ।

दिन बीतते रहे।  कुछ साल बीते तो फिर उसी गांव के लोग एक स्त्री की लाश लेकर दाह संस्कार के लिए उसी स्थान पर आए। वही आदमी जो अब अधेड़ हो चुका था दहाड़ मारकर रो रहा था और कह रहा था कि मैं तेरे बिना जी नही सकूंगा। 

नदी ने देखा कि यह तो वही आदमी है जो पहली स्त्री के मरने के बाद ऐसे ही रोया था। गांव वाले दाह संस्कार करके वापस लौट गए। बरगद ने नदी से कहा कि देखा, तूने! यह वही आदमी था जो अब अधेड़ हो चुका था। 
नदी ने कहा कि लेकिन इस बार उसका दुख देखकर लग रहा था कि अब वो नही जी पायेगा। 

बरगद फिर मुस्कुराया और पहले की तरह ही बोला कि अरी बहना तू बड़ी भोली है।

दिन बीतते रहे साल बीत गए। फिर उसी गांव के लोग एक स्त्री की लाश  लेकर उसी स्थान पर आये।  वही अधेड़ व्यक्ति जो अब बूढा हो चुका था दहाड़े मार मार कर रो रहा था कि मैं तेरे बिना जी नही सकूंगा।

नदी ने देखा तो अचम्भित थी कि यह तो वही आदमी है जो इससे पहले अपनी दो पत्नियों के गुजरने पर ऐसे ही रोया था। जब गांव वाले दाह संस्कार करके वापस लौट गए तो नदी चुप थी।  

बरगद ने कहा कि अरी बहना किस सोच में पड़ गई।  यह बुडढा तो वही आदमी था जो पहले दो बार दहाड़े मार मार कर रो रहा था।  नदी ने कहा भाई तू ठीक कहता था।  यह दुनिया है।  जाने वाला चला जाता है रहने वाला रो धोकर फिर अपने जीने का रास्ता  बना लेता है, कोई  किसी के लिए  रुकता नहीं। सब मुंह देखा प्यार है।

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