20. महात्मा परमात्मा से मिले होते हैं

कहानी संख्या  20. 
● अमृत वाणी ●

एक समय एक साधु  पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे ।
उन्होंने देखा कि एक मासूम आदमी जो भेंड़ बकरिया चराने जंगल में जाया करता था।  भेड़ बकरियां जंगल में चरती और वह पेड़ के नीचे बैठा खुदा को याद करता और भाव में आकर अपने आप खुदा से बातें करता।

एक दिन साधु  उसी रास्ते से होकर गुजर रहे थे जहां वो आदमी बैठा खुदा को याद कर रहा था।
वह अपने भाव में कह रहा था और साधु  खडे होकर सुनने लगे।

वह कह रहा था कि ऐ खुदा,  तुझे बुखार आएगा तो मैं तुझे दवा लाकर दूंगा,  तेरा सर सहलाऊंगा,  तेरा पैर दबाऊंगा,  तुझे प्यास लगेगी तो मैं  पानी लाकर दूंगा,  तुझे भूख लगेगी तो मैं रोटी बनाकर खिलाउंगा बगैरह बगैरह।

साधु  ने सुना तो एकदम भड़क गए और गुस्से में बोले तू नादान है,  तूने क्या कह दिया खुदा को ?  क्या खुदा को बुखार चढ़ता है,  तूने बहुत बड़ा गुनाह किया।   खुदा तुझे माफ नहीं करेगा।

यह कहकर साधु  तो आगे चल दिए पर वह भोला भक्त रोने लगा और कहने लगा कि-

ऐ खुदा,  मैं नहीं जानता था कि तुझे बुखार नहीं आता है,  तुझे भूख प्यास नहीं लगती है तू मुझे माफ कर दे। मुझसे बहुत बड़ा गुनाह हो गया।  अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा।

साधु  जब ध्यान लगाकर खुदा के दरबार में हाजिर हुए तो खुदा उनसे सख्त नाराज था,  उसने कहा कि हे फकीर  तूने बहुत बड़ा  गुनाह किया।  मेरे मासूम प्रेमी का दिल दुखा दिया,  अब वो इतना रो रहा है कि बर्दाश्त  नहीं कर पा रहा हूं,
मै तो उसकी हर भोली बातों को  कबूल कर रहा था पर तूने क्यों उसका दिल दुखाया ?

फकीर की बोलती बन्द हो गयी।
कहने का मतलब ये कि वह मालिक दिल के भाव देखता है। ऊपरी बनावट नहीं देखता।

किसी फकीर ने कहा है किः   अगर तू उस प्रभु प्रीतम से मिलना चाहता है तो किसी के दिल को न दुखा।




【 *संस्मरण- बाबा जयगुरुदेव जी* 】


जब बाबा जयगुरुदेव जी महाराज अपने गुरु महाराज के पास गए थे तो कम उम्र के हट्टे, कटटे जवान थे । इनको देखकर स्वामी जी महाराज के गुरु के एक प्रेमी ने कहा कि स्वामी जी,  यह आदमी क्या साधन  कर सकेगा ?

दादा गुरु महाराज ने जवाब दिया था कि ऐसा मत कहो।  कौन जाने वह मालिक किस पर खुश  हो जाय।

इस घटना को सुनाते हुए बाबा जयगुरुदेव महाराज ने कहा कि ये सुनकर मुझे बहुत धक्का लगा था कि मैं भजन नहीं कर सकूंगा।  मैंनें खाना कम कर दिया कि मैं दुबला हो जाऊँ।

महात्मा परमात्मा से मिले होते हैं और परमात्मा से मिलाते हैं।  वो अन्तर्यामी होते हैं, सबके अन्दर के भाव को  समझते हैं।  उनको बातों की बनावट खुश  नहीं कर सकती, ऊपरी दिखावा धोखा नहीं दे सकता। 

यह बात अलग है कि वह परमात्मा के रूप होते हैं। इसलिए सबकुछ जानते समझते भी वो चुप रहते हैं, सबको समभाव में पचा लेते हैं। क्योंकि  वह आते ही हैं हम भोले जीवों को समझाने के लिये,  गिरे जीवों को उठाने के लिए। 

वो जानते हैं  कि अगर वो हमारी हकीकत कह  दें तो हम चले जायेंगे और अपना नुकसान कर लेंगे। 
लेकिन जब समय आता है तो वह अपना परिचय देते हैं।। 

उनकी आध्यात्मिक दौलत का अधिकारी तो कोई भोला भक्त होता है जो उनकी हर कसौटी पर खरा उतरता है बाकी ये है कि सारी संगती की सम्हाल तो करते ही हैं,  सबको समझाते हैं,  सबको साधन भजन करने की प्रेरणा देते हैं, सबके लिए उनका समान उपदेश  है।

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    साभार,
- अंतर्ध्वनि अक्टूबर 2010 
जयगुरुदेव।
baba-Jaigurudev
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