कहानी संख्या 21. अमृत वाणी
*कोई तुम्हें आत्मा से दुआऐं देगा तो शान्ति मिलेगी।*
एक आदमी के चार बच्चे थे। जब वह मरने लगे तो अपना धन चारों बच्चों को बराबर- बराबर बांट गया और बोला कि इसे तुम मेरे पास पहुंचा देना।
पहले लड़के ने सोचा कि धन को जमीन में गाड़ दूं फिर पिताजी के पास पहुंचा दूंगा तो उसने गाड़ दिया।
दूसरे ने उस रुपये का बाग, बाबड़ी और धर्मशाला बनवा दिया।
तीसरे ने सोचा कि अभी जल्दी क्या है, रुपये को व्यापार में लगा दिया जाए, कुछ आमदनी हो जायेगी फिर ब्याज सहित पिताजी को वापिस कर दूंगा। उसने सारा रुपया व्यापाार में लगा दिया।
चौथे लड़के ने रुपयों को गरीबों, दीन-दुखियों को भोजन कराने में उनकी सेवा में खर्च कर डाला।
जब लड़को का अन्तिम समय आया तो यमदूत पहले लड़के के पास गये और पूछा कि तुमने पिताजी का रुपया उनके पास पहुंचा दिया..?
तो वह बोला कि हां पहुंचा दिया।
यमदूत बोले कि उसे तो तुमने जमीन में गाड़ रक्खा पहुंचाया कहां ? और उसे मारते हुए ले गये।
दूसरे लड़के के पास जब पहुंचे तो उससे भी वही प्रश्न किया।
उसने कहा कि धर्मशाला, बाबड़ी बना दिया है ।
यमदूतों ने कहा कि तुमने तो अपना नाम किया है। उसे भी पकड़कर ले गये।
तीसरे लड़के से जब पूछा तो बोला कि पहुंचा दिया।
इस पर बिगड़कर यमदूतों ने कहा कि व्यापार में रुपया लगा दिया और कहते हो पहुंचा दिया। उसको घसीटते हुए ले गऐ।
चौथे लड़के के पास जब पहुंचे तो उसने कहा कि मैं अपने पिताजी के पास रुपया नहीं पहुंचा पाया । गरीबों की सेवा में खर्च हो गया।
यमदूतों ने कहा कि नहीं, तुम्हारा रुपया तुम्हारे पिताजी के पास पहुंच गया है....।।
इस कहानी को सुनाते हुए स्वामी जी महाराज ने कहा कि जो धन तुम गरीब, दीन दुखियों की सेवा में खर्च करते हो उससे मालिक प्रसन्न होता है।
अपने दरवाजे पर आये हुए को दो रोटी खिला दो, प्यासे को पानी पिला दो, वह तुमको अपनी आत्मा से दुआयें देगा, आशीर्वाद देगा तुम्हे शांति मिलेगी।
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जयगुरुदेव ●
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amratvani |
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Jaigurudev