● अमृत वाणी ●
【 *एक संस्मरण- बाबा जयगुरुदेव * 】
आप कहते हो कि घरवाले, रिश्तेदार हमारा विरोध करते हैं । लेकिन साधु समाज भी भजनान्दियों का विरोध करता है।
हमारे पास एक साधु जी आये। मुझसे बोले कि मैंने यह भेष धारण किया, घर बार छोड़ा लेकिन अभी तक मुझे कुछ मिला नहीं, मैं भजन करना चाहता हूं।
मैंने उनको भेद दे दिया। वो भजन में लग गये। वो जहां भी रहते थे वहां और भी साधु लोग रहते थे। जब ये भजन करते थे तो उन लोगों ने तूफानबाजी शुरु की, कि ये क्या करने लगे।
वो बेचारे बहुत दुखी और परेशान होकर मेरे पास आये और कहते लगे कि महाराज क्या करुं मेरे साथ वाले बहुत तंग कर रहे हैं मुझको। बहुत सीधे साधु जी थे।
मैंने उनको समझाया कि तुमने तो घर वार छोड़ दिया अब तुमको सच्चा रास्ता मिल गया भजन करने का तो कहीं और चले जाओ बहुत एकान्त जगह है।
छोड़ दो इन लोगों का साथ, तुमको इन लोगों से क्या लेना देना है।
उन्होंने मेरी बात मान ली और भजन में लग गये। वो बराबर मेरे पास आते जाते रहे। अभी कुछ दिन हुुआ उनका शरीर छूट गया।
कहने का मतलब ये हैं कि *अगर तुम पक्के रहोगे तो तुम्हे कोई डगमगा नही सकता है। जब तुम्हारे में कच्चाई रहेगी तो कोई कुछ कहेगा और तुम डगमगा जाओगे।*
महात्माओं के पास जाओ तो ये इच्छा लेकर जाओ कि अपनी जीवात्मा के लिए कुछ कर लें।
【 *साधना से सम्बन्धित विषय* 】
ध्यान के समय कुछ देर बाद जब पैरों में दर्द होने लगे तो थोड़ा बर्दाश्त करें। जब दर्द बर्दाश्त से बाहर होने लगे तो आसन बदल सकते हैं। ऐसी हालत में आसन बदलने में कोई हर्ज नही है।
धीरे धीरे आपका ध्यान सिमट कर तीसरे तिल में इकटठा हो जायेगा तब पैर में दर्द अनुभव करने के लिए ध्यान नीचे नही उतरेगा और जब सम्पूर्ण रूप से ख्याल तीसरे तिल में आकर ठहर जायेगा तब सारी तकलीफें खत्म हो जायेंगी।
आंखों पर कोई दबाव नही डालना चाहिए। ध्यान का केन्द्र आंखों में नही है बल्कि दोनों आंखों के मध्य में है।
जैसे जैसे सिमटाव होने लगेगा और एकाग्रता पूर्ण हो जायेगी वैसे वैसे सारे झटके खिचाव और कम्पन मिट जायेंगेे। इसके बारे में चिन्ता नही करनी चाहिए।
सब अभ्यासियों को ऐसी कठिनाययां नही होती हैें लेकिन जिनहें होती भी हैें वे उनसे छुटकारा पा लेते हैं।
- स्वामी जी के वचन
जयगुरुदेव।
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Amrat vani Jaigurudev |
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