सन्तों की होली का अनूठा दृष्य, इतिहास में एक नया मोड़-
बच्चे बूढ़े जवान आश्चर्य चकित जयपुर की गली-गली में जयगुरुदेव बाबा की चर्चा।
रामलीला मैदान मेें 26 फरवरी 1972 की होली का सत्संग शुरु हुआ और चार दिनों तक बराबर चलता रहा। विशाल मैदान बहुत ही सुन्दर तरीके से सजाया गया था। मुख्य द्वार से लेकर मंच तक रंग बिरंगे फूलों का जाल बिछा दिया गया था। चारों तरफ मैदान में तथा बीच बीच में लगी झंडियों ने शोभा को बहुत बढ़ा दिया था।
बिजली के छोटे-छोटे रंगीन बल्वों की सजावट फाटक, मंच एवं मंच के सामने गमलों में लगे पौधों की डालियों में इस प्रकार की गयी थी कि जयपुर की जनता के मन में खलबली सी मच गई। लोगों का यह आम प्रश्न बन गया है कि इतनी भव्य सजावट तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आगमन में जयपुर के इतिहास में कभी नहीं की गई। इतना रुपया कहां से आया? लोगों के मन में उठे प्रश्नों के उत्तर इन इंतजाम करने वालों से पूछो। ये तुम्हें सब कुछ बतायेंगे।
मैदान के दोनों तरफ बड़े-बड़े डेरे लगाये गये थे जिनमें बाहर से आये लोगों को ठहराया गया था। वैसे धर्मशाला में भी संगत की ओर से ठहरने की सुंदर व्यवस्था थी। मैदान में स्त्री-पुरुषों के अलग अलग शौचालय भी बनाये गये थे। पानी की मांग को फायर ब्रिगेड की मोटर बार बार आकर पूरा कर रही थी। पानी की तकलीफ किसी को नहीं हुई।
रामलीला मैदान का मंच काफी ऊंचा बना था। उसके पीछे स्वामी जी महाराज का कमरा था जिसके सामने प्रातः चार बजे से लेकर रात्रि के डेढ़ बजे तक बराबर निकलते थे तो स्त्री पुरुष सभी मत्था टेकने के लिए चरणों में गिर जाते थे। ऐसा देखा जाता था कि स्वामी जी द्वारा बार बार मना करने पर भी अधिकांश लोगों को उनकी बातों का असर नहीं होता था। प्रेमियों व नगर के नये मिलने वालों से स्वामी जी निरंतर घिरे हुए थे।
श्रीधर अपनी डयूटी में पूरे मुस्तैद दिखाई पड़ते थे और उनकी इक्षा के विपरीत लोग स्वामी जी के कमरे में घुसने से डरते थे। इतनी कठिन पहरेदारी पर कई लोग क्रोधित होते हुए भी दिखाई दिये किंतु दूसरे ही क्षण स्वामी जी स्वयं अपना दर्शन देते थे और प्यार भरी निगाह लोगों पर ऐसी डालते थे कि लोग कहा सुनी को बिल्कुल भूल जाते थे।
आए हुए हजारों लोगों के भोजन की व्यवस्था बहुत ही सुंदर थी। बहनें और भाई राजस्थान के मधुरस्वर में प्रार्थनाएं गाते हुए सब्जियां काटते थे आटा माड़ते थे या रोटी खिचड़ी बनाते थे। होली के दिन भंडारग्रह में प्रसाद की व्यवस्था थी ही किंतु जयपुर के सत्संगी भाई बहनें अपने -अपने घरों से अपनी-अपनी इच्छानुसार प्रसाद लाए थे। लोगों ने हर प्रकार के भोजन का स्वाद लिया।
मुख्य द्वार के पास कार्यालय का टेंट था जिसमे अस्थाई रूप से टेलीफोन की व्यवस्था थी। बाहर से आए हुए लोगों को सर्वप्रथम परिचय पत्र दिया जाता था जिसमें उनका नाम उम्र तथा पता लिखा रहता था।
सुरक्षा व्यवस्था पूरी थी। 24 घंटे पहरे की व्यवस्था थी। पहरे के लिए सत्संगी भाईयों ने बारी-बारी से समय निर्धारित कर लिया था। इतने बड़े जनसमूह में किसी का सामान चोरी नहीं गया। अगर किसी की कोई वस्तु, धनराशि अथवा जेवर कहीं पड़ा मिल जाता था तो लोग उसे कार्यालय में जमा कर देते थे। उसका एनाउंसमेंट कर दिया जाता था. लोग अपने सामानों को जाकर लेते थे।
बंधु स्टुडियो लखनऊ एवं कुछ ओर लोगों के स्टाल लगे हुए थे। स्वामी जी महाराज के साथ फोटो खिंचाने की इच्छा रखने वाले प्रेमियों को फोटो खींचने का प्रबंध बंधु जी ने सुंदर ढंग से किया था। स्वामी जी सत्संग के मैदान में घूमते थे प्रेमियों के टेन्टों में जाते थे सबका हालचाल पूछते थे बाहर से आये हुए लोगों से मिलते थे उनके प्रश्नों का उत्तर देते थे ।
यदि कहीं कोई गन्दगी मैदान में अथवा टेंट में रहती थी इसके लिए स्वामी जी का आदेश था कि सफाई रहना आवश्यक है। अतः सभी सत्संगी स्त्री-पुरुष एवं बच्चे सफाई का विशेष ध्यान रखते थे। इतने लोगों के एक साथ रहने के बावजूद भी कहीं कोई गन्दगी नजर नहीं आती थी।
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev