आत्म मंथन अवश्य करें

जो समय रहते गुरु आज्ञा मान कर गुरु के आज्ञा अनुसार चलते हैँ , तो गुरु खुश हो जाते हैं.
जो मन के अनुसार चलते हैं वो फिर चौरासी लाख योनियों में भटकते रहते हैँ। 

एक समय की बात है, कबीर साहब एक गांव में गये वहाँ उन्हें एक आदमी मिला। 
कबीर साहब ने कहा - भाई, कब तक जगत जंजाल में पड़ा रहेगा। प्रभु का नाम जपा कर, अपना जीवन सुधार लो। 

आदमी बोला - कबीर साहब, अभी मेरे बच्चे छोटे छोटे हैं । जब इनकी शादियां हो जायें तब प्रभु का नाम जपूंगा। 
काफ़ी समय बाद कबीर साहब फ़िर आये, और बोले - अब तो नाम जपा कर। 

वह बोला - बच्चे तो बड़े हो गये इनकी शादियां भी हो गयीं पर अभी इनके बच्चे छोटे छोटे हैं, ये बड़े हो जाय, तब नाम जपूंगा।
कबीर साहब चले गये। मगर अबकी बार जब आये, तो वह बूढ़ा मर चुका था। 

उन्होंने पूछा - यहाँ एक बाबा रहते थे, वे कहाँ गये?
घरवालों ने कहा - उन्हें तो मरे हुये बहुत समय हो गया, महाराज।

आत्मज्ञानी कबीर साहब जानते थे कि उसका पुत्र पोत्रों तथा गाय से बहुत मोह था और ऐसा आदमी मरकर कहीं नहीं जाता, वरन माया मोहवश मरकर वहीं जन्म लेता है। प्रभु को याद किया नही इसलिए मनुष्य जन्म मिलता नहीं अतः किसी पशु आदि की योनि में ही होगा। 

उस बूढ़े को अपनी एक गाय से बेहद प्यार था। जब कबीर साहब ने अंतरध्यान होकर देखा तो वह बूढ़ा मरकर उसी गाय का बछड़ा बना था। (मरने के बाद भी जीवात्मा का लिंग परिवर्तित नहीं होता। स्त्री मादा रूप में, पुरुष नर रूप में ही जन्म लेगा। चाहे वे पशु, कीट, पतंगा कुछ भी क्यों न बनें) जब वह तीन साल का हुआ, तो अच्छा बैल बन गया। घर वालों ने उसे खेती के काम में खूब जोता जब उनके काम का न रहा तो उन्होंने उसे गाड़ीवान को बेच दिया। उसने भी उसे खूब काम में लिया। 

जब वह गाड़ीवान के काम का भी ना रहा, तो उसने उसे एक कोल्हू चलाने वाले तेली को बेच दिया। बूढ़ा हो जाने के बाद भी तेली ने उसे खूब काम लिया। आखिर जब वह तेली के काम का भी ना रहा, तो उसने उसे एक कसाई को बेच दिया। 
कसाई ने पूरी निर्दयता से उसे जीवित ही काट डाला, और उसका मांस बोटी बोटी करके बेच दिया। बाकी बचा हुआ चमड़ा नगाड़ा मढ़ने वाले ले गये। उन्होंने नगाड़े  पर मढ़कर उसे तब तक पीटा जब तक वह फ़ट ना गया। 

इसी पर कबीर साहब ने दोहा बनाया:-

बैल बने हल में जुते, ले गाड़ी में दीन। 
तेली के कोल्हू रहे, पुनि घेर कसाई लीन। 
मांस कटा बोटी बिकी, चमड़न मढ़ी नक्कार। 
कछुक करम बाकी रहे, तिस पर पड़ती मार।  

इसलिए मन को संसार में नहीं लगाना। नाव पानी में रहे, लेकिन पानी नाव में नही...
जैसा कि संत भी फरमाते है- 

किसी पूर्ण सन्त से जीते जी मरने की युक्ति लेकर उसकी कमाई करनी चाहिए  
जीवत मरीये भवजल तरीये..
अपनी मुक्ति का उपाय कर लीजिए

प्रणाम जयगुरुदेव 


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