जयगुरुदेव संगत की प्रार्थनाएं (Post no. 32)

जयगुरुदेव
स्वामी जी व महाराज जी का आदेश... 
*प्रार्थना व साधना रोज होनी चाहिए...*

प्रार्थना 187. 
*Guru charan kamal ka dhyan*
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गुरु चरण कमल का ध्यान, लिपट जाऊं रज बन के।।

नित उठ तेरा दर्शन पाऊं, 
हरस हरस कर गुरु गुण गाऊं,
मेरे नस नस बस जाओ आप,
बरस जाओ घन बन के।।

पल पल तेरा सुमिरन होवे,
तन मन धन तेरे अर्पण होवे।
तेरे चरण कमल कुर्बान, 
नाम की धुन सुन के।।

सब अहंकार तजो मन मेरे,
गुरु का नाम जपो मन मेरे।
तेरा सुमिरन आठो याम,
रुके न पल भर मन से।।

मैं गुणहीन दोष का भागी,
क्रोध न छोड़ी ममता नही त्यागी।
आया हूं तेरे द्वार, गुरुजी तुम पति मन के।।
गुरु चरण कमल का ध्यान, लिपट जाऊं रज बन के।।


प्रार्थना 188. 
*Guru mam surat ko gagan par*
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गुरु मम सुरत को गगन पर चढ़ाना,
दया करके सत धुन की धारा गहाना।।

प्रभु अपनी किरण का सहारा गहाकर,
परम तेज मय रूप अपना दिखाना।।

साधन भजन हीन मुझ सा ना कोई,
मेरे इस दुर्बलता को प्रभु जी हटाना।।

पापों के संस्कार जन्मों के मेरे,
जो हैं वो दया कर क्षमा कर मिटाना।।

तुम्हारा बिरद गुरु है पतितों को तारन,
वह अपना बिरद राग मुझे भी निभाना।


प्रार्थना 189. 
*mere satguru teri nokri*
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मेरे सतगुरु तेरी नौकरी, सबसे बढ़िया है सबसे खरी,
तेरे दरबार की हाजिरी सबसे बढ़िया है, सबसे खरी।।
खुश नसीबी का जब गुल खिला, तब कही जाके ये दर मिला,
हो गई अब तो रेहमत तेरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी।
तेरे दरबार की हाजिरी सबसे बढ़िया है, सबसे खरी।।

मैं नहीं था किसी काम का, ले सहारा तेरे नाम का।
बन गई अब तो बिगड़ी मेरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी,
तेरे दरबार की हाजिरी .........

जब से तेरा गुलाम हो गया, तब से मेरा भी नाम हो गया,
वर्ना औकात क्या थी मेरी, सबसे बढ़िया है सबसे खरी।
तेरे दरबार की हाजिरी ......

मेरी तन्खा भी कुछ कम नहीं, कुछ मिले न मिले गम नहीं,
ऐसी होगी कहाँ दूसरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी।
तेरे दरबार की हाजिरी .........

इक वियोगी दीवाना हूँ मैं, खाक चरणों की चाहता हूँ मैं,
आखिरी इल्तजा है मेरी सबसे बढ़िया है सबसे खरी।
तेरे दरबार की हाजिरी ...


प्रार्थना 190. 
*mat kholo guruji mera khata*
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मत खोलो गुरुजी मेरा खाता, मेरा जनम जनम का नाता।।
खाता मेरा काला प्यारे, खाता मेरा काला प्यारे।
मैं तो निश दिन पाप कमाता, मेरा जनम जनम का नाता।।
मैं अवगुण की खान हूँ स्वामी, मैं मूरख अज्ञान हूँ स्वामी।
मैं तो दीन हूँ मेरे दाता, मेरा जनम जनम का नाता।।
कौन जनम मैं पाप न किन्हा, कौन जनम तूम छमा न दिन्हा।
अब खोलो अरदास मेरे दाता, मेरा जनम जनम का नाता।।


जयगुरुदेव प्रार्थना 191. 
*Gurudev tumhare charno me*
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गुरुदेव तुम्हारे चरणों में बैकुंठ का वास लगे मुझको।
अब तो तेरे ही रूप का बस प्रभु जी अहसास लगे मुझको।।

अमृत चरणों का देके मुझे,
पापी से पावन कर डाला।
मेरे सिर पर हाथ गिरा करके, 
मुझे अपने ही रंग में रंग डाला।।
इस जीवन की बिलकुल ही नहीं 
जैसे शुरुआत लगे मुझको।।

मैं किस पे भला अभिमान करूं,
ये हाड़ मांस की काया है।
सोना चांदी हीरे मोती 
बस चार दिनों की माया है।
गुरुदेव ने ऐसा ज्ञान दिया 
दुनिया वनवास लगे मुझको।।

मैने नाम गुरु का लिख डाला, 
हर स्वांस पे हर इक धड़कन पर।
केवल अधिकार गुरु का ही,
अब तो मेरे इस जीवन पर।
गुरुदेव बिना कुछ भाता नहीं,
ऐसा आभास लगे मुझको।।
अब तो तेरे ही रूप का बस 
प्रभु जी अहसास लगे मुझको।।

जयगुरुदेव प्रार्थना 192 . 
*karu vinti dou kar jori*
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करूं विनती दोऊ कर जोरी,
अर्ज सुनो सतगुरु स्वामी मोरी।।

सतपुरुष तुम सतगुरु दाता,
सब जीवन के पिता और माता।
दया धार अपना कर लीजै।
काल जाल से न्यारा कीजै।

सतयुग त्रेता द्वापर बीता,
काहु न जानी शब्द की रीता।
कलयुग में स्वामी दया विचारी,
परगट करके शब्द पुकारी।

जीव काज स्वामी जग में आए,
भवसागर से पार लगाए।
तीन छोड़ चौथा पद दिन्हा,
सतनाम सतगुरु गति चिन्हा।

जगमग ज्योत होत उजियारा,
गगन श्वेत पर चंद्र निहारा।
श्वेत सिंहासन छत्र विराजे,
अनहद शब्द गैब धुन बाजे।

क्षर अक्षर निरूक्षर पारा,
विनती करें जहां दास तुम्हारा।
लोक आलोक पांवे सुख धामा,
चरण शरण दीजिए विश्रामा।

करूं विनती दोऊ कर जोरी,
अर्ज सुनो सतगुरु स्वामी मोरी।।

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