सतगुरु साधक प्रार्थना (Post no. 31)

जयगुरुदेव प्रार्थना 182. 
*Tumhare charno me pyare satguru*
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तुम्हारे चरणों में प्यारे सतगुरु सुरत को अपने लगाऊंगी मैं।
इसी को देरौ हरम समझ कर, कहीं ना आऊंगी जाऊंगी मैं।।

तुम्हारे मूरत को मन के मंदिर में रखके, सादर सजाऊंगी मैं।
दो फूल खुश रंग प्रेम और भक्ति को तोड़,  तुम पर चढ़ाउंगी मैं।।

उतारूंगी आरती तुम्हारी, दुही का लोबान जलाऊंगी मैं।
निसार तुम पर खुदी करूंगी, निशाने हस्ती मिटाउंगी मैं।।

आवाज अनहद के घट है जितने, सब एक-एक कर बजाउंगी मैं।।
रहूंगी होकर तुम्हारी सतगुरु ना गैरों की अब कहाउंगी मैं।।
तुम्हारे चरणों में प्यारे सतगुरु, सूरत को अपने लगाऊंगी मैं।।

जयगुरुदेव


जयगुरुदेव प्रार्थना 183.. 
*Mere guru tu mujhko bata*
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मेरे गुरु तू मुझको बता, तेरे सिवा क्या करूं।
तेरी शरण को छोड़ कर, जग की शरण क्या करूं।।
फूलों में बस रहे हो तुम, कलियों में खिल रहे हो तुम।
तेरे चमन के सामने, उपवन लगा के क्या करूं।। 
चन्द्रमा बन के आप ही, तारों में जग-मगा रहे।
ज्योति तेरी के सामने, दीपक जला के क्या करूं।। 
माता भी तुम पिता भी तुम, बन्धु भी तुम सखा भी तुम।
सच्चिदानन्द आप हो जड़ की पूजा मैं क्या करूं।। 
मेरे गुरु तू मुझको बता, तेरे सिवा क्या करूं।


जयगुरुदेव प्रार्थना 184. 
*Mere tan se pran nikle*
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मेरे तन से प्राण निकले, गुरु सेवा करते-करते।।
यह बात कह रही हूँ, स्वामी से डरते-डरते।।
यह जग जंजाल है स्वामी, कब तक पड़े रहेंगे।
जन्मों-जनमों की खातिर, कब तक अड़े रहेंगे।
कही मैं भी रह ना जाऊँ, यहा हाथ मलते-मलते।।
माया हटा रही है, गुरु तेरे रास्ते से।
परदा हटाओ स्वामी, दरशन के रास्ते से।
कहीं मैं भी थक ना जाऊँ, यहाँ राह चलते-चलते।।
दिया नाम धन खजाना, रखने का ज्ञान बक्सो।
तीनों खड़े हैं दुश्मन, बचने का ज्ञान बक्सो।
आ जाऊँ तेरे दर पे, यू ही राह चलते-चलते।।


जयगुरुदेव प्रार्थना 185. 
*Teri yad me tan man*
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तेरी याद में तन-मन वार दिया, क्यों सुनते मेरी पुकार नहीं।।
मैं वन-वन तुमको ढूँढ़ रही, सतगुरु जी दर्शन दे देना।
अपराध गुरु जी मैंने क्या किया, क्यों मुझको दर्शन देते नहीं।।
तेरी याद....

तेरे द्वार पे दुखिया खड़ी हुयी है, इसकी भी विनती सुन लेना।
तुम सब की झोली भरते हो, इसकी भी झोली भर देना।।
तेरी याद....

इस मोह-माया में पड़ी हुयी हुँ, बाबाजी मुझे छुड़ा लेना।
तुम आतम ज्ञान कराते हो, मेरी भी सुरत जगा देना।।
तेरी याद....

कैसे पाऊँ अपने सतगुरु को, तेरा पाया कोई पार नहीं।
मझधार में नैया डूब रही, बाबाजी इसे बचा लेना।
तुम सब को पार लगाते हो, मुझको भी पार लगा देना।।
तेरी याद....

जब अन्त समय मे प्राण तजूं, सतगुरु जी दर्शन दे देना।
तुम सबको साथ ले जाते हो, मुझको भी साथ में  ले जाना।।


जयगुरुदेव प्रार्थना 186. 
*Meri ake bandha jao*
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मेरी आके बन्धा जाओ धीर।
गुरुजी कहां जाके छुपे।
खोजत खोजत बाजू बल हारे,
थर थर कांपे शरीर।
चौक चौक चारों और निहारुं,
नयनों से बरसे नीर।
गहरा घाव हुआ मेरे मन में,
कौन हरेगा मेरी पीर।
अब तो संभालो सतगुरु प्यारे,
आगे है मेरी तकदीर।।

जयगुरुदेव 
शेष क्रमशः पोस्ट न. 32 में पढ़ें 👇🏽

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