26. दान पुण्य का पैसा कभी मत खाना

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश

कहानी संख्या 26.

पहले किसी का कोई पैसा खा जाता था तो उसे चोर बोलते थे,  समाज में उसकी कोई कदर नहीं होती थी।  पर आज कल तो सबकुछ उल्टा ही है । बस मिल जाये ।

कहीं से भी किसी का भी बिना मेहनत का पैसा नही लेना चाहिए।  क्योंकि पापों का सांझीदार कोई नही होता है। इस बात का ध्यान रखें । इसलिए दान के पैसें का एक रुपया भी अपने उपर खर्च नही करना चाहिए।

बाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड में,  एक कथा आती है, भगवान श्री राम अयोध्या के राजा थे।  तब एक बार भगवान श्री राम के दरबार में न्याय पाने के लिये, एक कुत्ता घिसटते घिसटते पहुंच गया था ।  रामराज्य की बात है,  त्रेता युग में उस समय पशु पक्षी भी बोलते थे।

जब लक्ष्मण जी ने कुत्ते से पूछा, कि क्या बात है कैसे आना हुआ।  तो कुत्ते ने कहा कि मुझे भगवान श्री राम से न्याय चाहिए।  अब भगवान श्री राम उपस्थित हुए,  और फिर कुत्ते से पूछा कि बताओ क्या बात है कैसे आना हुआ।

कुत्ते ने कहा कि भगवन,  मैं खेत की मेढ़ के बगल में लेटा था तभी एक ब्राहमण वहां से कहीं जा रहे थे, मुझ पर अनावश्यक  डण्डे से प्रहार कर दिया और मेरी कमर तोड़ दीं ।  मुझे न्याय चाहिए कि बिना किसी अपराध के भी ब्राह्मण  ने मुझे क्यों पीटा ? इसलिए आप उस ब्राह्मण  को डण्ड दीजिए।

इस पर भगवान श्री राम ने उस ब्राह्मण  को भी बुला लिया।  और सवाल  किया कि क्या इस कुत्ते ने तुमको नुकसान पहुचाया, भोंका, या आपके पीछे पढ़ा।  आपने इस कुत्ते को किस कारण से पीटा है।

ब्राह्मण ने कहा कि प्रभु, मैं स्नान करने के लिए नदी की तरफ जा रहा था तो सोचा कि ये कुत्ता मुझे छू कर अपवित्र ना कर दे इसलिए इसे दूर भगाने के लिए,   मैंने एक डण्डे से इस पर प्रहार कर दिया।   पण्डित से कहा गया कि मतलब तुमने अपराध किया है।

भगवान ने कुत्ते से पूछा कि तुम बताओ इन को इस अपराध का क्या डण्ड दिया जाय।  तो कुत्ते ने कहा कि प्रभु मैं आपकी शरण  में आया हूं न्याय तो आप ही कीजिए।

इस पर भगवान ने फिर कहा कि नहीं तुमही बताओ कि इसके अपराध का  क्या डण्ड दिया जाय। और जो आप चाहोगे वही डण्ड इन पर लागू होगा।

तब उस कुत्ते ने कहा कि इन भगवन।
इस ब्राह्मण को किसी एक बड़े मठ का महन्त, मठाधीष बना दिया जाय।  यह सुनकर वहा राज दरबार में उपस्थित सभी लोग स्तब्ध अवाक रह गये।

क्योंकि  मठ में तो  असीम वैभव  ऐश्वर्य  और अकूट धन सम्पदा होती है। वह तो मौज की जगह होती है। लोग आते हैं पूजा करते है। वह तो मौज करेगा।  तो मठ का मठाधीष बनना तो बडी बात होती है।

तब भगवान श्री राम ने पूछा कि तुम दण्ड दे रहे हो या मजाक कर रहे हो । तब कुत्ते ने भगवान श्री राम से कहा कि नहीं प्रभु मैं दण्ड दे रहा हूं।

क्योंकि पिछले जन्म में वहां का मठाधीष मैं ही थां । पर उस मठ की धन, सुख सम्पत्ति ऐश्वर्य  ने मेरी बुद्धि भ्रष्ट कर दी।  मुझे जो सत्य के प्रति कार्य करना था उसे ना करके मैं गलत कर्मा में लिप्त रहने लगा और उस को ही असली आनंद समझ बैठा जिससे मेरे तपस्या का तेज खतम होने लगा और एक दिन मेरी मृत्यु भी हो गयी।  

उसके बाद मुझे ये कुत्ते की योनि प्राप्त हुई। मेरे कर्म इतने खराब हो गये थे कि दुबारा मुझे मनुष्य जन्म भी नहीं मिला।
इसलिए हे प्रभु मैं जानता हूं कि ये ब्राह्मण  भी मठ के मठाधीष होते ही सुख भोगने में लग जायेंगा, खूब चूरमा खायेगा लडडु के बना बना के ।  इसलिए प्रभु बना दो इसको मठाधीष।  

जब ये मठाधीष बन जायेंगे तो इनका भी निश्चित  रूप से तपका तेज खतम हो जाएगा और ये भी मेरी तरह कुत्ता बनकर द्वार द्वार घूमेंगे भोजन के लिए।

कुत्ते की रहस्य भरी बातों को सुनकर सभी लोग आश्चर्य  से भर गये।

इसलिए प्रेमियों,  दान देना तो आसान है लेकिन दान को पचाना बड़ा मुश्किल  है।  इसके बड़े भंयकर परिणाम भोगने पड़ते थे।

कभी भी, किसी के भी दान के पैसे को मत रखिऐ, मत खाइये।  इस बात का ध्यान रखिऐ।

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जयगुरुदेव 


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पौराणिक कथा 


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