*कहानी 18. | गुरु बन्दी छोड़*

कहानी संख्या 18.

★ *गुरु कब खुश होता है* ★


स्वामी जी महाराज ने एक कहानी सुनाई।  कहानी तो छोटी सी थी लेकिन उसने जो सीख दी वो बड़ी गहन और गंभीर है।  कहानी इस प्रकार हैः

एक महात्मा का शिष्य भीख मांगने जाया करता था तो गृहस्थ के दरवाजे पर कहता कि "गुरु बन्दी छोड़।"
एक घर में एक तोता पिंजरे में टंगा था। वो उसकी आवाज को रोज सुनता था। उस शिष्य ने जब उस दरवाजे पर आवाज लगाई तो तोते ने कहा कि तेरा  गुरु बन्दी छोड़ है।  उनसे पूछना कि मेरा बन्धन कैसे टूटेगा।

शिष्य बोला कि ठीक है पूछकर बताऊंगा।

शिष्य जब आश्रम पर गया तो गुरुजी से तोते की बात बताई। उसको सुनते ही गुरु जी बेहोश हो गए। 
दो तीन घण्टे ऐसे ही पड़े रहे। आश्रम में हड़कम्प मच गया  कि गुरु जी को क्या हो  गया। 

तीन घण्टे बाद गुरुजी उठकर बैठे।
दूसरे दिन शिष्य जब मांगने गया तो उस तोते ने कहा कि तुम्हारे गुरु ने क्या कहा ? 

शिष्य गुस्से में बोला कि तूने तो मेरे गुरुजी को बीमार कर दिया। तेरा सन्देश सुनते ही गुरुजी तीन घण्टे बेहोश रहे। उसने तोते को बहुत कुछ बुरा भला कहा।

यह सुनते ही तोता पिंजरे में गिर पड़ा। जब दो तीन घण्टे वो नहीं उठा तो घर वाले समझे कि वो मर गया और उसे पिंजड़े से निकालकर दूर फेंक आए। 

दूसरे दिन जब शिष्य भीख मांगने चला तो उसको तोता रास्ते में मिला। उसने कहा कि अरे तू गुरु बन्दी छोड़ का नारा लगाता है और मुझसे नाराज हो रहा था। 

तेरे गुरुजी ने जो  सन्देश  तुझको  दिया तू उसको न समझ सका।  उन्हीं के कहे अनुसार मैंने किया और मैं आज आजाद हो गया।

कहने का मतलब यह है कि महापुरुषों की निराली अदा है, वो खुलकर कोई बात नहीं कहते, इशारे में समझा देते हैं, कह देते हैं। जो उनके इशारे समझता है वो परमार्थ के रास्ते पर बढ़ता  चला जाता है और जो उनके इशारे नहीं समझता वो बात चाहे जितनी लम्बी चौड़ी करे, आगे पीछे चौबीसों घण्टे घूमता रहे पर कुछ ले नहीं पाता । 

इसीलिए कबीर साहब ने कहा हैः 
*सैन बैन समझे  नहीं, तासो कुछ न कहन*

सहजो बाई कहती हैंः
*सहजो गुरु परसन्त होयं मूंद लिए दोऊ नैन।*
*फिर मो से ऐसी कही, समझ लेहु यह सेन।।*

तो सहजो बाई कहती हैं कि मेरे गुरु जब खुश हुए तो उन्होंने दोनों आखें बन्द कीं और कहा कि तू मेरा इशारा समझ ले यानी ध्यान भजन में लग जा। उसमें जो धन मिले वो मुझको बता। 

स्वामी जी महाराज भी बराबर कहते हैं कि तुम सोचते हो कि गाड़ी मोटर दे दूंगा, रुपये पैसे दे दूंगा और सामान दे दूंगा तो मुझे खुशी होगी। ये सब बातें तो छोड़ कर जाना है। खुशी तो तब होगी जब तुम्हें जो नाम की पूंजी मिली है उसकी कमाई करो, उसको आकर मुझको सुनाओ। तब खुशी होगी। क्योंकि
वही आत्मधान तुम्हारे साथ जायेगा, वह तुम्हे कभी नहीं छोड़ेगा। 

इतनी मेहतन मैं करता  हूं इसीलिए कि तुम्हारा ये मनुष्य शरीर सफल हो जाय। इसमें तुम अपनी आत्मा के लिए कुछ कर लो।

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(- स्वामी जी महाराज के सत्संग से )
जयगुरुदेव



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