*Hakikat Jo Kahani Ban Chuki* (16.)

कहानी संख्या  16.

*【 हकीकत जो कहानी बन चुकी 】*
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एक महात्मा जी नदी के उस पार जंगल में रहते थे। पूरे महात्मा थे।
उनकी एक शिष्या थी जो रोज पुल को पार करके उन्हें दूध देने जाया करती थी। 

उसका नित्य का यहीं क्रम था, घर के काम निपटा कर भजन करना और महात्मा जी के पास दूध पंहुचाना और सत्संग सुनना।

जरूरत के मुताबिक उस स्थान पर कुछ महीनों के लिए पुल बांध दिया जाता था फिर तोड़ दिया जाता था। 

जब पुल टूटने वाला था तो उस स्त्री ने महात्मा जी से प्रार्थना की कि हुजूर ! पुल जब कल टूट जाएगा तब मैं दूध कैसे लाऊंगी और सत्संग भी नहीं मिलेगा।

महात्मा जी ने कहा कि तू तो रोज भजन करती है। सुमिरन करते करते चल कर नदी पार कर लेना । यह नाम का प्रताप है।

अगले दिन उस स्त्री ने ऐसा ही किया,  नाम याद करते करते पैदल ही नदी पार हो गयी। महात्मा जी को दूध दिया, दर्शन किया, सत्संग सुना और फिर उसी प्रकार सुमिरन करते-करते पैदल ही इस पार लौट आई।

प्रतिदिन उसका यह क्रम बराबर चलता रहा।
आसपास के लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी।
स्त्री से इसका राज जब लोगों ने पूछा तो उसने बताया कि महात्मा जी ने जो मालिक का नाम बताया है उसको याद करते करते पानी पर चलती जाती हूं और नदी पार कर लेती हूं।

कुछ सत्संगियों ने ऐसा करके आजमाया किन्तु वे पानी में डूबने लगे। 

महात्मा जी ने सत्संग में सुनाया कि वास्तव में जो भजनानन्दी हैं उनके लिए मालिक की दया से कुछ भी असम्भव नहीं है।
उन्होने कहा कि उसकी कृपा से - 
*‘‘मूक होई वाचाल, पंगु चढहिं गिरिवर गहन’’।*

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साभार,
(जयगुरुदेव शाकाहारी सदाचारी पत्रिका,
28 जनवरी से 6 फरवरी 2002 तक)

जयगुरुदेव ●


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Jaigurudev