जयगुरुदेव*【स्वामी जी ने सुनाईं कहानी 15.】*
कहता कि तुमने कुछ काम नहीं किया।
उसी समय एक महात्मा उसी मोहल्ले में आ पंहुचे और उनका सत्संग जारी हो गया। साहूकार अपनी धन की हविश पूरी करने हेतू अशान्त रहता था और मजदूर अपनी गरीबी से तबाह था दोनों अपने मर्ज में फंसे थे।
यह भाव लेकर दोनों महात्मा जी के पास पंहुचे कि हमें धन प्राप्त हो जाय।
महात्मा जी ने साहूकार को सारे सत्संग का हैड कैशियर बनाया और कहा कि मनमानी रुपया खर्च करो, तुमको पूरा अधिकार है।
मजदूर से महात्मा जी ने कहा कि तुम हैड कैशियर के साथ रहना जो वें कहें उसी को करना साहूकार रुपया पाकर और साथ साथ बहुत आदर मान सत्संग में पाकर सोचने लगा कि मुझे यहां मुफ्त में सब चीजें प्राप्त हुई हैं और शान्त हो गया।
सन्त जन हर तरह से जीव के कर्ज को अदा कर देते हैं और कर्ज चुका देते हैं। जीव अपनी अज्ञानता में यह सूझ नहीं पैदा कर पाता कि सन्त जन कितनी भारी दया करते हैं।
उसकी बातों को सुनकर नानकजी चुप हो गए। जाड़े के दिन थे। नानक जी अपने प्रेमियों के साथ प्रातःकाल वायु सेवन के लिए निकले थे। सामने एक लकड़हारा सिर पर एक भारी बोझ लादे चला जा रहा था। सर्दी से उसके पैर
जब ठीक दोपहर के 12 बजे तो वह पक्षी पेड़ के नीचे उतरा। उन्होने देखा कि एक दिए में पानी और दूसरे में
उधर से दो तीन आदमी गुजर रहे थे उनके पास खाना था। उन्होने सोचा कि यह आदमी भूख से बेहोश हो गया है। उन्होने खाना निकाला और मिलाकर महात्मा के मुंह में डाला। वो धीरे धीरे खाने लगे।
खाने पर उनको होश आ गया तब वो बोले कि अब हमको विश्वास हो गया कि मालिक सबको देता है।
कहने का यह है कि तुम मालिक पर विश्वास रखो वह देगा।
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Jaigurudev