[ *बाबा जयगुरुदेव की वाणी* ]

◆ *सत्संगी ध्यान दें-* ◆


जो लोग सुमिरन में गल्ती करेंगे उन्हें ध्यान भजन में दया कभी नहीं मिलेगी। अगर विधि से काम नहीं किया तो दया काम नहीं करती है। चाहे 5 ही मिनट करो, 10 ही मिनट करो लेकिन ठीक से करो। अगर सुमिरन सही नहीं करोगे तो मन साफ नहीं होगा। सुमिरन करना बहुत जरूरी है। सुमिरन में 10-11 मिनट लगते हैं। 

चौबीस घण्टे में हमको एक बार सुमिरन करना है। उसके बाद जब ध्यान पर बैठे तो अन्दर ही अन्दर पांचों नामों को लिया फिर पांचों नामों का अलग अलग ध्यान किया। पहले नाम का, फिर दूसरे नाम का, फिर तीसरे नाम का, फिर चौथे नाम का, फिर पांचवे नाम का और जिस नाम के रूप का ध्यान करो वहीं उसके आगे मत्था टेक दो फिर ध्यान पर बैठ जाओ।

हर स्थान पर चरण कमल हैं उनको अन्दर बैठकर प्रणाम किया। एक मिनट में पांचों नाम और उनके रूप का ध्यान हो गया। उसके बाद भजन पर बैठ जाओ। फिर पहले नाम के रूप का ध्यान करो फिर दूसरे नाम के रूप का ध्यान करो, फिर तीसरे नाम के रूप का ध्यान करो, फिर चौथे नाम के रूप का ध्यान करो, फिर पांचवें नामों और उनके रूपों को उसी विधी विधान से याद करो जहां प्रारम्भ किया था वहीं से अन्त करो। तो प्रारम्भिक और सम्पुट सब बराबर हो जाएगा। 

जब विधि विधान से नहीं करोगे तो दया नहीं मालूम होगी। जब नाम और रूप का ध्यान करोगे तो दया आ जाएगी। *जब संसार से घृणा होने लगे तो समझना कि दया हो रही है और जब मन आपका साथ न दे तो समझना चाहिए कि हमारे ऊपर कर्मोें का कोई न कोई बोझा चढ़ रहा है।* 

जब मन न लगे तो कोई प्रार्थना करने लगो, कोई किताब पढ़ने लगो तो मन का वेग रुक जाएगा। ऐसा क्यों होता है? कर्मों के बोझे के कारण। जब मन साथ न दे और कर्मों का बोझा लद जाय तो पड़ोस में अगर कोई सत्संगी हो तो उनके आगे फौरन अपना दिल खोलकर बैठ जाओ तो तुरन्त मन साफ हो जाएगा।


लेकिन सन्तों और महात्माओं पर तो आपको विश्वास है ही नहीं और भगवान को तो आपने देखा ही नहीं। वहां करोड़ो सूरज और चांद हैं वहीं सबके पिता हैं। जब आप उनको याद करेंगे तो सब आप पर दया करेंगे।



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【 *स्वामी जी ने कहा* 】


● यह काल भगवान की सृष्टि है। उसने शरीर दिया फिर बिगाड़ देगा, उसके बाद दूसरे शरीर में बन्द कर देगा। समय पूरा हुआ फिर उसमें से निकालकर तीसरे में बन्द कर देगा। उसका यह क्रम बराबर चलता रहेगा जब तब तुम अपने घर सत्तलोक नहीं पहुंच जाते, स्थायी आनन्द और आराम नहीं मिलने वाला। आनंद अपने घर में ही मिलता है। 

●  भजन धीरज का काम है, जल्दबाजी का नहीं, जल्दबाजी करोगे तो काम बिगड़ जाएगा। विवेक से काम लो। भजन लगन और विरह के साथ करना चाहिए।

●  चाहे स्त्री हो या पुरुष धीरे धीरे बात समझ में आती है। यहां भी कितनी देवियां आती हैं उनके पति रोकते हैं पर वो फिर भी आती हैं तो वो हार जाते हैं और कहते हैं कि चलो हम भी चलेंगे। इसलिए अपने काम में हारना नहीं।

●  जो भी काम करो लगन से करो। जो चीज बिगड़ने वाली है वह बिगडे़गी, तुम उसके पीछे क्यों पड़े हो। तुम अपने को देखो, इनके उनके पीछे पड़े रहते हो और इसी का रोना गाना करते रहते हो। यह नही कि अपना भजन करो। हमको बड़ा दुख रहता है कि ऐसा रास्ता पाकर भी तुम्हारे अन्दर लगन नहीं।

●  परमार्थ की चाह होनी चाहिए। परमार्थ लगन से बनता है, दिखावे से नहीं। बनावटी काम करोगे कि वह ऐसा करता है तो मैं भी करुं तो उसमें हिर्स होगी, जलन ईर्षा होगी। तुम अपना ही नुकसान करोगे।

●. मेरे ऊपर ज्यादा बोझा मत दो। मैं कहते कहते थक गया। शरीर पुराना हो गया है। अब ज्यादा मेहनत नहीं कर सकता। तुम दर्शन के लिए कूंदा फांदी करते हो यह अच्छी बात नहीं। प्रणाम दूर से भी किया जा सकता है। दूर से दर्शन करो। प्रणाम करो, अपनी आंखों में उतार लो।



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*जो आया है वो जाएगा* 

सन्त शरण दृढ़ कर गहो, काल बड़ा बरियार’
महापुरुषों ने अपने प्रेमियों को हर तरह से समझाया कि गुरु पर पूरा विश्वास करो, किसी भी स्थिति मे मन में अभाव न आने पावे, श्रद्धा और  विश्वास डगमगायें नहीं। इसी को कबीर साहब ने अपनी वाणी में कहा-
कहें कबीर सन्त भक्त न जइहैं, जिनकी मति ठहरानी’

अर्थात् सन्तों के पास आकर भी वही लोग काल के दाव से बचेंगे जो उन पर पूरा विश्वास करेंगे। इसीलिए कहा गया है कि गुरु करने से पहले ठोक बजा लो और जब गुरु धारण कर लो तब आंख मून्द कर उनकी आज्ञा मानो। सहजो बाई ने कहा-
*गुरु की आज्ञा में ही रहिए, हानि होय तो होने दीजे’*

दुनिया की हानि कुछ नहीं है। पहली बात कि गुरु आज्ञा में चलने पर हानि होती ही नहीं। बल्कि गुरु की आज्ञा हमको दुनिया से बचाकर निकालती है। हम जरा सा चूकते हैं तो वह काल अपना दाव फेंकता है ताकि हम उसकी हद को पार न कर सकें और गुरु सभी हदों को तोड़कर अपने सच्चे घर पहुंचाना चाहता है। इसीलिए महापुरुषों की शरण में रहकर हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। गुरु तो हमारी सारी जिम्मेदारी लेता ही है। 

हमारी जिम्मेदारी यह बढ़ जाती है कि हम उनके आदेशों पर चलें, उन पर पूरा विश्वास करें, उनसे कोई धोखा न करें, कोई कपट और पर्दा न रक्खें। तब वो सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं लेकिन कपट की दीवार रहेगी तो काल अपना दाव मारता रहेगा और ऐसे ऐसे जाल हमारे चारों तरफ बुन देगा कि हम उसमें उलझकर अपने परम लक्ष्य को भूल जायेंगे।

स्वामी जी महाराज ने बड़ी खूबसूरती से समझाते हुए कहा था कि एक बार मैंने अपने गुरु महाराज से पूछा कि 

*जो लोग नामदान लेकर साधन भजन नहीं करते उनका क्या होगा ?* उन्होने थोड़े शब्दों में समझाया कि *कुटम्मस होगी। काल दोनों तरफ मारता है। यह किसी का नहीं।*

जो बचने के रास्ते पर आकर मुड़ जाते हैं उनको तो वो नहीं छोड़ता। बाकि जो उनके जाल में हैं अर्थात् दुनिया ही जिनका धर्म ईमान है उसके लिए तो उसने रास्ते खोल रक्खे हैं नरक 
चौरासी के और अगर कोई कसर कमी रह जाती है कर्म में तो सन्तों महापुरुषों से बैर विग्रह बगावत कराकर सब कमी पूरी करा लेता है और नरकों की आग में झोंक देता है।

मौत तो होनी ही है सबकी एक न एक दिन। जो आया है वो जाएगा, एक महापुरुष जाते हैं खुशी खुशी अपना काम करके इस शरीर रूपी पिंजरे को छोड़ देते हैं। उन्हें न मौत का खौफ होता  है न दुनिया की मोह ममता। जीते जी मृत्यु की गुत्थी सुलझा लेते हैं। दूसरे महापुरुषों के प्रेमी जो साधना में लगे रहते हैं वो जाते हैं उनकी डोर महापुरुषों के हाथों में रहती है। जब तक वो जीव को सचखण्ड नहीं पहुंचाते, डोर नहीं छोड़ते।


तीसरे वो लोग भी मरते हैं, जो महापुरुषों के समीप आते हैं, कुद सेवा साधना भी करते हैं लेकिन फिर संसार की हवा में बह जाते हैं और इतनी दूर निकल जाते हैं कि वापस गुरु दरबार में नहीं आते।


 तो महापुरुषों की वाणी कहती है कि ऐसे जीव नरकों की आग में चले जाते हैं। मनुष्य शरीर नहीं मिलता न कोई महात्मा उस जीव की सम्हाल करता है। गलती, गुनाह हो जाना मानव कमजोरी है। महापुरुषों का दरबार बड़ा विशाल है, आकर अपने गुनाहों की माफी मांग ली तो वो दया करते हैं, माफ करते हैं और सम्हाल लेते हैं। इसका सबसे सुन्दर उदाहरण गोस्वामी जी ने गरुण कागभुसुण्डि के प्रकरण मे दिया।


रामायण सब लोग पढ़ते हैं लेकिन कभी हमने विचार किया  कि कागभुशुण्डि को शिव ने श्राप क्यों दिया ? 
उनके गुरु की प्रार्थना पर दयालु होकर उन्होने ये समझाया कि श्राप माफ नहीं होगा क्यों? तूने गुरु का अपमान किया और भी बहुत कुछ कहा फिर ये कहा कि जब कभी मनुष्य शरीर मिलने पर तुझे सन्त मिलें तो अब कभी उनका अपमान मत करना। 
*‘जानेसि सन्त अनन्त समाना’* 

हमने कभी इस पर विचार किया ?


(शाकाहारी पत्रिका 28 सितम्बर से 6 अक्टू. 2012)
shakahari patrika 28 septembar
जयगुरुदेव ★

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