✡ जयगुरुदेव : परमार्थी वचन संग्रह
✡ यम लोक मार्ग
यम लोक का मार्ग बड़ा दुर्गम है। वह सदा दुःख और क्लेशों को देने वाला है तथा समस्त प्राणियों के लिए भंयकर है। उस मार्ग की लम्बाई कितनी है तथा मनुष्य उस मार्ग से यम लोक की यात्रा किस प्रकार करते हैं ? हे गुरू कौन सा ऐसा उपाय है जिससे नर्क के दुखों की प्राप्ति न हो।
✡ उत्तर सतगुरू का-
संसार भाव के प्राणी अपने अपने स्वतंत्र स्वभाव में बहते रहते हैं। गुरूजन, माता, पिता और बड़े सज्जन आदि जनों से दूर रहते हैं और इनकी आज्ञा के पालन करने में सर्वदा अवहेलना करते रहते हैं इसी प्रसंग में यमलोक का भी वर्णन करूंगा।
यमलोक और मनुष्य लोक में छियासी हजार योजनों का अन्तर है। उसका मार्ग तपाये हुये तांबे की भांति पूर्ण तपा रहता है। प्रत्येक जीव की मृत्यु के बाद यमलोक मार्ग से जाना पड़ता है। पुण्यात्मा पुरूष पुण्य लोकों में और नीच पापाचारी मानव पाप लोकों में जाते हैं।
✡ यम लोक में बाइस नर्क हैं जिनके भीतर पापी दुराचारी मनुष्यों को पृथक-पृथक यातना दी जाती हैं। उन नर्को के नाम ये हैं-
(१) नरक
(२) रौरव
(३) रौद्र
(४) शूकर
(५) ताल
(६) कुम्भी पाक
(७) महाघोर
(८) शाल्मल
(६) विमोहन
(१०) कीटाप
(११) कृमिभक्ष
(१२) लालभक्ष
(१३) भ्रम
(१४) पीप बहाने वाली नदी
(१५) रक्त बहाने वाली नदी
(१६) जल बहाने वाली नदी
(१७) अग्नि ज्वाला
(१८) महारौद्र
(१६) संदश
(२०) शुन भोजन
(२१) घोर वैतरणी और
(२२) असि पत्रबन
✡ यम लोक मार्ग
यम लोक मार्ग में न तो कहीं वृक्ष की छाया है न तालाब और पोखरे हैं। न बावली न पुस्करणी है। न नदी एवं पर्वत है और न ठहरने योग्य कोई स्थान ही है जहाँ अत्यन्त कष्ट में पड़ा थका मादा जीव विश्राम कर सके।
उस महान कष्ट के पथ पर सब पापियों को निश्चित ही जाना पड़ता है जीव की जितनी आयु नियत है उसका भोग पूरा हो जाने पर इच्छा न रहते हुये भी प्राणों को त्याग करना पड़ता है। जल, अग्नि, विष क्षुधा रोग अथवा पर्वत से गिरने आदि किसी भी निमित्त को लेकर देहधारी जीव की मृत्यु होती है।
पांचो तत्व से बने हुये विशाल शरीर को छोड़कर जीव अपनी निजी कर्मानुसार इस किराये के मकान से निकाला जाता है। केवल यातना भोगने के लिये दूसरे शरीर में प्रवेश किया जाता है। दुख और सुख से निवृत होने के लिए मनुष्य पापाचारी शरीर में बसने वाली जीवात्मा कर्म फल भोगने की भागी होती है और महान कष्ट का सामना करना पड़ता है।
✡ पापाचारी जीव
पापाचारी जीव चोरी करते हैं शराब पीते हैं, मांस खाते हैं, घूस लेते हैं पर नारियों को बरबाद करने में अपनी शान समझते हैं। छोटी बालिकाओं का जीवन कन्या के रहते हुये नष्ट कर देते हैं। बिना दया के दूसरे जीवों के शरीर के टुकड़े करना अपना धर्म समझते हैं। दया का तो एक कण नहीं रहता।
जानवरों की भांति अपना जीवन व्यतित करते हैं और जहां भी जाते हैं वहाँ अपनी ही स्त्रियां समझते हैं। यही बुद्धि प्रवाह रूप बहती है। असत्य में फँसा देना अपनी बुद्धिमत्ता समझते हैं। बिना देखे दूसरों को अरोपी व अपराधी साबित
करते हैं। सज्जनों के दुश्मन होते हैं। पर निन्दा तो उनके जबान पर होती है और स्वप्न में पर निन्दा की हुँकारी लगाते हैं। ग्रन्थ, पुराण, रामायण गीता के विरोधी रहते हैं। सत्य प्रचार होने देते नहीं हैं। उसमें सदा निशाचरों की भाँति बाधा पहुँचाते हैं।
राज्य का उलंघन करना उनकी प्रकृति में रहता है। केवल खाना और सोना ताश आदि जुआ खेलना और व्यसनी वस्तुओं का सेवन करना अपनी पूजा समझते हैं। जो कोई मिलने जाता है उससे कहला देते हैं कि हजूर साहब पूजा अन्दर कर रहे हैं। और हजूर साहब उसी वक्त चाय आदि पीते या हंसी दिल्लगी करते हैं। जरूरत वालों से मिलना उस वक्त होता है जब वह इनकी पूजा कई हजार रूपयों में करे।
✡ पापाचारी कुकर्मी जीवों की दुर्दशा
पापाचारी जीवों की मृत्यु के समय यमराज के दुष्ट यमदूत हाथों में हथौड़ी एवं मुग्दर लिये आते हैं। वे बड़े भयंकर होते हैं और उनकी देह से दुर्गन्ध निकलती रहती है। उन यमदूतों पर दृष्टि पड़ते ही मनुष्य कांप उठता है और भ्राता माता तथा चाचा पुत्र आदि दोस्तों को पुकारता है और खतरनाक आवाज में चिल्लाने लगता है।
उस वक्त उसकी वाणी स्पष्ट समझ में नहीं आती है। एक शब्द एक ही आवाज जान पड़ती है। भय के मारे रोगी की आँखे कांपती है और उसी भय में उसका मुख सूख जाता है। आंख ऊपर को उलटने लगती है। दृष्टि की शक्ति भी नष्ट हो जाती है। फिर वह अत्यन्त वेदना से पीड़ित होकर उस शरीर को भी छोड़ देता है। और फिर यम के डोरी के आधार पर चलता है।
फिर इसका वहां इन्साफ होता है तब फिर इसको दूसरा शरीर दिया जाता है जो रूप रंग रेखा नें इसी शरीर से मिलता जुलता है परन्तु पिशाच शरीर होता है। पिशाच शरीर माता के गर्भ से उत्पन्न नहीं कर्म जनित होता है और यातना भोगने के लिये ही मिलता है। उसी पिशाच शरीर से यातना भोगनी पड़ती है।
तुरन्त ही यमराज के दूत उसे अपने कांटों के रस्से में बांध लेते हैं। मृत्यु काल आने पर जीव को दारूण दुःख होता है जिस दुख से जीव अत्यन्त दुखित हो जाता है और महान भयंकर आवाज में चिल्लाता है। उस समय भूतों से उसके शरीर का सम्बन्ध टूट जाता है। जीव शरीर से निकलते समय जोर जोर से रोता है। माता, पिता, भाई, स्त्री, मामा, चाचा, मित्र और गुरू इन सबसे नाता टूट जाता है।
सभी सगे मित्र सम्बन्धी आंखों में आंसू भरे देखते रह जाते हैं और वह अपने शरीर को त्याग कर यमलोक की यात्रा के लिये उसी खतरनाक यमदूतों के रास्ते से चल पड़ता है। वह मार्ग अन्धकार पूर्ण, अपार, अति भयंकर और पापियों के लिए अति दुर्गम होता है। यमदूत पाश में बांधकर उसे खीचते और मुग्दरों से पीटते हुए विशाल पथ पर ले जाते हैं।
यमदूतों के अनेक रूप होते हैं और समस्त प्राणियों को भय पहुँचाने के लिये होते हैं। उनके मुख विकराल और नासिका टेढ़ी आँखें तीन ठोढ़ी कपोल और मुख फैले हुए तथा लम्बे होते हैं। वे अपने हाथों में विकराल एवं भयंकर आयुध लिये रहते हैं।
उन आयुधों से अग्नि की लपटें निकलती रहती हैं। पाश, सांकल और दण्ड से भय पहुँचाने वाली महाबली महा भयंकर यम किंकर यम की आज्ञा से प्राणियों की आयु समाप्त होने पर उन्हें लेने आते हैं। जीव यातना भोगने के लिये अपने कर्म के अनुसार जो भी शरीर ग्रहण करता है उसे ही यमराज के दूत यम के लोक में ले जाते हैं।
वे उसे काल पाश में बांश कर पैरों में बेड़ी डाल देते हैं बेड़ी की साकल बज्र के समान कठोर होती है। यह किंकर क्रोध में भर उस बंधे हुये जीव को भली भांति पीटते हुए ले जाते हैं। वह लड़खड़ाकर गिरता है, रोता है और हाय बाप हाय मइया, हा पुत्र हाय स्त्री हाय मां हाय देवी कह बारम्बार चीखता और चिल्लाता है तो भी दूषित कर्म वाले उस पापी को वे तीखे शूलों मुग्दरों खड़गों और शक्तियों के प्रहारों और ब्रजमय भयंकर डण्डों से घायल करके जोर-जोर से डांटते और पीटते हैं।
कभी-कभी तो एक-एक पापी को अनेक यमदूत चारो ओर से घेर-घेर कर पीटते हैं। बेचारा जीव दुख से पीड़ित और मुर्छित होकर इधर-उधर गिर पड़ता है। फिर भी वे दूत उसे घसीट कर ले जाते हैं। कहीं भयभीत होते कहीं त्रास पाते कहीं लड़खड़ाते और कहीं दुख से रूदन करते हुए जीव को उस मार्ग से जाना पड़ता है।
यमदूतों की फटकार पड़ने से वे उद्विग्न हो उठते हैं यानी भय से बेहबल शरीर से कांपने और दौड़ने लगते है। जो मार्ग उनके चलने का है उसमें कांटे बिछे होते हैं और कुछ दूर तक तपी हुई बालू पड़ती है। जिन मनुष्यों ने सात्विक भाव से परोपकार नहीं किया और जीवों को आराम नहीं पहुँचाया वे उस मार्ग पर जलते हुये पैरो से चलते हैं।
जीव हिंसक मनुष्यों के सब ओर मरे हुए बकरों की लाशें पड़ी होती हैं। जिन-जिन जीव जन्तुओं को मार कर उनकी चमड़ियां जीते जी उधेड़कर बुद्धिहीन मनुष्य सेवन करते हैं शरीर त्यागने के पश्चात् उनके इर्द गिर्द वे आत्माएं जिनको उन्होंने बुद्धिहीनता से भक्षण किया था चिल्लाती और चिखती है जिनकी जली और फटी हुई चमड़ी के मेदे से रक्त की दुर्गन्ध आती रहती है।
वे वेदना से पीड़ित, होकर जोर-जोर से चिल्लाते और चीखते हुये यममार्ग की यात्रा करते हैं और वे मुंह फाड़कर कहते हैं कि इनको छोड़ों मैं इन का भक्षण करूंगा। उस वक्त शक्ति दायक यमदूत खड़ग तोमर बाण तीखी नोक वाले शूलों से उसका अंग अंग विदीर्ण कर देते हैं, कुत्ते बाघ भेड़िये इनके शरीर का मांस नोच-नोच कर खाते रहते हैं मांस खाने वाले लोग उस मार्ग पर चलते समय आरों से चीरे जाते हैं अथवा सूअर अपनी दाढ़ों से दबा कर उसके शरीर को फाड़ देते हैं।
जो अपने ऊपर विश्वास करने वाले स्वामी मित्र अथवा स्त्री की हत्या करते हैं वे शास्त्रों द्वारा अथवा ऋषियों की वाणी द्वारा छिन्न-भिन्न व्याकुल होकर यम लोक के मार्ग पर जाते हैं। जो निःअपराध जीवों को मारते व मरवाते हैं वे राक्षसों के ग्रास बन करके उस पथ से यात्रा करते हैं जो पसई स्त्रियों के वस्त्र उतारते हैं अर्थात उन्हें भ्रष्ट करते हैं वे नंगे करके दौड़ते हुए यमलोक में लाये जाते हैं।
जो दुरात्मा पापाचारी, अन्न वस्त्र, सोने घर और खेत का अपहरण करते हैं यमलोक मार्ग पर पत्थरों व लाठियों और डण्डों से मार कर उन्हें जर्जर कर दिया जाता है। और वे अंग प्रत्यंग से प्रचूर रक्त बहाते हुए यमलोक में जाते हैं।
जो निरपराध नरक की परवाह न करके साधु, सज्जनों का धन हड़प लेते हैं उन्हें मारते और गालियां सुनाते हैं, उन्हें सूखे काटों में बांध कर आँखें फोड़ दी जाती हैं और नाक कान काट दिये हैं फिर उनके शरीर में पीप और रक्त बदबूदार पोत दियो जाते हैं तथा काल के समान गीध और गीदड़ उन्हें नोच कर खाने लगते हैं।
इस दशा में क्रोध में भरे हुए भयानक यमदूत उन्हें पीटते हैं और वे चिल्लाते हुए यमलोक के पथ पर घसीटे जाते हैं। सन्त और साधु के साथ अपमान दुर्व्यवहार अर्थात् उनके साथ चतुरता करने वालों की यही दुर्गति होती है।
इस प्रकार वह मार्ग बड़ा दुर्गम और अग्नि के समान प्रज्वलित है। इसे रौरव नरक कहते हैं। यह रौरव नर्क जीवों को रूलाने वाला है। वह नीची ऊँची भूमि से युक्त होने के कारण मानव मात्र के लिए अगम है। तपाये हुए तांबे की भांति उसका वर्ण हैं।
वहां अग्नि की चिनगारियां और लपट दिखाई देती हैं। वह मार्ग कंटको और संकटों से भरा है। शक्ति और नुकीले बज्र आदि आयुधों से व्याप्त है। ऐसे कष्टप्रद नुकीले मार्ग पर निर्दयी यमदूत जीव को घसीटते हुए ले जाते हैं, और उन्हें सब प्रकार के अस्त्र शस्त्रों से मारतें हैं।
इस तरह पापयुक्त अन्यायी मनुष्य विवस होकर मार खाते हुय यमदूतों के द्वारा यमलोक में ले जाये जाते हैं। यमराज के सेवक अर्थात यमराज के पुलिस सभी पापियों को उस दुर्गम मार्ग में अवहेलनापूर्वक ले जाते हैं जिस प्रकार पुलिस एक मुलजिम को पकड़कर अवहेलना पूर्वक ले जाती है। वह अत्यन्त भयंकर मार्ग समाप्त हो जाता है तब यमदूत पापी जीव को तांबे और लोहें की बनी भयंकर यमपुरी में प्रवेश कराते हैं।
यह यमपुरी बहुत विशाल है। उसका विस्तार लाख योजन का है। वह चौकोर है। उसके सुन्दर दरवाजे हैं जिसकी चहार दीवारी सोने की बनी है जो हजार योजन ऊंची है। इस पुरी का पूर्व द्वार बहुत सुन्दर है। यहां फहराती हुई सैकड़ों पताकायें उसकी शोभा बढ़ाती हैं। हीरे, नीलम, पोखराज और मोतियों से वह द्वार सजाया हुआ है।
वहां गन्धर्वो और अपसराओं के गीत और नृत्य होते रहते हैं। उस द्वार से देवताओं, ऋषियों योगियों, गन्धर्वो सिद्धों यक्षों और विद्याधरों का प्रवेश होता है। उस नर्क का उत्तर द्वार घन्टा छत्र चंवर तथा नाना प्रकार से अलंकृत है। वहां वीणा और वेणु की मनोहर ध्वनि गूंजती रहती है। गीत, मंगल तथा ऋग्वेद आदि के सुमधुर शब्द होते हैं वहां ऋषियों का समुदाय शोभा पाता है। इस उत्तर द्वार से उन्हीं पुण्यात्माओं का प्रवेश होता है।
✡ यमलोक के दक्षिण द्वार तथा नरकों का वर्णन
पापी जीव दक्षिण द्वार में होकर किस प्रकार यमपुरी में प्रवेश होते हैं यह हम सुनना चाहते हैं। आप विस्तार पूर्वक बतलाइये ।
सुनो! दक्षिण द्वार अत्यन्त घोर और महा भंयकर है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वहां सदा हिंसक जीव जन्तुओं गीदड़ियों के शब्द होते रहते हैं। वहां दूसरों का पहुँचना असम्भव है। उसे देखते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भूत पिशाच और राक्षसों से यह द्वार सदा घिराा रहता है।
पापी जीव दूर से उस द्वार को देखकर त्रास से मुर्छित हो जाते हैं और विलाप प्रलाप करने लगते हैं। तब यमदूत उन्हें सांकलों से बांध कर घसीटते और निर्भय होकर डण्डों से पीटते हैं। साथ ही डांटते फटकारते रहते हैं। होश आने पर वे खून से लथपथ होकर पग पग पर लड़खड़ाते हुए दक्षिण द्वार को जाते हैं।
मार्ग में कहीं-कहीं तीखे काटे होते हैं और कहीं-कहीं छूरे की धार के समान तीक्ष्ण पत्थरों के टुकड़े बिछे होते हैं। कहीं-कहीं कीचड़ ही कीचड़ भरा रहता है और कहीं ऐसे गड्ढे होते हैं जिनको पार करना असम्भव सा होता है।
कहीं-कहीं लोहे की सूई के समान कीलें गड़ी होती हैं। कहीं-कहीं तपे हुए अंगारे अग्नि के बिछे होते हैं। पापी जीवों को उसी मार्ग से यात्रा करनी पड़ती है। कहीं ढेले कहीं तपाई हुई बालू और तीखे कांटे होते हैं, कहीं तपी हुई पत्थर शिला होती है। कही दूषित जल और कहीं कण्डे की आग से वह मार्ग भरा रहता है।
कहीं सिंह भेड़िये बाघ डांस और भयानक कीड़े डेरा डाले रहते हैं। कहीं बड़ी बड़ी जॉक और अजगर पड़े रहते हैं। भंयकर मक्खियाँ विषैले सांप और खूंखार बलिष्ट हाथी चीरा फाड़ा करते हैं। खुरों से खोदने वाले मार्ग को खोदते हुए तीखे सींघों वाले बड़े-बड़े सांड़, भैसे और मतवाले चीते सबको कष्ट देते हैं।
भयानक डरावने और भीषण रोगों से पीड़ित होकर जीव उस मार्ग से यात्रा करते हैं। कहीं धूल मिश्रित प्रचण्ड वायु चलती है जो पत्थरों की वर्षा करके निराश्रय जीवों को कष्ट पहुचाती रहती है। कहीं कहीं बिजली गिरने से शरीर विदीर्ण हो जाता है। कहीं बड़े जोर से बाणों की वर्षा होती है जिससे सब अंग छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। कहीं-कहीं बिजली और बादल गड़गड़ाहट के साथ उल्कापात होते रहते हैं और प्रज्वलित अंगारों की वर्षा हुआ करती है जिससे जलते हुये पापी जीव आगे बढ़ते हैं।
कभी-कभी धूल की वर्षा होने से सारा शरीर धूल से भर जाता है। धूल के जो कण होते हैं और जो कण शरीर में आकर लगते हैं वह बाणों की भांति शरीर में चुभते चले जाते हैं। ये बालुका के कण महा दुखदाई होते हैं मेघों के भंयकर गर्जन से जीवों को अति दुख होता है। बाण वर्षा से घायल हुये शरीर पर खारे जल की धारा गिराई जाती है और उनकी पीड़ा सहन करते हुये जीव आगे बढ़ते हैं।
कहीं-कहीं अत्यन्त शीतल हवा चलने के कारण अधिक सर्दी पड़ती है तथा कहीं सूखी और कठोर जहरीली वायु का सामना करना पड़ता है। इससे पापी जीवों के अंग से बिवाई फट जाती है। वे सूखने व सिकुड़ने लगते हैं। ऐसे मार्ग पर न तो राह खर्च के लिए कुछ मिल पाता है और न कहीं कोई सहारा ही दिखाई देता है। इस मार्ग से पापी जीवों को यात्रा करनी पड़ती है। सब ओर निर्जन और उजाड़ देश दृष्टिगोचर होता है।
बड़े परिश्रम से पापी जीव यमलोक पहुँच पाते हैं। यमराज की आज्ञा पालन करने वाले दूत उन्हें बलपूर्वक ले जाते हैं। साथ में कोई मित्र भी नहीं होता है। जीव अपने कर्मों को सोचते हुये रोते रहते हैं। प्रेतों का उनका शरीर होता है।
उनके कंठ, ओठ और तालू सूखे रहते हैं वे शरीर से अत्यन्त दुर्बल और भयभीत हो जाते हैं। क्षुधाग्नि की ज्वाला से जलते रहते हैं। कोई सांकल में बंधे होते हैं। किसी को उतान सुलाकर यमदूत उनके दोनों पैर पकड़ कर घसीटते हैं। और कोई नीचे मुँह करके घसीटते जाते हैं। उस समय उन्हें अत्यन्त दुख होता है उन्हें खाने को अन्न और पीने को पानी नहीं मिलता।
वे भूख प्यास से पीड़ित हो हाथ जोड़ दीन भाव से आंसू बहाते हुये और विलाप कर याचना करते और कहते हैं कि कुछ दीजिये इसी का रट लगाये रहते हैं। उनके सामने सुगन्धित पदार्थ दही, खीर, घी, भात, सुगन्ध युक्त दूध और शीतल जल प्रस्तुत होते हैं। उन्हें देखकर वह बारम्बार उनके लिए याचना करते है।
उस समय यमराज के दूत क्रोध से लाल आँखें करके उन्हें फटकारते हुये कठोर वाणी में कहते हैं ऐ पापियों, तुमने समय पर सन्तों ऋषि मुनियों, साधु और योगी जनों के उपदेश को क्यों नहीं सुना ? और उनकी वाणी की मनमानी अवहेलना की है और निन्दा करने में और उन्हें दुख पहुँचाने में क्या क्या उपाय किये हैं ? तुम परनारियों के बिगाड़ने में चोरी मांस आदि व्यसनी वस्तुओं का सेवन करने में लगे रहे अर्थात साधु सन्त का तनिक स्वागत नहीं किया और शास्त्रों और सन्तों की वाणियों का मनमानी अर्थ निकाल कर घटाते रहे। ऐ पापियों होशियार।
आवाज देते हुए उनकी ओर दौड़ पड़ते हैं। तुमको बहुत दफा मना किया। उस वक्त अपने मद में चूर थे, बल में चूर धन में चूर, जाति में चूर हुकुमत मद में चूर थे। होशियार। तलवार लेकर यमदूत उसकी ओर दौड़ते हैं। फिर कहते हैं उसी का फल तुम्हारे सामने प्रकट हुआ है। तुम्हारा थन आग में नहीं जला था, जल में नही डूबा था, राजा ने नहीं छीना था, चोरों ने नही चुराया तब भी तुमने साधु सन्तों और अतिथि की सेवा से अपाना आत्म कल्याण क्यों नहीं किया।
इसी धन की सेवा से तुम उन महात्माओं के पास जाते जिनकी दया से आत्म कल्याण होता। इस वक्त तुम्हें कहां से कोई प्राप्त हो। तुम सुगन्धित पदार्थो को पाने एवं खाने की इच्छा मत करो। यमदूत की बात सुनकर पापी जीव अन्न की अभिलाषा छोड़ देते हैं और भूख से चिल्लाते रहते हैं। सर्वदा यमदूत उन्हें भयानक अस्त्रों से पीड़ा देते रहते हैं। मुग्दर, लोह दण्ड, शक्ति तोमर, पहिश, गदा फरसा और बाणों से उनकी पीठ पर प्रहार किया करते हैं और सामने की ओर से सिंह तथा बाघ आदि उन्हें काट खाते हैं।
इस प्रकार के पापी जीव न तो भीतर प्रवेश कर पाते हैं और न बाहर ही निकल पाते हैं। अत्यन्त दुखी होकर रूदन किया करते हैं। इस प्रकार भांति भांति की पीड़ा देकर यमदूत उन्हें भीतर प्रवेश कराते हैं और उस स्थान पर ले जाते हैं जहां सबका इन्साफ, न्याय होता है। न्याय करने वाले धर्मात्मा यमराज रहते हैं।
वहां पहुँचकर वे दूत यमराज को उन पापियों के आने की सूचना देते हैं और उनकी आज्ञा मिलने पर उन्हें उनके सामने उपस्थित करते हैं। तब पापाचारी जीव भयानक यमराज और चित्रगुप्त को देखते हैं। यमराज उन पापियों को बड़े जोर से फटकारते हैं। चित्रगुप्त धर्मयुक्त वचनों से पापियों को समझाते हुये कहते हैं पापाचारी जीवों, तुमने दूसरों के धन का अपहरण चोरी एवं घूस और दूसरों को दुःख देकर किया है। अपने रूप एवं वीर्य के घमण्ड में
आकर पराई स्त्रियों का सतीत्व नष्ट किया है। जो तुमने कर्म किया है उसका फल तुम स्वयं भोगी। यह क्यों किया ? अब क्यों शोक करते हो। अपने कर्मों से ही पीड़ित हो रहे हो। तुमने अपने कर्मों द्वारा जिन दुखों का उपार्जन किया है उन्हें अब भली भांति भोगो इसमें किसी का कुछ दोष नहीं है।
ये जो लोग हमारे पास आये हुए हैं उन्हें भी अपने राज्य का बड़ा घमण्ड था। इनकी बुद्धि बहुत ही खोटी एवं मलिन थी। तत्पश्चात् यमराज राजाओं की ओर दृष्टिपात' करके कहते हैं- अरे ऐ दुराचारी नरेशो, तुम लोग प्रजा का विध्वंस करने वाले हो।
थोड़े दिनों तक रहने वाले राज्य के लिये तुमने क्यों भयंकर पाप किया ? तुमने राज्य के लोभ, मोह मद बल तथा अन्याय से जो प्रजाओं को कठोर दण्ड दिया है उनका यथोचित फल इस वक्त भोगो। कहां गया वह राज्य, कहां गई व रानियां जिनके लिये तुमने पाप कर्म किये हैं। उनको छोड़ कर तुम असहाय अकेले खड़े हो। यहां सारी सेना दिखाई नहीं देती जिनके द्वारा प्रजा का तुमने दमन किया। इस वक्त यमदूत तुम्हारे अंग फाड़ डालते हैं। देखो उस पाप का अब कैसा फल मिल रहा है।
इस प्रकार यमराज के वचनों को सुनकर राजा लोग चुपचाप खड़े हैं। तब उनके पापों की शुद्धि के लिये यमराज अपने सेवकों को इस प्रकार आज्ञा देते हैं। वो चण्ड महाचण्ड ! इन राजाओं को पकड़कर ले जाओ और क्रमशः नर्क की अग्नि में तपा कर उनके पापों के दण्ड से इन्हें मुक्त करो।
धर्मराज की आज्ञा पाकर यमदूत राजाओं के दोनों पैर पकड़कर वेग से घुमाते हुये उन्हें ऊपर फेंक देते हैं और फिर लौटकर उनके पापों की मात्रा के अनुसार उन्हें बड़ी बड़ी शिलाओं पर देर तक पटकते रहते हैं, मानो बज्र से किसी वृक्ष पर प्रहार करते हों इससे पापी शरीर जर्जर हो जाता है।
उनके प्रत्येक छिद्र से रक्त की धार बह निकलती है और वह हिलने डुलने से भी असमर्थ हो जाते हैं। शीतल वायु के स्पर्श होने पर उन्हें चेतना आनी प्रारम्भ होती है। तब यमराज के दूत उन्हें पापों की शुद्धि के लिये नर्क में डालते हैं। फिर पापियों के विषय में यमराज से निवेदन करते है कि आपकी आज्ञानुसार हम दूसरे पापी को भी ले आये हैं यह सदा धर्म से विमुख पाप परायण रहा है यह व्याथ है। इसने महापातक और उत्पात सभी किये। यह अपिवित्र मनुष्य सदा दूसरे जीवों की हिंसा में सलग्न रहा है।
यह जो दुष्टात्मा खड़ा है अगम्या स्त्रियों के साथ समागम करने वाला है। इसने दूसरे के धन का भी अपहरण किया है। यह कन्या बेचने वाला, झूठी गवाही देने वाला, कृतघ्न तथा मित्रों को धोखा देने वाला है। इस दुरात्मा ने मदोन्मत्त होकर धर्म की निन्दा की है। मृत्युलोक में केवल पाप के ही आचरण किये हैं। मैंने आपकी आज्ञानुसार खड़ा कर दिया है।
आपके सेवक हैं अब क्या करें, आप आज्ञा दें। यमदूत उस पापी को यमराज के सामने सम्मुख करके वहां से दूसरे पापियों को पकड़ने के लिये रवाना हो जाते हैं। जब पापी पर लगाये हुये दोष की सिद्धि हो जाती है तब यमराज अपने भंयकर सेवकों को उसे दण्ड देने का आदेश देते हैं। ऋषियों के द्वारा जो विधानं लागू किया हुआ है उसके अनुसार यम किंकर दण्ड देना प्रारम्भ करते हैं। त्रिशूल, बरछा, भाला, मुग्दर तीरों से और भांति भांति की तलवार से उस पापी के शरीर को विदीर्ण कर डालते हैं।
जयगुरुदेव
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