स्वामी जी महाराज व महाराज जी का आदेश...*प्रार्थना, सुमिरन, ध्यान व भजन रोज होना चाहिए।* (post no.7)
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मेरी नईया पार लगा देना कितनों को पार उतारा है ।।१।।
मुझे अपनी गोद बिठा लेना दाता लो भुजा पसारा है ।।२।।
पर शीतल करती रहती है तेरी शीतल अमृत धारा हैं।।३।।
मुस्कान तुम्हारे अधरों की दे जाती बड़ा सहारा है ।।४।।
गद गद हो जाता हूँ स्वामी मिल जाता बड़ा सहारा है ।।५।।
शौभाग्य समझते हम अपना कौतुहल नाथ तुम्हारा है ।।६।।
अब पार अवश्य हो जाऊंगा गुरु ने पतवार सम्हाला है ।।७।।
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दो नयन कटोरों मे आंसू, भर भेंट चढ़ाने आया है।।
पूरण हो मेरी अभिलासा।
तेरी शक्ति अनन्त अनादि गुरु,
घट घट मे आप समाया है।।
गुरु नाम की झंकार हो।
गुरुदेव तुम्हारी झंकारों ने,
यह जीवन सुफल बनाया है।।
मन सुमिरन मे यह लगता रहे।
इसे अटल रखो गुरु निज चरणों में,
ये नीच शरण में आया है।।
एक दरश भिखारी आया है।
दो नयन कटोरों में आसूं, भर भेंट चढ़ाने आया है।।
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आधार एक तू है कोई दूसरा नही है।।
तेरा सिवा जहाँ मे अपना कोई नही है।।
जो कुछ है सब है तेरा कुछ भी मेरा नही है।।
मेरे ममत्व का मल सारा जला नही है।।
तुझमे जला नही है तुझसे मिला नही है।।
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वो जमाने मे मिलता नही है।
तेरी नजरों मे जादू भरा है,
ज्ञान गुरु बिन तो मिलता नही है।।
कोटि चन्दा और सूरज भी हारे।
दर्श पाये बिन स्वामी तुम्हारे,
प्रेम का रंग खिलता नही है।
गुरु वाणी मे अम्रत भरा है,
वो जमाने मे मिलता नही है।।
श्रष्टी चलती है तेरे चलाये।
नाथ तेरी तो बिन कृपा के,
एक पत्ता भी हिलता नही है।
गुरु वाणी मे अम्रत भरा है,
वो जमाने मे मिलता नही है।।
हमको केवल हे तेरा सहारा।
सतगुरु का जो होता है प्यारा,
काल से भी वो डरता नही है।।
गुरु वाणी मे अम्रत भरा है,
वो जमाने मे मिलता नही है।।
छूट जायेगा सब आना जाना।
भाग्य से होता है नर तन का पाना,
अपनी मर्जी से मिलता नही है।।
गुरु वाणी मे अम्रत भरा है,
वो जमाने मे मिलता नही है।।
दो दया भक्ति मुझको दयालू,
दास चरणों का मुझको बना लो,
गुरु चरण सब को मिलता नही है।।
गुरु वाणी मे अम्रत भरा है,
वो जमाने मे मिलता नही है।।
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फेर लोगे नजर तो वो फंस जायेगा ।।
हर समय होती अमृत की बरसात है ।
उसको विरला ही कोई समझ पायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
भाग्य उसकी तत्क्षण सुधर जायेगी ।
वो सफल उसका नरतन भी हो जायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
फेर ली हो नजर जिससे सब प्यार का,
सब तरफ का भी हारा संभल जायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
धर्म की भी तरफ भाव भक्ति नहीं ।
मन दुराचार में भी जो रम जायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
रात दिन तेरी भक्ति में सोई नहीं।
अंग संग उसके तब तू ही हो जायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
धन्य वह हो गया भाग्यशाली बड़ा ।
उसका यमदूत कुछ भी न कर पायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
पाप से भर चुका है ये मेरा घड़ा ,
जो किया है उसी का फल पायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
तेरी मूरति सुरति में उतारूँ प्रभु।
नाम नौका पै चढ़ दास तर जायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
अपने अन्तः करण में निहारूँ प्रभु।
दीप जलते ही सब पाप धुल जायेगा,
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
स्वर्ग बैकुण्ठ की रील चलने लगी।
देव भी ऐसे साधु का गुण गायेगा ।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
तुमको जो जान लेगा बना काम है।
देव मानव से भगवान हो जायेगा।
गुरु बचा लोगे जिसको वो बच जायेगा।।
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मैं जाना अनामी के घर चाहता हूं।।
न अपना किसी को यहां पा रहा हूं।।
निकल भागने का मैं पथ चाहता हूं।।
दबाना चाहे दूसरा तीसरे को।।
मैं बचने का दो पदम दल चाहता हूं।।
ले जाकर वहां काल है सबको खाता।।
उसी से बचने का हल चाहता हूं।।
वह सीधी सड़क से है जाकर मिलाती।।
यह संकल्प अपना सफल चाहता हूं।।
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Jaigurudev