छोटी कहानी की बड़ी सीख (1)
कहानी संख्या 1.
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अब सेठ बराबर राजा के पास जाने आने लगा। धीरे धीरे दोनों में गाढ़ा प्रेम हो गया। दोनों में कोई कपट भी नहीं था। दोनों निष्कपट थे। दोनों का यह प्रेम बहुत दिनों तक रहा।
सेठ के मन मे विचार आया कि चन्दन की लकड़ी मैं खरीद लूं, क्योंकि मन्दिर में तो चन्दन की बहुत सी लकड़ियां लग जायेंगी।
मेरे पास लकड़ी होंगी तो मैं राजा को दे सकूंगा। यह सोचकर सेठ ने जहां से भी लकड़ी मिली, सब खरीदकर स्टॉक कर लिया। अब उसके पास चन्दन की लकड़ियों का बड़ा स्टॉक था, इसमें उसके पैसे भी बहुत फंस चुके थे।
मन में जैसे भाव उपजते हैं, व्यक्ति का बोल और व्यवहार भी वैसा ही बन जाता है। इस कारण राजा को सेठ का भाव समझते देर नहीं लगी और अब दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए। लेकिन अचानक विचारों में परस्पर पैदा हुए दुश्मनी के विचार पर भी राजा समझ नहीं पा रहा था कि इस दुश्मनी की जड़ क्या है ?
राजा ने सेठ की सारी बात महात्मा से बताई और पूछा कि हम दोनों में यह दरार क्यों पड़ गई ऐसा क्या हुआ? महात्मा जी दिव्य दृष्टि वाले थे इसलिए वे उस दुश्मनी का राज जान रहे थे, परन्तु वे विशेष बातों में न उलझाकर राजा से सीधा उपाय बतलाते हैं।
अब इधर सेठ जी का भी सारा फसा पैसा वापिस आ गया था। अब सेठ की सारी चिन्ता दूर हो गई थी, इसलिए अब उसके मन से राजा के प्रति दुश्मनी का भाव जाता रहा और दोनों फिर से दोस्त बन गए।
पैसा मिल जाए, हिसाब पूरा हो जाए, तो सब दुश्मनी खत्म।
सच्चे महात्मा कर्मो का लेनदेन चुकाने के लिए कोई आधार खड़ा कर देते हैं। इससे देने वाले का देना और लेने वाले का लेना पूरा हो जाता है। यह सूक्ष्म विज्ञान आपको क्या पता।
अब देखो, महात्मा थे तो दोनों का झगड़ा कैसे खत्म कर दिया और फिर दोनों कैसे मिल गए।
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10 टिप्पणियाँ
जयगुरुदेव
जवाब देंहटाएंJaigurudev
हटाएंJay gurudev
जवाब देंहटाएंJaigurudev
जवाब देंहटाएंJaigurudev
जवाब देंहटाएंJai Gurudev Malik ki Jai ho
जवाब देंहटाएंJay Gurudev
हटाएंJaygurudev mere pyare satguru ko lakho pranam
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंJay guru dev
जवाब देंहटाएंJaigurudev