जयगुरुदेव कहानी संख्या 2.

जयगुरुदेव
कहानी संख्या  2.

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★★  स्वामी जी ने सुनाई कहानी  ★★


एक जाट था। उसने विचार किया कि अपने रिश्तेदारों को दावत दिया जाय। उसने अपनी स्त्री से राय ली तो वह तैयार हो गई और बोली कि बहुत अच्छा रहेगा। फिर बात दोनों में होने लगी कि किन किन  रिश्तेदारों को बुलाया जाय। 
जाट ने अपने कुछ खास रिश्तेदारों के नाम गिनाये। स्त्री सोचने लगी कि इनमें मेरे घर का तो कोई आदमी है ही नहीं। फिर बोली कि यह ठीक नहीं। जाट ने सोचा कि अगर जिद करुंगा तो घर में अशान्ति पैदा हो जाएगी। उसने स्त्री से पूछा कि तुम्ही बताओ कि किन किन को बुलाया जाय।

स्त्री ने कहा कि ठीक है तुम लिस्ट बनाओ मैं रिश्तेदारों के नाम बताती हूं। उसने बताना शुरु किया और कहा कि लिखो-
मेरे पिता तुम्हारे ससुर,  मेरा भाई तुम्हारा साला,  मेरा चाचा तुम्हारा चचिया ससुर,  मेरा फूफा तुम्हारा फुफुआ ससुर वगैरह-वगैरह। उसने जितने भी नाम बताये सभी उसके मइके से सम्बन्धित थे।  साथ में वह कहती जाती थी कि यह लिस्ट है जो हमारे और तुम्हारे दोनों से सम्बन्धित है।
जाट बेचारा मन ही मन सोचने लगा कि इसमें तो मेरे किसी रिश्तेदार का नाम ही नहीं। अब क्या किया जाय यह स्त्री तो बड़ी चालाक निकली। अपने कुनबे के सारे नाम गिना गई और मेरे सगे सम्बन्धी इसके लिए कुछ भी नहीं। सोचते सोचते उसने कहा कि ठीक है ऐसा ही होगा।

जाट घर के बाहर निकला और जंगल की ओर लकड़ी काटने के लिए चल पड़ा। रास्ते में सोचता जाता था कि क्या किया जाय झगड़ा झंझट भी न हो और काम भी बन जाय। एकाएक उसकी नजर एक मरी हुई गाय पर पड़ी फौरन उसे एक तरकीब सूझ गई कि कैसे घर में कलह भी न होने पावे और मेरे रिश्तेदार भोज में शरीक हो जायं।
उसने गाय की पूंछ काट ली और एक कपड़े में छिपाकर घर ले आया और अपनी पत्नि से बोला कि देखो! मैं बहुत दुःखी हूं। पूंछ दिखाते हुए उसने कहा कि देखो ये उस गाय की पूंछ है।

जाट ने फिर गंभीर होकर कहा कि पाप धोने के लिए हमें भोज तो अब करना ही पड़ेगा। यह काम जल्दी हो जाय तो अच्छा रहेगा। किसी को पता भी न चलने पावे कि मुझे गौ हत्या लग गई है। रिश्तेदारों की लिस्ट तो तैयार ही है- मैं आज सबको निमंत्रण भेज देता हूँ। 

स्त्री ने आपत्ति की और कहा कि यह नही हो सकता। गौ हत्या की बात को छिपाकर दावत देने में क्या मेरे ही रिश्तेदार हैं जो खायेंगे। क्यों नहीं तुम अपने रिश्तेदारों को खिला देते हो ? 

जाट ने दुःखी मन से कहा कि भोज तो देना ही है जैसा तुम मुनासिब समझो। आनन फानन में जाट बाजार से सामान लाया और उधर अपने सम्बन्धियों को सूचना भेज दी। पूड़ी, कचौड़ी, पुआ पकवान सब कुछ बना और जाट परिवार और सम्बन्धी जनों ने छककर खाया। जाट की स्त्री प्रसन्न थी कि पाप का अन्न उसके मायके वाले खाने से बच गये। 

*स्वामी जी महाराज ने इस कहानी को सुनाते हुए कहा कि - परिवार में स्त्री-पुरुष को बुद्धि से काम लेना चाहिए जिससे कलह न होने पावे और शान्ति भी बनी रहे। जब ऐसा होगा तभी लोक और परलोक दोनों के काम ठीक होंगे।*

( साभार, शाकाहारी पत्रिका, २१ से २७ फरवरी २०१३ )

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