साधकों से ही आगे सब काम होगा और साधक जहां लगेंगे वहां कामयाबी मिल जाएगी।*

*जयगुरुदेव* 

https://www.youtube.com/live/rBRpT7NVvLA?si=WegrAJTos0Zp2GML

समय का संदेश

09.08.2025 

झुंझुनू, राजस्थान 


*1. साधकों से ही आगे सब काम होगा और साधक जहां लगेंगे वहां कामयाबी मिल जाएगी।*

2.20.14 - 2.22.42

और अब हमने ये देखा बैठने की लोगों की आदत बनी है और दो-तीन दिन पहले जो लोग भी यहां आ गए थे; चाहे नए ही रहे हो, घर पर नहीं भी बैठते रहे हो तो *सब लोगों ने ध्यान-भजन किया। खुशी की बात है। मेरे लिए ही खुशी की बात नहीं है, वो शक्तियां ऊपर वाली भी खुश हैं कि कम से कम यह प्रेम से लगे तो काम में* । 

अब कार्यकर्ताओं को जरूरत इस बात की है कि इनको लगाया जाए तब यह लगेंगे। यह जो आदत बनी है ये आदत छूट न जाए। तो जितने भी प्रचारक राजस्थान के हो आप, जितने भी कार्यकर्ता हो आप इस काम में लगो। यह जो कार्यक्रम रहा है गुरु महाराज की दया से सफल कार्यक्रम रहा है। साधना में लोगों का मन भी लगा है, बैठने की इच्छा भी हुई है। अगर बैठने लग जाएंगे तो इन्हीं से काम हो जाएगा। 

साधकों से ही आगे काम होगा। साधक ही सब काम करेंगे और साधक जहां लगेंगे वहीं कामयाबी मिल जाएगी। तो जो लक्ष्य को लेकर के अपने लोग चल रहे हैं वो लक्ष्य जल्दी पूरा हो जाएगा। प्रेमियों! जो गुरु महाराज काम छोड़कर के गए हमारे और आप लोगों के ऊपर, हर प्रेमी, हर कार्यकर्ता के ऊपर जो काम छोड़ के गए; वो पूरा हो जाएगा और जल्दी हो जाएगा। जैसे देश-विदेश में आप गुरु का नाम पहुंचाए और गुरु के काम के बारे में लोगों को बताए वैसे ही काम जो होना है; अच्छा समय आना है उसकी शुरुआत हो जाएगी। जिस लक्ष्य को लेकर के अपने लोग चल रहे हैं; इस धरा पर ही सतयुग उतर आएगा और सतयुग का नजारा दिखाई पड़ जाएगा। इसलिए भजन करो और कराओ।


*2. सुमिरन, ध्यान, भजन समझाने की व्यवस्था बना दो।*

2.23.11 - 2.25.08


जितने भी प्रचारक हो, प्रचारक जो प्रचार किए हो जहां-जहां गए हो, जिनको लाए हो, उनको सुमिरन-ध्यान-भजन समझाओ और सुमिरन-ध्यान-भजन समझाने की वहीं पर व्यवस्था बना दो कि एक दिन आपके समझाने पर नहीं समझ में आया तो एक आदमी, दो आदमी समझा करके; उनको जिम्मेदारी दे दो कि जो नए नामदानी आए हैं या जो भी पुराने लोग हैं और नहीं जान पाए हैं, भूल गए हैं उनको याद करा दें, उनको सुमिरन-ध्यान-भजन समझा दें और साधना शिविर लगा कर के उनको बैठावें। 

यह जिम्मेदारियां दे दो आप लोग; गांव-गांव में दे दो, *जहां-जहां प्रचार में गए हो आप लोग, वहां चले जाओ दोबारा एक बार, और वहां ये जिम्मेदारियां दे आओ और बराबर वहां आते-जाते रहो। फोन से बातचीत करते रहो तो काम आपका जल्दी हो जाएगा* नहीं तो बीज तो पड़ गया है लेकिन सिंचाई, गुड़ाई ना हो तो उसमें फल नहीं निकलेगा। पौधा नहीं बड़ा होगा। तो प्रचार तो आपने किया। 

नामदान तो लोग लेकर गए लेकिन नहीं करेंगे तो वैसे का वैसा पड़ा रह जाएगा वो, अंदर अंदर पड़ा रह जाएगा। उसका फल उनको नहीं मिलेगा। उसका वृक्ष अंदर में नहीं तैयार होगा। तो अब उसमें लगाना है। फल उनको मिल जाए और उनको जो फल मिले उसमें से फल कुछ आपको भी मिल जाए। इसके लिए आप कोशिश करो, प्रयास करो। तो *राजस्थान के जितने भी लोग हो आप इसमें लगो। अभियान चलाओ इसका, खाली मत बैठो।*


*3. अब खाली नहीं बैठना है, अब तो कुछ करके दिखाना है।*

2.25.09 - 2.27.12


देखो ! देश-विदेश के जितने भी प्रेमी हो, अब लक्ष्य बनाओ कि खाली नहीं बैठना है, अब तो कुछ कर के दिखाना है! अब तो जब तक काम न हो जाए, तब तक चैन से नहीं बैठना है। अब कहोगे कौनसा काम ? ये नहीं बताऊंगा अभी। ये तो जब देख लूंगा कि ये लग गए हैं और कर रहे हैं; तब बताऊंगा। 

लेकिन ऐसा काम होगा जिससे सब सुखी हो जाएंगे। लोगों के दुख दूर हो जाएंगे। ऐसा काम होगा कि अन्न धन की कोई कमी नहीं होगी। *ऐसा काम होगा कि प्राकृतिक आपदाएं नहीं आएंगी। दैहिक दैविक भौतिक कष्ट लोगों का मिटेगा; ऐसा काम होगा* । 

देश-विदेश में जयगुरुदेव नाम का प्रचार होगा, जयगुरुदेव नाम फैलेगा, जयगुरुदेव नाम का झंडा लगेगा। जब हिम्मत लाओगे, हौसला लाओगे और काम करोगे अपने-अपने स्तर का; चाहे बच्चे हों या बच्चियां हों, चाहे माताएं हों, चाहे पढ़े-लिखे हों, चाहे अनपढ़ हों, चाहे गरीब हों, चाहे अमीर हों, चाहे किसान हों, चाहे व्यापारी हों, चाहे नौकरी वाले हों; जब सब लोग योजना बनाओगे और लगोगे तब काम होगा। 

और जितना जल्दी आप चाहो कि जल्दी से सब व्यवस्था सही हो जाए, उतनी ही जल्दी योजना बना लो और काम में लग जाओ और लगा दो लोगों को और फिर देखो कैसे अभी काम नहीं होता है। होगा!, हमको तो विश्वास है। *गुरु पर विश्वास है, प्रभु पर विश्वास है कि हमारे गुरु महाराज जो बोल कर के गए वो एक-एक बात सत्य होगी* ।

https://www.youtube.com/live/kexP_Ky3fLw?si=f2OnE0iRzbCxDKJI


समय का संदेश

08.08.2025, प्रातः 05 बजे 

झुंझुनू, राजस्थान 


*1. अनामी धाम पहुंचने वाले कम हैं लेकिन इक्का-दुक्का पहुंच रहे हैं। अपनी संगत के लोग पहुंच रहे हैं।*

25:03 - 26:01


वहां इच्छा ही ख़त्म हो जाती है, अनामी धाम पहुंचने में। लेकिन कोई भाग्यवान ही वहां तक पहुंच पाता है, सबलोग नहीं पहुंच पाते हैं। अब अगर पहुंचे न होते लोग तो वर्णन कैसे करते, कैसे ये बाते सामने आती, भेद ये खुलता कैसे ? तो *"जा पर जाकर सत्य सनेहू, ताहि मिलहिं नहि कछु संदेहू"* 

 जिस पर सत्य स्नेह हो जाता है, विश्वास हो जाता है वो काम हो जाता है, वो प्रभु ही पूरा कर देता है। तो ये सोच भी आप मत लेना कि हम पहुंच नहीं सकते हैं। आप में से कोई भी पहुंच सकता है। पहुंचने वाले कम हैं लेकिन पहुंच रहे हैं, इक्का दुक्का पहुंच रहे हैं वहां पर। अपनी संगत के लोग पहुंच गए हैं।


*2. गुरु भी जिनको चार्ज दे देते हैं उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करते*

40:07 - 41:20


देने वाले का बड़ा लंबा हाथ है और अगर देता है कोई अगर इस दुनिया संसार में, स्वर्ग वैकुंठ, ऊपरी लोकों में तो गुरु ही देते हैं, गुरु ही दे सकते हैं और कोई नहीं देता है। देने लायक भी है तो भी नहीं देता है। सतपुरुष खुश हो जाते हैं अगर तो देते हैं गुरु के द्वारा ही देते हैं, जो मौजूदा उनके अंश इस धरती पर होते हैं। गुरु के गुरु भी नहीं देते हैं। सीधे नहीं हस्तक्षेप करते हैं। 

उनको जिसको चार्ज दे देते हैं, जैसे बाप होता है, बाप की इज्जत बेटा करता है और बाप को सबकुछ मानता है। कहता है हमारे पूरी संपत्ति के मालिक, हमारे पूरे घर के मालिक हमारे पिताजी हैं लेकिन बाप भी जब सौंप देता है, चाभी दे देता है तो कहता है जाओ भैया से मांग लो। नाम लेकर कहता है जाओ इनसे मांग लो, उनसे कह दो; हस्तक्षेप नहीं करते हैं किसी के काम में। बहुत मर्यादित रहते हैं। जैसे यहां मर्यादा बनी हुई है इसी तरह की मर्यादा उनकी भी रहती है।


*3. गुरु के आदेश के पालन में कोई समस्या आए तो पूछ लेना चाहिए, मदद ले लेना चाहिए।*

49:19 - 50:00


गुरु की, प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। आदेश का पालन करना चाहिए। मजबूरी हो तो बता देना चाहिए। कोई समस्या आए आदेश के पालन करने में तो पूछ लेना चाहिए, मदद ले लेना चाहिए। कह रहे हैं गठरी उठाओ और आप नहीं उठा पा रहे हो तो हाथ जोड़कर मदद ले लो कि नहीं उठा पा रहा हूं, आप मदद कर दीजिए। तो जो गठरी, जो समान कहेगा कि भाई इसको उठा कर वहाँ पहुंचा दो, वो जब नहीं कर पाएगा तो वो उठा कर के पहुंचवाएगा कि नहीं पहुंचवाएगा।


*4. मेरी तो यही प्रार्थना है कि सबकी मुक्ति-मोक्ष हो जाए, सब अपने घर पहुंच जाएं, यह सिस्टम ही खत्म हो जाए।*

50:02 - 50:52


आज्ञा का उल्लंघन किया था इन्होंने। इसीलिए उनका दर्शन नहीं होता है। वो तो देखते हैं, और जो वंदना ये करते हैं, जो प्रार्थना, पूजा-उपासना ये करते हैं, उसको वो कुबूल करते हैं। अब देखो इनके ऊपर उनकी दया कब होती है, इनको मुक्ति-मोक्ष कब मिलता है, इसको तो मैं क्या कहूं? मेरी तो प्रार्थना यही है उनसे कि सबकी मुक्ति-मोक्ष हो जाए, सब अपने घर पहुंच जाएं, ये सिस्टम ही खत्म हो जाए, केवल वही रह जाए एक। लेकिन यह है बड़ा कठिन काम। क्यों? लाख प्रार्थना करें, न होने लायक हो, न हुआ हो पहले, बहुत समय हो गया, तो कैसे होगा।

https://www.youtube.com/live/rBRpT7NVvLA?si=NVfCVOZEdsr52OTr


समय का संदेश

09.08.2025, प्रातः 05 बजे  

झुंझुनू, राजस्थान 


*1. अगर भजन नहीं किया तो दुबारा फिर आना पड़ेगा और गरीब घर में जन्म लेना पड़ेगा।* 

1.28 - 3.58


आज जिनको ये अवसर मिल रहा है, ये कोई जरूरी नहीं है कि अगली रक्षा बंधन में रहेंगे। इन्हीं में से कुछ लोग चले जाएंगे। कहां चले जाएंगे ? धरती को छोड़ करके। नर्कों में तो नहीं जाएंगे, चौरासी में भी उम्मीद कम है। अगर भजन, ध्यान, सुमिरन करते रहेंगे, आदेश का पालन करते रहेंगे तो शरीर छोड़ करके तो जायेंगे, अपने घर, अपने वतन अपने मालिक के पास भले न पहुँच पाएं लेकिन ऊपरी लोकों में चले जाएंगे। वहां पर विश्राम मिल जाएगा कुछ समय के लिए। लेकिन फिर आना पड़ेगा यहां पर। मनुष्य शरीर में आना पड़ेगा। 

आज जो पैसे वाले लोग बैठे हो, आज जो धनी मानी लोग बैठे हो, आज जो आप पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी लोग बैठे हो; अगर भजन नहीं किया तो दोबारा फिर आना पड़ेगा और *गरीब घर में जन्म लेना पड़ेगा। गरीबी में ही जिंदगी बीतेगी। सतगुरु तो मिलेंगे लेकिन ये भी गारंटी नहीं है कि उसी जन्म में मिल जाएं और अगर कहीं पाप बन गया उस जन्म में तो फिर फंस जाओगे और नहीं तो दोबारा फिर जन्म लेना पड़ेगा*। इसलिए जीव की रक्षा करना जरूरी है। जीवात्मा की रक्षा करना जरूरी है। इसको बंधन मुक्त कराना है। ये जो जड़ और चेतन की गांठ बनी हुई है, इसको खोल करके और इसकी रक्षा करनी है। रक्षा बंधन आपका तभी होगा।


*2. रक्षासूत्र से प्राकृतिक आपदा और प्राकृतिक प्रकोप में तो बचत होगी लेकिन आत्मा की रक्षा नहीं होगी।*  

4.10 - 6.20


धागा तो आज आपको मिलेगा। जिसको राखी कहते हो, उसको हाथ में बांधोगे। शरीर की रक्षा तो गुरु की दया से, भाव भक्ति, श्रद्धा प्रेम के अनुसार शाकाहारी, भजनानंदी लोगों की होगी। शरीर की रक्षा होगी। लेकिन आत्मा की रक्षा इससे नहीं होगी। ये जो राखी अभी बंटेगी, ये जो धागा बंटेगा अभी; इसको आप अपने हाथ में बांधोगे, *अगली पूर्णिमा तक बांधे रहना रहेगा*। 

इससे आंधी आफत से, प्राकृतिक आपदा जिसको कहते हैं, प्राकृतिक प्रकोप जिसको कहते हैं; उससे बचत होगी। प्राकृतिक आपदा किसको कहते हैं, ये भी आपको बता दें, समझ जाओ गांव के लोग। जैसे बाढ़ आ गई, जो अभी बहुत आएगी, भूकंप आ गया, जैसे ऊपर से वज्रपात हो गया, चमक के साथ, गड़गड़ाहट के साथ जो एक शक्ति गिरती है, जला देती है, जहां पर गिरती है वो प्राकृतिक आपदा कहलाती है। 

प्राकृतिक प्रकोप किसको कहते हैं? बीमारी हो गई, हटने का नाम नहीं ले रही है। आग लग गई जंगल में तो बुझने का नाम नहीं के रही है। बारिश हो रही है तो झमाझम बारिश ही हो रही है। तब उसको कहते हैं प्राकृतिक प्रकोप। *प्राकृतिक प्रकोप और प्राकृतिक आपदा में बचत तो होगी इससे। किससे? इस धागा से और जो लोग यहां आए हो, प्रसाद खाओगे अपने हाथ से ले करके लेकिन आत्मा की रक्षा नहीं होगी*। क्यों ? क्योंकि ये बंधी हुई है। आपको बताया था कि ये बंधी हुई है जीवात्मा। आठ गांठ में बांधी है।

https://www.youtube.com/live/8lW6cCF6lVI?si=rR9pnt_fxNkaLP5G


समय का संदेश

08.08.2025, सायं 05 बजे 

झुंझुनू, राजस्थान


*अभी भीषण बाढ़ आएगी नदियों में।*

1:06:24 - 1:07:42


अभी बाढ़ आएगी। बाढ़, इसी बरसात में सुनाई पड़ेगा आपको। आपके यहां भले ही न आए लेकिन आएगी। तमाम घर बह जाएंगे उसमें। भीषण बाढ़ आएगी नदियों में। कहां आएगी ? दक्षिण दिशा में नदी में आ जाए, मध्य में आ जाए, राजस्थान में भी कुछ नदियां हैं, उनमें आ जाए। जल ही जल हो जाए। लेकिन अब हम ये क्यों बताए कि कहां आएगी ? लेकिन बाढ़ आएगी। तो घर गिरेंगे, लोग बहेंगे। 

आदमी मरेंगे, जानवर मरेंगे। क्यों ? क्योंकि नदी के किनारे वाले, समुद्र के किनारे वाले तो कह रहे हैं मछली खाए बगैर हमारा नहीं चलेगा। उनको क्या पता इसमें जीव है। जीव हत्या होती है तो पाप होता है और जानते हुए भी मछली का स्वाद जब लग गया, तो कहते हैं बगैर मछली के हम खायेंगे नहीं, बगैर मछली बनाए हमारा चलेगा नहीं। तो पाप किया; तो पाप की सजा कौन भोगेगा ? पाप की सजा तो भोगनी ही पड़ेगी। पाप से कोई बच नहीं सकता है। पाप का पलड़ा बहुत भारी होता है। पाप तो समुद्र में भी नहीं समाता है।

https://www.youtube.com/live/rBRpT7NVvLA?si=NVfCVOZEdsr52OTr


समय का संदेश

09.08.2025, प्रातः 05 बजे  

झुंझुनू, राजस्थान 


*राखी और प्रसाद उनको ही देना जो भजनानंदी, शाकाहारी, नशामुक्त होंगे।*

2.28.55 – 2.30.55


सबको मिलेगा। गुरु महाराज की दया का राखी और प्रसाद जो भी मिल जाए आपको, ले लेना। और राखी अगर कम पड़ जाए तो और खरीद करके इसी राखी को मिला लेना उसी में। जो अपने जिलों में बांटना चाहते हो, प्रांतों में बांटना चाहते हो, ले जाना। चाहते हो तो थोड़ा सा ले लेना और खरीद करके उसी में मिला लेना। प्रसाद थोड़ा सा ले लेना और बाकी बाहर खरीद करके उसी में मिलाते रहना। 

*एक दाना भी प्रसाद का आप किसी में भी मिला दोगे, ढेर में भी मिला दोगे, डाल दोगे तो गुरु महाराज की दया का वह भी प्रसाद बन जाएगा* । एक महीना तक बांट सकते हो आप, एक महीना तक, अगले पूर्णिमा तक, भाद्रपद पूर्णिमा तक, उसी समय में बांट देना। राखी भी उस समय तक आप दे सकते हो वहाँ पर। देना कब है? किसको देना है? भजनानंदीयों को, उनको जो नहीं आ पाए हैं , लेकिन भजन करते हैं, साधना शिविर लगाओ उसमें लोग आ जाएं उनको दे देना। 

*जब साधना शिविर में आएंगे, भजन करेंगे तब उनको आप दे देना* । प्रसाद भी दे देना और यह रक्षा भी दे देना। तो आप दे सकते हो। उनको देना है *जो भजनानंदी है, शाकाहारी होंगे, नशा मुक्त होंगे; उन्हीं को देना रहेगा, बाकी लोगों को नहीं* । बाकी लोग विश्वास भी नहीं करेंगे, वाह-वाही में आप भले ही दे दो हमारे दोस्त हैं, व्यापारिक संबंध है, हमारे रिश्तेदार हैं, उनको इससे क्या मतलब है? कुछ नहीं, वह तो आपका कहना मान लेंगे, प्रसाद मीठा रहेगा तो खा लेंगे, बहुत से लोग फेंक देंगे, कोई कदर नहीं करेंगे, तो बेकद्री हो जाएगी। जो कदर करे उसको देना चाहिए।

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समय का संदेश

09.08.2025, प्रातः 05 बजे  

झुंझुनू, राजस्थान


*1. कभी आपने गुरु से यह प्रार्थना की?*

53.18 - 54.30


"भक्ति करते छूटे मेरे प्राण, गुरु जी यही मांगू सदा" ये प्रार्थना बोली जाती है कि गुरु भक्ति करते मेरे प्राण छूटे। गुरु जी हमको दया दो, कृपा दो, मेहरबानी करो; दया मांगते रहना चाहिए। क्यों? क्योंकि "यह तन साधन ते नहिं होई। तुम्हरी कृपा पाव कोइ कोई॥" गोस्वामी जी महाराज बहुत पहले लिख गए थे कि कलयुग में बगैर गुरु की दया के नहीं हो सकता है। 

तो *कभी आपने इस बात को कहा गुरु से? कि हम नहीं बैठ पा रहे, हमारी सुरत नहीं चढ़ रही है।* प्रार्थना करना चाहिए कि आपके हाथ में अब डोर चली गई। मन की डोर चली गई, सुरत की डोर चली गई। जब आपने नामदान दिया, काल के हाथ से ले लिया, माया भी आपसे डरती है, मन पर उसका अंकुश नहीं रहता है आपकी दया से; तो आप दया कर दो हमारे ऊपर। *दया करके आप हमारे हृदय में बस जाओ, हमारे मस्तक पर सवार हो जाओ; यह प्रेमियों को बराबर प्रार्थना करते रहना चाहिए।*  


*2. कामी पुरुष या स्त्री की आंखों से आंख मिल जाए तो काम का जहर शरीर में आ जाता है।*

1.10.40 - 1.12.14


गोस्वामी जी महाराज ने लिखा है *को अस जगत विमल वैरागा। नारि नयन सर जाहि न लागा।।* 


आप ये समझो, *बच्चियों! तुम्हारे लिए भी कामी पुरुष के आंखों से आंख अगर मिल जाए तो उसका जो काम का जहर है, वो तुम्हारे भी शरीर में आ जाएगा* और कामी औरत से अगर नजर मिल जाए पुरुष का; तो कैसा भी पुरुष हो उसका भी मन डोल जाता है। कंट्रोल नहीं कर पाता है अपने को। 

*कई साधक गिर गए। इसी में खोजोगे तो मिल जाएंगे। तब से साधना बनी ही नहीं। रोक नहीं पाए अपने को।* कामी औरत खड़ी थी, काम वासना भरा हुआ था उसके शरीर में, आंखों में झलक रहा था। उसका असर आ गया, अक्स आ गया। अब जब ध्यान लगावे (नैमि ऋषि) तो वही दिखाई पड़े। तब मन कहे देख लो उसको यहीं होगी। बस प्रेम हो गया और जब प्रेम हो गया तो शादी कर लिया उससे।

https://youtu.be/ONa5g9weCoE?si=_q_zEj0R2dES9-a0


समय का संदेश

08.08.2025 प्रातःकाल 

झुंझुनू, राजस्था 


 *साधना का अभ्यास क्यों कराया जाता है?* 


जो सक्षम गुरु होते हैं, जीवात्माओं को तो पल भर में खींच सकते हैं लेकिन फिर ये वहां टिकेंगी नहीं। क्यों नहीं टिकेंगी? क्योंकि यह आस नहीं जाएगी, ये मन और चित्त का चिंतन नहीं खत्म होगा; जैसे ही याद आएगी इस शरीर की, जैसे ही बाल-बच्चों की और दुनिया की याद आएगी, जैसे ही माया पर्दा डालेगी, जैसे ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश खिंचाव करेंगे तैसे ही ये फिर वापस आ जाएगी सट से। ऐसे देखो ध्यान लगाते-लगाते फट से आंख खुल जाती है। तो ये खींच लाएंगे। इसीलिए अभ्यास के द्वारा। अभ्यास के द्वारा जब ये जाती है, तब ये वहां टिक जाती है। इसीलिए साधना कराया जाता है। इसीलिए अभ्यास कराया जाता है।

https://youtu.be/10rsEQkk5s8?si=f7YUJ4qc6uouHBFF


समय का संदेश

15.08.2025

अंबाला, हरियाणा 

*जन्माष्टमी कार्यक्रम में जो लोग आयेंगे और अपनी तकलीफ को सच्चे हृदय से कहेंगे, सबको फायदा होगा। पिछले कार्यक्रमों से ज्यादा फायदा यहां होगा।*

53:27 - 56:27


एक चीज बता दें आपको कि भाई भजन, ध्यान, सुमिरन तभी होगा, जब कष्ट जाएगा, तकलीफ जाएगी, कैसी-कैसी तकलीफें होती हैं? बहुत तरह की तकलीफें होती हैं। मुख्य रूप से, शिष्ट भाषा में; दैहिक, दैविक और भौतिक कष्ट कहा गया है। अब दैहिक, दैविक, भौतिक सब लोग नहीं समझोगे, इसको समझाने का अभी मौका भी नहीं है। 

लेकिन यह तो समझोगे ही कि शरीर से कष्ट होता है और आदमी सोचता रहता है, चिंता-फिकर उसकी रहती है; वो कष्ट होता है। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक। मानस के ऊपर कब कष्ट आता है? जब आदमी यह देखता है कि हमारा रोग नहीं ठीक हो रहा है, हमारी बीमारी नहीं ठीक हो रही है, हमारा लड़का नहीं ठीक हो रहा है, हमारी बहू नहीं ठीक हो रही है, जब वह यह देखता है कि हमारी पत्नी और पुत्रवधू दोनों लड़ रही हैं कुत्ते की तरह से, ये एक दूसरे से छोटा अपने को नहीं समझ रही हैं, और बात नहीं मान रही है कोई, लड़ाई-झगड़ा कुछ-कुछ लगा रहता है तब समझो मानसिक कष्ट होता है। 

दिमाग लगा रहता है उसी में मन लगा रहता है, कैसे होगा? क्या होगा? किस तरह से सुलझावे? पैसा रूपया की कमी हो जाती है। तब समस्याएं तरह-तरह के आती हैं। दाल है तो आटा नहीं है, आटा है तो नमक नहीं है, तो तेल नहीं है, तो मसाला नहीं है, साग-सब्जी नहीं खाने को मिल रहा है, त्यौहार आ रहा है कुछ मीठी चीज बननी चाहिए, वह कहां से आएगा? मेहमान कोई आ जाएगा तो क्या खिलाएंगे? क्या करेंगे? लड़की सयानी हो रही है, पूरा नहीं पड़ रहा है, बचत नहीं होगी तो खर्च होगा। 

मेहमानों को खिलाना पड़ेगा, बुलाना पड़ेगा, तो आर्थिक कष्ट उसको कहते हैं। तो यह समझो की कष्ट है, तकलीफ है और कुछ न कुछ तकलीफ इनमें से सबको है और किसी-किसी को तीनों तकलीफ है। तो यह तकलीफ नहीं जाएगी तो मन अगर बीमारी में लगा रहेगा, मन लड़का में लगा रहेगा, मन बाप की बीमारी में लगा रहेगा, मन जो है आप समझो कि रुपया पैसा नहीं है, कैसे होगा ये? उसमें लगा हुआ है। 

तो मन इधर कैसे लगेगा? "ऊधो मन नाही दस बीस" उन्होंने कहा "अरे! एक रह्यो सो गयो श्याम संग"। कहा मेरा मन तो श्याम में लग गया, मेरा मन तो कृष्ण में लग गया, अब मन तो हमारा कहीं है नहीं। तो आप यह समझो कि मन तो एक ही है और *मन नहीं लगेगा, तो सुमिरन में कुछ नहीं मिलेगा, सुमिरन करने से कुछ नहीं मिलेगा, ध्यान करने से कुछ नहीं मिलेगा, भजन करने से कुछ नहीं मिलेगा* ।


1:03:50 - 1:10:38

तबियत जब खराब रहेगी और समस्याएं रहेंगी, तो ये दूर कैसे करोगे? तो उसका उपाय तो बताना अभी जरूरी है और आपको जो तकलीफ वालों को बताया जाएगा; उनको तो फायदा होगा ही होगा जो यहां लोग आए हो। आपके मिलने-जुलने वाले, आपके रिश्तेदार, आपके लोगों को कैसे फायदा होगा? क्योंकि परिवार में अगर कोई दुखी हो गया, परिवार वालों को कोई कष्ट हो गया, उसको कोई बीमारी रही तो आप को न तो रात भर नींद आएगी और न भजन में मन लगेगा। 

तो अभी इसीलिए बता दे रहा हूं कि जो कल से कार्यक्रम शुरू होने वाला है, उसकी जानकारी आप सब लोगों को दे दो; फोन के, व्हाट्सएप के, संदेश के द्वारा, कैसे भी दे दो कि इस कार्यक्रम में जो लोग भी आएंगे और अपनी तकलीफ को कहेंगे, सच्चे हृदय से, विश्वास के साथ कहेंगे, उनको सबको फायदा होगा। जिसकी जैसी भाव-भक्ति रहेगी,श्रद्धा-प्रेम रहेगा, उसको उसी हिसाब से फायदा होगा। 

हर चीज में फायदा दिखेगा उसको। कोई भी समस्या होगी उसकी और *अगर वो आत्मसमर्पण जिसको कहते हैं कर देगा, सरेंडर कर देगा कि अब कोई और सहारा नहीं है, अब तो बस आप ही हो और हमारे गुरु महाराज को याद करके प्रार्थना कर लेगा, तो गुरु महाराज 2 आना, 4 आना, 6 आना, 12 आना और किसी-किसी को 16 आना फायदा कर देंगे* । 

इसीलिए इस चीज की खबर कर दो। कैसे होगा, क्या होगा? कोई नहीं। अनुशासन के साथ, नियम के साथ। कैसा नियम? जहां बैठे हो इससे 4 कदम आगे जाना रहेगा। 4 कदम, 10 कदम, 20 कदम; यहीं इसी मैदान में ही जगह बता दी जाएगी कि जाओ वहां, हाथ जोड़ो, आंख बंद करो, धरती पर वहीं से प्रणाम करो और अपनी तकलीफ कह कर के चले आओ। इतना ही कहना रहेगा। 

अब कहां होगा, क्या होगा, किस जगह पर होगा? यह तो आपको शाम को बता दूंगा। लेकिन इसकी खबर जब आप पहले दोगे तभी दूर के लोग पहुंच पाएंगे। इसीलिए इसी समय बता दिया आपको कि पिछले जो कार्यक्रम रहे हैं; चाहे वो साधना शिविर का फायदा रहा हो, चाहे जिस जगह पर पहले झंडा लगाया गया वहां फायदा रहा हो; किसमें भी फायदा रहा हो, उससे ज्यादा फायदा यहां होगा। यह हमको अपने गुरु पर विश्वास है। और आपको अगर मेरी बातों पर विश्वास है तो विश्वास करो; यहां से ज्यादा फायदा दिखने लगेगा।


जो लोग बराबर सुमिरन, ध्यान, भजन करेंगे और सात्विक रहेंगे; किसी भी जानवर, पशु, पक्षी का मांस नहीं खाएंगे, ऐसे नशे की चीजों का सेवन नहीं करेंगे कि जिससे आदमी मदहोश हो जाता है, होश में नहीं रह जाता है, आदमी जैसा व्यवहार नहीं करता है, पागल जैसा व्यवहार करता है; ऐसे नशे का सेवन अगर नहीं करेंगे तो जाने के बाद से ही उनको फायदा दिखने लगेगा। समस्याओं में कमी आती हुई दिखाई पड़ जाएगी; यह हमको अपने गुरु पर भरोसा है, विश्वास है और आप हमारी बात पर विश्वास कर के देख लो। 

आप जो तकलीफ वाले हो, आपको तो करना ही है, और *लोगों को खबर कर दो आप। बहुत प्रेमी हैं जो बहुत दुखी हैं, क्योंकि गुरु की राह से लोग भटक गए।* यह साधना शिविर लगवाने की जरूरत क्यों पड़ी? ऐसी बातों को और इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने की जरूरत क्यों पड़ी? क्योंकि भटक रहे हैं रास्ते से और अगर इस रास्ते से भटक गए तो और कोई, कहीं सहारा नहीं है। 

लोग भटकाने वाले भले कितना भटका दें, लेकिन घुम-घाम कर के फिर वहीं आना है। क्यों? क्योंकि गुरु ने सुरत की, जीवात्मा की डोर पकड़ रखी है। डोर कैसे पकड़ी जाती है? जैसे किसी जानवर को पाल लिया आपने, तो रस्सी में बांधते हो। अब उस जानवर को घास खिलानी है आपको। घास काट कर, लाकर नहीं खिला सकते हो तो घास वाले खेत में ले जाते हो और खूंटा, लकड़ी, लोहा गाड़ कर के रस्सी को लंबी कर के बांध देते हो। 




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