हमारे पास देश-विदेश की लिस्ट आ जाए कि जहां साधना शिविर लग चुके हैं।*

*जयगुरुदेव* 

https://www.youtube.com/live/sWrS2mTrBcw?si=yiinYzgkIwGxVIfR


समय का संदेश 

31.08.2025 प्रातः 11 बजे 

देशनोक, राजस्थान 

*1.हमारे पास देश-विदेश की लिस्ट आ जाए कि जहां साधना शिविर लग चुके हैं।*

2.56.42 - 2.58.16


पूरे देश-विदेश में लग रहा है इस समय साधना शिविर। विदेशों में भी खूब लग रहा है। चार चरणों में लगाने के लिए कहा गया था। बहुत जगह पर तो पूरा हो गया और कुछ जगहों पर जहां नहीं हो पाया, वो भी पूरा हो जाएगा। हम तो यह भी चाहेंगे कि हमारे पास देश-विदेश की यह लिस्ट आ जाए कि हमारे जिले में साधना शिविर लग चुकी। पूरे देश में, कहीं-कहीं तो गांव-गांव में लग गया है जहां संगत ज्यादा है। 


जहां कम है वहां जिला स्तर का लगा है। इक्का-दुक्का कोई छूटे होंगे तो उसकी भी खबर आ जाएगी। *जितने भी आईटी वाले हो आप, आप पता कर के बताओ; वहां केंद्रीय कार्यालय में* (हेड ऑफिस) में खबर आ जाए और फिर वो व्यवस्था बनवा देंगे। कुछ जिला छूटे हैं लेकिन उसकी व्यवस्था बन जाएगी। तो वहां भी लग जाएगा, जहां भी अपनी संगत है, सब जगह लग जाएगा। ये साधना शिविर लगाना ज्यादा जरूरी है। 


*आपको कहा गया था कि नवरात्र के पहले ही लग जाए। नवरात्र के लिए विशेष आदेश होगा और वो फलदाई होगा* । तो अभी तो जहां रह गया है, वहां भी लग जाए। तब खबर दी जाएगी।


*2. जब तलक है जिंदगी, फुरसत नहीं है काम से। कुछ समय ऐसा निकालो, मिलन कर लो राम से।।*

1.02.27 - 1.04.32

यह मनुष्य शरीर का समय निकला चला जा रहा है और आपने वादा किया था कि हम भजन करेंगे तो भजन करो। जिस काम के लिए यह मनुष्य शरीर मिला है वह काम आप अपना करो। देखो प्रेमियों! अगर इसी काम में आपको लगा दिया जाए कि केवल आप माला पकड़ लो, माला जपो, ये भगवान का नाम है इसी को आप जपते रहो तो भी काम बनने वाला नहीं है। 

क्यों? कमाओगे नहीं तो खाओगे क्या? कमाओगे नहीं तो बच्चों को क्या खिलाओगे? बच्चियों, अगर घर का काम नहीं करोगी, रोटी नहीं बनाओगी, बच्चों की देख-रेख नहीं रखोगी, तो जैसे बच्चों की देख-रेख जो आज नहीं रखते हैं, उनके बच्चे नालायक निकल जा रहे हैं, ऐसे वे भी नालायक निकल जाएंगे। तो वह भी जरूरी है। उनके दवाई, पढ़ाई का ध्यान रखना है। कमाई नहीं करोगे, मेहनत नहीं करोगे तो कैसे काम चलेगा? तो वह भी जरूरी है, लेकिन जो आप लोग उसी में फंसे रहते हो, ऐसे लोग *जो दिन-रात गृहस्थी में ही फंसे रहते हो उनके लिए यह कहना है कि आप थोड़ा समय निकालो अपने जीवन का* । 

देखो! 24 घंटे का समय होता है और *21 घंटा भी अगर आप ठीक से लग करके गृहस्थी को देख लो, काम कर लो, तो आपका सब काम सेट हो जाएगा* और अगर लगे रहोगे तो 24 घंटे उसी में लगे रहोगे, दिन रात करते रहोगे तो भी काम खत्म नहीं होगा। कहते हैं न "जब तलक है जिंदगी फुर्सत नहीं है काम से, कुछ समय ऐसा निकालो मिलन कर लो राम से।।" तो जब तक यह जिंदगी है, तब तक इससे फुर्सत नहीं है, लेकिन इसमें से समय अगर आप निकाल लोगे तो राम से मुलाकात हो जाएगी, भगवान से मुलाकात हो जाएगी।

https://www.youtube.com/live/KnNS1jrf7uM?si=4TuvPsFNhuGFSmV6


समय का संदेश 

01.09.2025 प्रातः 11 बजे 

बाबा जयगुरुदेव आश्रम, जोधपुर, राजस्थान 


*1. समय सीमा के अंदर साधना शिविर के चारों चरण पूरा कर लेना है।* 

41.44 - 44.15


समय आपका निकला चला जा रहा है। जो समय सीमा आपको दी गई थी, उसके अंदर पूरा कर लेना है। देखो! 10 - 12 दिन का समय है। आज का तो दिन निकल गया। कल आपका सतसंग है, वो भी निकल जाएगा। 10 ही, 11 ही दिन, 12 दिन आपके बचते हैं। *उसके बाद फिर दूसरा आदेश मिलने वाला है तो चूक जाओगे कि नहीं चूक जाओगे?* अरे भाई! जो ये जगाने वाली बात बताई गई, वो कैसे, विवेक कैसे उत्पन्न हो पाएगा, अंतःकरण कैसे आपका साफ हो पाएगा। 

बुद्धि ही अभी सही नहीं हुई क्योंकि सबको अनुभूति हुई ही नहीं। शान्ति जरूर मिली जो बैठे हो, लेकिन थोड़े ही लोगों को इसमें झलक मिली होगी। तो कैसे होगा ये? *फिर वैसे के वैसे ही रह जाओगे। जड़ ही के जड़ रह जाओगे। चैतन्यता कहां से आएगी? इसलिए जल्दी से पूरा कर लो, जल्दी से* । 

उसके लिए अभी आपको छुट्टी होगी थोड़ी देर के लिए। जाना पेट में कुछ डाल लेना, मिल जाए प्रसाद जो भंडारे में बना हो। फिर उसके बाद बैठकर के आप मीटिंग करो। ये बच्चियां, माताएं अलग गोष्ठी कर लें, आप लोग अलग गोष्ठी कर लो या चाहो सब लोग एक साथ बैठकर के मीटिंग करो और तुरंत के तुरंत योजना बनाओ, तुरंत योजना बनाओ! और हमको एक आदमी बताओ कि इस तरह योजना बन गई और आपके जिले में कहां-कहां लगा इसकी भी जानकारी हमको दो। 

वहां भी पता करो कि चारों लग पाए या नहीं लग पाए। जिला स्तर का ही यहां लगता रहा या और जगहों पर ही लगता रहा है। ये सारी जानकारी आप हमको कर के बताओ क्योंकि मैं यहां मौजूद हूं। आप सब बताओ कि कब हम शुरू करेंगे कब खत्म करेंगे। कहां करेंगे कैसे करेंगे। कोई जगह यह तो बताई नहीं गई है कि यहीं पर हो। कहीं दूसरी जगह भी आप कर सकते हो। लेकिन होना चाहिए। चारों चरण होना चाहिए। 

चारों में बैठना चाहिए आदमी को। *जो चारों में बैठेगा, उसको अलग लाभ मिलेगा, एक में बैठेगा उसको अलग लाभ मिलेगा, एक घंटा बैठेगा उसको अलग लाभ मिलेगा, ज्यादा देर तक बैठेगा वो अलग अनुभव करेगा, अनुभूति होगी उसको* । तो ये सब की आप योजना बना लो। लोगों को बताओ।


*2. देश-विदेश के संगत के जिम्मेदारों के लिए संदेश*

44.16 - 46.17


*जिम्मेदार बन जाना ये कोई जिम्मेदारी नहीं है। जिम्मेदारी निभाओ* और नहीं निभाओगे तो ये जो साधक लोग हैं, ये आपको कोई जिम्मेदार नहीं समझते हैं। ये तो काम को देखेंगे कि इन्होंने हमको कितनी प्रेरणा दिया, साधना शिविर हमारी कितनी लगवाया, हमको क्या मदद किया, ये कितनी देर तक बैठे; ये लोग देखेंगे, तो आपको निकाल-बाहर कर देंगे। जो इज्जत के लिए आप जगह लिए हुए हो, इज्जत के लिए पद लिए हुए हो; वो इज्जत खत्म हो जाएगी कि नहीं हो जाएगी? इसलिए उसको बनाए रखने के लिए जो असली चीज है उसको कराओ इनसे, खुद भी करो। अब खुद नहीं बैठोगे तो कैसे पता चलेगा कि क्या टेस्ट मिलता है इसका, क्या आनंद मिलता है इसलिए बस वही काम जो पहले से करते आ रहे हो, उसी में लोगों को लगा देते हो। 

उसमें भी यही साधक काम आते हैं आपके। इसलिए इनका साथ दो साधकों का और साधना शिविर लगवाओ आप लोग जो जिम्मेदार बने हुए हो जिला के, जोन के जो जिम्मेदार बने हुए हो; ये सब आप इन कामों को करो और कराओ और ये संदेश जहां तक जा रहा है सबके लिए जा रहा है देश-विदेश के लिए। इसको जो जिम्मेदार सुनो वो सब को बताओ कि जहां-जहां पर पिछड़ रहा है वहां पर लगवाओ। 

पता लगावे फट से लगकर के, *समय निकला चला जा रहा है, ये समय फिर दोबारा नहीं मिलेगा। फिर ये समय नहीं मिलेगा, ये दया नहीं मिलेगी जो अभी समय के अंदर चारों शिविर लगवा दी जाएंगी, लगा दी जायेंगी और उसमें बैठकर साधना कर ली जाएगी* । इसलिए अब ये काम में सबको लगने की जरूरत है और दूसरा काम फिर अभी आने वाला है, जिसमें ज्यादा लाभ मिलेगा, देखना उसको।


*3. नए लोगों में ज्यादा उत्साह और लगन है।*

48.24 - 49.45


हमने देखा कि नए लोगों में ज्यादा उत्साह है और नए लोग ज्यादा दया के घाट पर बैठ रहे हैं और उनको दया मिल भी रही है। ज्यादा मिल रही है क्योंकि लगन है उनको। उनकी इच्छा है। आप तो बेमन से बैठते हो। *आप जितने ही पुराने होते जाते हो, जितने जिम्मेदार बना दिए जाते हो, कार्यकर्ता बन जाते हो, जिम्मेदार बन जाते हो; आपकी इच्छा धीरे-धीरे इससे हटती चली जा रही है* । 

मन आपका करने को नहीं कह रहा है। लेकिन उनके अंदर इच्छा है। उनके अंदर चाह है, चाहना है तो उनका अच्छा बनता है। तो दया गुरु महाराज की उन पर भी हो जाएगी और आप अगर चेत जाओगे तो आप पर भी हो जाएगी। कहते हैं न "सुबह का भूला शाम को घर अगर वापस आ जाए तो भूला नहीं कहलाता है" इसलिए अपनी-अपनी गलती की माफी मांगेगे हम सब लोग। *माफी मांगने की जरूरत है गुरु से कि अभी तक हमारा समय बरबाद रहा, हम भ्रम और भूल में रहे। अब हम असली काम में लगेंगे और लोगों को लगाएंगे*।

https://www.youtube.com/live/7b4_I0OAcdA?si=jdSN_cNLce7mtJiZ


समय का संदेश

02.09.2025 

बाबा जयगुरुदेव आश्रम, जोधपुर 

*1. जहां 10-15 सतसंगी भी हैं वहां भी तीन दिन की अखंड साधना शिविर लग सकती है।* 

5.24 - 9.24


जहां 10-15 सतसंगी भी है, वहां भी साधना शिविर तीन दिन की लगवा सकते हो आप। अखंड साधना शिविर वहां भी लग सकती है, बस उनका मन बनाने की जरूरत है, उनको समझाने की जरूरत है, फिर जब वो समझ जाएंगे कि इससे क्या लाभ हमको मिलेगा, क्या फायदा होगा, क्यों करना चहिए; जब सारी बातों को आप अपनी ही भाषा में जो जितना जानते हो उनको समझा ले जाओगे, आप जो साधक लोग हो, आपको जो शांति मिली, सुख मिला, आनंद आया, उनको बताओ कि भाई करके देखो आनंद आता है, शांति मिलती है, तो उनको समझाओ। उनके समझ में अगर आ जाएगा तो वो लगातार फिर बैठेंगे। उठेंगे भी; पानी, पेशाब के लिए, तो फिर आकर बैठ जाएंगे। 

तो वही आदमियों का बैठ बनवा दो; चार-चार, तीन-तीन, दो-दो घंटे जो बैठ सके, पूछ लो कितना देर लगातार बैठ सकते हो, तो उतने की आप उनकी ड्यूटी लगा दो। वहीं पर लिस्ट तैयार करा दो और फिर लगवा दो साधना शिविर। बराबर चलती रहेगी। आसपास के जो लोग आते हैं उनके पानी, पेशाब, जरूरत पड़ने पर रोटी, दो रोटी की व्यवस्था करा दो। भूख लगती ही नहीं है जब साधना मैं बैठ जाता है आदमी। अरे! 50-50, 53–53 घंटे बैठे रहे, 56 घंटे बैठे रहे, उठे जब; तब बोले मालूम पड़ा अभी बैठे हैं, न भूख, न प्यास, न टट्टी, न पेशाब। 

तो बैठ जाने के बाद तो भूख लगती ही नहीं है, इच्छाएं सब खत्म हो जाती हैं। लेकिन भूख लगी है तो दो रोटी मिल जाए कभी भी; ऐसी व्यवस्था बनवा दो कि जिससे दूर-दूर के लोग अगर आ जाते हैं, इक्का-दुक्का कोई है जहां नहीं चल सकती साधना शिविर, पता चला था तहसील में इस जगह पर लगा हुआ है, जिले में इस जगह पर लगा हुआ है और वहां वो आ जाएं तो उनको दो रोटी मिल जाए। 

तो यह सारी व्यवस्था आप लोग करा दो। यह समय निकल जाएगा। पकाने-खाने का, घर में जानवरों की देख-रेख करने का, पति की सेवा करने का, सास, ससुर की सेवा करने का, बच्चों की सेवा करने का, पत्नी की सेवा करने का, मां-बाप की सेवा करने का; यह अवसर तो आपको मिलता रहा है और मिलेगा लेकिन *साधना शिविर लगवाने का आपको मौका नहीं मिलेगा, साधना शिविर में बैठने का मौका नहीं मिलेगा और मिलेगा भी तो उसका रूप बदल जाएगा, उसका समय बदल जाएगा, उसका मुहूर्त बदल जाएगा इसलिए आप लोग ये काम प्रेमियों पूरा कर लो* । 

यह हमारी आवाज जितने भी लोग सुन रहे हो जो लोग यूट्यूब को देखो; आप लोगों को बताओ कि आज के दिन यहां पर सुबह यह बात सब लोगों के लिए, देश-विदेश में जितने भी प्रेमी रहते हैं बताई गई है। तो आप सब लोग इस समाचार को लोगों तक पहुंचा दो कि समय की कीमत होती है, समय निकल जाएगा तो फिर वो समय वापस जीवन में नहीं आएगा। इसलिए *साधना शिविरें जहां रह गई हैं वहां प्रेमियों आप सब लोग लगवा दो। 

जितने भी जिम्मेदार हो सब काम थोड़ा ढीला दे करके केवल जरूरी काम ही करो, बाकी जो दूसरा नंबर, तीसरा नंबर का काम है उसपर थोड़ी देर के लिए विराम लगा करके और इस काम को आप लोग; जगह-जगह पर साधना शिविर लगवाने के काम को पूरा करवा दो* ।


*2. अब चेत जाओगे और जो 10-12 दिन बचे हैं, इसमें चारों साधना शिविर का कोटा पूरा कर लोगे तो गुरु की दया का अनुभव हो जाएगा।*

31.15 - 33.39


अभी आप लोगों को दूसरा आदेश मिलेगा। जल्दी मिल जाएगा। ये चारों चरण पूरे हो जाएं, फिर आपको जल्दी आदेश मिल जाएगा। *नवरात्र से पहले आदेश मिल जाएगा आपको। तो वो ज्यादा फलदाई होगा। साधना से संबंधित होगा, वो ज्यादा फलदाई होगा। तो उस आदेश को लागू होने से पहले ये चारों चरण का साधना शिविर है, इसको लगा लो* । चित्त की साधना, बुद्धि की साधना, अंतःकरण की साधना और विवेक की साधना; ये इसका नाम रखा गया है। चित्त जब तक लगेगा नहीं भजन में तब तक आपका मन कहेगा नहीं। तो मन लग जाए, चित्त लग जाए; तीन दिन अगर लोग लगातार किए होंगे, समय ज्यादा से ज्यादा दिए होंगे तो चित्त चिंतन करने लगा होगा कि असला काम ये है, सुख यहां पर है, शांति यहां पर है।

 तीन दिन की फिर बुद्धि की साधना। बुद्धि ही नहीं लगा पाते, बुद्धि ही नहीं काम करती है। चित्त जो चिंतन करता है, बुद्धि उसका साथ नहीं देता है। तो उससे बुद्धि प्रखर होती, बुद्धि सही होती। कहते हैं बुद्धि ही इनकी काम नहीं करती है तो बुद्धि काम करने लग जाती है इस काम के लिए।

तीन दिन इसमें बैठ गए होते, तीसरी साधना शिविर में बैठे होते तो इससे आपका अंतःकरण साफ होता। ये जो गंदगी है अंतर में कर्मों की, ये साफ होती फिर विवेक हो जाता आपको और इस पर आप अडिग हो जाते। तो वो तो समय निकाल दिया आपने। जो नहीं लगा पाए, नहीं बैठ पाए तो चलो कोई बात नहीं है। देने वाले का बड़ा लंबा हाथ है, सफाई करने वाले के हाथ में ऐसा गुण होता है कि कोई चीज की सफाई करना होता है तो जिसको जानकारी होती है कैसा भी दाग क्यों न हो उसको वो साफ कर देते हैं। तो सबकुछ हो सकता है लेकिन अब जब चेत जाओगे, *जो समय बचा है 10-12 दिन का, इसमें अगर आप चेत जाओगे और चारों का कोटा पूरा कर लोगे तो उसमें भी आपको गुरु की दया का अनुभव हो जाएगा* ।

https://www.youtube.com/live/KnNS1jrf7uM?si=4TuvPsFNhuGFSmV6


समय का संदेश 

01.09.2025 

बाबा जयगुरुदेव आश्रम, जोधपुर, राजस्थान 

*1. साधना शिविर क्यों लगानी पड़ रही है?*

10.58 - 13.04


साधना शिविर कब लगानी पड़ी? जब जीव भटक गए। दुख पाने लग गए। समझाने पर भी आदतों से दूर नहीं हो पाए। ऐसी आदतों में आ गए जिससे कर्म आने लग गए। कर्म खराब होने लग गए। अंतःकरण गंदा होने लग गया। विवेक खत्म हो गया। बुद्धि खराब होने लग गई। मन मोटा हो गया। तब साधना शिविर लगवाने की जरूरत पड़ी। गुरु महाराज के समय में कम लगाया गया। इसके *पहले जो सन्त हुए होंगे वो नहीं लगवाए होंगे। क्यों? क्योंकि जीवों के ऊपर इतनी मलीनता नहीं थी। गंदगी नहीं थी* । 

इस समय पर कलयुग का जोर चल रहा है। जगह–जगह पर कलयुग जोर लगा रहा है। क्या जोर लगा रहा है? कि जीवों को फंसाया जाए। जीवों को अपने घर न पहुंचने दिया जाए। यह कलयुग में काल का जोर चल रहा है। माया का जोर चल रहा है। इस समय पर आदमी की बुद्धि बहुत जल्दी खराब हो जाती है, विवेक खत्म हो जाता है। खानपान की वजह से अंतःकरण गंदा हो जाता है। यह मन गुरु भक्ति से अलग कर देता है। गुरु के वचनों से अलग कर देता है। इसलिए *मन, चित्त, बुद्धि को सही रखने के लिए साधना शिविर लगवाई जा रही है*।


*2. जीवों को दु:खी देखने पर वह प्रभु किसी को भेजते नहीं बल्कि खुद आते हैं।*

17.23 - 18.51


उनका नाम है दीनबंधु दीनानाथ। जब जीवों को दुखी देखते हैं तब वो किसी न किसी को भेजते हैं। किसी को भेजते नहीं बल्कि खुद आते हैं। निराकार, वो साकार रूप में आ जाते हैं। निराकार किसको कहते हैं? जिनको इन बाहरी आंखों से देखा नहीं जाता है उनको निराकार कहा जाता है। और साकार किसको कहते हैं? जैसे आप हमको देख रहे हो। हम आपको देख रहे हैं। आप देखो ये गुरु महाराज का फोटो लगा है। मंदिर बना है। 

आप यहां देख रहे हो। तो इस तरह से यह साकार है। जो इन आंखों से देखा जाता है वह चीज साकार है और जिनको बाहरी आंखों से नहीं देख सकते हो वह निराकार है। तो प्रभु साकार रूप में आते हैं और समझाते हैं, बताते हैं। आप ये समझो *जितने भी महात्मा, महापुरुष आए सब में उसकी अंश रही है। प्रभु का अंश सब में रहा है और उन्हीं की शक्ति से लोगों ने काम किया है*।

https://www.youtube.com/live/7b4_I0OAcdA?si=jdSN_cNLce7mtJiZ


समय का संदेश 

02.09.2025 प्रातःकाल 

बाबा जयगुरुदेव आश्रम, जोधपुर, राजस्थान 


*1. गुरु की पहचान जल्दी नहीं हो पाती। जो पहचान जाते हैं, वे आदेश पर कुर्बान होने के लिए तैयार हो जाते हैं।* 

17.18 - 18.34


कहा ना "तुम्हें गाेकि आंखों से सब देखते हैं, पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े" आप गाेकि आंखों से देखते हैं; यानी देखते खूब हैं, समझने की कोशिश करते हैं। क्या देखते हैं? कि बहुत भीड़ आती है, बहुत लोग आते हैं अपनी दुख-तकलीफ कहते हैं, तो फायदा जरूर होता होगा, इनके पास क्यों आते हैं? इनसे प्रेम क्यों करते हैं? यह उनसे ज्यादा ( प्रेमियों से ) प्रेम करते होंगे। 

इन सब चीजों का तो अध्ययन करते हैं, देखते हैं लेकिन पहचान नहीं हो पाती है। *सन्तों, महात्माओं के शिष्य बहुत से लोग बन जाते हैं लेकिन गुरु की पहचान उनको नहीं हो पाती है* । कारण क्या है? खाली उनके शरीर को देखते हैं। उनकी आंखों को देखते हैं जिसमें से तेज निकलता है, शरीर में एक आकर्षण पैदा होता है, प्रेम की धारा निकलती है, तो उससे सराबोर होते हैं, तो वही देखते हैं लेकिन कुछ तो पहचान जाते हैं और जो पहचान जाते हैं वो आदेश पर कुर्बान होने के लिए तैयार होते हैं।


*2. पीर किसको कहते हैं?*

20.01 - 21.32


पीर किसको कहते हैं? "कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जानिया, सो काफिर बे पीर।।" 

पीर माने होता है "पीड़ा", "दर्द"। तो जो दूसरे के दर्द को जानता है, दूसरे के दर्द को समझता है, वही पीर होता है और जो दूसरे के दर्द को नहीं समझता, कपड़ा पहनले, गद्दी पर बैठ जाए, दरबार लगाने लगे, वो पीर नहीं माना जाता है, उसको तो कबीर साहब ने कहा कि काफिर बे पीर है ये, किसी की पीर, दर्द को समझता ही नहीं है ये। मुर्गा, भैंसा, बकरा काट देता है, दर्द नहीं समझता है कि हमारी अंगुली अगर काटी जाए तो कितना दर्द होगा, ऐसे इसका गला जब हम काटेंगे तब कितना दर्द होगा; इस चीज को नहीं समझता है। 

यह नहीं समझता है कि "जो गल काटे और का, अपना रहा कटाय। साहब के दरबार में बदला कहीं न जाए।।" साहब के दरबार में बदला देना पड़ेगा। साहब को ही भुला हुआ होता है, मालिक को ही भुला हुआ होता है। *तो जो दूसरे का दर्द समझता है उसको पीर कहते हैं* ।


समय का संदेश 

02.09.2025 प्रातःकाल 

बाबा जयगुरुदेव आश्रम, जोधपुर, राजस्थान 


*1. जीवात्मा को अपना रूप कब दिखाई देता है?*

27.00 - 28.15


गुरु महाराज की दया हो गई। यह जो उपाय निकाला है गुरु महाराज ने, जो आपको बताया गया, दोहराया गया और कराया जा रहा है उनके आदेश से, इससे गुरु की पहचान हो जाएगी और अपनी भी पहचान हो जाएगी। *जब आत्म साक्षात्कार होगा, जब यह जीवात्मा इस अंधकार से प्रकाश में जाएगी तब अपना रूप दिखाई पड़ जाएगा* । 

जैसे ही पिंडी शरीर छूटेगा, अंड लोक में ये प्रवेश करेगी उसी समय यह जो कर्म है यह जल जाएंगे, ये बुरे कर्म उसी समय सब खत्म हो जाएंगे और जब बुरे कर्म हट जाएंगे, तब रोशनी सीधी आत्मा को मिलेगी और तब आत्मा की पहचान हो जाएगी। देखो! आपको अपनी पहचान अंधेरे में नहीं हो सकती है कि मेरा हाथ कैसा है, मेरा पैर कैसा है, मेरी आँख कैसी है, लेकिन अगर आप रोशनी में खड़े हो जाओगे और देखोगे, तो पहचान हो जाएगी कि भाई यहां देखो कालीख लगी है, यहां मिट्ठी लगी है, यहां हमारा कपड़ा गंदा है; यह सब दिखाई पड़ जाएगा, ऐसे ही प्रकाश में पहुंचते ही अपनी पहचान हो जाती है।


*2. जिस लोक में जीवात्मा पहुंचती है वहां की शक्ति उसके अंदर आ जाती है और आगे बढ़ने पर सारी इच्छाएं खत्म हो जाती हैं।*

28.16 - 30.43


फिर उसके बाद एक से एक लोकों में जाना हो जाता है। वहीं पर ताकत शुरू हो जाती है; गणेश लोक में पहुंचने के बाद, शिवलोक में पहुंचने के बाद, विष्णु लोक में पहुंचने के बाद, आद्या के लोक में पहुंचने के बाद शक्तियां जो उनके अंदर हैं वही अपने अंदर आ जाती हैं। जीव को तब यह मालूम हो जाता है कि भाई हम ही सब कुछ हैं और हमारे लिए सब कुछ है और हम जो चाहें वो कर सकते हैं; इसका ज्ञान हो जाता है और फिर जब यह और आगे बढ़ जाती है तो सारी इच्छाएं खत्म हो जाती है, फिर किसी चीज की कोई इच्छा नहीं रहती है। 

लेकिन जिस चीज की इच्छा हम लोग करते हैं; चाहे वह धन हो, चाहे सम्मान हो और चाहे जो चीजें हों दुनिया की; यह अपने आप आने लग जाती हैं। आप समझो कि जैसे किसी के सामने थाली में बहुत सारी चीजें रख दी जाएं, नमकीन रख दी जाए, पूरी–रोटी रख दी जाए, कई तरह की दाल, कई तरह की सब्जी, कई तरह की मिठाई रख दी जाए कि जो आपकी इच्छा हो आप खा लो, जो इच्छा हो खालो, लेकिन इच्छा ही खत्म हो जाती है। अगर भूख खत्म ही हो गई आदमी की, भूख नहीं है तो कितना भी थाली सजा करके आप रख दो कुछ नहीं खाएगा, कहेगा "भैया हम नहीं खाएंगे, भूख नहीं है"; इच्छा ही खत्म हो जाती है। 

तो *इच्छा या तो पूरी हो जाती है या तो खत्म हो जाती है। इच्छा पूरी करने की भी इच्छा खत्म हो जाती है* । तो प्रेमियों! फिर कहते हैं– "जिसको कछु न चाहिए सोई शहंशाह" वही बादशाह हो जाता है, वही राजा हो जाता है, वही अलग हो जाता है। बादशाह किसको कहते हैं? जो जनता (प्रजा) से अलग रहता है, जनता से अलग पहनावा जिसका होता है, जनता से जिसका अलग रहन-सहन, विचार-भावनाएं होती हैं, वही राजा होता है। 

तो सबसे अलग हो जाओगे आप। सब चीजें; ये जितनी गंदगी है, जितनी ख्वाहिश है, ये सब आपकी खत्म होती चली जाएगी धीरे-धीरे और जीवन सार्थक हो जाएगा, अपना काम बन जाएगा। बाकी ये काम जो अपना समझ करके कर रहे हो, इसमें फंसे नहीं रह जाओगे। *तो बराबर ध्यान-भजन करने की बच्चों आदत डालो*।


समय का संदेश 

06.09.2025 प्रातः 11 बजे 

बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, जालौर, राजस्थान 


*1. साधना शिविर जहां लग सकती है लेकिन नहीं लगवा पाए तो यह आपकी गलती, लापरवाही मानी जाएगी।*

12.39 - 14:31


नवरात्र से पहले-पहले नया आदेश जारी हो जाएगा। तो जो लोग सोच रहे हो कि अभी समय है, हम कर लेंगे; नहीं कर सकते हो। समय आते देर नहीं लगती है और जिम्मेदार लोग जो अभी अपने-अपने जिला में, तहसीलों में, ब्लॉकों में, गाँवों में, साधना शिविर जहां लग सकती है लेकिन नहीं लगवा पाए तो ये आपकी गलती मानी जाएगी, लापरवाही मानी जाएगी। संगत होते हुए भी और जिम्मेदार तो बन गए, मुखिया बन गए लेकिन साधना शिविर नहीं लगवा पा रहे हो तो क्या माना जाए कि तुम जिम्मेदारी निभाओगे। फिर तो यही होगा कि तुम अब बैठ जाओ, *पहले खुद भजन करो, भजन का मतलब समझो। भजन का रस जब तुमको मिलेगा तब तुमको पता चलेगा कि इससे क्या फायदा होता है तब दौड़-दौड़ करके लगवाओगे।* 





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