सन्तमत की साधना सबसे ऊंची साधना है।*


*जयगुरुदेव*


समय का संदेश
झुंझुनू, राजस्थान
07.08.2025 प्रातःकाल

 *1. सन्तमत की साधना सबसे ऊंची साधना है।* 
2.40-4.50

जो सन्त आए कलयुग में वे उसी के अनुसार ही चले, जो उस प्रभु का मत है, प्रभु की इच्छा है।
सन्तमत की साधना सबसे ऊंची साधना है। इस साधना से जो शरीर को चलाने वाली शक्ति 'जीवात्मा' है, यह अपने मालिक के पास पहुंच जाती है। बाकी मतों की जो साधना है, तरक्की तो उसमें भी होती है; जीवात्मा शरीर से तो निकलती है, लेकिन वहां तक पहुंच नहीं पाती है। क्योंकि रास्ते में विघ्न और बाधा है, रास्ता अच्छा नहीं है। लेकिन जो सन्तमत की साधना है, यह जीवात्मा को हर रास्ते से निकाल कर के हमेशा-हमेशा इस जीवात्मा को अमर कर देती है। यह जीवात्मा अमर लोक में पहुंच जाती है। 

अविनाशी लोक में पहुंच जाती है। अविनाशी किसको कहते हैं? जो कभी नष्ट न हो। बाकी नीचे के जो लोक हैं वे महाप्रलय में खत्म हो जाते हैं, बदलाव हो जाता है। तो अभी इस समय पर हमारे गुरु महाराज जैसे सन्त ने इसको बहुत सरल बना दिया और उनके जाने के बाद भी इसमें सरलता लाई गई। *अब इतना भी अगर आप न कर पाओ, जीव इतना भी न कर पावे; तो फिर ये जिंदगी बेकार है।*

 *2. सच्चा रास्ता और सच्चा रहनुमा पाकर भी लोग कैसे भटक जाते हैं?* 
10.57 - 13.01

आपको भी बहुत से लोग भ्रम में डाल देंगे। वो *पुराने साथी मिल जाएंगे जिनके साथ आप तीर्थ करने जाते थे, जिनके साथ आप पूजा-पाठ मंदिरों में, इधर-उधर जाते थे, वो फिर मिल जाएंगे, फिर उधर ही ले जाएंगे।* इस चीज को भूल जाओगे कि "घट में गंगा, घट में जमुना, घट में सृजनहारा है" इस चीज को भूल जाओगे कि अंदर में ही गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी सब नदियां है, अंदर में ही दिखाई पड़ती है। 

अंदर में स्नान होता है; इसको भूल जाओगे। घर में ही तीर्थ है। जो इस शरीर की रक्षा करने वाला (सृजनहार) है, जो परवरिश करने वाला है; वो घट में ही है। लेकिन उसको भूल जाओगे और भ्रम में पड़ जाओगे। तो ये भूल और भ्रम का पर्दा पड़ गया और उसी में बहुत से लोग भटक जाते हैं। 

सतसंगों में आते हैं लेकिन बस कोई समझाने वाला मिल गया और कहा कि तुम उधर मत जाओ, हम भी जयगुरुदेव बोलते हैं हमारे पास आ जाओ, हम तुमको साधन-सुविधा दे देंगे, हम तुम्हारे बच्चों का इंतजाम कर देंगे, तुम हमारे साथ आ जाओ। *तो बस फिर भटक जाते हैं। सच्चा रास्ता, सच्चे रहनुमा को छोड़ कर के और फिर भटक जाता है, उन्हीं का हाथ पकड़ लेता है कि जिनके हाथ खाली होते हैं*, जिनके पास कुछ नहीं होता है, वो उनका हाथ पकड़ लेता है। तो वो क्या देंगे आपको? कुछ मांगोगे तो जिसकी जेब में जो होगा वही तो देगा और जिसकी जेब में नहीं है वो क्या देगा? तो ये भूल और भ्रम का, माया का, काल का पर्दा पड़ जाता है तो आदमी जो है वो भूल जाता है।
 

समय का संदेश 
07.08.2025
झुंझुनू, राजस्थान

*जन्माष्टमी का कार्यक्रम महत्वपूर्ण रहेगा।*
1.31.52 - 1.37.45

जन्माष्टमी का कार्यक्रम महत्वपूर्ण रहेगा। उसका फल मिलेगा लोगों को। जो वहां पहुंचेंगे उसको फल मिलेगा। क्या फल मिलेगा? सबसे बड़ा फल तो यही है आदमी के लिए कि उसकी तकलीफ दूर हो जाए। बीमार आदमी हो और मीठा से मीठा फल उसको दिखाओ। बढ़िया से बढ़िया चीज उसको दिखाओ; जिसको बुखार चढ़ा हो तो कुछ उसको अच्छा लगेगा? नहीं अच्छा लगेगा। उसको बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा। 

मीठी दवा बुखार में अगर पिला दो तो जबान का स्वाद कड़वा हो जाता है तो वह भी कड़वा ही लगता है। अब आप ये समझो प्रेमियों कि दुख वहां दूर होंगे। सबसे पहला काम तो यही होगा। बहुत से लोगों को फायदा हुआ। कहां हुआ था? जहां अभी आपका जयपुर में गुरु पूर्णिमा हुई थी। वहां मंच से बता दिया गया था कि जाओ वहां, अपनी तकलीफ कहो और मत्था टेको और अंदर में प्रार्थना करो। फायदा हुआ लोगों को। अब कोई कहोगे भाई हमारी तकलीफ गई नहीं। हमारा ठीक नहीं हुआ। तो ठीक भी हुआ लोगों का। किसका ठीक हुआ? जिसका भाव अच्छा था। जिसके प्रेम थे, जिसका अंत:करण साफ था, कर्म कम थे उनके कर्म कटे वहां से, जिनको बाधाएं थीं, उनकी बाधाएं कुछ तो हट गईं और कुछ अभी रह गई हैं। 

तो अब आप ये समझो कि जैसे पुराने लोग कहते हैं कि 16 आना, 16 आना का रुपया होता था। अब 100 पैसे का रुपया होता है। तो लोग कहते थे दो आना, चार आना, छह आना, आठ आना और 16 आना। तो दो आना भी फायदा हुआ। फायदा सबको हुआ। दो आना किसी को हुआ, किसी को चार आना हुआ, किसी को आठ आना हुआ, किसी को 16 आना फायदा हो गया। किसी को जिसको 100% कहते हैं, 100 फ़ीसदी कहते हैं; सब फायदा ही फायदा दिख गया। किसी को 10% हुआ, 20% हुआ, 50% हुआ, किसी को 100% हो गया। तो उसके लिए भी एक अवसर मिल रहा है आपको। मुझसे कहने की जरूरत नहीं है, क्योंकि संख्या इतनी बढ़ती चली जा रही है कि मैं सबको कहां तक बता पाऊंगा? नहीं बता सकता हूं। 

और हमारी उम्र हो गई। हम जो यही कर ले रहे हैं, आपको कुछ सुना समझा दे रहे हैं, आपके लिए व्यवस्था बना दे रहे हैं यही गुरु महाराज की है दया। *बगैर दया के 76 साल का आदमी और इस तरह से मेहनत करें दिन रात यह संभव नहीं हो सकता है, लेकिन गुरु महाराज हमारे सक्षम ये जिनकी तस्वीर लगी हुई।* 

इनकी तस्वीर ही है यह न समझो। यह शब्द रूप में यहां मौजूद है और यही सब कर रहे हैं, करा रहे हैं तो "ऐसे परम गुरु पायो काहे रे मन धूमिल" मन को मैं नहीं छोटा करता हूं, जब ऐसे गुरु मिल गए हैं तो करा लेंगे जो उनको कराना होगा । तो भाई मैं ज्यादा मेहनत अब नहीं कर सकता हूं और उम्र के हिसाब से सुनने में भी हमको दिक्कत और हर अंग हमारे ढीले पड़ गए तो मैं कहां से सबको आपको बता पाऊंगा? जब हमारी तबीयत ठीक रहती थी, उम्र थी, जवानी थी, बहुत मेहनत किया।

बताया भी लोगों को। बहुत से लोगों को फायदा भी हुआ और आपको अगर पहले कुछ बताया गया है तो बराबर उसको करते रहना और सुमिरन ध्यान भजन करते रहना। साधना शिविर में बैठते रहना और आप समझो गुरु से दया अंतर में मांगते रहना। तो ये तकलीफें धीरे-धीरे आपकी जाएंगी। धीरे-धीरे जाएंगी क्योंकि धीरे-धीरे आपने कर्मों को इकट्ठा किया है। तो जो ये बीमारी है, तकलीफ है, ये जो बाहर से आती है मौसम के वजह से, उम्र के हिसाब से ये तो दवा से आराम मिल जाता है। ठीक हो जाता है। 

लेकिन जो कर्म का होता है वो जल्दी नहीं हो जाता है। इस से कटेगा। किससे कटेगा? साधना शिविर में बैठने से, साधना करने से। लेकिन जो कुछ लोग मान लो बहुत दुखी हैं और यह नहीं अभी कर सकते हैं। मान लो नए लोग ही हैं तो उनके लिए भी रास्ता निकाला गया कि भाई चलो वहां चलो, टैको मत्था टैको, देखो कितना फायदा होता है, क्या होता है। तो अब आप ये समझो उसको भी करके देख लेना। 

हमको तो विश्वास है गुरु महाराज पर कि गुरु महाराज आपको कुछ ना कुछ फायदा दिखाएंगे ही। लाभ तो मिलेगा ही मिलेगा। तो मुझसे अब कुछ कहने की किसी को जरूरत नहीं है। अब तो आप ध्यान लगाओ, भजन करो और जो बताया जाए उसको करके देख लो। आजमाइश करके देख लो। परीक्षा करके देख लो। अगर आपको फायदा होता है तब तो मानो और नहीं तो कोई जोर जबरदस्ती तो है नहीं।


समय का संदेश 
02.08.2025 
श्री नरोड़ा कड़वा पाटीदार समाज वाडी, अहमदाबाद, गुजरात

*1. बगैर विचारे कदम नहीं बढ़ाना चाहिए।* 
34.38 - 38.15

"बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताए, काम बिगाड़े आपनों, जग में करे हंसाए" बगैर विचारे अगर कोई आगे कदम इस तरह का बढ़ा देता है तो पश्चाताप करना पड़ता है। बहुत से लोग लड़कियों की शादी कर के फंस जाते हैं। देखते हैं सुंदर, सुडौल, कमाने वाला लड़का है, और जब देखा लड़की सुंदर सुशील है, पढ़ी लिखी है। पूछा कि आप मांस खाते हो? अंडा खाते हो? शराब पीते हो? कहते हैं हम नहीं खाते हैं, नहीं पीते हैं। 

झूठ बोल दिया कि इससे हमारी शादी हो जाएगी। पता नहीं लगाते हैं, बस रूप, रंग देखा, कपड़ा देखा और शादी कर दिया। अब लड़की जब पहुंची तब पता चला कि पी के आ गया। अब बाल पकड़ कर के, हाथ पकड़ कर के खींचता है, परेशान करता है, मारता, पीटता है। कहता है मांस पकाओ और अंडा लाता है। तो समझो कि धोखा हो गया कि नहीं हो गया? क्योंकि बिना विचारे कर लिया। तो उसकी पहचान लगाओ, पता करो, उल्टा बोलो!

*प्रचार में हम ढाबे पर शुद्धता का पता लगाने के लिए उल्टा बोलते थे।*

उल्टा बोलने का मतलब क्या होता है? हम लोग जब गुरु महाराज के आश्रम आते थे बस से तो ड्राइवर लोग ढाबा के पास गाड़ी रोकते थे। तो ढाबा वाले उनको फ्री खिलाते थे, अब भी खिलाते हैं क्योंकि उनकी वजह से बिक्री हो जाती है; अगर वो गाड़ी न रोकें, तो कहां से बिक्री हो? निर्जन स्थानों पर वो अपना ढाबा खोलते हैं। तो बस वाला रोक देता था। तो जैसे ही जयगुरुदेव का झंडा लगी हुई गाड़ी रुके तैसे ही अंडा जो टांगे होते थे वो हटा लेते थे; ये लोग भी नहीं देखेंगे तो अपना नाश्ता पानी करेंगे तो बिक्री हो जाएगी हमारी। 

तो अब बड़े चक्कर में। तब एक सतसंगी ही हमको बताए कि जब दुकान पर जाओ तब उनसे पूछो कि अंडा मिल जाएगा? जब कहे कि नहीं! अंडा नहीं है, तब कहो कि मंगा दोगे? नहीं नहीं भैया, हम शाकाहारी भोजन बेचते हैं, शाकाहारी हमारी दुकान है, तब चाय पी लो, जो भी खाना-पीना है, समान ले लो। तो फिर हम लोग ये करने लगे। 
जब एक बार गए वहां भटिंडा, पंजाब में, तो सुबह-सुबह गए वहां, तो भूख लगी थी, तो कहा गया कि भाई कुछ खाया जाए, प्रचार में गए थे। 

तो उस दुकानदार से पूछा कि भाई अंडा मिल जाएगा? तो बोला "अंडा वंडा की बात यहां मत करो, अंडा यहां नहीं मिलेगा।" तब कहा गया कि अच्छा तो लाओ बर्फी दे दो। तब कहता है कि खाने को बर्फी और मांगते अंडा हैं। जाओ, अंडा क्यों नहीं खाते हो उधर? तब हम लोग उसको बताए, समझाए कि नहीं! हम उल्टा बोलते हैं कि जिससे पता चल जाए। मंगाने वाली बात से भी उसने एतराज किया, कहा "यह सब बात यहां न करो। यह हलवाई की दुकान है और यहां शुद्ध मिठाई मिलेगी जो रखी है, और कुछ नहीं मिलेगा" तब उसको समझाया गया और वही फिर सतसंग में आ गया। 

*तो जो बगैर विचारे करते हैं वो फंस जाते हैं।*


समय का संदेश
02.08.2025
श्री नरोड़ा कड़वा पाटीदार समाज वाडी, अहमदाबाद, गुजरात

*1. गुरु महाराज जैसे सतगुरु जब आए तब उन्होंने कहा कुछ तुम करो और तुमसे ज्यादा हम करेंगे।* 
24.14 - 25.44

वहां तक पहुँचने में बहुत समय लग जाता है। उमर खत्म हो जाती है आदमी की। साधना तो करते थे लोग लेकिन आगे नहीं बढ़ पाए, वहीं फंस गए, जीवात्मा उनकी गई तो वहीं फंस गई और मरने के बाद गए तो वहीं अटक गए। आते-जाते थे पहले के युगों में, अन्य युगों में भी त्रेता द्वापर में भी आते जाते थे। लेकिन वो वहीं फंस गए। मरने के बाद अभी वहीं फंसे पड़े हैं। 

अभी भी नहीं निकल पाए, बहुत से जीव ऐसे हैं। ऋषि-मुनि ये सब अटके पड़े हैं। अब, जब सतगुरु आए, गुरु महाराज जैसे जब सतगुरु आए, तब उन्होंने कहा कि तुम थोड़ी ही मेहनत करो लेकिन करो; हम तुम्हारे साथ हैं। कुछ तुम करो, तुमसे ज्यादा हम करेंगे। उन्होंने तो केवल एक निशाना बनाए, गुरु महाराज ने कि *"हम आए वहि देश से जहां तुम्हारो धाम, तुमको घर पहुंचवना एक हमारो काम।"* एक लक्ष्य, एक उद्देश्य कि हम तुमको तुम्हारे घर पहुंचाएंगे। वो तो हमेशा तैयार खड़े हैं।

*2. गुरु से वास्तविक प्रेम होना चाहिए।*
25.45 - 32.08

अब ये है कि उनसे हमको प्रेम नहीं हो पाता है, गुरु से हमको प्रेम नहीं हो पाता है। कहते तो हैं कि हम गुरु से प्रेम करते हैं, गुरु को याद करते हैं लेकिन गुरु को ठीक से याद नहीं कर पाते हैं। अभी कहा न, प्रार्थना किया गया कि "दया की नजर करो मेरी ओर, मेहर की नजर करो मेरी ओर" तो दया तो मांगते हैं लेकिन दया मांग नहीं पाते हैं, मिल नहीं पाती है। क्यों ? क्योंकि खाली मुंह से निकलता है। 

अंतरात्मा की आवाज नहीं निकल पाती। क्यों ? क्योंकि उनका रूप भूल जाता है, चेहरा भूल जाता है, उनको भूल जाते हैं। किसमें भूल जाते हैं ? ये माया की छाया में भूल जाते हैं। ये दुनिया की चीज़ों में भूल जाते हैं। जबकि ये किसी की है ? किसी की नहीं है। *"माया है जगदीश की, अपना कहे गंवार, सपनेहु पायो राज धन, जात न लागे वार"* सपने में अगर किसी को राजा बना दिया जाए तो वो सुबह उठेगा तो राज रहेगा ? वो तो जो था, वही रहेगा। 

सपना देख रहा है, मैं राजा बन गया, बढ़िया खा रहा हूं, महल में सोया हूं, नौकर-चाकर लगे हैं लेकिन सुबह तो वो नहीं रहेगा। ऐसे ही "चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात" ये जितने भी चीजें हैं, इसी तरह की हैं, ये सब छूट जाने वाली हैं; इसमें मन ज्यादा लगा हुआ है और गुरु से प्रेम अगर इस तरह से कर लिया जाए कि कहा गया "निशदिन तुम्हें निहारूं सतगुरु, जैसे चन्द्र चकोर" निहारूं यानी देखता रहूं, "जैसे चन्द्र चकोर" जैसे चंद्रमा को चकोर देखता है। 

चंद्रमा जब निकलने लगता है, चकोर उसको देखता है और इतना प्रेम उससे करता है कि उसको भूल नहीं पाता है। बिल्कुल ऐसे देखता ही रहता है एक टक। धरती जब ये आगे चलती है तो चंद्रमा ऊपर उठता जाता है फिर मालूम पड़ता है कि जैसे अस्त हो गया। तो देखते-देखते उसकी गर्दन पीछे झुक जाती है । कहा कि *"चोंच झुकी गर्दन लगी, चितवत वाही ओर।"* इस तरह से देखता है कि गर्दन झुक जाती है और चोंच नीचे लग जाती है। ऐसे प्रेम करता है। 


कहा न *"स्वामी प्रीत यूं करे, जैसे चन्द्र चकोर। चोंच झुकी गर्दन लगी, चितवत वाही ओर।।"* 
कैसे-कैसे सन्तों ने समझाया, महात्माओं ने समझाया; लोगों को बताया-समझाया। कहा कि *"सुमिरन की सुधि यूं करें ज्यों गागर पनिहार। हाले डोले सुरत में, कहें कबीर विचार।।"*


 देखो बच्चियों ! प्रेमियों समझो इस बात को। कोई लड़की जब माता-पिता के घर में रहती है, तो माता-पिता से प्रेम करती है, भाई से प्रेम करती है; जो उससे ज्यादा प्रेम करता है, उससे वो ज्यादा प्रेम करती है। सबसे प्रेम करती है। समान व्यवहार रहता है उसका। लेकिन जब उसकी शादी हो जाती है। सास-ससुर भी अगर उसको प्रेम से, उसको अपनी बेटी की तरह से मानें; तो वो भी मां-बाप की तरह से मानने लगती है। लेकिन सबसे ज्यादा प्रेम उसको कौन करता है? उसका पति करता है और वो अपने पति से प्रेम करती है। 

तो जब तक ससुराल में रहती है तब तक प्रेम में ही डूबी रहती है और जब अपने पीहर चली जाती है, जिसको मायका कहते हैं कुछ लोग, जब अपने पिता के घर जाती है कुछ समय के लिए, तो तन तो वहां रहता है लेकिन मन पति में ही लगा रहता है। ऐसे ही उदाहरण देकर के समझाया। 

इस समय तो नल लग गए पानी के। जगह-जगह साधन हो गया। लेकिन पहले कुआं हुआ करता था और ये तांबे ,पीतल का; इसका घड़ा नहीं हुआ करता था लोहे स्टील का । तो उस समय पर मिट्टी का घड़ा होता था और उसको सिर पर रख करके पानी भरने के लिए औरतें जाती थीं। 

जो गांव के बाहर कुआं हुआ करता था। तो जब पानी भरकर के सिर पर रखकर के चलती थी तो रास्ता भी देखती थीं और बातें भी करती रहती थीं लेकिन "हाले डोले सुरत में कहें कबीर विचार।" सुरत यानी जीवात्मा से याद करती रहती थीं, मन से याद करती रहती थीं कि कहीं हमारा घड़ा गिर न जाए, पानी छलक न जाए। 

हम कहीं पैर ऊंचा रख दें, घड़ा टेढ़ा हो जाए, पानी नीचे गिर जाए, मेहनत बेकार जाए ; ऐसे ही याद करते रहना चाहिए। *काम भी करते रहना चाहिए और गुरु को याद भी करते रहना चाहिए। उसको कहते हैं वास्तविक प्रेम।* लेकिन काम-धंधे के चक्कर में, पेट के चक्कर में, बाल-बच्चों की परवरिश के चक्कर में, पति, सास-ससुर की सेवा के चक्कर में गुरु को भूल जाते हैं। गुरु को नहीं भूलना चाहिए। गुरु को हमेशा याद करते रहना चाहिए।


समय का संदेश
09.08.2025 
झुंझुनू, राजस्थान 

*चित्त, बुद्धि, अंतःकरण और विवेक की साधना। चार चरणों में 3-3 दिन के अखंड साधना शिविर लगाने हैं।*

1.17.35 - 1.18.39
पार होने के लिए, गांठ खोलने के लिए साधना शिविर लगानी है। साधना शिविर कैसे लगेगी? यह साधना शिविर चार खंडों में लगेगी। पहले तो चित्त की लगेगी कि यह जीवात्मा सही चिंतन करने लग जाए और गलत चिंतन न करे। अच्छा और बुरा का ज्ञान हो जाए। यह विवेकी हो जाए, विवेक जग जाए तो यह एक शिविर इसकी लगेगी। *तीन दिन की लगेगी ये। 72 घंटे की लगातार और यह नवरात्र के एक हफ्ता-10 दिन पहले खत्म कर दो आप* । नवरात्र अभी आएगी। हमारा ख्याल है ये 22 सितंबर से शुरू होना चाहिए नवरात्र। तो आप ये समझो कि नवरात्र से पहले खत्म कर दो इसको। इसमें कोई दिन नहीं है।

1.23.00 - 1.27.10
अब ये लगाना है आपको। क्या लगाना है? चित्त की साधना, फिर बुद्धि की साधना तीन दिन की रहेगी और फिर उसके बाद में अंतःकरण साफ हो आपका, तो अंतःकरण किसको कहते हैं? यानी अंदर में ये जो चार दल कमल है वो अंतःकरण है जिसको चतुष अंत:करण कहा गया और उसी में ये चारों शक्तियां है: मन, चित्त, बुद्धि और अहंकार ये वहीं पर हैं। तो ये जब डाउन हो जाएंगे तब अंत:करण साफ हो जाएगा। तो अंतःकरण का लगेगा। तो ये चीजें जब कम हो जाएंगी तब अंतःकरण साफ हो जाएगा। तो अंतःकरण का होगा। 

मन, चित्त, बुद्धि, अंतःकरण और अंतःकरण जब साफ हो जाएगा तब विवेक जगेगा, तब सोचने समझने की शक्ति आ जाएगी, हर तरह का फिर ज्ञान हो जाएगा आपको और फिर चढ़ाई में ऊपर जाने में दिक्कत नहीं होगी, जिम्मेदारी निभाने में दिक्कत नहीं होगी। फिर तो "भक्ति करते छुटे मेरे प्राण" भक्ति आप करने लग जाओगे और यह जो दिखावे की भक्ति है यह सब खत्म हो जाएगी। चाहे बाहर की भक्ति हो, चाहे अंदर की भक्ति हो। यानी समझो सुरत के लिए जो भक्ति की जाती हो चाहें जीवात्मा की; चाहे वो हो। 

फिर वो खत्म हो जाएगी और नहीं तो वहां भी अहंकार आ जाता है। जैसे 10 आदमी कहने लग गए कि ये तो 40 घंटा बैठते हैं तो वहां पर अहंकार आने लग जाता है। सम्मान आदमी का जब बढ़ता है तो अहंकार आने लग जाता है। तो वो खत्म हो जाएगा तब विवेक जगेगा। तब तो कहोगे भाई देखें ही ना लोग, ऐसे रात को उठ के चुपचाप कर लो। तब तो उस तरह का हो जाएगा कि "भक्ति ऐसी कीजिए जान सके ना कोय, जैसे मेहंदी पात में लाली रही दुबकोय" मेहंदी का पत्ता होता है, अब ये इधर सावन के महीने में ये बच्चियां उसको पीसती हैं तब उसमें रंग निकलता है और फिर हाथ में लगाती है; बहुत टिकाऊ रहता है, वो जल्दी धुलता नहीं है। 

तो अब आप यह समझो कि जैसे उस रंग को अपने में छिपाए हुए है। ऐसे ये जो गुरु का रंग है, ये कहा प्रार्थना "चटक रंग में रंग दे चुनरिया है, ए मेरे प्यारे" चटक रंग में चुनरिया रंग दे। मेरे अंतःकरण के ऊपर ऐसा रंग चढ़ा दो कि "सूर श्याम काली कमली पर चढ़े ना दूजो रंग। केवल आपकी भक्ति का रंग चढ़े; ऐसा साधक ने मांगा, प्रार्थना किया गुरु से कि केवल चटक रंग ऐसा चढ़ा दो आप अपने रंग का कि आप ही आप दिखो सब जगह पर। आप जो प्रभु रूप में हो आप दिखो। प्रभु का दर्शन आप में हो हमको ऐसा हमको रंग दो। 

तो ये लगाओ साधना शिविर और साधना शिविर में आप बैठो और लोगों को बैठाओ; सबको फायदा होगा। *सबको फायदा होगा! जो जगह देगा साधना शिविर का, जो लोगों को प्रेरणा देगा समझाएगा, लाएगा, बैठाएगा, वहां जो इंतजाम करेगा; प्रेमियों के पानी पेशाब और कुछ खाने पीने के लिए, सबको फायदा होगा।* करने वाले को भी होगा और कराने वाले को होगा। पक्की बात आज आपको बता रहा हूं रक्षाबंधन के दिन कि देंगे! मिलेगा!, कौन देगा? हमारे गुरु महाराज। गुरु महाराज पर भरोसा करो। अगर नानक जैसे गुरु अपने शिष्य को नरक से निकाल सकते हैं तो *आपका भी पूर्व जन्म में अगर कोई गलती बन गई होगी और नरक जाना भी पड़े उन कर्मों के आधार पर तो गुरु वहां से भी निकाल लाएंगे।*

1.29.40 - 1.31.14
कहते हो कि अकेले बैठ के साधना कर लो क्या जरूरत है दूसरे की? "अपना कुशल कुशल जग माही, दूसर कुशल होय चाहे नाही" यह मन में रहता है; दूसरे का हो ना उससे क्या मतलब? वो तो पराया है; ऐसा नहीं होना चाहिए। 

आदमी को परमार्थी होना चाहिए। अगर 100 आदमी को परमार्थी आपने बना दिया तो उस परमार्थ का लाभ मिल जाएगा। अगर आप समझो 100 आदमी, 200 आदमी को लगातार आपने करा दिया, बैठा करके साधना शिविर में व्यवस्था करा दिया, आप थोड़ा ही समय बैठ पाए लेकिन उनको अंदर की चीज मिल गई, वो दौलत मिल गई जो रुपया पैसा से खरीदी जाने वाली नहीं है, जो सड़ती नहीं, गलती नहीं, जलती नहीं है, बर्बाद नहीं होती है, रुपया पैसा ये जो कागज का है ये नुकसान हो जाता है, घुल जाता है, जल जाता है लेकिन वो आध्यात्मिक दौलत खत्म नहीं होती है; वह अगर उनको मिल गई तो उसका लाभ मिल जाएगा । 

उसका बोनस मिल जाएगा तो *परमार्थी काम यही है कि आओ संगत में तो लेते आओ, सतसंगियों को भी लेते आओ, साप्ताहिक सतसंग में भी प्रेरणा देकर के ले जाओ, ध्यान-भजन भी कराओ, नाम ना याद हो तो उनको समझाओ, रूप समझाओ, सुमिरन समझाओ, भजन समझाओ* , तो वो परमार्थी लाभ मिल जाता है, परमार्थ का बोनस मिल जाता है।

1.34.48 - 1.38.46
साधना शिविर में बैठना। साधना शिविर लगवाना। सब जगह लगनी चाहिए। कहां? जहां-जहां मुमकिन हो, संभव हो, पॉसिबल हो, वहां पर लगाओ। सब जगह लगाओ। जहां संगत ज्यादा है गांव में, गांव में लगा दो। कम है तहसील में लगा दो, ब्लॉक में लगा दो, जिला में लगा दो, जहां-जहां है जैसे। देश और विदेश में सब जगह, ये चार चरणों में; चित्त, बुद्धि और अंतःकरण, विवेक की ये साधना; ये 4 लगनी चाहिए। 

यह समझो आप कि ये नवरात्र से पहले ये खत्म कर दो। *कोई बंधन नहीं है कि इतवार-इतवार को लगे, जल्दी भी लगा सकते हो, थोड़ा देर में लगा सकते हो। लेकिन यह अपने सुविधा अनुसार सब लोग लगा लो* और जिम्मेदार लोग इसमें लगाने में मदद कर दो संगतों के। तो सब जगह लग जाए। अपने-अपने घरों में लगा सकते हैं लोग। लेकिन लगातार यह लगेगा। *तीन दिन का रहेगा; 72 घंटे का और यह अखंड रहेगा। खंडित नहीं होगा।* 

जैसे नाम ध्वनि अखंड की जाती है; कोई ना कोई "जयगुरुदेव, जयगुरुदेव, जयगुरुदेव, जय जयगुरुदेव" बोलता ही रहता है। ऐसे कोई ना कोई दो चार आदमी वहां बैठे ही रहें साधना स्थल पर, साधना करते ही रहें 24 घंटे, 36 घंटे, 72 घंटे करना रहेगा, तो 72 घंटे तक बैठे ही रहें। तो वो अखंड करना रहेगा। तो इसकी सब योजना बना लो, मीटिंग कर लो, जो लोग यहां पर हो वो लोग और नहीं तो जब जाओ तब अपने-अपने गांव में करना, अपने-अपने जिला तहसीलों में करना, जहां जैसी संगत है उस हिसाब से गोष्टी मीटिंग करके और लोगों को इकट्ठा करके *जितने भी नए पुराने नामदानी हैं सबसे संपर्क करके बुला करके और उनको बैठाओ इस साधना शिविर में* । 

सफाई होगी, नया आदमी जो कभी नहीं बैठा उसकी सफाई होगी और जब सफाई होगी तब मन कुछ अच्छा महसूस करेगा। फिर मन लगने लगेगा। फिर जब मौज होगी गुरु महाराज की आगे की, तो उसमें बैठने लग जाएगा, अपने घर में बैठने लग जाएगा, सुमिरन करना सीख जाएगा, ध्यान करना सीख जाएगा, भजन करना सीख जाएगा; तो काम फिर इसमें बन जाएगा। 

तो *अब आगे जब तक कोई आदेश ना मिले तब तक बराबर आप इसी पर ध्यान दे दो सब लोग* । बाकी संगत का जो काम चल रहा है उस काम के अंतर्गत भी आपको करना है। जो जरूरी संगत का काम है जो प्रचार-प्रसार है, व्यवस्था है, वो सब भी आपको करना है। गृहस्थी का भी काम आपको देखना है और भजन भी करना है। लेकिन भजन करने लगोगे, साधना शिविर में आने-जाने लगोगे, तो शरीर ये चुस्त-दुरुस्त हो जाएगा। चुस्त-दुरुस्त हो जाएगा और नहीं तो सुस्त हो जाता है। 
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