*जयगुरुदेव*
समय का संदेश
17.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, बावल, रेवाड़ी।
1. *मौत और साधना के समय जीवात्मा का अपना स्थान छोड़ना और दोनों में अंतर।*
14:41 - 18:01
जीवात्मा कहां बैठी है? यहां (दोनों आंखों के बीच में) बैठी है। इसकी रोशनी, इसका प्रकाश, इसकी धार पूरे शरीर में फैला हुआ है। यहां (चोटी) से लेकर के पैर के अंगूठे के अगले हिस्से तक इसका जलवा है और इसी की ताकत है। इसी की रोशनी है।
तो जब ध्यान लगाते हैं तो इधर से ध्यान हटता है। उधर से इस शरीर को भूलते हैं, इस शरीर से संबंधित जो भी चीजें हैं जैसे घर हो, मकान हो, बीवी हो, बच्चा हो, पति हो, कोई भी चीज हो, रुपया पैसा हो, कुर्सी इज्जत हो, दुकान दफ्तर हो, ये सब जब भूल जाते हैं। सब भूल जाते हैं और शरीर को भी जब भूल जाते हैं और मन को उधर लगाते हैं जिधर ध्यान लगाना है। तो ये शक्ति सब खिंच करके यहां (दोनों आंखों के बीच में) पहुंचती है। और *जैसे ही ये यहां पहुंचेगी जिसको तीसरा तिल कहा गया, पिंडी दसवां द्वार कहा गया, जिसको शिव नेत्र कहा गया, वहां पर जैसे पहुंचती है, वैसे ही ये अपने स्थान को जीवात्मा छोड़ने लगती है।*
*अब जीवात्मा अपने स्थान को दो हालत में; साधना के समय में और मौत के समय में अपने स्थान को छोड़ती है।* नहीं तो बाकी अपने ही स्थान पर बैठी रहती है। अब दोनों में फर्क है। क्या फर्क है?
*मौत के समय पर ऐसा होता है कि चेतन शक्ति खत्म हो जाती है* और चेतना जब खत्म हो जाती है आप समझो तब ये जो दसों प्रकार के प्राण हैं, नीचे के जो प्राण हैं; वो ऊपर की तरफ खिंचने लगते हैं। तब नीचे की चेतना खत्म हो जाती है। तब हाथ-पैर यह सब सुन्न होने लग जाता है। टट्टी हो जाती है, पेशाब हो जाता है, मरने वाले आदमी को कुछ पता नहीं चलता है; तो उस वक्त पर चित्त भी खत्म हो जाता है, सिमट जाता है। चित्त चिंतन करता है। चेतना जिसको कहते हैं वो खत्म हो जाती है। तो चेतना नीचे की खत्म होती है मरते समय... और
*साधना के समय में चेतना नीचे की रहती है। यह प्राण नीचे के रहते हैं तब उस जीवात्मा को फिर नीचे ये खींच लेते हैं।* ये चली आती है और नहीं तो यह आने का मन नहीं करती है जब उस सुख के लोक में पहुंच जाती है जहां आनंद ही आनंद है। जहां खुशबू ही खुशबू है। जहां 24 घंटे मस्ताना बाजा बजता ही रहता है। जहां बगैर दिया-चिराग जलाए, लाइट जलाए, रोशनी ही रोशनी रहती है। उसको छोड़ के ये फिर इधर आना नहीं चाहती है। जब इधर से ध्यान हटेगा, इधर से जब खिंचाव होगा तब यह जीवात्मा अपनी जगह को छोड़ेगी।
समय का संदेश
17.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, बावल, रेवाड़ी।
1. *जैसे चुंबक सार को छुअत ही लेई उठाए, सार शब्द तिन जीव को आप में देई मिलाए।*
18:01 - 19:32
जैसे ये जीवात्मा अपना स्थान छोड़ेगी, ऊपर की तरफ बढ़ेगी, तैसे ही -
*जैसे चुंबक सार को छुअत ही लेई उठाए।*
चुंबक क्या करता है? 'सार' माने होता है लोहा। तो लोहा के नजदीक ले जाओ। अगर भारी चुंबक होगा, ज्यादा ताकतवर होगा तो मोटे लोहे को उठा लेगा। हल्का होगा तो सुई को उठा लेगा। चुंबक के अंदर ये गुण है कि लोहा को खींचता है अपनी तरफ।
*जैसे चुंबक लोहे को छूते ही खींच लेता है अपनी तरफ, उसी तरह से जैसे ही यह जीवात्मा अपनी जगह को छोड़ती है, वो सार शब्द खींचता है अपनी तरफ और खींच करके ले जाता है और धीरे-धीरे अभ्यास करते-करते 'आप' में मिला देता है। 'आप' माने परमात्मा, प्रभु। सतपुरुष से मिला देता है।* उसमें इतनी ताकत होती है, खींचे चले जाता है। चुंबकत्व शक्ति बहुत होती है।परमात्म शक्ति जिसको कहा गया है।
2. *गुरु के पास अपार शक्ति होती है।*
20:04 - 21:33
गुरु हाड़-मांस के शरीर का नाम नहीं होता है। हड्डी और मांस के शरीर का नाम गुरु नहीं होता है। *गुरु एक पावर होता है, गुरु एक शक्ति होती है और वो शक्ति जिसके अंदर आ जाती है वही गुरु का काम करने लग जाता है।* गुरु की ताकत आ जाती है। वो आती कैसे है? वो गुरु की दया से ही आती है। वो उनकी गुरु की दया से ही आती है। तो गुरु की दया, उनकी मेहनत से आती है।
वो मेहनत के आधार पर शक्ति देते हैं, ताकत देते हैं। तो गुरु एक शक्ति होती है। उनके पास अपार शक्ति होती है। अपार शक्ति किसको कहते हैं? जिसको कहते हो इनके पास अचूक धन है। मतलब इतना धन है कि कितना भी यह खर्च करें तो ये खर्च नहीं कर सकते हैं। जिसको अचूक धन कहते हैं। अकूत धन कहते हैं। इसी तरह से गुरु के पास इतनी शक्ति होती है कि कितने लोगों को वो बांट ले। कितने लोगों को वो दे दे शक्ति को; तो भी वह कम नहीं होगी। तो गुरु की दया और गुरु की शक्ति लेने के लिए वैसा बनना पड़ता है। तो आपको बार-बार बताया जाता है कि भाई गुरुभक्ति करो।
3. *जो गुरु कहें उसको करते जाओ, जो गुरु करें उसको कभी न करो, यही है गुरुभक्ति।*
21:37 - 23:57
गुरु भक्ति किसको कहते हैं? गुरु भक्ति कितने प्रकार की होती है? गुरु भक्ति कहते हैं -
*जो गुरु कहें करो तुम सोई।*
जो वह कहें उसको करते जाओ। जो वो करें कभी न करो। जो वो कहें उसको करो। यही है गुरु भक्ति।
गुरु भक्तों का देखो इतिहास पड़ा हुआ है। गुरु भक्त गुरु भक्ति से हटे नहीं। रात-रात खड़े रहे जहां निजामुद्दीन औलिया और तमाम लोगों ने परीक्षा लिया; तो उनके जो मुरीद थे वो खड़े रहे। फिर गुरु ने देखो चबूतरा बनवाया। कितनी बार बनवाया? 80 बार, 85 बार। कितनी बार गड्ढा खुदवाया गुरु महाराज ने और फिर पटवा दिया। कितनी बार घर बनवाया और (फिर) कहा उजाड़ दो।
तो अब आप ये समझो, वो जो कहें उसी में भलाई है। उसी में फायदा है। वो भक्ति है बाह्य भक्ति।
*गुरु की सेवा में सबकी सेवा, गुरु समान कोई और न देवा।*
गुरु की सेवा के अलावा और कोई देव नहीं है कि जिसकी सेवा किया जाए। तो हमको, आपको तो गुरु महाराज मिल गए। अब इनकी सेवा करनी है।
*तो प्रेमियों ! जो गुरु भाई गुरु बहन हमारे हो, नामदानी हो, अब गुरु की क्या सेवा कर पाओगे, बाह्य सेवा जिसको कहते हैं। अब तो न वो आदेश देंगे शरीर से, न उसका आप पालन कर पाओगे। न उनका पैर छू पाओगे, न पैर धो पाओगे, न उनका सिर दबा पाओगे, न उनको एक गिलास पानी पिला पाओगे, न दो रोटी खिला पाओगे; क्योंकि वो शरीर छोड़कर तो चले गए। लेकिन वो शक्ति तो अभी छोड़ गए हैं, ताकत तो छोड़ गए हैं। काम तो वो हमारे आपको देकर गए हैं कि इस काम को करो। यही है गुरु का आदेश; बाह्य आदेश।*
आंतरिक आदेश किसको कहते हैं? *आंतरिक आदेश ये जो देकर के गए कि अंतर की पूजा करो। बाह्य पूजा न करो जिसमें लोग फंसे हुए हैं।*
समय का संदेश
14.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, रजनी विहार, जयपुर।
1. *असली सेवा क्या है?*
17:00–18:40
*पांच नाम का सुमिरन करे, सन्त कहे तो भव से तरे।*
भवसागर से तभी छुटकारा मिलेगा; नहीं तो इसी में डूबते-उतराते रहोगे, इसी में रोते चिल्लाते रहोगे, इसी में हंसते रहोगे, दुख झेलते रहोगे, इसी में जन्मते और मरते रहोगे। तो कष्ट इसी से जाएगा। यही है असला परोपकार, यही है असली सेवा।
शरीर की सेवा सब करते हो। मालिश करते हो, नहलाते-धुलाते हो, शरीर को कसरत करते हो, शरीर को खिलाते हो। बच्चों की सेवा है, औरत की सेवा है, पति की सेवा है, सास-ससुर की सेवा है, आए-गए के मेहमान की सेवा है, यह सेवा अलग है। लेकिन यह (नाम की कमाई) सर्वश्रेष्ठ सेवा है।
जैसे कहते हो कि भाई मेहमान आ गए लेकिन हमको अपने भगवान को नहलाना धुलाना है, उनकी पूजा करनी है; तो उनको बैठा देते हो। कहते हो पूजा कर रहे हैं, प्राथमिकता ज्यादा देते हो। किसको देते हो? जिनको आप आराध्य मानते हो, जिनको आप भगवान मानते हो, उनको ज्यादा महत्त्व देते हो। इसी तरह से इसको ज्यादा महत्त्व दो। यह है परोपकार। यही है सेवा। असली सेवा यही है। *मेहमान की सेवा करते हो, परिवार की सेवा करते हो; वो अलग सेवा है और यह सेवा जीवात्मा की सेवा है।* यह अलग सेवा है। यही चीज लेकर आए हो। ये अर्थ अगर आपके समझ में आ जाए तो आपका फंसाव बहुत कम हो जाएगा दुनिया से।
2. *गुरु के अंतर में दर्शन की तड़प नहीं बन पाती है इसलिए दर्शन नहीं हो पाता है।*
39:30–39:42
हम लोगों के अंदर वो तड़प नहीं बन पाती है। गुरु से मिलने की तड़प नहीं बन पाती है। गुरु के अंतर में दर्शन की तड़प नहीं बन पाती है। इसलिए दर्शन नहीं हो पाता है।
समय का संदेश
14.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, रजनी विहार, जयपुर।
1. *प्रचार की रूपरेखा अब बदलनी है, अब ठोस काम करना है।*
52:05–53:55
देखिए प्रचार की रूपरेखा अब बदलनी है। प्रचार की रूपरेखा क्या है? अब ठोस काम करना है। प्रचार ज्यादा करोगे, अब उससे अच्छा यह रहेगा कि आप अपने रिश्तेदार, व्यापारिक संबंध वालों को पकड़ लो। *आप अपने जिस भी लाइन में हो, कोई डॉक्टर हो, वकील हो, व्यापारी हो, जो भी हो उनको पकड़ो। उनको नामदान दिला दो। उनसे भजन करा दो। यह प्रचार हो, यह सेवा हो।*
जो नामदानी हैं उनको साधना शिविर में बैठाओ। साधना शिविर बराबर लगती रहेगी। अपने घर में भी आप दो घंटे, तीन घंटे, पांच घंटे की यह लगा सकते हो जरूरत पड़ने पर; लेकिन यह छुट्टी के दिन तो जगह-जगह साधना शिविर लगेगी; उसी में ले जाओ उनको और अगर कुछ इस तरह का हो कि भाई हमारे घर पर जगह है और यह हमारे घर पर ही बुलाने पर आएंगे तो वहां बुलाओ।
तो पहले कह दो, भाई खाने पर आओ, चाय पर आ आओ क्योंकि आप भी चाय नाश्ता करके आते हो उनके यहां। बुलाओगे तो आ जाएंगे तो कहोगे लाओ बैठा जाए थोड़ी देर। सतसंगी; सतसंगी को बुलाते हैं, सतसंगी; सतसंगी के यहां जाते भी तो हैं। लाओ थोड़ी देर ध्यान-भजन कर लिया जाए; तब चाय पिया जाए, तब नाश्ता किया जाए, भोजन किया जाए। किसी भी तरह से, जैसे भी हो; प्रचार करके, व्यवस्था बना करके, ठोस काम करना रहेगा; जिससे लोग लग जाएं।
2. *धरा धंसे या प्रलय मचे, पर सुन लो सतयुग आयेगा।*
45:30–46:57
कलयुग से लड़ाई जब होगी; तब कलयुग हार जाएगा और लड़ाई में कौन जीतेगा? जो सतयुग लाने का नारा लगाता है। गुरु महाराज नारा लगा के गए थे सतयुग का। वही नारा हम लोग लगाते हैं।
" *धरा धंसे या प्रलय मचे, पर सुन लो सतयुग आयेगा।* "
तब सतयुग आयेगा जब कलयुग परास्त होगा। तो यह जो कलयुगी गुण है, जो कलयुग अपना असर तुरंत जता देता है, इसके असर में अगर हम आप रहेंगे; तो सतयुगी न तो बन पाएंगे, न सतयुग ला पाएंगे, न सतयुग के सिपाही बन पाएंगे, न बादशाह की ताकत ला पाएंगे कि जो अक्ल बुद्धि से कलयुग को परास्त कर सके। तो समझो *यह ध्यान, भजन, सुमिरन ही एक ऐसी चीज है, गुरु भक्ति ही एक ऐसी चीज है कि जिससे कलयुग को परास्त कर सकते हैं और सतयुग को लाकर के लोगों को सुख शांति दिला सकते हैं।*
समय का संदेश
14.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, रजनी विहार, जयपुर।
1. *अब तो मन की कुर्बानी देने की जरूरत है।*
46:58–48:27
देखो प्रेमियों! देश को जब आजाद करने को हुआ; तो भगत सिंह, चंद्रशेखर, अशफाकउल्लाह खां, राजेंद्र लाहिड़ी जैसे तमाम वीर आकर के और लड़ाई लड़े थे और उसमे उन्होंने कुर्बानी दी थी। बहुत तरह की कुर्बानियां दिया लोगों ने। देखो जिंदा जला दिया, जिंदा दफना दिया और फांसी पर लटका दिया। तो अब तो उसकी जरूरत नहीं है। अब तो ये मन की कुर्बानी देने की जरूरत है। इसको लटका देना है। ऐ मन! तू लटका रह थोड़ी देर तक उधर जहां मैं देख रहा हूं ऊपर की तरफ। इधर नीचे की तरफ मत रह।
देखो लटकाते हैं जैसे पंखा लटका है, आप जमीन पर हो और वो ऊपर है ऐसे मन को इधर छोड़ दो और कहो कि भाई ये जो इच्छाएं हैं तेरी, इसको तू त्याग दे यहां पर और चल ऊपर चल। अब मेरे आत्मा के साथ तू जुड़ जाए, लटक जाए। ऐसे लटकाने की जरूरत है। इसको फांसी देने की जरूरत है क्योंकि ‘ *बड़ा बैरी ये मन घट में, इसी को जीतना कठिना* ’। अच्छे-अच्छे लोग हार गए मन के आगे।
2. *शालिग्राम के पत्थर से स्वास्थ्य लाभ।*
23:05–25:09
शालिग्राम का पत्थर होता है। वह पत्थर अलग होता है। उसको घोल के भी लोग पीते थे क्यों? उसमें तत्व मिल जाता था। कौन सा तत्व? पृथ्वी तत्व मिल जाता था। कई तत्व उसमे मिल जाते थे। इकट्ठा हो जाता था वो पत्थर।
पत्थर कैसे बनता है? धरती से बनता है, आसमान से बनता है। जल तत्व से बनता है। कई चीजों से बनता है। तो धरती के ऊपर जैसे मान लो जड़ी बूटियां पेड़ों की आ गई और इकट्ठा हो गई। और वो उसी में घुल गई धरती में। और फिर वही धरती कड़ी हो गई।
तो जब कड़ी हो जाती है जमीन तो कंकड़ बन जाता है और ज्यादा दिन तक पड़ा रहता है तो पत्थर बन जाता है। तो वो जो जड़ी बूटी और अन्य चीजों से वो जो पत्थर बना, उसके अंदर ताकत आ जाती है। तो उसको लोग नहलाते थे। किस में? पानी में। उसके बाद में चंदन लगाते थे। अब जो पानी उससे बना और जो पहले का चंदन लगा हुआ है तो चंदन अपना गुण जल्दी नहीं छोड़ता है।
वो उसमे आ जाता था और ये तुलसी के पत्ते चढ़ाते थे जो महाऔषधि है। एक पत्ता अगर आदमी खाने लग जाए रोज तो बहुत सी तकलीफों में आराम मिल जाए। तो उसको चढ़ा देते थे ऊपर से और फिर उसके बाद में कुछ भोग प्रसाद रख देते थे और वो रखा रहे, वो उसी दिन नहीं उतारते थे; दूसरे दिन उतारते थे और उसी पानी में धो देते थे, डाल देते थे। उसको पीते थे तो उससे स्वास्थ्य को लाभ मिलता था।
समय का संदेश
04.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, बावल, रेवाड़ी।
*1. शब्द (आवाज) को लिखा/दर्शाया नहीं जा सकता, इसको सुना जाता है।*
2:22 - 3:27
शब्द किसको कहते हैं? आवाज को। देखो मैं बोल रहा हूं और मेरे मुंह से जो आवाज निकल रही है उसको आप सुन रहे हो। *शब्द को लिखा नहीं जा सकता है। 'श', 'ब्', 'द' शब्द तो लिखा जा सकता है लेकिन शब्द को दर्शाया नहीं जा सकता। सुना जाता है शब्द को।*
*नाम अलग होता है और शब्द अलग होता है। वो नाम जो शब्द से जुड़ा रहता है वो ध्वन्यात्मक नाम कहलाता है।* वही गुरु महाराज ने बताया। वही अन्य सन्तों ने बताया। गुरु महाराज के जाने के बाद आप कुछ लोगों को बताया गया। तो यह नाम शब्द से जुड़ा हुआ है।
2. *शब्द का भोजन करने पर ही गुरु (प्रभु) पर विश्वास होगा।*
3:28 - 5:20
अब ये जो सुरत है, जीवात्मा है, ये एक तरह से नीचे की तरफ हो गई। किधर हो गई? इंद्रियों की तरफ इसका ध्यान हो गया। इंद्रियां किसको कहते? आंख, कान, नाक, मुंह और ये जो सुराख नीचे के हैं, मल, मूत्र जिससे त्याग होता है; ये इंद्रियां कहलाती हैं। तो ये जो आत्मा है; यह मन के साथ इधर होगी और मन और आत्मा अलग होती है। मन अलग है, आत्मा अलग है।
तो मन ये इंद्रियों के घाट पर बैठकर के रस लेता है और सुरत का भोजन अलग है और मन का भोजन अलग है। मन का भोजन वो है जो आप खाते हो, पीते हो, सूंघते हो, जो काम शरीर से करते हो, जिसको मन कराता है, मन को उसमें आनंद मिलता है, मन को उसमें रस मिलता है... और *जीवात्मा का भोजन अलग है। वो यहां है ही नहीं। वो तो ऊपर की तरफ है। वो तो अमृत का पान करती है।*
*तो जब यह जीवात्मा शब्द के साथ जुड़ती है तभी ये ऊपर जाती है और जब ये ऊपर जाएगी तभी इसको भोजन मिलेगा। तभी इसको खुराक मिलेगी, तभी यह ताकतवर होगी, तभी गुरु पर विश्वास होगा, तभी प्रभु पर विश्वास होगा।*
3. *सन्तों को भी शुरू में होश (ज्ञान) नहीं रहता है; वक्त के गुरु के पास पहुंचने पर बोध होता है।*
5:22 - 6:44
गुरु महाराज अपने जो परमात्मा रूप हो गए, मनुष्य शरीर में ही थे। आए थे वहीं से, भेजे गए थे लेकिन जब पैदा हुए तब होश नहीं था। मां के पेट में थे तो होश था, मां के पेट में याद रहता है सब; लेकिन बाहर आने के बाद माया का असर होता है, पर्दा पड़ता है। कोई गुरु महाराज की ही बात नहीं है और भी जो सन्त हुए हैं, सन्त हो गए लेकिन पहले भटकते रहे, पहले ज्ञान नहीं था।
चाहे कबीर साहब रहे हों, चाहे गोस्वामी जी महाराज रहे हों, चाहे पलटू, नानक, दादू, मीरा रहे हों, चाहे यह दसों गुरुओं में और उनके बाद में जो अन्य सन्त आए, वो रहे हों। तो शुरू में होश नहीं रहता है; बाद में जानकारी होती है। कब? जब गुरु बोध कराते हैं। वक्त के गुरु के पास वो पहुंच जाते हैं और वो ज्ञान करा देते हैं, बोध करा देते हैं तब वो अपने काम में लग जाते हैं।
समय का संदेश
04.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, रजनी विहार, जयपुर।
1. *सन्तों की जीवात्मा मनुष्य शरीर में रहते हुए सतपुरुष से जुड़ी रहती है।*
6:52 - 7:50
जैसे अभी अपने लोगों ने ध्यान लगाया, कान में उंगली डालकर के भजन किया, शब्द के साथ लय होने की कोशिश किया, जो आवाज आ रही है उसको पकड़ने की कोशिश किया। तो वो जब इसको पकड़ लेते हैं और वही शब्द खींच करके जब ले जाता है तो वहां पहुंचा देता है।
कहां पहुंचा देता है ? जहां से ये जीवात्मा आई है, जिसको सतलोक कहा गया है। उस सतलोक का मालिक कौन है ? उस सत्ता का बादशाह कौन है ? राजा कौन है ? वो सतपुरुष हैं। तो सतपुरुष के पास पहुंचा देती है और वहां से जुड़ी हुई रहती है। सन्तों की जो जीवात्मा है, वहां से जुड़ी हुई रहती है। वहां से पावर में रहती है, मनुष्य शरीर में रहती है।
2. *गुरु के प्रति अभाव कब आ जाता है?*
28:01 - 29:55
अगर आप यहां आना बंद कर दो, अभ्यास करना बंद कर दो तो समझो अभाव आ जाता है। कभी-कभी कहते हो ना कि कभी-कभी मन लगता है और कभी बिल्कुल मन नहीं लगता है। ये शिकायतें आती हैं।
सबका ऐसे ही है। हम तो अपनी ही बीती बता रहे हैं, दूसरे की क्यों बोलें। तो समझो कभी लगता है, कभी नहीं लगता है। अब ये जरूर है कि कामकाज की तरफ मन चला जाता है, इधर-उधर सोच विचार की तरफ चला जाता है, जंजाल आदमी पाल लेता है। कौन सा जंजाल? यही गृहस्थी का जंजाल, बिजनेस का जंजाल बढ़ाता चला जा रहा है।
एक साथ ज्यादा कमाई करने की कोशिश करता है। दिन-रात नौकरी, बहुत से लोग दोनों समय करने की कोशिश करते हैं कि रात में भी चार घंटे ड्यूटी कर लें, दिन में भी नौकरी कर लें, शाम को 2 घंटा चल करके नहीं कुछ है ट्यूशन पढ़ा दें, नहीं कुछ है तो किसी का बही खाता ही लिख दें, मेंटेन कर दें अकाउंट।
तो जब मन उधर चला जाता है तो मन जहां जाएगा वही तो काम होगा, वही तो कराएगा। अब आप ये बात समझो फिर जब इधर से मन हट जाता है तो गुरु पर से अभाव आने लगता है। गुरु से प्रेम कम हो जाता है और गुरु के बताए रास्ते से भी प्रेम कम हो जाता है और अगर कहीं अन्न दोष आ गया, संग दोष आ गया, स्थान का दोष आ गया, अगर कहीं ऐसी-वैसी चीजें पेट में पड़ गईं कि जिससे बुद्धि खराब हो जाती है तो आप समझो बिल्कुल दूर हो जाता है।
समय का संदेश
04.07.2025 प्रातः काल
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, रजनी विहार, जयपुर।
1. *इसी जन्म में पार होने के लिए लगातार अभ्यास करना पड़ेगा।*
26:56 - 28:00
अब इसी जन्म में पार होने के लिए अभ्यास करना पड़ेगा। अभ्यास किसको कहते हैं? यही जो आपने अभ्यास किया, ये जो सुमिरन किया आपने, ये ध्यान किया, भजन किया; यही है अभ्यास। इसको करना पड़ेगा और लगातार करना पड़ेगा। लगातार अगर आप नहीं करोगे तो ये छूट जाएगा और जब छूट जाएगा तो जैसे मान लो यहां आकर आप बैठते हो, अगर आप बैठना बंद कर दोगे तो विश्वास कम हो जाएगा।
यहां देखो, मैं देखता हूं कि सुबह ही लोग आने लग जाते हैं जल्दी से और समझों मान लो देर हो गई थोड़ी तो बाद में काफी लोग आ गए; तो आपका मन यहां आने के लिए लग गया। घर पर कोई जरूरी थोड़ी है कि घर पर बैठे हर कोई आदमी; लेकिन एक आदत बन गई, मन बन गया, मन लग गया आपका। अब अगर आप यहां आना बंद कर दो, अभ्यास करना बंद कर दो तो अभाव आ जाता है।
2. *नामदान लेने और समझने के बाद भी लोग साधना क्यों नहीं करते?*
29:56 - 30:51
सन्तों के पास लोग आते हैं लेकिन फिर चले जाते हैं। किसके साथ में आते हैं ? सतसंगियों के साथ में आते हैं। सतसंगी लाते भी हैं, लाना भी चाहिए कि चलकर के सतसंग सुनवा दें, नामदान दिला दें; तो लाते भी हैं लेकिन वो फिर चले जाते हैं। उस समय तो भाव में रहते हैं, उस समय तो भक्ति में रहते हैं, उस समय तो सोचते हैं कि हमको भी करना चाहिए।
*उस समय पर नामदान भी समझ जाते हैं लेकिन उन पर से जब लाने वाले का ध्यान हट जाता है, हटा देता है जब ध्यान उन पर से कि अब तो ये नामदान ले लिए, करेंगे ही; तब वो नहीं करते हैं। यही कारण है कि बहुत लोगों ने नामदान लिया लेकिन करते नहीं है, किए नहीं।* तो जब किए नहीं तो कर्म की सजा तो बताया आपको बार-बार दोहराता हूं कि कर्मों की सजा तो भोगनी ही पड़ती है।
समय का संदेश
20.07.2025 2 PM
पुणे, महाराष्ट्र
1. *रक्षाबंधन का कार्यक्रम 7, 8, 9 अगस्त को झुंझुनू राजस्थान में होगा।*
1:53:17 - 1:53:45
अभी देखो रक्षाबंधन का कार्यक्रम होगा तीन दिन का; 7, 8 और 9 अगस्त का। कहां पर होगा? ये होगा आपके झुंझुनू जिला, राजस्थान में। जो लोग आ सकते हो; आप वहां आ जाओ। वहां (साधना) कराया भी जाएगा, बैठाया जाएगा, देर तक कराया जाएगा। समय परिस्थिति अनुकूल रहेगी तो खूब मौका मिलेगा।
2. *जो खराब समय आपने कभी भी नहीं देखा, वो समय दिखाई पड़ेगा।*
1:53:46–1:55:00
वहां (झुंझुनू) भी आ सकते हो। अगर नहीं पहुंच पाते हो तो जब कहीं नजदीक में साधना शिविर लगेगी तो वहां चले जाना। यह आपको बचाएगा। किससे बचाएगा? हर आंधी–आफत से बचाएगा; क्योंकि आगे का समय खराब आ रहा है। अब कुल मिलाकर के आज ये समझो कि जो खराब समय आपने कभी भी नहीं देखा; वो समय दिखाई पड़ेगा। कहते हैं गरीबी में आटा गीला हो जाता है।
तो अब आप ये समझो हर तरफ से परेशानी आएगी। लेकिन सब में यह बचत करेगा अगर आप इसको करते रहोगे। तीनों चीजों (सुमिरन, ध्यान और भजन) को करते रहोगे तो सब में बचत होगी आपकी। मान लो आग लग गई और कोई जल रहा है और आग की लपटों के किनारे से आपको भी जाना है, भगना है; तो कोई तो जल जाएगा और किसी की खाल जल जाएगी तो आपका रोआ ही जल जाएगा। बहुत हल्की फुल्की आपको जलन होगी। थोड़ी देर जलन होगी, ठीक हो जाएगी। तो बचत होगी। हर तरह से बचत होगी लेकिन जब विश्वास के साथ आप इसको करोगे।
समय का संदेश
10.07.2025 प्रातः काल
निकट बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, ठिकरिया, जयपुर।
1. *सुमिरन से आगे नहीं बढ़ सकते, उद्धार नहीं हो सकता।*
43:36 - 45:11
सुमिरन से आगे नहीं बढ़ पाते हैं लोग, नहीं बढ़ सकते हैं। सुमिरन से उद्धार नहीं हो सकता है, लेकिन सुमिरन इसीलिए किया जाता है कि कम से कम माहौल तो बने।
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