*नौजवानों और उनके अभिभावकों के लिए संदेश*

*जयगुरुदेव*

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समय का संदेश 
07.07.2025 प्रातः काल
निकट बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

 *नौजवानों और उनके अभिभावकों के लिए संदेश*
12:13 - 15:13

देखो प्रेमियों ! बच्चों पर हम और आप संस्कार नहीं डाल पाते हैं और जब भजन का संस्कार नहीं हो पाता है, ध्यान, भजन, सुमिरन बच्चे नहीं करते हैं तब वही बच्चे गलत बच्चों के साथ पड़ करके बिगड़ जाते हैं। बच्चियां बिगड़ जाती हैं। सारा किया कराया सब खत्म हो जाता है, इज्जत मिट्टी में मिल जाती है, धन-दौलत बर्बाद हो जाता है। इसलिए जितने सतसंगी हो आप तो इस बात के लिए चेतो। 

नौजवानों में, तरुणों में उत्साह रहता है, हिम्मत रहती है और कर भी डालते हैं जो कहा जाये। समझ में उनके आ जाए तो कहते हैं कि जब तरुणाई अंगड़ाई लेती है तब इतिहास के पन्ने पलट जाते हैं। इतिहास बदल देते हैं। अब आप समझो नौजवानों ! आपके अंदर जो हिम्मत, हौसला और शक्ति है उसका उपयोग जब इसमें करने लगोगे, ध्यान, भजन करने में, कराने में लोगों को; तो सोचो आप क्या नहीं कर सकते हो। अभी आपके शरीर में बल है, बुद्धि है, पढ़े-लिखे हो, कुछ करते हो, कर सकते हो। 

तो आध्यात्मिक शक्ति जब आ जाएगी तो इसमें और बल मिल जाएगा कि नहीं मिलेगा? इस शक्ति में और बल मिल जाएगा, बुद्धि को सोचने की शक्ति मिल जाएगी, विवेक जग जाएगा; इसलिए इस काम में लगो और *जितने भी नौजवान आए हो यहां पर सेवा करो, भजन करो - सेवा करो, भजन करो। यहां पर और इधर-उधर की पंचायत में न पड़ो। ये अगर आप कर ले गए नौजवानों ! 

तो आपके लिए उत्तम भविष्य है। आपका भविष्य उत्तम है और ये माता-पिता उम्मीद रखकर के बड़ा किए, पाले-पोसे, बड़ा किए, पढ़ा-लिखा रहे हैं इन्होंने जो पैदा किया, इन्होंने जो आपके लिए त्याग-तपस्या किया; इनका भी सपना पूरा हो जाएगा।* इसलिए जवानों लगो और जितने जवान मिले, जितने जवान यहां आ गए हो सब लोग प्रेरणा दो, उनको समझाओ कि भाई भजन किया जाए। किया जाए, कराया जाए। कहीं मान लो सेवा चल रही है, वहीं बैठ गए। वहीं बैठ गए। सेवा भी चल रही है और वहीं ओढ़कर बैठ भी गए तो भाई करने वाले के लिए बहुत रास्ता है।

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समय का संदेश 
07.07.2025 5 PM
निकट बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

1. *अब प्रैक्टिकल करने की जरूरत है।* 
20:54 - 23:52

*ये जो गुरु पूर्णिमा का कार्यक्रम है, ये साधन, भजन का ही कार्यक्रम है।* इसमें ज्यादा सुनाना नहीं है। सुनाया तो जाएगा लेकिन ज्यादा नहीं सुनाना है। सुनाया तो गया, आप ज्यादातर उसमें पुराने लोग आए हो अभी। नए लोगों का आना तो कल से शुरू होगा क्योंकि प्रचार 8, 9 और 10 का ही हुआ था। 

तो कल से आना शुरू होगा नए लोगों का लेकिन ज्यादातर आप लोग पुराने आदमी हो तो आप लोगों ने खूब सुना। सुना और जाना भी। विद्वान भी हैं लोग। अच्छे तरीके से समझाते भी हैं। जानकारी भी है उनको सन्तमत की, समझाने, बताने वालों की लेकिन करते नहीं हैं। करते नहीं हैं। अब प्रैक्टिकल की जरूरत है। 

थ्योरी और प्रैक्टिकल कहते हैं इंग्लिश में। पहले पढ़ाते हैं, उसके बाद में कराते हैं। जैसे आई.टी, आई.आई.टी स्कूल होते हैं, उसमें पहले पढ़ाते हैं, पढ़ाने के बाद सिखाते हैं। जैसे इंजीनियरिंग जो पढ़ते हैं, इंजीनियर बनते हैं, डॉक्टर बनते हैं, उनको पहले पढ़ाते हैं और पढ़ाने के बाद फिर सिखाते हैं। 

पढ़ने वाले ये सोचे कि हम पढ़ लेंगे, अच्छा नंबर ले आयेंगे और हमको नौकरी मिल जाएगी, हम अच्छी कमाई करेंगे, चाहे कोई डॉक्टर हो या इंजीनियर हो लेकिन *वो तरक्की नहीं कर पाता है जो प्रैक्टिकल नहीं करता है।* प्रैक्टिकल में तो कहते हैं कुछ न कुछ मार्क्स मिल ही जाएगा। पास होने भर का मार्क्स मिल जाए तो ठीक है, कोई बात नहीं है लेकिन जो लगकर के प्रैक्टिकल करते हैं, उनको ज्यादा लाभ मिलता है।

देखो प्रेमियों ! नये-नये डॉक्टर आते हैं, नये-नये इंजीनियर आते हैं, उनको कौन सिखाता है ? कम पढ़े-लिखे मिस्त्री सिखाते हैं। कंपाउंडर बहुत सी चीजें बताते हैं क्योंकि उनको अनुभव ज्यादा हो जाता है। अनुभव ज्यादा हो जाता है और अनुभव बड़ी चीज है। अनुभव को ही कढ़ा कहते हैं। 

पढ़ा और कढ़ा दो होते हैं। एक के पास कागज की डिग्री होती है। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी वो पढ़ लेते हैं। पढ़ा सकते हैं, बता सकते हैं और एक होता, उसको प्रैक्टिकल करके अंदाजा लगा लेता है कि ये होगा कि नहीं होगा, कैसे होगा।

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समय का संदेश 
02.07.2025 सायं काल
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

1. *ध्यान और भजन कोई नया नहीं है, यह सनातन से चला आ रहा है।* 
2:36 - 3:50

ये ध्यान और भजन; ये कोई नया नहीं है, ये सनातन से चला आ रहा है लेकिन ये बीच में कुछ लुप्त हुआ और उसके बाद फिर कलयुग में जब सन्त आए तो उन्होंने फिर इसी को उभार दिया, प्रचार किया। असली चीज को पकड़ाया। जो इधर–उधर भटक रहे थे उनको समझा करके असली चीज को पकड़ाया। 

कहा इस डोर को पकड़ो; तो ये तुमको पार कर देगी... और नहीं तो फंस जाओगे; क्योंकि बहुत लोग फंसे पड़े हैं, अभी तक पहुंच नहीं पाए। ऐसे मिले नहीं गुरु जो हमारे आप जैसे गुरु महाराज रहे हों कि जिन्होंने ये सुमिरन, ध्यान, भजन बताया हो। तो ये सन्तमत की साधना है।

2. *गुरु पद स्नेह छूटे नहीं कबहुं, भाव छूटे संसारी।* 
6:55 - 10:26

"गुरु पद स्नेह छूटे नहीं कबहुं, भाव छूटे संसारी, यह विनती गुरुदेव हमारी" जब तक संसारी भाव रहेगा, संसार में लिप्त रहेंगे, संसार की चीजों में जब तक मस्त रहेंगे, तब तक गुरु के प्रति प्रेम नहीं पैदा होगा, गुरु को भूल जाते हैं। 

देखो! आप लोग जो बराबर सतसंग सुनते रहते हो, आपको सुनाया गया था कि कृष्ण जब उपदेश कर रहे थे, अर्जुन को समझा रहे थे तब उन्होंने कहा था कि अर्जुन, बहुत संभल कर के चलने की जरूरत है क्योंकि यह माया का देश है, माया का पसारा है, तो माया के चक्कर में तुम ना आ जाओ। माया का बड़ा जोर है, माया अपनी तरफ खींचती है, तो तुम होशियार रहना। 

तब उन्होंने कहा कि प्रभु, आप जब तक हैं तब तक माया हमारा क्या कर पाएगी? तब उन्होंने कहा कि माया का बहुत बड़ा जोर है और तुम्हारे ऊपर जब माया का चक्कर आएगा, माया की लीला जब आएगी, माया का जाल फैलेगा तब तुम हमको भी भूल जाओगे। तब अर्जुन हंसे और बोले "आपको कैसे भूल सकता हूं! आप तो 24 घंटा हमको याद रहते हैं, हम दोनों तो साथ ही रहते हैं, तो आपको कैसे भूल सकते हैं?" (जब बराबर आदमी साथ रहते हैं तो एक दूसरे को याद रहता है।) 

लेकिन आपको सुनाया गया था कि वहां नहाने के लिए जब गए थे और उसमें जब डुबकी लगाए तो ना कृष्ण मिले, ना रथ मिला और गए वहां गांव में, वहीं शादी-ब्याह हो गया, बच्चे हो गए। कुछ दिन के बाद जब फिर आए नहाने के लिए वही जंगल में जहां मेला लगा हुआ था और डुबकी लगाया और जब निकले स्नान करके तो देखा - ना बच्चे हैं, ना बीवी हैं, ना बैलगाड़ी है जिस पर लाए थे। 

तो देखा तो इन्होंने, लेकिन कृष्ण की तरफ मुखातिब नहीं हुए क्योंकि माया का पर्दा लगा हुआ था। क्या बोले, क्या चिल्लाए? "हाय मेरी बीवी, हाय मेरे बच्चे, हाय मेरी बैलगाड़ी, कहां गए, कहां गए.." खोजने के लिए दौड़े। कृष्ण दौड़ कर के आए और एक थप्पड़ मारा और जब माया का पर्दा हटा तब उनको ज्ञान हुआ। 

तब उनका चरण पकड़े। तो आपको इस बात को समझने की जरूरत है कि "भाव छूटे संसारी" यह संसारी भाव जल्दी नहीं छूटता है। इसीलिए कहा गया है "गुरु पद स्नेह छूटे नहीं कबहुं, भाव छूटे संसारी" मांगा गया, प्रार्थना की गई कि आप ऐसी दया करो, ऐसी कृपा करो।

3. *नित नव प्रेम जगे तुम्हरे प्रति, रहऊं नाम आधारी।* 
10:27 - 12:54

"नित नव प्रेम जगे तुम्हरे प्रति, रहऊं नाम आधारी।" नाम तो मिल गया लेकिन कमाई नहीं हो पाती है। क्यों नहीं हो पाती है? यही सब बाधाएं आ जाती हैं। ये जो पसारा है काल और माया का; इस चक्कर में आ जाते हैं अपने लोग । चाहे स्त्री हो, चाहे पुरुष हो। पुरुष समझो कि चेतन माया; जिनको औरत कहा गया और ये धन–दौलत, इनको ही माया कहा गया है और औरतें रुपए–पैसे माया के चक्कर में और पुरुषों के चक्कर में, काल के चक्कर में आ जाती हैं। तो ये प्रार्थना की गई कि "नित नव प्रेम जगे तुम्हरे प्रति।" 

*जब ये सोच लेते हैं कि हम तो पुराने सतसंगी हैं, गुरु महाराज को तो हम खूब याद करते रहे, आते जाते रहे और अब तो हमको कोई दिक्कत नहीं है, समरथ गुरु मिल गए हैं, वो पार करेंगे ही; तब गुरु भूल जाते हैं। अगर ये सोचा जाए हम अभी नामदान लिए हैं, अभी हमको गुरु मिले हैं। 

अगर हम गुरु के कहने में नहीं चलेंगे, गुरु का ध्यान नहीं रखेंगे तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।* तो कहा "नित नव प्रेम जगे तुम्हरे प्रति, भाव छूटे संसारी।" प्रेम नहीं हो पाता है गुरु से। आप ये समझो कि परिवार से पुत्र से, रिश्तेदारों से प्रेम रहता है बराबर। धन, दौलत, मकान से प्रेम होता है। 

कोई गाय भैंस बैल, बकरी, कुत्ता, बिल्ली पाल लिया उससे प्रेम होता है लेकिन गुरु से प्रेम नहीं हो पाता है। लेकिन साधक अगर हमेशा मस्तक पर सवार रखे गुरु को, याद करता रहे गुरु को, तो कोई दिक्कत न आवे। एक से एक प्रेमी हुए उनको फुर्सत ही नहीं है, टाइम ही नहीं है कि और किसी से मिले जुले और बात करें।

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समय का संदेश 
02.07.2025 सायं काल
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

4. *प्रेम प्रेम सब कोई कहे, प्रेम न जाने कोय। आठ पहर भीना रहे, प्रेम कहावे सोय।।* 
18:50 - 20:15

आठ पहर होता है। आठों पहर याद करता रहे; जब तक सो न जाए। इसीलिए देखो पहले के समय में नियम लोग बनाऐ हुए थे, उठते थे तो भगवान का नाम, कोई भी काम करें तो भगवान का नाम लेते थे। और *हमारे लोगों के मुंह से जयगुरुदेव नाम तक जल्दी नहीं निकलता है क्योंकि आदत नहीं बनी। नामध्वनि करने के लिए क्यों बताया गया? कि रट जाए नाम। 

याद हो जाए नाम, मुसीबत में मददगार नाम यह याद हो जाए, मुसीबत में मददगार हो जाए, लेकिन ध्यान उस पर नहीं दिया बहुत लोगों ने, कुछ लोगों ने ध्यान दिया भी। चलो भाई अब से ही लेकिन अब तो वक्त बदल गया, समय बदल गया, अब तो वो समय निकल गया। अब तो भजन, ध्यान, सुमिरन का समय आ गया क्योंकि समय पर उसको किया नहीं और कर्म इकट्ठा होते चले गए अब उन कर्मों को तो काटना रहेगा।* 

5. *संयम नियम के साथ रहकर भजन करोगे तब कर्म कटेंगे।* 
20:16 - 21:10

संयम नियम के साथ जब रहोगे, भजन करोगे तब कर्म कटेंगे। संयम नियम नहीं हो पाएगा जैसा कल मैंने बताया था कि दोष लगता है, उन दोषों से नहीं बच पाओगे; तब तक भजन में मन लगेगा नहीं। हासिल होगा नहीं कुछ। निराश हो जाओगे फिर छोड़ दोगे। बताया था आपको कि अन्न दोष से बचना चाहिए, संग दोष से बचना चाहिए, स्थान का भी बड़ा असर होता है। 

*अगर ऐसी जगह पर जहां गलत काम होता है, गलत लोग बैठते हैं वहां बैठना शुरू कर दो तो मन उधर ही चला जाएगा, वो आ जाएगा और सतसंग में अगर बैठो सन्तों के पास, साधकों के पास बैठो तो वो गुण आ जाएंगे। साथ का असर होता है।* 

6. *स्थान का असर कैसा होता है?*
21:11 - 23:04

स्थान का असर होता है। देखो श्रवण कुमार की बुद्धि खराब हो गई थी जब दिल्ली पहुंचा था। वो माता-पिता जिनकी सेवा करता था, उनको कंधे पर लाद करके जिनको चारों धाम कराया, जब पहुंचा दिल्ली तब उसकी बुद्धि खराब हो गई। कहा तुम दोनों ने हमारी जिंदगी बर्बाद कर दी, कहां तक तुमको ढोयेंगे। 

तो पिता ने पूछा बेटा कहां हो? बोले दिल्ली। तो बोले चलो हमको वहां ब्रजभूमि पर छोड़ देना, तुम जाना, अपना घर बसाना, अपनी जिंदगी सुधारना। जब वहां से चले आए और बोले छोड़ दो अब हमें कहीं मंदिर मठ में कर दो, वहीं हमारा समय बीत जाएगा भगवान को याद करेंगे। 

तब कहा आप मेरे भगवान हो, मातृ पितृ देवो भव:, माता-पिता तो देवता के तुल्य होते हैं, आपको कहां छोड़ सकता हूं। तो मां ने कहा कि वहां इसको क्या हो गया था, दिल्ली में यह ऐसा बोल रहा था। तब पिता ने कहा भूमि का असर है, जमीन का असर है। 

आप लोग जो पुराने लोग हो बराबर सुनते रहते हो सतसंग, आपको सुनाया गया था कि वो जहां सतसंग होता था वहां पर वह काला कुरूपी आदमी आता था जो पाप से काला पड़ जाता था और वहां लोट लेता था, वहां पर लोट लगा लेता था और साफ हो जाता था उसका बदन। 

तो जगह का असर होता है। इनसे बचना चाहिए गलत जगह से, स्थान से। तो इससे अगर बच करके और इसमें अगर लग जाएं सुमिरन, ध्यान, भजन में, तो बहुत तरक्की हो जाए।

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समय का संदेश 
02.07.2025 प्रातः काल
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

1. *संग का दोष*
20:58 - 21:29
24:48 - 28:17

जैसा संग कीजिए वैसा ही गुण होय। जैसे बांस है, बांस का टुकड़ा है या फांस (रस्सी का टुकड़ा) है, मिसरी के अंदर पड़ा रहता है तो मिसरी के भाव ही वो बिक जाता है। 

अभी ये बरसात आ रही है, इसमें स्वाति नक्षत्र है। तो स्वाति में बूंदें गिरती है ऊपर से, बरसात बहुत कम होती है। तो वो बूंदे जब गिरती हैं, वो बूंद अगर केला की पंखुड़ियों में पड़ जाए तो कपूर बन जाता है। कपूर जानते हो ? जलाया जाता है, खुशबू जिसमें होती है। बहुत जलनशील होता है, तनिक सी माचिस लगाओ जलने लगता है। खुशबू भी उसमें आती है। बहुत ज्यादा आती है, उज्ज्वल भी होता है, सफेद होता है। 

तो कपूर बन जाता है और वही बूंद अगर सीप के मुंह में पड़ जाए तो मोती बन जाता है। समुद्र से सीप निकलती है। तो उसमें क्या होता है ? उसमें एक कीड़ा होता है। सीप जब बाहर निकल आता है, समुद्र की लहर में वो कीड़ा बाहर हो जाता है। पानी पाता नहीं है। तो कीड़ा या तो बाहर निकलकर खत्म हो जाता है या तो उसी में खत्म हो जाता है, सीप में ही खत्म हो जाता है। 

अब हड्डी तो उसकी होती नहीं है तो वो उसी सीप में मिल जाता है। सीप को तोड़ो तो उसमें मैल निकलती है तो वो मैल उसके शरीर की खाल कह लो, हड्डी कह लो, मांस कह लो ; जो चाहो वो कह लो। उसमें (सीप में) अगर (बूंद) पड़ जाए तो मोती बन जाता है और अगर सांप ऐसे मुंह किये (ऊपर की तरफ मुंह खोलकर), कहां ? बिल के अंदर अगर कोई चूहा या जानवर बाहर से आता हुआ दिखाई पड़े तो हमला कर दे उसके ऊपर और पकड़ ले। सांप अगर ऐसे मुंह किए बैठा हुआ है और उसके मुंह के अंदर बूंद पड़ गई तो जहर हो जाता है। बूंद एक ही है लेकिन गुण उसमें तीन है। 

कहा न - 

*कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति बूंद गुण तीन। जैसी संगति कीजिए, वैसे ही गुण दीन"*

कदली यानी केला, सीप आपको बताया और भुजंग माने सांप। स्वाति नक्षत्र की बूंद और गुण तीन है उसमें।

साधक का संग करो तो साधना करना सीख जाओ। साधक के पास बैठो सब बता देगा, उठना-बैठना, तौर-तरीका सिखा देगा, खान-पान बता देगा, ध्यान भजन बता देगा और दुष्ट का साथ करोगे, मनमुखी का साथ करोगे तो रास्ते में कोई मनमुखी मिल गया, अभी आपका मन लगा, सुन रहे हो, समझ रहे हो, दिन में मनमुखी आदमी से बात कर लिए तो मन उधर चला जाएगा। फिर शाम को आओगे ही नहीं। फिर लौटकर इधर आओगे ही नहीं। ऐसा साथ का असर होता है।


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09.07.2025 5 AM
निकट बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

1. *परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अभी तक करोड़ से ऊपर लोगों को नामदान दे दिया है।* 
47:59 - 48:52

गुरु महाराज कई करोड़ लोगों को प्रेमी बनाए, नामदान दे करके गए और गुरु महाराज के जाने के बाद कितने लाख लोगों को नामदान दिया गया इसका आंकड़ा किसी के पास नहीं है। किसी के पास आंकड़ा नहीं है इसका। लेकिन हमारे दिमाग में ये बात है कि वो भी करोड़ से ऊपर ही हैं, कम नहीं हैं, जिनको मैंने (परम् पूज्य महाराज जी) नामदान दिया। 

यहीं जयपुर से शुरू किया था, 11-12 साल हो गया नामदान देते हुए और उस वक्त पर स्वास्थ्य ठीक था, उम्र अच्छी थी, तंदुरुस्ती थी। एक-एक दिन में तीन-तीन कार्यक्रम किया। देश का कोई कोना भले बचा हो जहां न गया हूं, सब जगह नामदान देकर आया। यहां तक कि विदेशों में गया, 15-16 देशों में नामदान देकर के आया। तो बहुत नामदानी हैं।

2. *संगत समुद्र का रूप ले रही है।* 
56:33 - 57:06

संगत अब कम नहीं है, बढ़ रही है...बढ़ रही है। गुरु महाराज बता रहे थे कि दादा गुरु महाराज से किसी ने पूछा गुरु महाराज के गुरुभाई ने कि आपके जाने के बाद संगत ... अरे! बोले संगत इतनी बढ़ेगी आगे कि समुद्र का रूप ले लेगी। तो समुद्र का रूप ले रही है। क्यों ले रही है ? क्योंकि युग बदलना है।

3. *सतयुगी फौज तैयार करनी पड़ेगी।* 
57:07 - 58:28

जैसे किसी राजा के ऊपर चढ़ाई करने के लिए उसके राज्य को लेने के लिए फौज तैयार की जाती है, फौज की जरूरत रहती है तब विजय मिलती है, ऐसे ही सतयुग लाने के लिए, कलयुग से लड़ाई लड़नी पड़ेगी; नहीं तो कलयुग ये चाहता ही है कि हमारे जैसे ही रहो। तो हमारे आपके उसके जैसे रहोगे तो कैसे पार हो पाओगे। कैसे गुरु भक्ति ला पाओगे जो *गुरु महाराज ने काम आपको दे दिया और छोड़कर के चले गए और विश्वास करके गए कि हमारे समय में सतयुग नहीं आया लेकिन ये हमारे होनहार बच्चे सतयुग लाएंगे* 

तो सतयुग आएगा कैसे? तो अब आप ये समझो कि कलयुग और सतयुग की लड़ाई में आसानी रहेगी? नहीं रहेगी। सतयुग के लायक बनना पड़ेगा, सतयुगी फौज तैयार करनी पड़ेगी; तब कलयुग से लड़ पाओगे। तो जरूरत तो है ही, अभी तो और लोगों की जरूरत है। अभी तो इस सेना को और बढ़ाना है तो उसकी सब योजना बनानी है। योजना बनाओ और जो योजना बनाने लायक हो, आप राय दो।

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समय का संदेश 
09.07.2025 5 PM
निकट बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

*पिण्डी, अण्डी और ब्रह्माण्डी शिविर*

*1:41:55 - 1:46:24*
अब से रक्षाबंधन तक का, अगली पूर्णिमा तक का आपको शिविर लगाना है, हर इतवार को। हर इतवार को शिविर लगेगी। तीन शिविर लगेगी। उसका नाम भी बता दूंगा। आज ही बता दूं? कल भी याद रहेगा तो बता दूंगा। नहीं तो आज ही बता दूं- 'उसका नाम रहेगा पिंडी शिविर, अण्डी और ब्रह्मांडी, तीन चरणों में लगेगा, लगा देना'

कैसे लगाओगे और कब लगाओगे, ये भी आपको बता देता हूं। देखो ! *इतवार को आप सुबह 5 बजे शुरू कर दो। 5 बजे से 7 बजे तक दो घंटा जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोलो।* कैसे बोलोगे? नये लोगों को बता दूं- "जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव" इस तरह से। इसी तरह से बोलना रहेगा। कितने बजे तक ? 5 बजे से लेकर 7 बजे तक *और ठीक 7 बजे नाम ध्वनि के बाद ध्यान और भजन पर बैठ जाओ और बैठा दो।* बैठ जाओ और बैठा दो लोगों को। 


जिसको जितना समय तक बैठना है, बैठेगा; फिर उठा जाएगा जैसे पहले होता रहा। टट्टी-मैदान के लिए भी चले जाते थे और जरूरी काम कर लेते थे और फिर समय मिलता था तो आ जाते थे। जिसके पास समय रहता था, बराबर बैठा रहता था। 8-8, 10-10 घंटे बैठता था। 24-24 घंटे लोग बैठे हैं। 5 दिन के साधना शिविर में 56-56 घंटे लोग बैठे हैं। तो अब आप समझो प्रेमियों ! उसी हिसाब से बैठना रहेगा। फिर आओ जब तक इच्छा हो ध्यान लगाओ, जब तक इच्छा हो भजन करो; तो शुरुआत हो जाएगी। सुबह 7 बजे इतवार को, रविवार को। संडे जिसको कहते हो। छुट्टी भी रहती है, दुकानें भी बंद रहती हैं, दफ्तर भी बंद रहता है *और फिर सुबह दूसरे दिन 7 बजे शिविर खत्म हो जाएगी।*

*थोड़ी देर सुबह समझाना रहेगा। किसको समझाना रहेगा ? उन्हीं प्रेमियों को जो साधना करते हैं।* तो जिनका बनता है, साधना में दिखाई सुनाई पड़ता है, वो भी बैठ करके सुन लेंगे। मान लो कोई इसमें नई चीज मिल जाए, नया तरीका मिल जाए समझाने-बताने के लिए लोगों को; तो वो भी सुनते रहेंगे और नये लोग भी सुनेंगे। कुछ कल मैं आपको बता दूंगा कि ये-ये चीजें बताओगे अच्छा रहेगा, इस तरह का रहेगा। उसके बाद फिर छुट्टी कर दो। ज्यादा देर नहीं उसके बाद फिर छुट्टी कर दो और छुट्टी करने के बाद अपना छोड़ दो लोगों को। अपने-अपने हिसाब से चले जाएं, अपना काम देखेंगे। तो ये चलेगा। 

*अभी इतवार आ रहा है, इसी से शुरू कर दो।* उसकी योजना यहीं बना लो...और जो जिम्मेदार लोग हैं, इसमें सहयोग करें, लगवाएंगे साधना शिविर। जिम्मेदारी भी इनकी जिस चीज की है, वो भी काम करते रहेंगे। ये नहीं कि इसी काम में लग जायेंगे... और भी काम इसके साथ में हैं, जो आप कर रहे हो, दिया गया है संगत के जिम्मेदार लोगों को, वो सब काम करते रहना। वो भी करते रहना है और इसको भी सेट करके चलना है।

सतसंग लिंक - 

समय का संदेश 
10.07.2025 प्रातः काल
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, ठिकरिया, जयपुर

*हर इतवार को सुबह 5:00 बजे से 24 घंटे का अखंड साधना शिविर लगाना है।* 
 1:17:48 - 1:24:24

 *हर इतवार को सुबह 5:00 बजे से अखंड साधना शिविर लगेगी 24 घंटे की। तो शुरू में क्या करना रहेगा? प्रार्थना बोलना रहेगा। एक प्रार्थना बोल देना, लोग दोहरा देंगे जो रहेंगे, कोई भी बोल देगा। उसके बाद में नाम ध्वनि बोला जाए। चाहे एक आदमी बुलवाए और चाहे चार आदमी बोलें एक साथ या दो आदमी एक साथ बोलें, बाकी दोहरावें, तो वो नामध्वनि बोली (जो पहले बोलेंगे) और नाम ध्वनि (जो दोहराएंगे) यह चलेगी । कब तक चलेगी? यह चलेगी 7:00 बजे तक। 5:00 बजे प्रार्थना शुरू होगी और नामध्वनि शुरू हो जाएगी और 7:00 बजे तक यह चलेगी, कब? इतवार को, रविवार को।* 

उसके बाद में बता दिया जाएगा कि अब सुमिरन, ध्यान, भजन कर लो आप। कोई बोल देगा घड़ी देख करके। घड़ी लगा भी दी जाए वहां पर; देख भी सकते हैं लोग। तो 7:00 जब बजे तब कहा जाय अब बैठ जाओ सुमिरन पर; तो एक बार सुमिरन वहां कर लेना। चौबीस घंटे में एक बार सुमिरन करते हो तो एक बार सुमिरन आप कर लेना और उसके बाद में ध्यान पर बैठ जाना। जब सुमिरन पूरा हो जाए तब ध्यान पर बैठ जाना फिर भजन पर बैठ जाना। ध्यान भजन आपकी इच्छा अनुसार रहेगा। 

*सुमिरन एक बार होगा और ध्यान भजन जितना आप ज्यादा से ज्यादा समय निकाल सको।* भूख प्यास को रोक कर के बाकी इतवार को जो काम पेंडिंग रखते हो उसको छोड़ कर के, जरूरी काम बच्चों या घर के अन्य लोगों दोस्तों पर छोड़ कर के कि भैया हमारा यह काम कर देना, राशन लेने जा रहे हो, सामान लेने जा रहे हो, आप पर विश्वास है, आप ये हमारी मदद कर देना। तो वो उस पर छोड़ कर के, भूल कर के, ज्यादा से ज्यादा समय जो आप दे सके, वो समय देना। फिर उठ जाना। मान लो उठना है; तो टट्टी-पेशाब कर आओ, पानी-पत्ता पी आओ, नाश्ता कर आओ, खा आओ और फिर जब लौट कर आओ तब सुमिरन नहीं करना। तब ध्यान और भजन पर बैठ जाना।

*देखो गुरु महाराज ने कई बार बताया कि सम्पुट लगा लिया करो। सम्पुट किसको कहते हैं ?* यही जैसे सुमिरन, ध्यान, भजन होता है, प्रार्थना किया जाता है तो प्रार्थना का समय उस समय नहीं रहता, अंदर में कर लिया जाएगा। कैसे ? दया करो। प्रार्थना में दया ही तो मांगते हैं। अंदर में सबसे पहले गुरु का ध्यान करेंगे, नाम लेंगे और उसके बाद में फिर पांचो रूपों का करेंगे। 




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