*जयगुरुदेव*
सतसंग लिंक -
समय का संदेश
20.06.2025 सायं 7.30 बजे
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन
*1. जिन कार्यकर्ताओं को गुरु की दया की मिठास मिल गई है, सबको यह लक्ष्य बनाना चाहिए कि जितने भी नामदानी हैं, सब भजन करने लग जाए।*
(5.09-9.01)
प्रेमियों! *अपने लोगों को जो बड़ा काम करना है, जिससे सब को सुख-शांति मिल जाए, जिससे सब को दोनों समय रोटी, भोजन जिसको कहते हो वह मिल जाए, तन ढकने के लिए कपड़े की कमी न हो, रहने के लिए घर की कमी न हो, कम मेहनत में ही अन्न उपजने लग जाए, कम मेहनत में ही ज्यादा आमदनी होने लग जाए, कम मेहनत में ही अपना काम होने लग जाए, शांति मिल जाए, सुकून मिल जाए और आत्मा का कल्याण हो जाए।*
ये जो बड़ा काम है, जो सबके लिए हो जाए, सबके लिए सुगम आसान हो जाए; उसके लिए मेहनत करनी पड़ेगी। जितने भी नामदानी हो, जितने भी सतसंगी हो, कार्यकर्ता हो जिनको कुछ दया का आभास हो गया है, अनुभव हो गया है, गुरु की दया की मिठास मिल गई है; आप लोगों को सबको यह लक्ष्य बनाना चाहिए, उद्देश्य बनाना चाहिए, यह निशाना बनाना चाहिए कि जितने भी नामदानी है सब भजन करने लग जाए, कोई भी भजन से वंचित न रह जाए। यह सोच बनानी पड़ेगी, ऊंची सोच बनानी पड़ेगी।
बड़ा काम करने के लिए बड़ी सोच बनानी पड़ेगी। तो कहोगे कि भाई हम कैसे बनावे, हम तो जानते नहीं है, ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है, ज्यादा अक्लमंद नहीं है क्योंकि यहां अपनी संगत में हर तरह के लोग हैं। पढ़े-लिखे भी हैं, अक्लमंद भी हैं, कढ़े भी हैं। कढ़े किसको कहते हैं? पढ़े कम रहते हैं लेकिन हर क्षेत्र का अनुभव होता है, हर चीज की जानकारी होती है।
ऐसे लोग भी हैं लेकिन ज्यादातर लोग सीधे-सादे सरल स्वभाव वाले हैं तो आप सरल स्वभाव वाले सीधे लोग, कम पढ़े-लिखे हो मान लो, शहरों में कभी-कभी पहुंच पाते हो। कुछ ऐसे भी हैं जो बुजुर्ग कभी पहुंचे ही नहीं होंगे, जहां पर उनका जिला है, जहां पर उनका प्रांत है वहां पर पहुंचे ही नहीं होंगे। जहां पर प्रांत का कार्यालय है, विधानसभा लगती है; वहां पहुंचे ही नहीं होंगे। तो कहोगे कि हम कैसे करें? क्या करें? कर सकते हो आप।
जितने भी लोग हो सब कर सकते हो। इसलिए इन चीजों को मैं मंच से बताने लगा हूं कि हर किसी के पास तक अपनी ये योजना पहुंच जाए और लोगों को भजन में लगाया जाए और खुद भी लगा जाए क्योंकि माहौल का असर होता है। मान लो बहुत गंदा माहौल है, जहां गाना-बजाना ही होता रहता है, जहां हू-हल्लाह ही होता रहता है तो वहां तो आदमी अभ्यास नहीं कर सकता लेकिन जो शांत एरिया है, एक विचारधारा के लोग हैं, एक तरह के लोग हैं, एक जैसा खानपान है; वहां तो भजन करो, शांति प्राप्त करो, वहां तो कोई दिक्कत नहीं है।
*2. साधना शिविर जब घर-घर में जहाँ-जहाँ सतसंगी हैं, नामदानी हैं लगेगा, तब अपना उद्देश्य पूरा होगा*
(9.04-11.04)
तो सबको यह चाहिए कि इसका विस्तार करें। किसका? संदेश का, साधना शिविर लगवाने का। *ज्यादा जगहों पर लगने लग जाए। जहां संगते ज्यादा हैं, बड़े गांव हैं, हर गांव स्तर पर लगने लग जाए और कुछ समय के बाद में जो काफी बड़े गांव हैं, उनमें घर-घर में लगने लग जाए* क्योंकि अपने बड़े गांव में ही एक कोने से दूसरे कोने तक लोगों का पहुंच पाना भी बहुत मुश्किल है और
*2. साधना शिविर जब घर-घर में जहाँ-जहाँ सतसंगी हैं, नामदानी हैं लगेगा, तब अपना उद्देश्य पूरा होगा*
भारत देश में और उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है, पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक जिला है गाजीपुर जिसमें गहमर एक गांव है। गहमर में एक कोने से दूसरे कोने में जाने में घंटों लग जाते हैं। गांव का आदमी गांव को ही नहीं पहचानता है, किसी को नहीं पहचानता है। उसमें कई तो प्रधान हैं। हमारा जो एम.एल.ए क्षेत्र भी लगता है उसी में। उसमें करीब 1500 रिटायर्ड सिपाही-अधिकारी ये-वो। उसी में वहीं के एक जज साहब (गुरु महाराज के शिष्य) कई बड़े अधिकारियों को तो मैं ही जानता हूं गहमर के। कोई कमिश्नर रहे हैं, कोई कुछ रहे हैं; बहुत बड़ा गांव है। ऐसे जगहों पर जब मोहल्ले वाइस लगेगा, घर-घर लगेगा, जहां सतसंगी हैं, नामदानी हैं तब अपना लक्ष्य पूरा होगा, उद्देश्य पूरा होगा।
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20.06.2025 सायं 7.30 बजे
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन
*5. आप लोग कमेटियां बनाना शुरू कर दो, ज्यादा से ज्यादा कमेटी बन जाए गुरु पूर्णिमा तक इस बात की कोशिश करो*
(15.20-19.36)
इस वक्त पर जितने भी जिम्मेदार हो आप लोग, आप लोग कमेटियां बनाना शुरू कर दो, ज्यादा से ज्यादा कमेटी बन जाए गुरु पूर्णिमा तक इस बात की कोशिश करो और ये कमेटियां बन जाएंगी तो आपको व्यवस्था करने में भी आसानी हो जाएगी। *अभी तो पूछा जाए आपसे कि आपके कितने आदमी जिला से आ रहे हैं, प्रांत से कितने आदमी आ रहे हैं, तो शहीद डाटा ही आपको नहीं मिल पाएगा क्योंकि व्यवस्था नहीं बनी है।*
जहां व्यवस्था बन गई है; देश में ऐसे भी कुछ गांव हैं जहां व्यवस्था बन गई है कि घर-घर स्तर का एक-एक आदमी तैयार हो गया। अब उससे यह जो ऑनलाइन की व्यवस्था बन गई है, जो आईटी वाले हैं, जब पूछेंगे कि भाई आपके परिवार से कोई चल रहा है? कितने लोग चल रहे हैं गुरु पूर्णिमा में? कितने लोगों को फॉर्म भरवाया आपने नामदान दिलाने के लिए? तो पता चल जाएगा कि नहीं कि इनके घर से तीन जा रहे हैं, एक जा रहा है, बड़ा परिवार है; कोई कहेगा भाई हम आठ आदमी जा रहे हैं, कोई कहेगा हमारा पूरा परिवार जा रहा है, कोई कहेगा हम 20 आदमी तैयार किए हैं, कोई पांच आदमी, कोई दो आदमी फॉर्म भरवा दिया है हमने, तो प्रेमियों समझो आप कि पता चल जाएगा कि नहीं चल जाएगा?
अरे ! जिम्मेदारों को यह सोचना चाहिए कि उनको मालूम हो जाएगा कि नहीं हो जाएगा कि हमारे जिला से इतने लोग जा रहे हैं? अब वो जो भजन करते हैं, उनमें से जब बना दोगे आप, लोगों को, तो *वो भजन की वैल्यू समझते हैं, वो सेवा का भी महत्त्व समझते हैं; उसी में से सेवादार निकल आएंगे और जो पहुंच जाएंगे गुरु पूर्णिमा में; टेंट लगवा देंगे, भंडारे की व्यवस्था करा देंगे, भंडारा चला देंगे; सब काम आपका हो जाएगा।*
तो जिम्मेदारों को इस बात को सोचना चाहिए कि भाई हमारी जिम्मेदारी कम हो जाएगी और हमको कोई वहां दिक्कत नहीं आएगी कि हमने इंतजाम 2000 आदमियों का किया और आ गए 3000 आदमी, 4000 आदमी तो हम कहां रखें, क्या करें, बड़ी मुश्किल, परेशानी आ जाती है; हर तरह की पानी, बिजली, लैट्रिन, खाने-पीने की, सब की जरूरत कैंपों में भी आदमी को पड़ती है, जहां जाता है वहां भी पड़ती है तो व्यवस्था कैसे हो पाती है? बहुत मुश्किल हो जाता है, खींचा-तानी हो जाती है। बारिश का मौसम है, बारिश आ जाती है तो सिर छुपाने की जगह नहीं रह जाती है; तो ये सब समस्याएं दूर हो जाएंगी, इससे समस्या दूर हो जाएगी आपकी ऐसी योजना बनाओ आप लोग।
ज्यादा से ज्यादा कमेटी बना लो और यह व्यवस्था बना लो, कमेटी वालों को आप सब लोग यह बता दो कि आपका यह काम है। कमेटी बना दिया, उनको पता ही नहीं क्या काम है, इस समय यही काम दे दो कि पता लगा ले सब लोग कि कितने लोग चल सकते हैं, वहां चलेंगे गुरु पूर्णिमा में। कितने नामदानियों का फॉर्म भरवा दिया है, कितने लोगों को वो ले चलेंगे नामदान दिलाने के लिए और भंडारा बनाने वाले कितने सेवादार मिल जाएंगे, वहां सेवा करने वाले कितने निकल आएंगे साधकों में से, ये सब मालूम हो जाएगा, उसकी लिस्ट बन जाएगी। तो एक कहावत है कि *"एक तीर में कई निशाना बन जाता है" "एक लक्ष्य में, एक उद्देश्य में कई समस्याएं सुलझ जाती हैं" तो सुलझेंगी आपकी कि नहीं सुलझेंगी?*
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समय का संदेश
20.06.2025 सायं 7.30 बजे
बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन
*9. अपनी-अपनी व्यवस्था के हिसाब से चलना है। इसके बारे में लोगों को बताना है।*
(25.13-30.38)
सबको पहले से ही बताए रहो कि भाई अपनी-अपनी व्यवस्था के हिसाब से चलना है तो *थोड़ा-बहुत खाने-पीने के लिए ऐसी चीजें रख लेनी है जो सूखी चीज है, कई दिन तक खराब न हो* । जरूरत पड़ने पर समय से भोजन न मिल पावे तो उन्हीं चीजों को खा करके, पानी पी करके आप काम में लग जाओ, चाहे भजन हो या सेवा हो; कमजोरी उसमें न आवे। तो ये व्यवस्था बनानी है। इसके बारे में भी लोगों को बताना है।
देखो प्रेमियों! कोई मोमजामा कहता है, कोई प्लास्टिक कहता है, *कोई इंग्लिश में पॉलीथिन कहता है; ये क्या होता है? यही बिछाने वाला तिरपाल। मोटा भी आता है, पतला भी आता है। पतला तो एक-एक हर किसी को अपने बैग में रख लेना चाहिए, झोला में रख लेना चाहिए* ।
बड़े काम की चीज है, कहीं भी बिछा लो; बरसात का मौसम है ओढ़ लो जब बारिश आ जाए, ठंडी लगे तो ओढ़ लो, कपड़े भीग जाए बारिश में तो उसी को लपेट लो, लपेट के बांध लो, ना बंध पावे तो रस्सी से बांध लो, तो कम से कम इज्जत तो बची रहेगी, आबू तो बचा रहेगा। गीले कपड़े पहनोगे तो ठंडी लग जाए, बुखार आ जाए, उससे तो बचे रहोगे, तो बड़े काम की चीज है।
देखो प्रेमियों! मोटर खराब हो गया, टैंकर खराब हो गया, भीड़ में टैंकर फंस गया, पानी की कमी हो गई, आपके कैंप तक नहीं पहुंच पाया लेकिन पानी भरे रखे रहोगे तो कम से कम पी तो लोगे, प्यास तो बुझ जाएगी, क्योंकि पानी भी शरीर के लिए जरूरी रहता है और खाली पेट में भी तकलीफ होती है, मर्ज बढ़ता है, कमजोरी आती है, तो कुछ पड़ा रहना चाहिए पेट में। तो ये व्यवस्था जब अपनी रहेगी, ठंडी तो वहां होती नहीं है, गर्मी रहेगी हल्का-फुल्का कुछ बिछाने-ओढ़ने का, पहनने का कपड़ा यह तो अपना रखना ही चाहिए। पहनने का कपड़ा तो आप रखते हो लेकिन कुछ अपना इंतजाम होना चाहिए।
कहां इतने आदमियों के लिए व्यवस्था हो पाएगी कि गद्दा होना चाहिए, ठंडी आ जाए, रजाई होना चाहिए, बरसात आ जाए, ओढ़ने का होना चाहिए। बचत की उपाय होनी चाहिए। संख्या जब बढ़ जाती है तो दिक्कत आती है। इन दिक्कतों से अगर सब लोग आप पहले से इंतजाम कर रखोगे तो आपको दिक्कतें नहीं आएंगी, निश्चिंत रहोगे, भजन में भी मन लगेगा, गुरु महाराज की दया हुई सत्संग हुआ तो सतसंग में भी मन लगा रहेगा; तो यह सब आप पहले से योजना बना लो और जो लोग YouTube पर सुनते हो, जो लोग जिम्मेदार हो, बताते हो लोगों को तो आप लोगों को यह चाहिए कि जो लोग नहीं सुन पाते हैं, गांव में दूर दराज रहते हैं, वहां पर जो कमेटी बना दो, उन कमेटी वालों को बता दो, वो सब को बता देंगे।
तो सब जान जाएंगे इस चीज को, क्योंकि अगर खबर नहीं पहुंच पाती है लोगों तक तो भी काम नहीं हो पाता है, तो वो बेचारे जो गांव के सीधे-साधे लोग हैं उनके समझ में जल्दी आ जाता है, वह जल्दी बात को पकड़ लेते हैं और अपना इंतजाम करके आते हैं। तो आप ये समझो कि वही लोग ज्यादा भूखे रह जाते हैं कि जो अपनी व्यवस्था नहीं रखते, वही प्यासे रह जाते हैं, उन्हीं को दिक्कत होती है ओढ़ने-बिछाने की। जो बड़ा आदमी बन कर के चले जाते हैं और बाकी जो अपने सब इंतजाम करके आते हैं तो वो सुखी रहते हैं; वो सेवा भी कर लेते हैं और भजन में भी उनका मन लग जाता है, उनको दोनों लाभ मिल जाता है।
लाने के लिए थोड़ा सा तो रहता है, सामान तो लाना रहता है लेकिन आ जाता है, उसमें ऐसे भी लोग मिल जाते हैं जो मदद कर देते हैं; किसी के पास सामान ज्यादा है, किसी के पास कम है तो कम वाले मदद भी कर देते हैं। मदद कर भी देना चाहिए। हम लोग भी मदद करते थे लोगों का बिस्तर पहुंचा देते थे टेंट तक, तांगा से उतार करके वहां रख देते थे, लोगों के बस तक पहुंचा देते थे; सब करते थे सेवा।
*सेवा तो गुरु महाराज के दया से हर तरह से मिली, हर तरह का अनुभव रहा है, गुरु महाराज ने कराया है; जमीनी स्तर की सेवा से लेकर के और मंच तक देखो, उपदेश करने का भी दया गुरु महाराज ने दिया, सब बताया, सब सिखाया।*
*10. जो छोटी-बड़ी सेवा करने में कोई संकोच नहीं करते हैं, वही आगे तरक्की कर जाते हैं*
(30.40-31.43)
सीखने की इच्छा जब रहती है, करने की जब इच्छा रहती है नौजवानों की, तब वो सब सीख जाते हैं "कर ले निज काज जवानी में, इस दो दिन की जिंदगानी में"। उन नौजवानों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है जो शुरू से ही आरामतलब हो जाते हैं, जो सेवादार हो जाते हैं, सेवा का भाव हो जाता है, छोटी-बड़ी सेवा करने में कोई संकोच नहीं करते हैं, वही आगे तरक्की कर जाते हैं, उन्नति कर जाते हैं और खजो बड़े आदमी बनने का घमंड रखते हैं, ज्यादा पढ़-लिख लेने का घमंड रखते हैं, अपने सुंदरता का, कपड़े-लत्ते का घमंड रखते हैं वो सब जगह पिछड़े ही लाइन में रहते हैं, तरक्की उतनी नहीं कर पाते हैं। तो आपको यह बात सब समझने की जरूरत है, ये सब व्यवहारिक बातें बताना आज हमने आपको उचित समझा इसलिए बता दिया।
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20.06.2025 सायं 7.30 बजे
बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन
*6. गुरु पूर्णिमा राजस्थान की राजधानी जयपुर में होगी।*
(19.37-21.39)
देखो प्रेमियों! गुरु पूर्णिमा कहां होगी? राजस्थान की राजधानी जयपुर में होगी। तीन दिन का कार्यक्रम मुख्य रूप से, घोषित रूप में यह चलेगा। एक दिन पहले लोग आ जाते, एक दिन बाद तक रहते हैं, तो *कुल मिलाकर के पांच दिन हो जाता है* । तो यह इस तरह की व्यवस्था वहां सब लोगों को करनी है। ये देखो अभी तक कुछ यह दिक्कत था कि भाई कहीं ऐसा ना हो कोई बात फंसे; पर्मिशन ना मिले, लेकिन परमिशन प्रेमियों आज मिल गई है। तो *अब यह गुरु महाराज की दया से निश्चित हो गया कि यह 2025 की जो गुरु पूर्णिमा है, वो जयपुर में होगी।*
कहां पर होगी? जहां पिछले साल हुई थी; जयपुर से जो अजमेर को सड़क जाती है, मैन रोड है, उसी रोड पर अपना एक आश्रम है जो ठिकरिया मुकाम कहलाता है, उसी आश्रम के पास में ही जमीन है, काफी बड़ी जमीन है। वो जिनकी जमीन है उन्होंने भी लिखकर दे दिया, वो बेचारे निशुल्क दे देते हैं, उसका कोई सेवा भी नहीं लेते हैं और बड़े खुश रहते हैं कि हमारी जगह पर ये अच्छा काम हो रहा है। उसके बगल में भी पार्किंग और टेंट वगैरा लगाने की जगह है।
अगल-बगल में है, वो लोग भी प्रेमी दे देते हैं। तो वो जगह की भी परमीशन मिल गई है और प्रशासनिक परमिशन, नियम-कानून के अंतर्गत जो हम काम करते हैं, उसके अंतर्गत वाली भी परमीशन मिल गई। अब यह निश्चित हो गया कि गुरु पूर्णिमा जयपुर में गुरु महाराज की दया से होगी।
*7. पिछले साल से ज्यादा भी भीड़ हो सकती है। तो इंतेज़ाम तो अब युद्ध स्तर पर करना होगा*
(21.39-23.15)
देखो प्रेमियों! *हमारा स्वस्थ खराब रहता था लेकिन अब हमारे स्वास्थ में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। तो अब तो हमारी भी उम्मीद बन गई, हिम्मत बढ़ गई कि हम भी वहां पहुंच जाएंगे। गुरु पूर्णिमा में हम भी पहुंच जाएंगे* और हम तो थोड़ा पहले भी पहुंच जाते हैं तो हम तो पहले भी वहां पहुंच सकते हैं। अब क्या करना चाहिए इनको? राजस्थान के प्रेमियों को, जयपुर के प्रेमियों को? तैयारी में दिन-रात एक कर देना चाहिए क्योंकि तैयारी के लिए इनके पास समय कम है इस बार में। और भीड़ का कुछ कहा नहीं जा सकता है।
पिछले साल से ज्यादा भी भीड़ हो सकती है। तो इंतेज़ाम तो अब युद्ध स्तर पर जिसको कहते हैं, उस स्तर पर करना होगा। ये सब लोगों को समझ लेना है कि हमारे घर ने मेहमान आ रहे हैं, हमारे घर में शादी जैसा उत्सव होने वाला है तो हम जैसे शादी-ब्याह में, घर के किसी उत्सव/कार्यक्रम में, खुशी के मौके पर दौड़-दौड़ करके काम करते हैं कि हमारे यहां मेहमान आयेंगे, उनके रहने-खाने की व्यवस्था करनी है; उस तरह से अपना सब लोगों को जयपुर, आसपास के लोग और पूरे राजस्थान को समझ करके करने की जरूरत है।
*8. हमको महापुरुषों की उपस्थिति में गुरु की दया लेने का अवसर मिलेगा*
(23.16-25.11)
अब कहा गया है *जो जितना गुड डालेगा, उतना ही मीठा होगा* । अपनी जिम्मेदारी समझनी है, अपनी व्यवस्था बनानी है और देश-विदेश के जो संगत के लोग हो, आपको क्या सोचना है? कि भाई हमारे गुरु महाराज की गुरु पूर्णिमा है। हमको गुरु महाराज का पूजन का मौका मिलेगा। *हमको महापुरुषों की उपस्थिति में गुरु की दया लेने का अवसर मिलेगा। हमको भजन-ध्यान करके गुरु का दर्शन, पिछले दिनों में जो महापुरुष आए, जिनका आवाहन किया जाएगा, हमको विश्वास है, वे वहां आयेंगे; उनका दर्शन अंतर में करने का मौका मिलेगा।* तो आप लोग तैयारी करो।
अपना समझ करके और यह भी सोचो कि भाई अपना कार्यक्रम है और अपने लोगों को चलना है और अपने परिवार को लेकर चलना है, अपने गांव, अपने जिला, अपने प्रदेश के लोगों को लेकर चलना है तो वहां हमको पहले पहुंच करके लोगों को लेकर के, सेवादार को लेकर के, पहुंचकर के व्यवस्था बनानी है। पहले क्या होता रहा है, हर बड़े कार्यक्रम में? प्रदेश के लोग जिम्मेदारी लेते हैं, विभागों की। तो वो आप जिम्मेदारी पूछ लो उनसे, आप निभाओ उसको। इसके अलावा भी आप और भी सोचे रहे कि पिछले साल हमारे यहां से दस हजार आदमी गए थे तो अबकी पंद्रह हो जाएं; उसको भी सोचे रहो।
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20.06.2025 सायं 7.30 बजे
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन
*3. साधना शिविर के विस्तार के लिए ज्यादा आदमी चाहिए*
(11.05-13.33)
तो आदमी तो चाहिए। करने वाला चाहिए, कराने वाला चाहिए। अब मान लो जिले में, प्रांत में 5 आदमी कार्यकर्ता थे, जिम्मेदार थे और अभी तक वो काम करते थे, जो कर पाते थे। काम भी कम रहता था लेकिन अब ये जब विस्तार हो रहा है तो इसके लिए तो आदमी चाहिए ही चाहिए, जिम्मेदार तो चाहिए ही चाहिए। तो जहां जैसी संगते हैं, जहां नामदानियों की जैसी संख्या हैं; वहां उसी तरह से व्यवस्था बनानी पड़ेगी।
देखो प्रेमियों ! आप जिला के जिम्मेदार हो पहले से सेवा कर रहे हो, आप प्रांत के जिम्मेदार हों पहले से सेवा कर रहे हो; आप लोग ऐसी व्यवस्था बनाओ कि जिस जिला में ज्यादा लोग हैं, उसको चार भागों में बांट दो और चारो भागों के 5-5 आदमी जिम्मेदार बना दो। 5 आदमियों की कमेटी बना दो।
अब चारों भागों में बांट दिए तो 20 आदमी हो गए और वो 20 आदमी क्या करें? 5-5 आदमी एक क्षेत्र के क्या करें? अपने-अपने एरिया जहां तक बंटे कि यहां से यहां तक का, इन-इन तहसीलों का ये देखेंगे, इस मोहल्ले का, शहर में ये देखेंगे; वो उसको चार भागों में बाट दें। फिर 5 आदमी उसमें बना लें। तो भी अगर ज्यादा सतसंगी हों, ज्यादा घर हों तो फिर वो 5-5 बना लें, फिर वो लोग घर-घर बना देंगे।
*घर-घर एक-एक आदमी मुखिया बना देंगे। घर-घर एक-एक आदमी प्रेरणा देने वाला, समझाने वाला बना देंगे कि भाई साधना शिविर वहां लग रही है। वहीं घर-घर के जिम्मेदार 10 घर वाले हैं मान लो और दसों में एक-एक बना दिए गए, दस लोग मिलकर राय बना लें कि भाई किनके यहां साधना शिविर लग सकती है, वहां साधना शिविर लगा दें और अपने-अपने घर के लोगों को ले आ कर के अखंड साधना शिविर में बैठा दें।*
*4. पांच-पांच घंटे की तो रोज लग जाएगी।*
(13.33-15.18)
अब आप कहोगे कि 24 घंटे की रोज साधना शिविर लगेगी नहीं तो पांच-पांच घंटे की तो रोज लग जाएगी और लगनी शुरू हो गई; अपने जितने बड़े आश्रम है सब जगह लगने लग गई और छोटे आश्रमों पर भी आप लोग व्यवस्था बना दो; जहां उठने-बैठने की जगह है वहां बना दो। जो जिम्मेदार हो प्रांत के, जिले के, जिन जिलों में जिम्मेदार लोग हो, वो मिलकर के, प्रांत के लोगों से सलाह लेकर के, मदद लेकर के, वहां भी व्यवस्था बना दो तो वहां भी पांच घंटे का रोज लगातार चलेगा।
तो *जब आदमी जाएगा, बैठने की आदत बनेगी और लगातार दो-ढाई घंटा बैठेगा और मन ये रुकने लगेगा, खान-पान चाल-चलन बिगड़ेगा नहीं उसका, अपनी-अपनी गलती की माफी मांगने लग जाएगा और जो गलती किया है, वो जो कर्म इकट्ठा है, भजन में मन नहीं लगता है, जब वह कटने लग जाएंगे, खुद वो अच्छा महसूस करने लग जाएगा, हल्का हो जाएगा और फिर जैसे कर्म कटेंगे वैसे मन रुक जाएगा और चढ़ाई हो जाएगी ऊपर। जो काम के लिए जाएगा कि हमारी आत्मा, परमात्मा तक पहुंच जाए, ऊपरी लोकों में आने-जाने लग जाए, वो काम प्रेमियों विश्वास करो, पूरा हो जाएगा।*
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समय का संदेश
22.06.2025 प्रातः 9.15 बजे
बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन
1. *प्रेमियों! अब रुकने की जरूरत नहीं है।*
प्रेमियों! अब रुकने की जरूरत नहीं है, न सोचने और विचारने की जरूरत है। अब तो आगे बढ़ने की जरुरत है। भजन करने और कराने की जरुरत है।
2. *रोज साधना शिविर लगाने के लिए क्यों कहा गया?*
40:40 - 42:08
तो प्रेमियों देखो! आपको बताता हूं। आप इतने लोग जो बैठ करके साधना किए हो, बिस्तर पर अगर आप सोचते हम कर पाएंगे तो नहीं कर सकते हो। इसलिए इन सारी चीजों को ध्यान में रखते हुए एक जगह पर साधना शिविर लगाने का ये कहा गया है, आयोजन किया गया है। बराबर साधना शिविर में शरीक होने की जरूरत रहेगी।
देखो, 24 घंटे की साधना शिविर से जब देखा गया कि 8 दिन में मौका मिलेगा लोगों को और 8 दिन तक यह मन तुरंग की तरह से तुरंग किसको कहते हैं - घोड़ा को। घोड़ा की तरह दौड़ेगा इधर-उधर दुनिया की तरफ तो एक दिन के 24 घंटे के 2 घंटे 4 घंटे 6 घंटे की साधना में 5 घंटा 24 घंटे में बैठने से मन रुकेगा जल्दी? नहीं रुकेगा। इसलिए कहा गया कि रोज करो 5 घंटा, बैठो कम से कम। और अपने आश्रमों पर जो बड़े आश्रम हैं जगह-जगह पर, जहां बैठने की जगह है वहां तो बराबर चल रहा है। और जहां ज्यादा सतसंगी हैं वहाँ रोज 5 घंटे बैठ रहे हैं, वहां भी व्यवस्था बन गई है लोगों की।
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22.06.2025 प्रातः 9.15 बजे
बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन
*1. आप में और दुनियादारों में अंतर है। इस चीज को बहुत से लोग समझ नहीं पाए।*
12:04 - 14:28
कहा गया है कि "पलटू नाहक भौंकता साध देख कर स्वान। जगत-भगत सो बैर है, चारों युग परमान।।" अब इसका अर्थ समझा दें - जगत और भगत, जगत किसको कहते हैं? जो दुनिया में रहते हैं और केवल अपने ही स्वार्थ का काम करते हैं, अपने शरीर के स्वार्थ का काम करते हैं। अपने परिवार, अपने रिश्तेदार, अपने हित-मित्रों के ही स्वार्थ का काम करते हैं; वो पक्के दुनियादार होते हैं।
अपने शरीर के स्वार्थ के लिए, अपने परिवार के स्वार्थ के लिए, पड़ोसी-रिश्तेदार के लिए जो काम करते हैं और कुछ परमार्थ भी करते रहते हैं; कहलाते तो वो भी दुनियादार हैं लेकिन वो भी कोई परमार्थी काम नही करते हैं इसलिए दुनियादार से अलग श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है।
तो वो दुनियादार हैं और आप क्या हैं? आप अपने परमार्थ को बनाने में लगे हुए हैं और ये काम अगर बन जायेगा, इससे आप को दुनिया में रहने में, दुनिया के लोगों की सुख-शान्ति का रास्ता निकालने में आसानी हो जायेगी। तो आप में और उनमें अंतर है। वो बहुत से लोग इस चीज को समझ नहीं पाए हैं और कमी समझाने की रही है तो पूरी हो जाएगी, गुरु महाराज की दया रही तो कमी कुछ दिन में पूरी हो जायेगी। कौन पूरा करेगा? ये जो साधक समाज लाखों की संख्या में हो जायेगा, वो उस कमी को पूरा कर देगा।
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