*गुरु नानक जी का शाकाहार अपनाने पर जोर और संदेश।*

जयगुरुदेव
समय का संदेश
15.11.2024 M
कटनी, म. प्र.


*गुरु नानक जी का शाकाहार अपनाने पर जोर और संदेश।*
1.08.30 – 1.09.19

जिनका खान-पान खराब था, जो मांस खाते थे, मछली खाते थे, अंडा खाते थे, गलत चीजों का इस्तेमाल करते थे, जो कि मनुष्य का भोजन नहीं है, पशु-पक्षियों का मांस खा करके अपने अंत:करण को गंदा करते थे, जिनकी बुद्धि राक्षसी हो जाती थी; उनको उन्होंने (नानक जी ने) नाम जपवाया था। लिखा हुआ प्रमाण मिलता है -  

"सब राक्षस को नाम जपवायो, आमिष भोजन तिन्हें तजवायो।"

जब इस जीवात्मा को अंतर में भोजन मिलने लगता है, जब बढ़िया चीज मिलती है, तो गंदी चीज की तरफ मन नहीं जाता है। मन कितना भी कहे चलो खा लो, लेकिन नहीं खाता।

1.10.30 - 1.12.03

मन-चित्त-बुद्धि का सही होना जरूरी है, अंतरात्मा को सही रखना जरूरी है। अंतरात्मा को अगर साफ नहीं रखोगे, तो यह जो उस प्रभु के बैठने का सिंहासन है; प्रभु कैसे बैठेंगे अपने सिंहासन पर? देखो! यह जगह साफ कर दी गई, यहां जब बिछा दिया गया, तो आप आकर बैठ गए और यहां कूड़ा-करकट, गंदगी पड़ी होती तो आप बैठते? ऐसे ही - 

"दिल का हुजरा साफ कर, 
जाना के आने के लिए।
ख्याल गैरों का हटा,
 उसको बिठाने के लिए।।" 

दिल की, अंतरात्मा की सफाई जरूरी है। तो नानक जी ने समझाया कि यदि कपड़े के ऊपर रक्त (खून) लग जाता है, तो कपड़े को धोते हैं या बदल देते हैं क्योंकि खून लग गया। यह अच्छी चीज नहीं है। 

"जो रक्त लगे कपड़े, 
जामा हुए पलीत।
जो रक्त पीवे मानुषा, 
तिन केउ निर्मल चित्त।" 

मीट जिसको कहते हो, उसमें क्या होता है? खून होता है। खून से यह मांस बनता है। अब सोचो कि जो मनुष्य रक्त पीते हैं, उनकी क्या गति होगी? उनके अंदर निर्मलता कैसे आएगी? उनका सिंहासन भगवान के बैठने का कैसे साफ होगा?





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