जयगुरुदेव
*समय का संदेश*
15.11.2024 M
कटनी, म. प्र.
1. *वक्त गुरु परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने सुनाया पूना की जेल में दिये अपने सतसंग का एक संस्मरण।*
34.57 – 36.49
येरवडा जेल पुणे में है। वहाँ पर एक बड़े अधिकारी थे जिन्होंने परम पूज्य महाराज जी को वहाँ बुलाया और जेल में कार्यक्रम कराया। किसलिए कराया? इसलिए कि यह जो अपराध करके आए हैं, जिनका अपराधी दिमाग हो गया है, दिल हो गया है; उनमें बदलाव आ जाए। बहुत बड़ा जेल है। जितने चोटी के नेता हुए हैं, टॉप के लीडर जिनको कहते हैं, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जो कहलाते हैं, उसी जेल में बंद हुए थे। (वहाँ महाराज जी ने सतसंग भी किया और नामदान भी दिया) ।
बाद में एक आदमी (महाराज जी से) मिला, जिसने धीरे से हमसे ( महाराज जी से) कहा कि मैंने आपका सतसंग वहाँ सुना था और अब जब खबर लगी (प्रेमियों ने प्रचार किया) कि बाबा जी का कार्यक्रम है और जब उसने महाराज जी का फोटो देखा तब वो आया और पूछा कहाँ है कार्यक्रम? वह वहाँ पहुंचा और सतसंग सुना। तो आप इस बात को समझो कि बदलाव आता है, बदलाव लाना जरूरी है। आजकल देखो लोगों का दिल-दिमाग खुराफाती हो रहा है, दिल-दिमाग अपराधी हो रहा है, इसलिए ये उपदेश जगह-जगह होने चाहिए।
2. *अभी जो गुलाबी ठंडी पड़ रही है, ये मौसम भजन करने के लिए बहुत अच्छा होता है।*
41.41 – 42.27
आपको गर्मी के महीनों में दो घंटे बैठने में दिक्कत होती है, और इस समय ठंडी में आप दो घंटे तीन घंटे बैठे रहो। अगर आपने रात में भोजन कर लिया हो, तो थोड़ा समय घूमने-टहलने में लगेगा और रात भर बैठे रहो। गर्मी के महीने में क्या होता है, कि गर्मी जब अंदर ज्यादा रहती है तो पचाव कम होता है, पेट खराब हो जाता है। इसलिए कहा जाता है- "रात को एक रोटी की भूख रखकर के खाओ।" इस वक्त पर गुलाबी ठंड पड़ रही है, जो भजन करने के लिए बहुत ही अच्छी है। ये क्वार-कार्तिक के महीने और फागुन-चैत्र के महीने गुलाबी ठंडी के होते हैं।
3. *किन लोगों से दूर और होशियार रहना है ?*
1.43.03 - 1.43.38
ऐसे लोगों से दूर रहो जो तुम्हारी आदतों को बिगाड़ दें, खराब कर दें, जो तुम्हें सत-पथ से अलग कर दें, प्रभु से दूर कर दें, गुरु से दूर कर दें, इस नाम की कमाई से दूर कर दें, ऐसे लोगों का साथ मत करो। वो आपको कुछ नहीं दे सकते हैं। मुंह से बोल के दूध-पूत भले दे दें, लेकिन वो कर नहीं सकते हैं। वो तो यही काम करते हैं, इसी की रोटी खाते, इसी की चाय पीते हैं। "ऐसे लोगों से होशियार रहो!" ये जरूर कहता हूँ।
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1. *जब बच्चे सतसंग सुनते रहते हैं तब फिर वो नहीं बिगड़ते हैं।*
7:35 - 8.20
देखो! माता पिता धार्मिक होते हैं लेकिन बच्चे नालायक निकल जाते हैं। मांस मछली खाने लगते हैं। अंडा खाने लगते हैं। शराब पीने लगते हैं। चोरी, व्यभिचार करने लगते हैं जबकि माता - पिता पूजा पाठ करने वाले, भगवान को याद करने वाले, दान पुण्य करने वाले, जीवों की रक्षा करने वाले होते हैं। लेकिन जब बराबर बच्चों को भी सतसंग में ले जाया जाता है और जब सतसंग बच्चे सुनते रहते हैं तो वो बच्चे फिर नहीं बिगड़ते हैं। इसलिए बराबर बच्चों में भी संस्कार डालना चाहिए। सतसंगों में लाना चाहिए।
2. *अगर वक्त के समर्थ गुरु की दया हो जाए तो जिन चीजों के लिए आदमी दौड़ता रहता है, वो चीजें आसानी से मिल जाएगी।*
17.41 - 19.08
अगर उस प्रभु की दया हो जाए, समर्थ गुरु, वक्त के गुरु की दया हो जाए तो ये चीजें जिनके लिए आदमी दौड़ता रहता है वो चीजें आसानी से मिल जाए। अभी ज्यादा मेहनत करने पर मिलती है फिर वो आसानी से मिल जाएं। कैसे? ये भी बता दें। मान लो कि आपका कोई दस हजार रुपए बाकी है। कई बार गए मांगे, नहीं दे रहा है और आप जा रहे हो और वह रास्ते में मिल गया और कहा कि भाई हमको ये पैसा आ गया, हमें मिल गया है, आप अपना पैसा ले जाओ। रुपया ले जाओ। तब कहोगे कि गुरु की दया हो गई।
भगवान की दया हो गई। इतनी दौड़ भाग करके भी नहीं मिला था और आज देखो ये अपने आप दे गया। बुला कर दे गया कि अरे भाई सुनो सुनो! अपना रुपया ले जाओ तो ऐसा होता है जब उसकी दया कृपा मेहरबानी हो जाती है तब। "अनइच्छित आवइ बरिआईं॥" अपने आप आने लगता है, होने लगता है लेकिन मुख्य चीज ये है कि उस पर विश्वास होना चाहिए। विश्वास अगर नहीं होगा तो कैसे होगा।
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