स्वामी जी के अमृत वचन 1.

⍟ स्वामी जी के अमृत वचन 

1.  कर्मों का बड़ा राज है। तुम्हारी समझ में नहीं आता। गुरु चाहते हैं कि तुम्हारा कर्म कर्जा चुका दिया जाय। उधर माया जोर लगाती है कि कर्म कर्जा दो। इसीलिए यह मन भागता है। महात्मा की बात मानोगे तो धीरे से वो कर्म कर्जा चुका देंगे। इसीलिए तो कहा जाता है कि वचनों का पालन करो।

2.  प्रार्थना अन्तर घाट पर होती है। मन को साथ रखकर प्रार्थना करोगे तो उसकी सुनवाई होगी। मन साथ न दे, अकेली सुरत चिल्लाती रहे तो कुछ नहीं होगा क्योंकि मन ही पर्दा इकट्ठा करता है। इसी पर्दे की इच्छा रखता है, एक मिनट भी उसको (मालिक) याद नहीं आता।

3.  ये पराविद्या है आंखों से ऊपर की। इसको पढ़ाने में महात्माओं को बहुत मेहनत करनी पड़ती है, बहुत परेशानी उठानी पड़ती है, क्योंकि इस विद्या को पढ़ने के लिए संसार को समेटना पड़ेगा। संसार की तरफ से मुड़ना पड़ेगा। यह मुश्किल है क्योंकि तुम दुनिया के लिये ही रोते रहते हो।

4.  सन्त सन्तगुरु ही जो सत्तलोक से आते हैं वो जीवों के सच्चे हितकारी हैं। जिनको तुमने देखा नहीं उनकी भक्ति करते हो। जो कृष्ण के साथ रहे वो सब नर्क को चले गये।

5.  आंखों के ऊपर स्वर्ग बैकुण्ठ में जाने का दरवाजा है। यह दरवाजा सुई के नोक से भी छोटा है, जिसमें से जीवात्मा को गुजरना पड़ता है। अन्तर में बैठकर ध्यान करोगे तब वह दरवाजा दिखाई देगा। सुई की नोक में दृष्टि को पिरोना पड़ता है, उसी में एकाग्र करना पड़ता है, तब दरवाजा खुल जाता है और प्रकाश प्रकट हो जाता है। प्रकाश में देवी देवता सब दिखाई देते हैं। ऊपर में निरंजन भगवान की ज्योति जल रही है जिन्हें ईश्वर कहते हैं, खुदा कहते हैं। इसी ज्योति का प्रकाश तीनों लोकों में हो रहा है।

6.  सन्तमत में सर्वोपरि प्रेम की महिमा है। यदि प्रेम बन गया तो सब कुछ हो गया और यदि गुरु से प्रेम न हुआ तो अभ्यास भी न बन सकेगा। गुरु सदा प्रेम पर जोर देते हैं। मछली का प्रेम जल से, पतिंगों का प्रेम दीपक से, हिरन का प्रेम नाद से, हाथी का प्रेम स्पर्श से, चकोर का प्रेम चन्द्रमा से, कामी का प्रेम स्त्री से। इसी प्रकार सच्चे सेवक का प्रेम गुरु से।

7.  बच्चे! हम तुमको बहुत प्यार करते हैं इतना प्यार करते हैं कि तुम्हारे माता पिता से भी अधिक। अगर प्यार न करते होते तो यह दृष्य दिखाई नहीं देता। प्यार कोई डाली में नहीं फलता है, न बाजारों में मिलेगा। कहाँ मिलता है ? प्यार ऊपर वाला देता है।

8.  मेरे स्वामी जी ने एक बार कहा था कि ‘बेटे, महापुरुषों के कहे हुए कोई भी शब्द कभी व्यर्थ नहीं जाते हैं। एक समय ऐसा भी आता है कि जबकि वही शब्द सुनने वाले के दिल और दिमाग को धक्का मारते हैं।’ मैं जो कुछ भी इस मंच से कहता हूँ मेरा कोई भी शब्द बेकार नहीं होगा। यह है सत्संग का मंच और इस पर बैठकर सच्ची बात ही कहूँगा। न होने वाली और बरगलाने वाली कोई बात नहीं होगी। सत्संग मंच पर वही बैठ सकता है जिसकी दिव्य दृष्टि खुली हो और जिसने सत-असत का ज्ञान कर लिया हो। भेष बनाकर इस मंच पर नाच-गाना करने वालों को भी दोष लगता है।

9.  जब भी ध्यान, भजन, सुमिरन पर बैठो, एक मिनट में सबका नाम लेकर, रूप को याद करके प्रणाम कर लो। सबका नाम लेकर रूप को याद करके मन से अन्दर में प्रणाम करते जाओ। पांचों नामों को एक तरफ से लेकर, याद करके रूप को प्रणाम कर लिया। जब सुमिरन करके उठने लगे तो तब इसी तरह याद करके प्रणाम कर लिया। इससे धनियों की दया जारी हो जाती है। जब भी ध्यान करो, भजन करो तो उस समय नाम, रूप को याद करके प्रणाम कर लो। जब उठने लगे तो फिर प्रणाम कर लिया। यह सच्चा दया पाने का तरीका है। हमने इसको पहले भी बताया था लेकिन तुम्हें याद नहीं रहा।

10.  कलयुग आया तो लोगों का शारिरिक बल खत्म हो गया। अब केवल कुत्तों की तरह गुर्राना ही रह गया। अब लोग बाहर के पर्दों में ताकत जगाते हैं। सिनेमा में, छाया में, चित्रकारी में या नशेबाजी में ताकत जगाते हैं।

11.  हमारे स्वामी जी महाराज कहां करते थे कि मैं तुम लोगों को बराबर देखा करता हूँ। तुम्हारा एक -एक क्रिया कलाप मेरी नजर के सामने रहता है। इसी तरह से हम तुम्हें बराबर देखा करते हैं। हम तुम्हारे पास में रहें तो भले ही तुम थोड़ी ढीला-ढाली सेवा में कर दो, पर हम न रहें तो तुम्हें मुस्तैदी से सेवा करनी चाहिए।

12.  परिवर्तन तो होना ही है। जो बात सत्य है वह सत्य ही रहेगी। आगे यह बात चरितार्थ होगी तब आप बाबाजी को याद करोगे। जिसने यह नर तन दिया है उसके यहाँ माफी का कोई काम नहीं है, जैसा करोगे अच्छा-बुरा वैसा ही तुम्हें भुगतान करना होगा। जैसा तुम करोगे वैसा ही फल तुम्हें मिलेगा। फिर माफी कैसी ? महापुरुष ही करते हैं, ऊपर वाला नहीं करता।

13.  जीवात्मा तो चेतन है और शरीर जड़ है। शरीर चेतन नहीं है वो तो जीवात्मा की चैतन्यता से चेतन हो रहा है। आंख देख रही, वाणी बोल रही, कान सुन रहे, यह सभी अंग चल रहे हैं, रोम-रोम और मन चित्त बुद्धि सब काम कर रहे हैं। जीवात्मा की चेतन्यता से नही तो यह सब मन बुद्धि चित्त अन्तःकरण कान, आंख सब जड़ हैं। 

14.  सब लोग होशियार रहो। अब परमार्थ की दौलत बटने जा रही है। अब सब लोग बहुत ज्यादा आकांक्षा करने लगे हैं। अबकि जब निकलूंगा तो देखिऐगा कि कितनी भीड़ होगी। वह किसी के सम्हाले सम्हलेगी नहीं। जुलाई 2003

15.  अन्तर में आवाज बहुत आ रही है। घन-घोर बाजा बज रहा है। इतनी तेज आवाजें आती हैं कि लगता है कि मस्तक फट जायेगा। उन आवाजों में से घण्टे की आवाज को छांटो और सुनते सुनते उसमें लय हो जाओ। यह आवाज, शब्द या नाम जिसकी महिमा की गई है तुम्हारी जीवात्मा को खींचकर शरीर से अलग कर देगा और प्रकाश में वो फिर खड़ी हो जायेगी। शरीर से अलग होकर वो देखेगी कि ये पांच तत्व का पुतला जमीन पर पड़ा हुआ है। सन्त मत में जीते जी मरने की साधना कराई जाती है।

16.  सब सन्तों का रास्ता एक है। अपने-अपने समय में जो महात्मा आये उन्होंने काम किया। लोगों ने विरोध किया और उनको कोई उखाड़ नहीं सका। वह ऐसा खम्भा है जो इतनी आसानी से उखाड़ा नहीं जा सकता।

17.  जो साधक अपनी साधना की पूंजी को सम्भालकर रखते हैं, अनर्गल प्रार्थना, अन्तर और बाहर में नहीं करते हैं और ये सोचते हैं कि सुख दुःख प्रारब्ध से आते हैं वो ही होशियार और बुद्धिमान होते हैं।

18.  महात्मा अपने संकल्प से कभी पीछे नहीं हटते। वह जीवों को जब पकड़ते हैं तो अन्त तक यही चाहते हैं कि किसी भी तरह से उसका कल्याण हो जाय। पर अगर जीव स्वयं ही उनका भरोसा तोड़ दे और चला जाय तो महात्मा क्या करें।

19.  एक एक बात महापुरुष सबको समझाते हैं, कोई कमी नहीं रखते हैं। जब समझोगे तब समझ में आयेगा। बहुत से लोग उनके निकट रहते हैं। आठ साल, दस साल पर कहते हैं कि हम उन्हें नहीं पहचान पाये। आप मति के मन्द हो, इसीलिए तो नहीं पहचान पाते हो। वह जो कहें उसे ध्यान से सुनो और गुनो। सुनते गुनते समझने लगोगे तब पहचानोगे।

20.  महापुरुष खुश हो जायं तो सत्तपुरुष कुछ भी कर सकते हैं। वो खुश हो गये तो सब खुस हो गये। वह खुश हो जाते हैं तो कर्मों का खाता ही फाड़ देते हैं। इसीलिए वाणी में जो लिखा है गुरु से हघात जो करता है । यह वचन अन्धा गुरु और बहरा चेला के लिये नहीं हैं। यह वचन उन गुरुओं के लिये है जो खुद मालिक को पा चुके हैं और तुमको उनका भेद बताते हैं। ऐसे गुरु के लिए नानक जी ने लिखा है- गुरु की निन्दा नानका, फिर-फिर नरके जाय।

21.  सत्संग में लगो, अपनी आत्मा का कल्याण करो। दुनिया बनाने वाले कितने आये, कितने चले गये, दुनिया जैसी की तैसी रही। तुमने अपने मन बुद्धि और विचार से इसको बनाया, पर बिगाड़ने वाला तैयार है। वह पलक झपकते बिगाड़ देगा। देखा नहीं? भूकम्प आय और एक झटके में लाखों लोग चले गये।


जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट no. 02 में...


swamiji ke amrit vachan

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की गूँजती वाणियाँ

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