✡ स्वामी जी की भूली बिसरी बातें ✡
22. जमुना के उस पार स्वामी जी महाराज का एक प्रेमी रहा करता था। मैं भी उसके पास आया जाया करता था। उसकी एक बार इच्छा हुई कि अलीगढ़ जाकर स्वामी जी महाराज के दर्शन करें। वह अपनी धुन में चल दिया, घर में ताला लगाना भूल गया। उसके घर चोर आया। वह अन्दर गया तो देखा कि एक आदमी बैठा चरखा चला रहा है। वह भाग गया। उसने स्वामी जी महाराज से बताया तो स्वामी जी महाराज ने कहा कि मुझसे पहरा मत लगवाया करो, अपनी जिम्मेदारी समझा करो। कहने का मतलब यह कि पूरा समर्पण हो जाय तो ठीक। गुरु हर तरह से सम्भालते हैं।
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23. मैं राजापुर गया। गोस्वामी जी का गृह स्थान है। मैंने वहां लोगों को गोस्वामी जी का प्रमाण देकर समझाया। अच्छे-अच्छे विद्वान आये थे। तो कहने लगे हमने तो कभी ये समझा ही नहीं। आज हमारी आंख खुल गई। अरे अभी तुम्हारी आंख खुली नहीं है। कुछ दिन लगे रहोगे तब खुलेगी।
24. हर मण्डल में अलग अलग भाषा है। उस मण्डल में वहीं की भाषा बोली जाती है। सुरतों की भाषा तब होती है जब कारण शरीर से सुरतें निकल जाएंगी। सुरतों की भाषा बहुत ही स्पष्ट और साफ है। गुरु हर मण्डल में मिलेंगे। अगर नहीं मिलेंगे तो सुरत को कौन ले जाएगा ? तभी तो कहा है- गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु .....
25. नाम यानी संगीत या आवाज जीवात्मा की जान है। जब वो इसको पकड़ेगी तब तड़प पैदा होगी फिर तो साधक दिन भर रोयेगा, रात में भी रोयेगा। परमात्मा को जिन्होंने भी पाया रोकर ही पाया, मैं भी रोया था। कहा भी है कि- हंस हंस कन्त न पाइया, जिन पाया तिन रोय। हांसे खेले पिउ मिलें तो कौन दुहागिन होय।।
27. परिवर्तन तो होगा ही। इसे कोई रोक नहीं सकता। दुष्टों का विनाश दुष्ट ही करेंगे। आप देखते जाइये कि क्या-क्या होता है।
28. मनुष्य शरीर में एक आटोमैटिक कैमरा लगा हुआ है। वह ऐसा कैमरा है कि वह कभी खराब नहीं होता। वह कैमरा लोहे का नहीं है कि उसमें जंग लग जाये। तुम नहीं जानते हो कि वो कैमरा कहां फिट है पर वह दिन रात तुम्हारे अच्छे बुरे कर्मों की फोटो खींचता रहता है। जब तुम्हारा समय पूरा हो जायेगा और तुम धर्मराज के दरबार में पेश किये जाओगे तब उसकी रील ऑटोमैटिक चलने लगेगी कि तुमने क्या अच्छा क्या बुरा किया, सब दिखाई देगा उसी के अनुसार तुम्हारा फैसला हो जायेगा।
29. सत्तपुरुष जो सत्तलोक में बैठे हैं, उन्होंने ही सारे ब्रह्माण्ड की रचना की है। ये नीचे के सब लोक स्वर्ग बैकुण्ठ आदि उन्हीं की आवाज पर टिके हुए हैं। बीच में और कोई बनाने वाला नही है। इनको न ईश्वर बना सकते हैं, और न ही ब्रह्म और पारब्रह्म बना सकते हैं।
30. ‘नाम कहें, शब्द कहें, आकाशवाणी अथवा ईश्वरीय संगीत कहें सर्वव्यापक है। यह सृष्टि के कण-कण में रमा हुआ है। यह हर मनुष्य की आंखों के बीच में एक मनोहर संगीत और अलौकिक ज्योति के रूप में मौजूद है। ‘नाम’ में ध्वनि और प्रकाश एक साथ मौजूद है। सबके अन्दर वह दिव्य प्रकाश है, जिसमें दिव्य धुन है। आत्मा जब इस धुन को सुनती है तब सच्चा प्यार प्रभु के साथ जाग्रत होता है।
31. मन को रोकने का आधार चाहिए। उसका आधार अन्दर है दोनों आंखों के पीछे उसको रोको। हर प्रकार से मन को समझाने की जरुरत है। अगर इसकी समझ में आ गया और रुक गया तो काम बन जाएगा। मन टिक जाय तो काम बन जाएगा। मन टिक जाय तो सुरत आसानी से शब्द को पकड़ लेगी।
32. गुरु की सीख मानी तो वह सच्चा शिष्य बन जायेगा पर गुरु की बात मानी नहीं और शिष्य बनाने लगे और अपने ऊपर भार लाद रहे हैं। अपना कल्याण किया नहीं दूसरों का कल्याण क्या करेंगे। रामायण में लिखा हैः हरै शिष्य धन शोक न हरई। सो गुरु घोर नरक मंह परई।।
33. आप तीरथ व्रत करते हो पर इसका फल नहीं मिला, रुक गया। क्यों ? क्योंकि आपको अहंकार आ गया। अब आप अहंकार में घूम रहे हो। सच्ची भावना से, सच्ची श्रद्धा से अगर तीरथ-व्रत, पूजा-पाठ करो तब उसका फल प्राप्त होता है।
34. आपको रास्ता मिल गया, इसको छोड़ना नहीं । रोज सुबह - शाम सोने के पहले उठने के बाद सुमिरन भजन ध्यान करना जैसा समय आपके पास रहे। यही आपके साथ जायेगा। यहां से जाना, सबको ये बताना कि भजन करने का आदेश दिया है जो वह (गुरु महाराज ) दे रहे हैं उसे ले लो नही तो उसका मिलना मुश्किल है।
35. राम और कृष्ण कर्म का भोग भोग सकते हैं तो औरों की क्या बात है। तुम कहते हो कि उनको तीर तलवार नहीं लगा होगा। जब वो युद्ध के मैदान में थे तो तीर तलवार उन्हें भी लगा। उसी तीर की पीड़ा में तो कृष्ण ने शरीर छोड़ा। वो तो महात्मा हैं जो सुरत को कर्म बन्धन से अलग कर ऊपर नाम से जोड़ देते हैं।
36. जो लोग नामदानी पहले के हैं वो बूढे़ हो गये। अब मन में पछताते हैं, क्योंकि अब वो आ जा नहीं सकते, भजन नहीं कर सकते, शरीर कमजोर हो गया। इसीलिए तो मैं कहता हूं कि सतसंग में आते जाते रहो, यहां पड़े रहो और भजन में किसी तरह से लगे रहो।
37. हर किसी प्रेमी को खराब संगत से हमेशा बचते रहना चाहिए। खराब संगत में रहोगे तो ध्यान भजन सुमिरन से धीरे धीरे तुम्हारी रुचि हटती चली जायेगी। ध्यान भजन से मन हट जायेगा तो बोझा लद जायेगा। इसीलिए बुरी संगत से बचो और जब कभी ऐसा मौका आ जाय तो ध्यान भजन में ज्यादा समय दो। हर एक प्रेमी को बचना चाहिए। ऐसा अनुभव होता है कि जब संसारी झंझटों में हम आ जाते हैं तो मन मोटा हो जाता है।
38. यह व्रत लो कि जुबां शीरी रखूंगा। जुबां शीरी रहेगी तो आदमी धीरे-धीरे एक बार, दो बार, चार बार समझाने पर बदल जायेगा।
39. तुमको जब आत्मसमर्पण करना है, आत्मधन लेना है तो ले लो। हम बराबर कहते हैं। चकमा देने का हमारा काम नहीं है पर तुम यहां चकमा देने आते हो कि हमारा फायदा हो जाय, इनका नुकसान हो जाय। महात्मा बड़े होशियार होते हैं पर वो किसी को चकमा नहीं देते। समझते सब हैं।
40. समय बड़ा खराब है। अपने बचने का उपाय करो। उपाय यही है कि किसी लफड़े में, पचड़े में पड़ो मत। थोड़ा बर्दाश्त कर जाओ और भजन में लगे रहो। बस अभी समय फिसलने वाला है। गाफिल हुए तो कुए में गिरोगे।
41. तुमने सुना नहीं हैं कि शेरों के झुण्ड नहीं हुआ करते, हंसों की पांत नहीं होती है और सन्तों की जमात नहीं होती है। आज सबकि नियत बिगड़ गई। अब कोई सुखी नहीं है । महात्माओं के पास आप जाते नहीं हो। अब तो घर-घर में आपस ही में लूट-खसोट हो रही है। हमारे पास लोग रोते आते हैं कि लड़का सब लेकर चला गया कि भाई सब लेकर चला गया।
42. किसी भी कौम-जाति में हो इन्सान सब एक हैं। सबमें जीवात्मा है जो उस मालिक की, सत्तपुरुष की अंश है। इसमें कोई भेदभाव नहीं, कर्म के अनुसार जातियां बना दी गईं।
43. सबमें दया होनी चाहिए, रहम होना चाहिए, अपनी तरफ से न कोई मस्जिद है, न कोई मन्दिर है, न कोई गिरजाघर है। यह मनुष्य शरीर ही हरि मन्दिर है, जिसमें परमात्मा निवास करता है। वह कैसे मिलेगा इसका भेद महात्मा ही बताते हैं। कोई राजनीतिक बात मत करो। जब राजनीतिक कोई बात नहीं करोगे तो सब तुम्हारी बात सुनेंगे ख़ामोशी के साथ और सोचेंगे।
44. धर्म एक है और वह है जीवात्मा के साथ जोड़ना, जीवात्मा सत्तलोक से आई थी और वो वापस अपने घर में पहुंच जाय यही असली काम है। नाम के द्वारा जीवात्मा नीचे उतारी गईं थीं और नाम की डोर पकड़ कर ही वो ऊपर अपने घर में जा सकती हैं। इस कलयुग में महात्माओें ने यह काम आसान कर दिया है। ब्रह्म के ऊपर पारब्रह्म पद है। वहां मानसरोवर है जहां हंस रहते हैं। हंसो की शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता । वहां की भूमि अति प्यारी लगती है। मान सरोवर में स्नान करने के बाद सुरत (जीवात्मा) अपने वास्तविक रूप में आती है। वहां नूर ही नूर है, प्रकाश ही प्रकाश है। सारा का सारा मण्डल प्रकाश से भरा है।
45. सेवा करके लोग बाजी मार लेते हैं। इस बात को तुम समझते नहीं हो। तुम सबके यहां खा लेते हो। विचार तो रखना ही चाहिए।
46. नामदान सामने बैठकर लेना चाहिए। दृष्टि से प्रणाम करो। दृष्टि की धार बहुत तेज होती है, जन्मों जन्मों के कर्मों को साफ कर देती है।
जयगुरुदेव
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बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की गूँजती वाणियाँ |
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