जयगुरुदेव ✶ स्वामी जी की हिदायत ✶
77. अक्सर लोग पूछते हैं कि बाबाजी का उद्देश्य क्या है। वो आते हैं देखते हैं तब उनकी समझ में थोड़ा आता है और वो नामदान लेने की इच्छा प्रकट करते हैें। असल चीज यह है कि जब तक सच्चे महापुरुष रहते हैं तभी लोगों को मालूम होता है कि उनका उद्देश्य क्या है। बाद में तो लकीर के फकीर रह जाते हैें।
आप लोगों को सुमिरन ध्यान भजन की विधि बताई गई आप करते रहो। आप खेती करने जाओ, दुकान दफ्तर जाओ, भोजन करो या पानी पिओ कुछ सेकेण्ड के लिए आंखें बन्द करके धनियों को याद करो। इस तरह से याद करते रहोगे तो उनकी दया बराबर तुम पर होती रहेगी।
78. अपने मन की निरख परख करते रहो। इस मन को मनाना पड़ेगा। धीरे-धीरे मनाते मनाते मान जायेगा। जब मन सुरत का साथ देगा तब यह नाम को पकड़ लेगी और सत्तलोक पंहुचकर चेतन भण्डार में मिल जायेगी। मन का स्वभाव है- उछल कूंद करना। यह खाली नहीं बैठ सकता। जब इसे अन्तर घाट पर अमृत पीने को मिलेगा तब चुप हो जायेगा।
79. मैं पहले जब कहता था कि चण्डी घूम रही है, ये सबका धन गायब करेगी तब किसी की समझ में नही आया। अब सब लोग आकर कहते हैं कि पैसा पता नहीं कहां चला जा रहा है। चण्डी देवता है जो इन आंखों से दिखाई नहीं देगा। यह धन गायब करेगा, अन्न की कमी होगी और फि राष्ट्राध्यक्षों की खोपड़ी पर बैठकर युद्ध करा देगी।
80. जो कर्म किया है आपने वह तो आपको भोगना ही पड़ेगा। अब ऐसा करो जिससे कर्मों से छूट जाओ। रोग में दुःख में मालिक को याद किया तो क्या किया। सुख में भूल गये। चाहिए तो यह था कि सुख में याद करते, दुख मे भले ही भूल जाते। सुख में याद करते होते तो दुख होता ही क्यों ?
81. अपने अधिकार का सदुपयोग करें तो कोई अड़चन नहीं। दुरुपयोग करते हो वहीं अड़चन बनती है। मनमुख जितने होते हैं वो जीती वाजी हार जाते हैं। जो चित्त से चेतकर सतसंग सुनेंगे वो अपना काम करेंगे।
82. लोग हमसे पूंछते हैं कि महाराज कब घण्टा बजेगा, कब आरती होगी। मैं उनसे कहता हूं कि यह तुम्हारा शरीर ही मन्दिर है इसमें जीवात्मा बैठी हुई है, इसी में आरती होती है इसी में घण्टा बजता है। वो पूछते हैं कि कैसे बजेगा तो उनसे कहा जाता है कि आओ बैठो तुमको बताया जायेगा।
83. महात्मा जब चुप हो जायं तो समझ लो खतरा होने जा रहा है।
84. महात्माओं ने जो देखा वही तुमको बताया। जो उन्होने देखा वो इन आंखों से नहीं दिखाई देगा। दुनिया कमाने में आपने शरीर को खराब कर दिया फिर भी पूरा नहीं पड़ा। मरने के बाद आपकी जीवात्मा नरकों में जायेगी। एक नहीं अनेक नरक हैं। आप उनकी बात नहीं मानते हो।
85. तुम आदत डाल लो। तीन घण्टे में नींद पूरी हो जाती है। बहुत हुई तो चार घण्टे। फिर भजन करो तो भजन करते करते नींद खत्म हो जाती है। अपनी आदत डाल लेना है।
86. सारा हिन्दुस्तान जयगुरुदेव नाम को जान गया। तुम लोग शंका में पड़े थे कि आदमी का रास्ता है और बहक गए। खैर फिर भी दया लेने के लिए अवसर मिल रहा। तुम आओ अपने गुनाहों की माफी भी कराओ और दिल से प्रार्थना भी करो।
87. आप चाहे जिसका भी खा लेते हो उसका असर तो पड़ता ही है। मन खराब, बुद्धि खराब, चित्त खराब पर आप सब माया के सामानों में चिपके रहे जैसे मक्खियां मैले पर गिरती हैं। अब शरीर बूढ़ा हो गया और परेशानियों ने चारों तरफ से घेरा डाल दिया। अब सब लोग परेशान हो, चिल्ला रहे हो। समय रहते जो चेत जाता है वह अपना काम कर लेता है।
88. हम जो करेंगे और तब कहेंगे तब उस बात का असर दूसरों पर होगा। हम कहेंगे और करेंगे नही तो उसका असर दूसरों पर नहीं होगा।
89. यह ठीक है कि देश में हत्यायें हो रही हैं, कत्ल हो रहे हैं, अराजकता फैली हुई है और जो लोग इनमें फंसे हुए हैं उनके दिल में भावना उठती है कि हम भी अच्छे लोगों की पंक्ति में आ जायं। जो सत्ता में हैं उनको समझना चाहिए। अधिकारियों को जजों को अधिकार है माफ करने का। यहां कितने लोग आये जो गुनाहगार थे और उन्होंने अपना आचरण बदल दिया साधु बन गये। इसी तरह महात्मा देश को बदल सकते हैं। ऐसे धर्म के सन्देश जगह-जगह होने लगें तो सब बदल जायेंगे, देश बदल जायेगा। आज इस चीज की जरूरत है। पक्ष-विपक्ष दोनों को ऐसे सन्देश सुनने चाहिए और दोनों को बराबर फायदा होगा।
महात्माओं की बातों को मानने में सबकी भलाई है।
90. मेरी एक बात याद रखना तुम चाहे जितना इकट्ठा कर लो, कोई कोर कसर न छोड़ना मगर जब यहां से जाने लगोगे तब अकेले ही जाओगे। सब सामान और यह शरीर भी तुमसे यहां रखवा लेगा।
91. मन सुरत का दुश्मन है। यह कभीनहीं चाहता कि सांसारिक भोगों को छोड़ूं। कभी स्त्री पर मोहित हो जााय, मां पर मोहित हो जाय, बहन पर मोहित हो जाय या किसी और पर मोहित हो जाय। इसका काम सदा गिराने का है।
92. मैं सत्संग करते करते परिवर्तन कर दूंगा, परिवर्तन निश्चित है इसे कोई रोक नहीं सकता।
93. रोज, नित्य सतसंग के वचनों को याद करो। शील स्वभाव बनाये रहो, आने वाले विचित्र समय की प्रतीक्षा करो साथ ही हर रोज सुरत शब्द की कमाई में लगे रहो।
94. परिवर्तन अवश्य होगा। रात में कुछ और सबेरे उठोगे कुछ और देखने को मिलेगा। शाकाहारी हो जाओ और अपने गुनाहों की माफी करा लो। परीक्षा करके तो देखो। सच्चे दिल से एक बुराई को छोड़ोगे तो एक मनोकामना पूरी होगी। वक्त अच्छा बिल्कुल नहीं है। समझने में तो माफी है और वक्त निकल गया तो सजा अवश्य मिलेगी।
95. तुम बराबर अन्दर और बाहर प्रार्थना करते रहो तो आलस और सुस्ती चली जायेगी। तुम कहते हो कि सब काम मैंने किया उसमें तुम्हें आलस नहीं तो भजन भी तुमको करना है। मन को भी तुमको ही रोकना है, उसमें तुमको आलस है।
96. राज्य भी चलता है तो फकीरों की सलाह से । मुसलमान फकीरों से नहीं टकराये तो सात सौ साल तक राज्य किया। छोटे-छोटे राजे-महाराजे थे उनको बड़ा अहंकार था। वो चाहते तो महात्माओ से काम ले सकते थे।
97. भजन में सुस्ती मत करो। सुस्ती से बड़ा नुकसान होता है। सतसंग और सेवा में सुस्ती नहीं करनी चाहिए। तुम्हारी सेवा को महापुरुष भजन में बदल देते हैं। भजन जो तुम करते हो उसका लाभ तो तुमको मिलता ही है। आलस छोड़ो तभी काम बनेगा।
98. नामदान लेने के बाद यदि तुमने मांस का सेवन किया तो भारी पाप लग जायेगा और उसकी माफी हरगिज नहीं होगी। जानवर तो पक्षी हो या मछली हो सबमें जीवात्मा है और तुम्हे हत्या लग जायेगी।
99. इस आसमान के ऊपर स्वर्ग है फिर आगे बैकुण्ठ लोक है। वहां बहुत खुशबू है। यह संसार खुशबू का समुद्र बना दिया जाय तो स्वर्ग के खुशबू की एक बूंद यहां की सारी खुशबू को खत्म कर देगी। इतनी सुगन्धि है उन लोकों में।
100. बाबा जी आपके बीच में सन् 1952 से घूमते रहे और घूम रहे हैं, और जब तक किराये का मकान यह खाली नहीं होता तब तक आपके बीच घूमते रहेंगे।
स्वामी जी के अमृत वचन
101. जब तुम्हें नाम भेद मिल जाये तो जितनी भी साधना करो, वह कम है। चौबीस घण्टे भजन में बैठे रहो तो भी कम है। हम यह नहीं समझ पाते हें कि असली काम क्या है और हम किसलिए यहां भेजे गये। जब कोई समझाता है तो हम समझने की भी कोशिश नहीं करते ।
102. गुरु के पास रहने वालों को बड़ी सावधानी से रहना चाहिए। दूर रहने वालों की तो माफी हो जाती है पर पास रहने वालों की गलती की माफी नहीं होती।
103. यह माया का देश है वह सबको नचा रही है। मन की डोरी माया के हाथ में है। चाहे जैसी भी औरत हो उसका भूलकर कदापि विश्वास नहीं करना चाहिए।
104. बुद्धि जड़ है, मन जड़ है, शरीर जड़ है, जीवात्मा चेतन है और उसी की चेतना से ये सब काम करते रहते हैं। चेतन जीवात्मा ही चेतन परमात्मा को प्राप्त कर सकती है। वह मालिक चेतनता का समुद्र है और जीवात्मा उसकी एक बूंद। बूंद जब तक सागर में जाकर नहीं मिलेगी तब तक ये दर दर मारी मारी भटकती रहेगी, जीवात्मा को सच्चा सुख और आनन्द नहीं मिलेगा।
105. जैसा बताया गया है सुमिरन ठीक से करना चाहिए। जितना ठीक से सुमिरन करोगे घाट के पर्दे उतने ही जल्दी खुलेंगे और अन्तर में प्रकाश प्रकट हो जायेगा। सुमिरन ठीक होगा तो ध्यान ठीक होगा और भजन भी ठीक होने लगेगा।
106. अब विश्व को भारत जगाने जा रहा है। महात्माओं की शरण में जाने पर ही जीव का कल्याण होगा।
107. नाम नहीं मिलेगा, शब्द की कमाई नाम लेने के बाद नहीं करोगे तो जन्म मरण का चक्कर नहीं छूटेगा। नाम की कमाई करोगे तभी बचोगे। नाम की कमाई नहीं करोगे तो नर्कों में चौरासी में जाना पड़ेगा। नाम को पकड़ लोगे तब बच जाओगे। आधार को पकड़ लो और यहां से निकल चलो, ऊपर में सुन्दर सुन्दर देश हैं, बाग बगीचे हैं, नदियां पहाड़ हैं, देवी देवता हैं, सबसे मिलो।
108. मरने के बाद सब अशुद्ध हो जाते हैं चाहे इंसान हो, गाय हो , बैल हो, पक्षी हो या और कोई हो। मुर्दे को ले जाकर जलाते हो, गाड़ते हो फिर नहाते हो पूजा पाठ करते हो तब शुद्ध होते हो। इसी प्रकार जानवर भी मुर्दा हो गया, समय के पहले उसे काट दिया तो प्रेत हो जायेगा और लोगों को परेशान करेगा।
109. महापुरुषों के हर काम में कोई न कोई मतलब होता है। वो चुप भी रहें तब भी कोई मतलब होता है। तुम्हे यह सोचना चाहिए कि जो कुछ होगा वह तुम्हारे हित में होगा। तुम उनकी निगाहों के सामने पड़ते रहो। वो चाहें चुप रहें चाहें कुछ सुनावें।
जयगुरुदेव
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परम पूज्य स्वामी जी महाराज swamiji ke amrit vachan |
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