आपने जब घर को ही नरक बना दिया तो बाहर कौन सा सोना बरसा दोगे । स्वामी जी के अमृत वचन 5.

◊ बाबा जी ने फरमाया ◊

110.  पहले के समय में लोग सबका पानी नहीं पीते थे। बड़ा विचार मानते थे। अब तो सब घर का पानी पीते हैं। अगर न पिओ तो फट से सजा मिल जायेगी। ऐसा कानून बना दिया गया। तुम वैसे के वैसे ही रह गये कुछ न कर सके।

111.  स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि यह ऐसी विद्या है कि अगर प्रेम हो गया तब तो लग जाओगे और प्रेम नहीं हुआ तो यहां ठहर ही नहीं सकते। तो यहां पर आये हो, बैठ गए तो बुद्धि से काम लो। मन भाग रहा है उसे धीरे-धीरे रोको। उसकी बैठक बना लो। बस बैठक बनाने की बात है, फिर वह कहीं नहीं जायेगा।

112.  सुमिरन ध्यान भजन नित्य से करो। कभी नागा मत करो। जिस दिन नागा हो जाय उस दिन शाम का खाना मत खाओ। यह सोच लो कि जब तक भजन नहीं कर लूंगा, रोटी नहीं खाऊंगा। दूसरे दिन दूना समय भजन में दे दो।

113.  आपने जब घर को ही नरक बना दिया तो बाहर कौन सा सोना बरसा दोगे। आज हर घर में झगड़ा मचा है। तुम्हें महात्माओं की सच्ची बात सुननी चाहिए। उनके वचन सच्चे, उनका रहन सहन सच्चा, उसको समझना चाहिए।

114.  कबीरदास से लेकर आज तक कोई ऐसा प्रेमी नहीं हुआ जो बिना गुरु आदेश के नामदान दे दे। लेकिन जो मनमुख हो गये उन्होने अपना काम तो किया नहीं दूसरों का क्या करेंगे। ऐसे मनमुख पहले भी थे।

115.  जिसकी पंहुच (सत्तलोक) वह नामदान नहीं देना चाहता क्योंकि वह देखता है कि नामदान देने में कितनी मेहनत होती है और कितनी झन्झट है। जो मनमुख हैं वे इन्द्रियों के घाट पर बैठे हैं। आपके सतसंग में भी ऐसे लोग हैं, नामदान ले लिया पर कमाई कुछ नहीं वो दूसरों को नामदान देने लगे फिर वो कल्याण क्या करेंगे। यह जरूर सोचना चाहिए कि यह काम सबसे खराब है, इससे खराब कोई काम नहीं।

116.  यह शरीर पुराना हो जाय, रोगी हो जाय तो मां-बाप घर वाले यह सोचने लगते हैं कि यह चला जाय तो अच्छा है। खुद वह भी सोचने लगता है कि इस तकलीफ से तो अच्छा है मर जाऊं। कई आदमी तो ऐसे होते हैं जो चुपचाप गोलियां खा लेते हैं, मर जाते हैं, प्रेत योनि में चले जाते हैं। खुद दुःखी होते हैं और दूसरों को भी दुःखी करते हैं। ऐसे ही हैं कोई किसी का नहीं। आप इस बात को समझते नहीं हो।

117.  मैं कितना चिल्लाकर कहता हूं कि समय से आ जाओ और भजन पर बैठ जाओ। तुम आंख खोले बैठै रहोगे मैं आऊंगा तो खड़े हो जाओगे तो तुम क्या करोगे। एक भी बात नहीं सुनते हो, न समझते हो। इधर से उठे फिर जल्दी से हमें संसार दे दीजिए, बीमारी दूर हो जाये, बच्चा हो जाय, भजन की कोई बात नहीं। इसी में तो सारी दुनिया फंसी रो रही है। तुम भी उसी में फंसे हो तो सत्संग में आने का फायदा क्या ?

118.  आप अच्छा काम करो तो घर परिवार अच्छा चलेगा। घर में बेईमानी की तो वहां झगड़ा हो जायेगा। ईमानदारी की जरूरत सब जगह है। धर्म में, जातियों में, समाजों में स्कूलों में, राज्य में सब जगह ईमानदारी और मेहनत की जरूरत है। बेईमानी हो गई तो झगड़ा होगा। इसीलिए तो आज चारों तरफ झगड़े मचे हुए हैं।

119.  जिन लोगों ने निर्मलता के काम किए, योग किया, तपस्या की तब भी उनका मन नहीं जागा, जरा में फिसल गया तो आप तो निर्मलता के काम ही नहीं करते हो तो आपका मन कैसे जागेगा ? मन बड़ा ताकतवर है, इतनी आसानी से काबू में नहीं आता जब इसे आधार मिलेगा तब जागेगा।

120.  आज से पचास साल पहले बहुत अच्छा समय था। लोगों में बड़ा प्यार और सेवा की भावना थी, बहुत नम्रता थी। अब तो उसका नामों निशान भी नहीं है। आपने दूसरे की नकल कर लिया, अपनी अच्छी चीजों को फेंक दिया, आपको मिला क्या ? 

121.  हम जो करेंगे और तब कहेंगे तब उस बात का असर दूसरों पर होगा। हम जो कहेंगे और खुद नहीं करेंगे तो उसका असर दूसरों पर नहीं होगा। आज देश में हत्यायें हो रही हैं, कत्ल हो रहे हैं, अराजकता फैली हुई है। जो लोग इसमें फंसे हैं उनके दिल मे भी यह भावना उठती है कि हम लोग भी अच्छे लोगों की पक्ति में खड़े हो जायं। जब उनको ऐसा किसी का साथ मिल जायेगा वो अच्छे बन जायेंगे।

122.  आज दून दे रहे हैं। दून बंट रही है, दून मतलब सौ दे दो, दौसौ ले लो। अच्छा दो सौ दे दो, चार सौ ले लो, अच्छा चार सौ दे दो, आठ सौ ले लो। मिलना मिलाना कुछ नहीं दून लेते जाओ। मिलेगा तो मेहनत और मशक्कत की कमाई से। आपने महात्मा की चीज तो फेंक दी इधर लोभ लालच में फंस गये। मुफ्त का माल काम आने वाला नहीं वह तो नाश कर देगा।

123.  मेहनत मशक्कत की कमाई से बरक्कत मिलती है। बरक्कत आत्मा का सहयोगी धन है। यह स्वार्थ और परमार्थ दोनों और काम करती है। पहले लोग कहा करते थे कि बाबा जी ने गरीबों को इकट्ठा किया है। आप घुमा न लो इन लोगों को ? अब वही लोग जो गरीब कहे जाते थे, मोटर गाड़ी में घूमते हैं तो लोग अचम्भिच होते हैं।

124.  समझ-समझकर ठोंक ठोंक कर मन को इधर से हटाओ। इसको समझाते रहो कि तू देख कि जो तू इकट्ठा कर रहा है वह तेरे काम आएगा कि नहीं। समझाते रहो मन को और जो छोटी बड़ी सेवा मिल जाय उसे करते रहो तो ये मन हटेगा और भजन में लगेगा। जो भी तुम सेवा करते हो वो सब तुम्हारे भजन में जुड़ जायेगा। इतना ही नहीं प्रचार के समय जो लोग तुम्हारी मदद करेंगे वो नामदानी हों न हों सबको उसका फल मिलेगा और अगर इधर आ गये तो वो भी भजन में लग जायेंगे। उन्हें रास्ता बताया जायेगा। 

125.  सतसंग में जब तुम आओ तो चुप चाप बैठो रहो और ध्यान से वचनों को सुनते रहो। वो महापुरुष सबकी बात कह देगा। सब लोग कुछ न कुछ मन में लेकर बैठते हैं। तुम अपनी बात पकड़ लो। वह इशारे में कहेगा। खुल्लम-खुल्ला कह दे तो उठकर चले जाओगे कि हमारे बेइज्जती कर दी।

126.  देश का हाल बुरा होने जा रहा है क्योंकि जिम्मेदारी से सब मुक्त हैं। जनता को जो अपना चाहेगा वहीं देश को खुशहाल कर जनता को ख़ुशी रखेगा, चरित्र निर्माण ही देश की प्रेम भक्ति है तथा जनहित ही श्रद्धा है।

127.  दया इन्द्रियों के द्वार पर नहीं उतरती है वह सुरत के घाट पर उतरती है। वहीं दया मांगनी चाहिए, उसी के लिये लगे रहना चाहिए।

128.  मनुष्य शरीर में दोनों आंखों के पीछे दीवार है। उस दीवार के पार से देवलोक शुरु हो जाते हैं। जहां कभी अंधकार होता ही नहीं। देवी देवताओं के रूप इंसानों जैसे हैं, किन्तु यह भौतिक शरीर नहीं है। वहां सदा आनन्द बरसता रहता है।

129.  कुछ ऐसे मनचले भक्त भी होते हैं जो समझते हैं कि मैं कुछ जानता ही नहीं और सबको पीछे छोड़कर आगे कूंदने की कोशिश करते हैं। मैं समझता तो सब हूं मगर यही सोचकर चुप रहता हूं कि धीरे-धीरे वे सम्हल जायेंगे, चेत जायेंगे।

130.  तुम गुरु से पर्दा मत रखो। हमेशा यह सोचते रहो कि वो सबकुछ देखते हैं। सब कुछ जानते हैं। जब ऐसा सोचते रहोगे तो बुराईयों से बचते रहोगे और सोचोगे कि उन्हें कुछ नहीं मालूम तो धोखा खा जाओगे और फिर कुछ नहीं कर सकते और सच्चे रास्ते से गिर जाओगे। इसीलिए कोई कपट मत रखो।

131.  आपका सच्चा हितैषी भगवान है और कोई नहीं। भगवान के रास्ते पर चलो तो वह हर कदम पर तुम्हारी मदद करेगा।

132.  जो रक्षा करता है उसमें भगवान का अस्तित्व आ जाता है। जो जुल्म करता है उसमें भगवान का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।

133.  तुम संसार मांगते हो। यह कोई महात्मा की कृपा थोड़े ही है। महात्मा की तो कृपा है कि वो नामदान दें, रास्ता बता दें, तुम ध्यान-भजन में लगो और उनकी कृपा अपने अन्दर में लेते चलो।

134.  आगे महंगाई इतनी आ रही है कि दुकान दार खाली बैठै रहेंगे और ग्राहक नहीं आयेंगे।

135.  सरकार को ऐसी योजना बनानी चाहिए कि हड़ताल, तोड़फोड़ खत्म हो जाय। उद्योग लगाने के लिये विदेशी कम्पनियों को सरकार न बुलाये। जो सुविधा उनको देनी है वो भारत के व्यापारियों को दे दी जाय तो स्कूल से निकलने वाले बच्चों को वे काम दे सकते हैं।

136.  जो कर्जा तुमने विदेशों से लिया है कोढ़ है और मुल्क को खतम कर देगा। किन शर्तों पर कर्जा तुमने लिया यह जनता को कभी नहीं बताया।

137.  जो भगवान के भजन का रास्ता तुम्हें बताया गया है, उसमें आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक सब प्रकार का बोध होगा। तुम्हें यह मालूम हो जायेगा कि किन किन योनियों में भटकने बाद यह मनुष्य शरीर मिला है।

138.  कुदरत सजा देने जा रही है, लेकिन अब भी महात्माओं की बात लोगों ने मान ली तो उनकी बचत हो जायेगी।

139.  संगत का पैसा जो कोई अपने निजी हित में खर्च करेगा तो वह फली भूत नहीं होगा।

140. मुझे सब मालूम है कौन क्या करता है। तुम्हें जो काम दिया गया है उसे करो। जितना काम दिया जाय उतना ही करो। बढ़ा चढ़ाकर मत करो।

141.  सभी प्रेमियों द्वारा ‘शान्ति स्थापना’ के कार्यक्रम निरन्तर चालू हैं। इसमें सुस्ती करने की जरूरत नहीं है।

142.  भजन में तरक्की हो इसलिए तुम्हें अच्छे लोगों का साथ करना होगा। तुम अपने साथी का परमार्थ के रास्ते पर मोड़ने में अधिक समय बर्बाद मत करो। वक्त आने पर वह भी मुड़ जायेगा। तुम्हें अपने को देखना चाहिए कि तुम कितना गुरु की आज्ञा का पालन करते हो। जो गुरु के वचनों का पालन नहीं करते, उनका उद्धार कभी नहीं होगा। 

इस बात को बराबर याद रखो कि जो मनुष्य अपनी मान बढ़ाई के लिए नाना प्रकार के यत्नों से ऊपर उठना चाहता है और गुरु के वचनों की अवहेलना करता है और प्रेमी सतसंगी भाई बहनों पर हुकूमत करना चाहता है। वह व्यक्ति सबकी निगाहों से गिर जाता है। ऐसे लोगों का जम के फन्दे से छुटकारा नहीं हो सकता। तुम अपना काम करो और अपने आत्म-कल्याण की चिन्ता करो। दूसरे क्या करते हैं इसकी चिन्ता मत करो। 

हर रोज समय कम होता जा रहा है, इसकी चिन्ता करनी चाहिए। भजन का समय निश्चित करो और रोज भजन करो। सुमिरन और ध्यान अलग। नियम बना लो और उसका पालन करो तो भजन-ध्यान बनने लगेगा। कमी तुम्हारे अन्दर है। गुरु तो दया करना चाहते ही हैं, किन्तु तुम दया को ले नहीं पाते हो।

143.  ध्यान जब चारों तरफ फैला रहेगा तो उसे एकत्र करके एक जगह लाने में कठिनाई होगी। भजन हो या ध्यान हो कोशिश इस बात की करनी चाहिए कि मन स्थिर रहे। अगर सुमिरन के समय मन भटकता रहता है तो यह उतने समय की बर्बादी है। आपका कहना है कि दो घण्टा का समय साधना में रोज देते हैं तो इससे कुछ नतीजा तो निकलना चाहिए पर ऐसा नहीं हुआ। इसका साफ मतलब है कि भजन के समय मन अन्दर नहीं ठहरता है बल्कि बाहर भटकना शुरु कर देता है।

कहने का मतलब है कि आप सुमिरन के समय मन को रोकने की कोशिश करें। मन के रुकने के बाद ही अन्तर में कुछ दिखाई पड़ेगा और सुनाई पड़ेगा। यह मन युगों-युगों का भूला हुआ है और इसे धीरे-धीरे समझाने की कोशिश करना चाहिए। मन का स्वभाव है कि चलायमान रहना और स्वभाव में बदलाव तभी आयेगा जब नियम से रोज बैठेंगे और इसको पकड़ने की कोशिश करेंगे। धीरे-धीरे यह आपका साथ देने लगेगा और इसमें टिकाव आयेगा तब अन्तर में गुरु का जलवा दिखाई देगा। अन्तर जगत में प्रवेश होने पर जब गुरु का दर्शन होगा और उनसे बातचीत होगी तभी सभी दुःखों का अन्त होगा।

जयगुरुदेव

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