✦ स्वामी जी के संस्मरण ✦
कानपुर 19 सितम्बर। यहां किदवई नगर में जयगुरुदेव बाबा ने पूछे जाने पर बताया कि कारण बनने के वर्ष 72 में ही कुदरत ने अपने हाथ में डण्डा ले लिया था। मैंने देखा कि एकाएक मार पड़ने पर बेचारे भूले जीव मर जायेंगे तो तुरन्त मैंने भगवान से प्रार्थना किया कि अपने बच्चों पर रहम करो। आखिर ये तुम्हारे ही बच्चे हैं जो तुम्हें भूल गये हैें। इनके कानों को धीरे धीरे उमेठो ताकि इनहे होश तो आ जाये और पाप कर्मों को छोड़ दे।
बाबा ने आगे बताया कि लोगों ने मेरी बातों को नहीं माना और मांस, शराब, घूस, अण्डा, अनाचार आन्दोलन तोडफोड़ आदि को बन्द नहीं किया तो उन्हें अपने कर्मों का भयंकर दण्ड मिलेगा तथा फिर उन्हें कोई बचा नहीं सकता है। भारत के सभी प्रान्तों के सत्संगी एवं अन्य लोग जो सत्संग में रुचि रखते हैं।
1 जनवरी 73 को अपने अपने घरों पर जयगुरुदेव का झण्डा लगायेंगे। झण्डा सफेद कपड़े का होगा और उस पर लाल रंग से जयगुरुदेव लिखा रहेगा। इसकी माप दो से कम नहीं होनी चाहिए, अधिक जितनी चाहे बनवा सकते है। सभी केन्दों पर लोग एक साथ झण्डे बनवा लें और पास के गांव में वितरित कर दें। जो भी उचित मूल्य हो उसे ले लें। यह काम अभी शुरु कर दें।
➤ स्वामी जी ने कहा कि विदेषी बैंकों में एक एक आदमी का इतना रुपया जमा है कि राजाओ के खजाने में भी इतना रुपया नहीं था इसलिए देश गरीब हो गया।
➤ बाबा जी के पास कोढ़ी है। जिस दिन वो फेंक देंगे फिर तुम सांप की तरह भागते हुये चले आओगे।
➤ तुम्हारी नस नस को मैं जानता हूं। तुम्हारी हर फितरत को मैं जानता हूं। अगर ऐसा न होता तो इसमें ऐसे लोग बैठे हैं जो मुझे दिन में सौ बार खरीदते और सौ बार बेच देते।
➤ बाबा जी खेतीहर हैं। आश्रम के खेतों में बैठकर हंसिया से फसलें काटते हैं। बोझा ढोते हैं और जानवरों को चारा पानी भी देते हैें। उधर से जब इधर आते हैं तो मंच पर बैठकर यह उपदेश भी करते हैं आश्रम में कोई भी आवे भूखा नहीं लौटता है।
➤ बाबा जी आलू भी खूब पैदा करते हैं और कोल्ड स्टोर में रख देते हैं। साल में भण्डारे पर एक बार जब तुम जाते हो तो तुम्हीं लोग डटकर खाते हो।
➤ मेरा भेद तुम क्या ले सकते हो ? आश्रम पर लोग आते हैं, रहते भी हैं और खाते भी हैं मगर बाबा जी की खोपड़ी में क्या है उसे हवा भी नहीं जान पाती है तो तुम क्या पता लगा पाओगे। चौबीस घण्टे बीस वर्ष तक बराबर मेरे आगे और पीछे लगे रहो फिर भी तुम मेरा भेद नहीं ले सकते हो। अगर दीन भाव में पूछो तो मैं सब कुछ बताने को तैयार हूं।
➤ जो सबसे अच्छे किस्म के आदमी होते हैं वे शासन में चले जाते हैं, दोयम किस्म के लोग व्यापार में लग जाते हैं और जो थर्ड क्लास के आदमी होते हैं वे राजनीति में भाग लेते हैं।
➤ मंत्री लोग 10 - 10 लाख रुपया ठेकेदार से मांगते हैं और वह देता है। रेट खूब बढ़ाकर वह बिल बनाता है और पास भी हो जाता है। क्या देश कभी उन्नति कर सकता है ?
➤ किसानों को सौ रुपया दिया जाता है और पांच सौ रुपया कागज से छील कर रख दिया और वह बेचारा तड़प् रहा है।
मैं शिवनेत्र खोलता हूं
गोरखपुर 16 अक्टूबर। यहां टाउन हाल के समीप गांधी पार्क के सामने एक लाख से ऊपर लोगों की भीड़ से स्थान ठसाठस भर गया। मंत्र मुग्ध होकर सभी पढ़े अनपढ़े सुनते रहे। स्वामी जी ने बताया कि मैं इन्हें सत्य का बोध कराता हूं। ऋषियों ने तपस्या करके जो ज्ञान हासिल किया उसका बोध कराता हूं। मैंने इनके शिवनेत्र खोले हैं। इनकी आत्मायें स्वर्ग बैकुण्ठ में आती जाती हैं। मैं इस दुनिया में इनके साथ हूं और मरने के बाद भी इनके साथ रहूँगा। मेरा इनसे प्रेम है और इनका मुझसे प्रेम है। तब ये खिंचे हुये अपनी खेती गृहस्थी व्यापार के काम छोड़कर भागे चले आये। मेरा यह अध्यात्म का, स्वधर्म का, आत्माओं का, परमात्मा से मिलने का, सुरत को नाम से जोड़ने का प्रचार है।
स्वप्न सच्चा होगा
लखनऊ 1 नवम्बर। यहां पटेल नगर में लोगों के पूछने पर जयगुरुदेव बाबा ने बताया कि मेरा स्वप्न कभी गलत नहीं हो सकता है। रावण जब सीता को लंका में ले गया तो उसने बहुत डराया धमकाया कि राम को भूल जाओ और मेरी बात को मान लो। त्रिजटा राक्षसी को समझाने बुझाने के लिए सीता के पास छोड़ दिया। त्रिजटा ने रात्रि में स्वप्न देखा कि एक बन्दर आया है और उसने बाग बगीचे को तहस नहस कर दिया है, सोने की लंका को जला दिया है और राम ने रावण का वध कर दिया है।
दूसरे दिन प्रातःकाल त्रिजटा ने वाटिका की सभी राक्षसियों को बुलाकर अपने स्वप्न को सुनाते हुये कहा कि तुम लोग सीता का साथ दो इसी में तुम्हारी भलाई है।
जयगुरुदेव बाबा ने आगे हंसते हुये कहा कि जब त्रिजटा का स्वप्न सच्चा हो सकता है तो मैं तो राक्षस नहीं हूं। मेरा स्वप्न भी गलत नहीं होगा।
सतयुग आयेगा
जयगुरुदेव की बात आई तो इसका मतलब यह नहीं कि राम को नहीं मानता, कृष्ण को नहीं मानता, कृष्ण की तरह योग करने की बात को नहीं मानता हूं। युग का परिवर्तन अब धर्म के प्रचार से होगा, लोग ईश्वरवादी होंगे, सत्यता आयेगी, प्रेम आयेगा, अहिंसा की भावना आयेगी, सदाचार आयेगा। इन सबकी कल्पना अब लोगों में आने लगी है। आगे सतयुग आयेगा।
भारत में इतना बढ़ा विकास अध्यात्म, भौतिकवाद का होगा कि उसकी कल्पना आपके मस्तिष्क में नहीं है। विश्व के लोग इस प्रगति को देखकर दांतों तले उंगली दबायेंगे। आध्यात्मिकता के द्वारा ही इस देश का निर्माण होगा। किसी दूसरे तरीके से नहीं होगा। आगे नामदान बहुत लोग लेंगे, कर्म कुशलता लोगों मे बढ़ेगी। भारत में बीस करोड़ लोगों का जन जागरण पूरा हो चुका है और रक्षा होने वालों की रक्षा होगी अब तो केवल अर्जुन का गाण्डीव उठेगा और वह तीर छोड़ता चला जायेगा। तुममें से जो चाहे श्रेय ले ले। सुदर्शन चक्र तो चल ही रहा है।
➤ सभी लोग सुमिरन ध्यान भजन करते रहें। यह जरूरी है।
➤ जब तक बाबा जी कोई बात न कहें तब तक विश्वास न करना। सत्संग का विस्तार बहुत जोर शोर से होना चाहिए।
➤ चरणों की धूल बनकर रहो और उड़ने की कोशिश मत करो। जिस धूल को हवा उड़ा करके ऊंचा उठाती है वही धूल हवा को पहले गन्दा कर देती है। ऐसे लोगों के लिये गोस्वामी जी ने कहा है कि बुध नहिं करहिं अधम कर संगा। तुम भी ऐसे लोगों से बचो।
➤ यह इच्छा लेकर जाओ कि सत्संग प्राप्त हो। अंतिम श्वांस तक यही इच्छा बनी रहे। ऐस होता है तो बेड़ा पार है। सत्संग की याद, सेवा की याद बनी रहे तो बाबा जी बराबर आपके साथ है। जब जरूरत पड़ेगी तो भक्तवत्सल बनकर जंगल में भी रक्षा करेंगे। जब साथ कर लेते हैं तो चाहे कुछ भी हो साथ नहीं छोड़ते हैं। बच्चा कितना भी नालायक हो माता पिता साथ नहीं छोड़ते हैं।
➤ अगर तुम्हारा शरीर छूटता है तो तुम घबड़ाना नहीं। मैं बराबर तुम्हारे साथ रहूंगा। मैं इधर भी तुम्हारी सेवा करता हूं और उधर भी रक्षा करूंगा। जो नाम बताया है उसे बराबर याद करते रहना।
➤ आगे समय खराब तो आ ही रहा है। बुरे कर्मों से सदा बचते रहना और प्यार मोहब्बत से मिल कर रहना और बांट कर खाना।
➤ भण्डारे में ऊपर से आदेश हुआ। अब कार्य सन् 1963 में होगा। इस कार्य को देश में कोई रोक नहीं सकता है। सभी नर नारी पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण में हिम्मत से काम करें। सभी अपनी अपनी जगह पर उठकर खड़े हो जायें और नहीं तो निकट में आयें। सबमें सेवा भाव पैदा हो जायेगा। छोटे का, बड़े का, देश में साधु सन्यासियों का सम्मान करा के दिखा देंगे। ईसामसीह, नानक, बुद्ध, राम, कृष्ण, कोई न कोई आयेगा।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े
यहां योगस्थली में प्रवचन शुरु करने के पूर्व जयगुरुदेव बाबा ने विशाल भीड़ को देखते हुये कहा कि मथुरा नगरी में भी इतने नर नारी नहीं हैं जितने इस समय पर इस आश्रम में उपस्थित हैं। आप लोग बड़ी भावनायें लेकर यहां आये, बड़ा कष्ट उठाया भगवान की बड़ी दया आप पर है। अगर हम सभी लोगों को लेकर मथुरा चल पड़े तों मथुरा का क्या हाल होगा, इसे मथुरा वासी ही समझ सकते हैं। मथुरा वृन्दावन या किसाी धर्म स्थान पर एक पूजा, एक चिन्तन, प्रेम समानता आज नहीं दिखाई देती जो आपके इस स्थान पर देखने को मिल रही है।
यह मानव अद्वितीय मानव प्रेम मार्ग है। समाजवाद रेडियो अखबारों तक ही सीमित है किन्तु समाजवाद का सच्चा रूप आपके इस स्थान पर देखने को मिल रहा है। दिल्ली लखनऊ से यहां लोग भेजे गये हैं। हम तो आपको सुनाने के लिये जगह जगह जाते हैं और यहां भी सुनाने के लिये ही बुलाया ताकि आप अच्छी तरह समझ लें। यही मधुवन है जहां पर कृष्ण गौवे चराते थे। उन्होंने भी कुछ सुनाया था धर्मनिष्ठ लोगों को। जब उन्होंने उनकी बातों को नहीं माना तो उन्होंने कहा कि मैंने पापियों को पहले से ही मार डाला। अर्जुन को दिव्य दृष्टि दिया तब उन्हे विश्वास हो गया कि मुझे तो केवल निमित्त मात्र गाण्डीव को हाथ में लेकर तीर चला देना है।
बाबा ने आगे कहा कि ऐसा ही मै कुछ भी कह दूं तो बुरा न होगा। मारने वाले मार दिये गये और बचाने वाले बचा लिये गये। निशाना बन चुका है और अब तुम्हें निमित्त मात्र खड़े होकर यश प्राप्त कर लेना है।
गुरु भक्ति एक शक्ति है और बहुत बड़ी शक्ति है। वह हाड़ मांस का पुतला नहीं है। गुरु ताकत खण्ड ब्रह्माण्डों को चला रही है। मनुष्य शरीर परमात्मा को चला रही है। मनुष्य शरीर परमात्मा को प्राप्त करने के लिये मिलता है। महात्मा को अधिक जल्दी होती है। तुमसे अधिक वे चाहते हैं कि जीवात्मा जल्द से जल्द अपने पिता के पास सत्तदेश में पहुंच जायें।
हम भी कुछ करें तुम भी कुछ करलो और मालिक भी कुछ करलें तब फिर समझ में आयेगा। लोग अपनी शक्ति का नाश करते हैं। इधर से पलट कर उधर लगा दो फिर समझ में आयेगा। ढुलमुल विश्वास भी ठीक हो जायेगा। महात्मा की मेहनत से जीवों का कल्याण होता है। आज मैं पूजा कर रहा था, आदेश हुआ कि चले जाओ। मैं सोया भी नहीं और खाया भी नहीं। रात्रि में कुछ खिला लूंगा तभी कुछ खाऊंगा। माता पिता वही हैं जो बच्चों को खिला कर खाते हैं। खुद तकलीफ उठाते हैं और बच्चे को आराम में रखते हैं। महात्मा हमेशा दुख उठाते रहे सबकी सेवा की। कहने का मतलब यह है कि महात्मा सबकी सेवा किया करते हैं।
ऐसे महात्मा जो शब्द से मिले रहते हैं, नाम से मिले रहते हैं तुम्हारा कल्याण कर सकते हैं ऐसे महात्माओं से ही तुम्हारा कल्याण होगा। ऐसे ही गुरु के पास जाकर के तुम अन्तर में देख सकते हो कि वहां दोनों खड़े हैं। ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविन्द दियो लखाय।’
उन्होंने कहा कि हम देवी देवताओं को कुछ नहीं जानते। हम तो उन्हीं को जानते हैं जिन गोविन्द दियो मिलाय। कलियुग के इस रहस्य को सर्व प्रथम कबीर साहेब ने खोला।
प्रार्थना मंजूर हो जायेगी
गउओं का काटना कौन बन्द करेगा ? जयगुरुदेव। जीवों का कल्याण किससे होगा ? जयगुरुदेव। जन जन के चरित्र कौन उठायेगा ? जयगुरुदेव। मांस मछली अण्डे की दुकान कौन बन्द करायेगा- जयगुरुदेव। जयगुरुदेव नाम किसका- परमात्मा का।
ये नारे जब भण्डारे के अवसर पर लाखों नर नारियों से लगवाये जा रहे थे तो इनके हाथों को उठते हुये देखकर बाबा ने कहा कि ये हाथ तलवार की तरह चल रहे हैं मानों इसी क्रम में बाबा ने कहा कि भविष्य में हिन्दुस्तान की जितनी भी रिवाल्बर और बन्दूकें हैं सबकी सब खजाने में जमा करा दी जायेंगी। डाकू बदमाश नहीं रहेंगे। अधिकारियों को भी सुविधा हो जायेगी। बाबा ने आगे कहा कि तुम लोगों की प्रार्थनायें भगवान के दरबार में पहुँच गई है और मेरा विश्वास है कि वे सभी मंजूर हो जायेंगी।
कहने का मतलल है कि भारत का संविधान तो 15 दिसम्बर को ही बदल गया और भारत का नया झण्डा 1 जनवरी को आकाश में लहरा उठा। झण्डा लहराने का अर्थ ही विजय है। परिवर्तन के कारण भी पूरे हो चुके हैं अब तो केवल कार्य ही होना है। अब तो केवल राम धनुष लेकर लंका की तरफ चल पड़ेंगे। अर्जुन गाण्डीव उठा लेगा और विजय निश्चित है। अब यह धर्म ध्वजा फहरायेगी। अधर्म समाप्त होगा। फिर से धर्म की, कर्म की स्थापना होगी। भारत का इतिहास नया होने जा रहा है। विश्व को इस झण्डे के नीचे शांति मिेलेगी।
भारत में लहराने वाला यह झण्डा विश्व को ज्ञान का, ध्यान का, अध्यात्म का प्रकाश देगा सुख और शांति का साम्राज्य होगा। राम राज्य की पुर्नस्थापना होगी। गांधी जी ने जो स्वप्न लोकतांत्रिय भारत का देखा था वह अब पूर होगा।
भविष्य वक्ताओं की वाणी सत्य होगी महापुरुषों की वाणी साकार होगी। भारत का मस्तक विश्व के मंच पर पुनः गौरव से ऊंचा होगा, तब लोगों को 1 जनवरी 73 एवं 15 दिसम्बर 72 की महत्ता समझ में आयेगी।
हनुमान करोड़पति नही थे
भण्डारे के सत्संग के दौरान जयगुरुदेव बाबा ने कहा कि मुझे आदेश सन् 73 में बोलने का प्राप्त हुआ। उस मालिक को इस शरीर से जैसे भी सेवा लेनी मन्जूर होगी वैसा ही करूंगा। मैंने तुम लोगों को पढ़ा लिखा कर खड़ा कर दिया है। प्रेम, ज्ञान, भक्ति की आग जल चुकी। अक्लमन्द उसी को कहते है जो समय के अनुसार काम करे और समय से फायदा उठा ले। अगर तुम अपने को गरीब समझते हो तो हनुमान कोई करोड़पति नहीं थे। हनुमान ने भी फकीर की बात को मान लिया।
बाबा ने आगे कहा कि तुम बाहर से देखाने में गरीब हो किन्तु अन्दर से शहंशाह हो। जो पैसे रखते हुये भी कन्जूस है वे सबसे बड़े गरीब हैं और जिनका दिल खुला है वही सच्चे बादशाह हैं। मैं तुमको बादशाह बनाना चाहता हूं। इतने बड़े जनमत में कोई करोड़पति नहीं। कोई बता दे कि किसको सम्मान दिया। जिसको जो सम्मान मिला वो वहीं आकर पड़ा रहा। झोपड़ी को मैंने अपने हाथ से बनाया गरीबों के लिये कि झोपड़ी में ही रहना पसन्द किया। इन्होंने यह ख्याल नही किया कि हम पैसे वाले हैं, ओहदे वाले है और जमीन में पड़े रहे। अगर ऐसी भावनायें आ जायं तो बेड़ा पार है।
आज के दिन स्वामीजी (दादा गुरु) अलीगढ़ में थे। जो रात्रि आ रही है इस शरीर को छोड़कर चले गये। जहां से आये थे वहां चले गये। अगर उनकी कृपा न होती तो आप लोग यहां न आते । एक ही ताने में सबको बांध दिया जायेगा। तागा एक ही दिखाई देगा। समय आने पर सबको बांध दिया जायेगा।
इस स्थान पर वही टोपी लगाना चाहिए जिसके लिये बताया है। बीच में कुछ गड़बड़ियां हुईं उस टोपी से जिसे लोग लगाते रहे हैं। अतः एक बड़ी टोपी आपके ऊपर रखी गई। जो आदमी इस टोपी का ध्यान रखेगा उसका इतिहास में नाम होगा। वह बड़ा काम कर जायेगा। भविष्य में सत्संगी इस बात का ध्यान दें।
अब लोगों को अनुभव होने लगा कि भगवान का भजन आसान है। गृहस्थ आश्रम के लोगों को बताई हुई बातों का पालन करना चाहिए। अंतरात्मा की सफाई में लगे रहना चाहिये ठीक उसी तरह से जिस तरह से कपड़े की सफाई या शरीर की सफाई में लगे रहते हो। अंतःकरण के गन्दगी की सफाई साधन भजन से होगी। संत कृपा करेंगे और इस आत्मा को परमात्मा तक पहुंचायेंगे।
आगे सभी लोग सेवा की तरफ, प्रेम की तरफ मुड़ जायेंगे। चिन्ता की जरूरत नहीं है। पुराने कर्म धर्म को, सनातन सेवा को जिसे आपने भुला दिया है उसे पकड़ना है।
बाबा जी भूल नहीं सकते
जयगुरुदेव बाबा ने यहां प्रेमियों से कहा कि भारत भूमि से मेरा प्यार है। हम पक्के प्रेम निष्ठ और सेवा निष्ठ हैं। हर काम मैं कर सकता हूं और करता भी हूं। झोपड़ी में जमीन पर भी लेटता हूं और तुम देखते भी हो। खाने मे दो एक फुल्का तुम्ही मुझको खिलाते हो। यहां मुझको देखकर यह कोई नही कह सकता है कि बाबा जी लाखों की भीड़ में बोलते भी होंगे। एक बार जिसको देख लेता हूं तो कभी भूल नहीं सकता। रानासर की एक स्त्री बोली कि महाराज मुझको पहचान रहे हैं ? मैंने कहा कि तू रानासर की है। वह बोली कि महाराज मैं तो सोचती थी कि आप लाखों लोगों में रोज मिलते हैं तो सबको कैसे पहचान पायेंगे। मैंने कहा कि एकबार जिसको देख लेता हूं उसे कभी भी भूल नहीं सकता।
जयगुरुदेव
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sabhar, yug mahapurush baba jaigurudev ji maharaj bhag 5
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