युग महापुरुष बाबा जयगुरुदेव जी महाराज (17.)

✦ आप बीती-जग बीती........सरिता 

लोगों की उत्सुकता है यह जानने की कि आपात स्थिति के दौरान हम पर क्या गुजरी। इस आशय के अनेक पत्र भी प्राप्त हुये हैं। कुछ कहने से पहले मैं यह कहूं कि सन् 1974 की गुरुपूर्णिमा पर स्वामी जी महाराज ने दो बातें कही थीं। एक : जो कुछ तकलीफें आयेंगी क्या तुम उसे सह लोगे ? डरोगे तो नहीं ? 4 लाख उपस्थित जनसमुदाय ने बाबा जी की बातों को स्वीकार किया। स्वामी जी ने कहा था कि जब हमारे प्रेमी सब सह लेंगे और डरेंगे नही तो ये क्या नहीं कर सकते ? 

बाबा जी ने ये भी कहा था कि जो कुछ भी परेशानियां आयें उसे मालिक की सौगात समझना। मालिक की सौगात को हमने सिर माथे लगाया। तकलीफें बन्दर भभकियां देती रहीं और स्वामी जी की दया हमको बचाती चली गई। हम आज यहां कल वहां चले की स्थिति में दिन गुजारते रहे। बड़े बड़े अनुभव करते रहे। 

समरथ गुरु की जो दया हो रही उसके लिये हम कुछ कह नहीं सकते। शब्द हैं भी नहीं लेकिन हम अपने उन सहयोगियों के प्रति शुक्रगुजार हैं जिन्होंने भटकने की स्थिति में भी हमारा पूरा पूरा सहयोग दिया। हमारे निवास स्थान 148 माडल हाउस से हमारे दोनों सहयोगी श्री सन्तराम एवं श्री जवाहरलाल जी को गिरफ्तार कर लिया गया और घर मकान सील कर दिया गया। खैर अब तो मकान भी खुल गया 9 जुलाई को। 

श्री जवाहरलाल जी और श्री सन्तराम जी ने भी गुरु की दया का पूरा भरोसा रखते हुये हम लोगों के प्रति अपनी वफादारी का पूरा परिचय देकर जेल की दीवारों से बाहर आ चुके हैं। एक बात जरूर है कि हम पर अनेक प्रकार के रिमार्क छोड़े गये। सारी बातें हमारे कान तक आती रहीं । कहा गया फरार हो गये डर गये नेता बनते थे अब क्यों भागे भागे फिर रहे हैं। सोचते थे कि हम ही प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बन जायेंगे, अब पता लग रहा है आदि आदि। 

जी हां, हम सब कुछ सुनते रहे बोलने का अवसर नही था। लेकिन अब हमें यह कहने में कोई संकेच नहीं है कि न तो हम डरे थे, न फरार हुये थे, न तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न देख रहे थे। न तो नेतागिरी की अभिलाषा थी और न अब है। बस केवल गुरु महाराज की कृपा थी कि मालिक ने सौगात दिया तो उसे सहने की शक्ति भी दी। हम भागे भागे भी नहीं फिर रहे थे। क्षमा कीजियेगा क्या हो रहा था आपात स्थिति में उसे मूक दर्षक होकर देख रहे थे.  

जब रेडियों और अखवारों पर भूतपूर्व प्रधानमंत्री के नगाड़े बज रहे थे। आपात स्थिति का अनशासन पर्व मनाया जा रहा था उस समय दिल्ली की सड़कों पर बेगुनाह युवकों को बसों में भर कर जेल ले जा रहा था। ट्राफिक रुकती थी और बसों को भेदकर नारे सड़कों पर गूंजते थे। इन्दिरा तेरी तानाशाही, नहीं चलेगी नहीं चलेगी। जिस समय लोकतंत्र का नगाड़ा पीटा जा रहा था उस समय 1 सफदरगंज रोड जहां भूतपूर्व प्रधानमंत्री का निवास स्थान था वह सड़क जनता के लिए बन्द कर दी गई थी। 

चारों तरफ कड़ा पहरा था। कोई भी बगैर इजाजत के उधर से गुजर नही सकता था। परिवार नियोजन का खप्पर लेकर भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने कितना खून पी लिया, नालियां लाल हो गई पुरुषार्थ के जज्बात मांस के लोथड़ों के रूप में फेंके जाने लगे। पुरुषार्थ पर हमला होता रहा जिसके लिए कोई आयु सीमा नहीं। खाना पुरी अंधाधुंध होती रही। गोलियां चल गईं। 

ऐसा आतंक छा गया था कि लोग बाजार जाने में भी डरने लगे। गांवों में अंन्धेरे में रहना ग्रामीणों ने कबूल किया किन्तु पुरुषार्थ की बलि देने के डर से बाजार जाना छोड़ दिया। नारी का मातृत्व अपने लाडले बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए बाहर जाना, किसी से मिलना जुलना बन्द कर दिया। मकान, ईमारतें गिराई जा रही थीं। 

ये सारी बातें समय की शिला पर इतिहास बनकर अंकित होती चली गईं अब उभर रही हैं। हम निरंकुशता के ताण्डव का अवलोकन कर रहे थे। एक बात अवश्य है कि हम तो नहीं डरे थे किन्तु हमसे मिलने में बहुत से लोग डरने जरूर लगे थे। यह है हमारी आप बीती। मालिक का तोहफा हमारे सिर माथे था। उसकी दया कवच बनकर हमारी रक्षा कर रही थी और हम अपना दिन गुजार रहे थे।

जग बीती कहां से शुरु करुं अनेक पत्र पत्रिकाओं में आपात स्थिति का काला इतिहास लिखा जा रहा है, जुल्म और आतंक के काले कारनामें वर्णन किये जा रहे हैं। यदि चर्चा नहीं है तो केवल जयगुरुदेव धर्मप्रचारक संघ के अधिष्ठाता एवं सदस्यों की जिनकी परिवर्तन में क्या भूमिका थी, इसे अगर प्रकट नहीं किया जा सकता तो दबाया भी नहीं जा सकेगा। समय स्वयं साक्षी बनकर खड़ा हो जाता है। छोटी छोटी घटना भी नहीं भूलती हैं। 

एक गांव का दृष्य- सब्जी वाला पकड़ लिया गया। क्यों ? उसने सब्जी की मूल सूची नहीं टांगा था, अतः इमरजेन्सी का हौवा दिखाकर उसे डराया गया और परिणाम क्या हुआ कि 20 रुपये की रिश्वत से उसे मुक्ति मिली। एक छोटा सा रेस्टोरेन्ट - पति-पत्नि चाय पीने गये। चाय आयी। पति ने मुस्कुरा कर प्यार से कुछ कहा तो इस पर उसे हिरासत हो गई। जासूसी का जाल बिछा हुआ था रिक्शा वालों की हड़ताल क्यों ? जबरदस्ती उनको पकड़कर नसबन्दी करायी जा रही थी। तमाम छोटी बड़ी घटनायें होती रहीं। 

गिरफ्तारी पूछिए नहीं- सड़क पर चलते हुए, बस में, ट्रेन में, टैक्सी में कहीं भी गिरफ्तार किए जा सकते थे। कारण पूछने का अधिकार नहीं था। और तोड़-फोड़, महल गिरे, ढह गई दीवारें गिरे नहीं गिराये गये, ढहे नहीं ढहाये गये। सुन्दरीकरण के नाम पर चारों ओर खण्डहरों के अवशेष नजर आ रहे थे। हरिजन कल्याण का नारा उसकी वास्तविकता क्या थी इसे घटना स्वयं बता देगी। 

लोक सभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस के उम्मीदवार ने एक हरिजन को चुनाव के प्रचार के लिए बड़ी धन राशि दी। चुनाव हुआ और वोट की झाड़ू से जनता ने एक बारगी कांग्रेस का सफाया कर दिया। सीट तो गई थी पैसा क्यों जाये ? रात के अन्धेरे में चार व्यक्ति आये उस हरिजन भाई को उठा ले गये। पैसा देने वाले हारे उम्मीदवार ने उससे अपना पैसा वापस मांगा। जब देने में हरिजन भाई ने अपनी असमर्थता प्रकट की तो उन्हें धमकियां दी गईं। अहिंसा का दम भरने वाली कांग्रेस पार्टी हिंसा के हथियार अपनाती थी। परिणाम स्वरूप लौटकर बुद्धू घर को आये। हरिजन भाई के लिए प्रचार की कीमत बहुत महंगी पड़ी। यह सब तो हुआ ही।

हमारे जयगुरुदेव संघ के साथ क्या हुआ ? इसे भी कहना ही पड़ेगा। प्रेमियों ने जो कुछ भी सहा उसे गुरुमहाराज की प्रेरणा और आदेश मानकर। बाबा जी के साथ जो जुल्म और अत्याचार किये गये उसके चश्मदीद गवाह हमारे सम्पादक जी, श्री रामभेज जी तथा और वरिष्ठ लोग एवं विधायक हैं। क्या दोष था बाबा जी का ? क्या दोष था उन प्रेमियों का ? सच बात तो यह है कि निर्दोष और निरपराध लोग जेल की यातनायें सह रहे थे और अपराधी अराजकता फैलाने वाले और गददारों का बोलबाला था। 

जो जुल्म भारत छोड़ों के नारे पर महात्मा गांधी और उनके समर्थकों के साथ ब्रिटिश सत्ता ने की थी वह जुल्म और अत्याचार कुर्सी बचाने के लिए भूतपूर्व सरकार ने किया। बाबा जी ने कुछ भविष्यवाणियां की थीं, कुछ अपील की थीं जनता से आन्दोलन हड़ताल तोड़फोड़ न करने की, शराब, मांस, अंडा, मछली आदि नशीली खाद्य वस्तुओं को छोड़ने की। उनके प्रेमियों ने नसबन्दी के खिलाफ, तानाशाह के खिलाफ आवाज उठाई थी। 

जब सबकी जबान पर ताला लगा था, चारों ओर डर और आतंक छाया था, मीसा और डी.आई.आर. का दानव मुंह बाये खड़ा था, जान और माल का खतरा बढ़ गया था, ऐसे समय में बाबा जयगुरुदेव के अनुयायियों ने जान की बाजी लगाकर आवाज उठाई। नसबन्दी का विरोध किया, राजनैतिक लोगों की रिहाई की मांग की। उनकी प्रतिक्रिया क्या हुई ? बाबा जी को बेड़ियां लगा दी गई, तनहाई दे दी गई। प्रेमियों के ऊपर डण्डे बरसाने जाने लगे, छापे पड़ने लगे। औरतों को पीटा गया, बच्चों को यातनायें दी जाने लगीं, अत्याचार अपनी चरमसीमा पर आने लगा।

इस सन्दर्भ में मैं एक बात और बता दूं कि आपात स्थिति क्यों लगी ? हालांकि इस बारे में अनेक चर्चायें हो चुकी हैं किन्तु जैसा मैंने पहले ही कहा है हमारी संस्था की हर बात पर्दे के पीछे है। खैर हमें गम नही है। हम काफी हैं देश विदेश के इतिहास लिखने के लिए। हमारे बाबा जी का कदम ठोस है। हम उनके अनुयायी हैं यही हमारी सफलता का प्रतीक है। 

बाबा जी ने 8 जून 1975 को बम्बई शिवाजी पार्क में अपने प्रवचन के दौरान कहा था ‘घबराइये नहीं, बहुत जल्द दिल्ली की कुर्सी खाली करवा लूंगा’। चूंकि रेडियो और अखबारों पर तो बाबा जी की बातें आती नहीं थीं न आती हैं अतः वह बम्बई तक ही सीमित रह गईं। इसका प्रकाशन हमारी शाकाहारी सदाचारी बालसंघ के 21 जून 75 के अंक में हुआ। बात सत्य थी। 8 की कही बात 12 जून को सत्य हो चुकी थी। 

न्याय और कानून ने तो 12 जून 75 को ही प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली करवा ली थी किन्तु तानाशाही के नशे में डूबी प्रधानमंत्री यह समझ न सकीं और 26 जून को आपात स्थिति की घोषणा कर दी गई। उसके बाद जो कुछ हुआ वह हमारे आपके सामने है। बाबा जी की हर बात सत्य सिद्ध होती चली जा रही है। ‘वृथा न जाये दवे ऋषि वाणी’ महात्माओं की वाणी बड़ी गूढ़ होती है उसे आस पास मंडराने वाले भी जल्दी नहीं समझ सके तो शराब और सत्ता के नशे में धुत क्या समझेंगे ? 

बाबा जी से भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत शत्रुता निभाई। वीभत्स नक्शा सामने आया। क्षमा कीजिएगा वैधव्य शब्द दर्द और करुणा का प्रतीक होता है किन्तु शब्द की सीमा दिल और दिमाग में ज्वाला जला देती है।  इंदिरा राज्य ने आश्रम को लूट लिया, बदनाम कर दिया, पशुओं की दुर्गति कर दी, नीलामी करवा दी। मुझे कहने में  कोई हिचक नहीं है कि सरकारी गैरसरकारी तत्वों ने खुलकर चिरौली सन्त आश्रम एवं जयगुरुदेव योगस्थली पर लूट का ताण्डव किया। 

लूटने वालों ने सोच लिया था कि बाबा जी अब क्या छूटेंगे। भूतपूर्व शासन इस ख्वाब ख्याल में था कि हमें हटना नहीं है तो बाबा जी के बाहर आने का क्या प्रश्न है भ्रम हो गया था कि बाबा जी सोचते थे कि हम ही प्रधानमंत्री बन जायेंगे। पीछे पड़ गये थे, इन्दिरा के। अब वो इनको छोड़ेगी भला ? क्षमा कीजियेगा इन्हीं गलत फहमियों के शिकार तत्वों ने आश्रम को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

धार्मिक संस्था के लोगों में भी भय था। जो दृढ़ थे वे जेल की दीवारों में बन्द थे। नसबन्दी गर्भपात के दानव ने मठों आश्रमों को भी नहीं छोड़ा। बाबा जी ने सभी कष्टों को बिना उफ किये झेला, उनके भारत में फैले करोड़ों अनुयायियों ने भी उनकी दया का सहारा लेते हुये अपनी आवाज बुलन्द की। इसके लिये उन्हें जो कुछ भी सहना पड़ा सबको उन्होंने सरमाथे रखा। 

मुझे याद है कि जब लोकसभा के चुनाव नहीं हुये थे भूतपूर्व प्रधानमंत्री उनके 20 सूत्रीय कार्यक्रम और उनके हृदय सम्राट का सितारा बुलन्दी पर था सबके जुबान बन्द थे तब आवाज उठी थी केवल जयगुरुदेव वालों की। उस समय जगह जगह जनता ने यही कहा था कि अगर कुछ करेंगे तो केवल जयगुरुदेव वाले ही। सबकी बोलती बन्द है। एक यह हैं कि निर्भीक होकर अपनी आवाज उठाये हुये हैं।
इस बात को भी कोई इंकार नहीं कर सकता है कि वर्तमान जनता पार्टी की सफलता बाबा जी के आशीर्वाद एवं सहयोग से मिली है।

जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट  no. 18  में...

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स्वामी जी के संस्मरण

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