युग महापुरुष बाबा जयगुरुदेव जी महाराज (6)

⍟ 9. स्वामी जी का पत्र 

सभी प्रेमियों को सप्रेम जयगुरुदेव।

आशा है सभी लोग कुशल पूर्वक होंगे और सुमिरन ध्यान भजन में लगे होेंगे। कानपुर में जो कार्यक्रम किया वह सभी सफलता से पूर्ण हो गया। मैंने 45 मिनट मंच पर सन्देश  दिया और सकुशल नीचे उतर कर आया। अधिकारियों ने सम्मान के साथ विदा किया और 24 जनवरी को कानपुर से चलकर मथुरा तक 20 मीटिंग किये। सांयकाल आश्रम पर पहुंच गये।

कुछ समाचार पत्रों ने जो खबर झूठ का झूठ दिया वह जनता भली भांति समझ गई लेकिन जो प्रेमीजन कानपुर में थे उन्होंने 30 लाख की भीड़ में कुछ समझ नहीं पाया होगा। सुबह जब अखवार पढ़ा होगा तो प्रेमियों के मन पर भी कुछ असर सुस्ती का हुआ होगा। लेकिन जो भी बात अखबार और रेडियो पर आई सभी असत्य थी। मैं तीन दिन आश्रम पर रहा। 

28 जनवरी को आश्रम से चलकर भरतपुर, डेहरामोड़, बस्ती होता हुआ जयपुर में रतन कालेज में सत्संग किया। रात में ही जयपुर से चलकर अजमेर में विश्राम किया और 29 जनवरी को सुबह अजमेर में कार्यक्रम करके उदयपुर, हिम्मतनगर, प्रान्तीजा होते हुए अहमदाबाद पहुंच गया। तब से गुजरात के कार्यक्रम में जोर शोर से लगा हूं। यह कार्यक्रम अक्टूबर 1974 में ही बन गया था।

आप सभी सत्संगी जोर शोर से धर्म के प्रचार में लग जायं। दुनियादार अपने झूठे प्रचार में अपने स्वार्थ के लिए सुस्ती नहीं   ला रहे हैं तो धर्म के लोगों को धर्म के प्रचार में बिल्कुल सुस्ती नहीं लाना चाहिए   क्योंकि झूठे प्रचार सन् 1970 से बराबर किये गये।

पहले तो अखवारों में नही आते थे परन्तु अबकी बार कानपुर की भीड़ लोगों  को बर्दाश्त नहीं हुई। रुपये  देकर झूठा प्रचार कराया गया। जिससे बाबा जी की ख्याति बढ़ रही है वह बढ़े नहीं। बाबा जी जयगुरुदेव नाम का प्रचार हिन्दुस्तान में कर रहे हैं इसको सभी जानते हैं। किसी के नाम को थोप कर ख्याति नहीं प्राप्त की जा सकती है।

जब कभी ऐसी घटनायें आया करें तो आप लोगों को पूछ लेना चाहिए किसी की बात नहीं सुननी चाहिए। हमको जेल का क्या डर दिखाते हैं ? कृष्ण भगवान तो जेल में ही पैदा हुए जिनको आज सारी दुनिया पूजती है। महात्मा गांधी तो जेल में कितने बार बन्द हुए और अंग्रेजों  के ऐसे राज को जिसके राज मे सूरज डूबता नहीं था उसको समाप्त कर दिया।
आप सब लोग धैर्य से धर्म के प्रचार में जुटे रहें बिल्कुल सुस्ती नहीं लानी है। 

अगर मेरी बात को दुनिया के लोगों ने नहीं सुना तो सबको भयंकर परिणाम भोगने पड़ेंगे और चोट खाकर सारी दुनिया के लोग मेरी और दौड़ेंगे अभी किसी को क्या मालूम कि क्या होने वाला है?  मेरा सन्देश  जन जन तक पहुंचा देवें- सभी सत्संगी जुट जाएँ  और मिल जुलकर प्रचार में लगे रहें।

 10. बी बी सी प्रसारण

24 नबम्बर से 1 दिसम्बर 1973 तक हरिद्वार के चिमगादड़ टापू में गंगा तट पर महामानव यज्ञ का महाकुम्भ सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ था। भारत के कोने-कोने से लगभग 10 लाख लोगों ने भाग लिया था। बी.बी.सी. लंदन ने कार्यक्रम का विस्तार से प्रसारण करते हुए कहा था कि बाबा जयगुरुदेव ने बिना कुम्भ के महाकुम्भ लगा दिया।

13 फरवरी 1975 को रात्रि में बी.बी.सी. द्वारा निम्न प्रसारण सुना गया।
भारत वर्ष में जयगुरुदेव नाम के महात्मा हैं। उनका बड़ा भारी प्रचार भारत में है और उसके कारण वहां की सरकार भी हिल रही है। कोई उनको सी.आई.ए. एजेन्ट कहता है तो कोई उनको चीन का एजेन्ट कहता है। उनका प्रचार केवल भारत मे ही नहीं है बल्कि जर्मन की दीवारों पर जयगुरुदेव का प्रचार लिखा देखा गया है।


  11. फकीरों से टकराना नहीं चाहिए

गांधी महात्मा की बातों को पीछे करके वो लोग आगे आये जो स्वार्थ और पद लोलुप थे। इसीलिए देष की यह स्थिति हो गई लेकिन मेरी बातों को पीछे करके कोई भी आगे नहीं आ सकेगा। मेरी आवाज के साथ वही लोग आगे आयेंगे जो कर्मठ होंगे और सच्ची सेवा की भावना रखेंगे। एक समय बहुत जल्द आ रहा है जब सब लोग इस बात को मानने के लिए बाध्य हो जायेंगे कि वीरों नवयुवकों का आवाहन देश  में पहली बार मैंने किया था। 

मेरे मस्तिष्क  में बच्चों के लिये एक रचनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा है। तुम जेल की क्या बात करते हो? कृष्ण भगवान तो जेल में ही पैदा हुए थे जिनकी आज लोग पूजा करते हैं लेकिन समय जब आय तो उन्होंने अपने सगे मामा कंस को भी माफ नहीं किया। गोस्वामी तुलसी दास जी को अकबर ने जेल में डाला तो इतनी आफतें आईं कि अकबर ने घबड़ाकर उन्हें छोड़ दिया वहां से भागना  ही पड़ा। फकीरों से कभी टकराना नहीं चाहिए। तुम मेरी क्या बात करते हो ? जब मैं जेल में जाऊंगा तो इन सब हिजड़ों को निकाल बाहर करूंगा।


 12. कब पहचानोगे ?

साधु सन्तों को पहचानना बहुत दुस्तर है। जीवात्मा जो दोनों आंखों के पीछे बैठी हुई है अपनी शक्ति को नौ दरवाजों पर बिखेर दिया और मन आत्मा की शक्ति से इन्द्रियों का आनन्द लेने लगा। आगे जो कुछ भी होने वाला है बाबा जी सब कुछ देख रहे हैं फिर उसे कहते हैं भविष्य का पता नहीं है कि कुदरत का डंडा पड़ते ही क्या से क्या हो जाएगा ?

उत्तरप्रदेश में जगह जगह सत्संग सुनाते हुए स्वामी जी ने कहा कि यह शुभ अवसर दर्शन करने को मिला सब लोग प्रसन्न और शान्त उद्गार लेकर आये हैें। भगवान के नाम पर यहां की जनता उमड़ पड़ती है। यह ऋषियों मुनियों का स्थान है। इस भूमि पर उन लोगों ने तपस्या की, इन्द्रियों का दमन किया, आत्मशक्ति  को जगाया। इसलिए यह भूमि बहुत पवित्र है। ऐसी जगह का वायुमण्डल सात्विक होता है। 

जिन लोगों ने परमात्मा का साक्षात्कार किया उनका ज्ञान कितना ऊंचा होगा यह सोचना चाहिए। जब वहां की भूमि का हवा और पानी का असर होता है तो उस पुरुष में कितनी शक्ति होगी यह आपको समझना चाहिए। अपनी बुद्धि से कोई किसी को पहचान नहीं पाता है। किसी के ज्ञान को कोई नहीं पहचान सकता। यदि लोगों ने पहचान लिया होता तो दवा हो जाती, सबका रोना धोना कट जाता, बीमारी दूर हो जाती। साधु सन्तों को पहचानना बहुत दुस्तर है।


 13. इतिहास के पन्ने

जयगुरुदेव सत्संग का शुभारम्भ 10 जुलाई 1952 को वाराणसी से हुआ। 1968 में दक्षिण भारत पर्यटन का कार्यक्रम बना और बाबा जी का काफिला अनेक प्रान्तों व नगरों में गया और व्यापक प्रचार हुआ। वर्ष 70, 71, 72 में साईकिल यात्रायें निकाली गई। 1200 मील की साईकिल यात्रा नवम्बर 1970 में गोरखपुर से प्रारम्भ हुई और अनेक स्थानों पर पड़ाव डालते हुई दिल्ली पहुंची।
 
सन् 1971 में 1500 मील की साईकिल यात्रा पचासों हजार प्रेमियों की सोनपुर में निकाली गई और पड़ाव डालती हुई दिल्ली रामलीला में पहुंची। दिल्ली के महापौर हंसराज गुप्ता जी ने यात्रियों का स्वागत किया। सन् 1972 के अन्त तक जागरण कार्यक्रमों मे बाबा जी के अनुयाइयों की संख्या 20 करोड़ तक पहुंच गई। भारत में 1 जनवरी 1973 को जयगुरुदेव की धर्मध्वजा फहराई गई पूरे भारत में। जयगुरुदेव आश्रम में भी उल्लास भरे वातावरण में स्वामी जी महाराज ने झण्डा फहराया।  

1 जनवरी 1973 एक महत्वपूर्ण दिन धर्म के इतिहास में कर्म के इतिहास में, राजनीति के इतिहास में इतिहास बन गया। बाबा जी ने 16 दिसम्बर 1972 को मथुरा में घोषणा किया कि भारत में 20 करोड़ प्रेमियों का जागरण हो गया।

5 अप्रेल 71 को पूज्य स्वामी जी महाराज एअर इंडिया के बोइंग यान द्वारा कलकत्ते से रवाना हुए। मैं भी उनके साथ उसी जहाज में बैठा था। 5 तारीख को दोपहर के प्लेन से मेरी धर्मपत्नि रवाना हुई।  5/4/71 को दोपहर के समय स्वामी जी के साथ जब मैं पेनांग पहुंचा तो स्वागत के लिए महत्वपूर्ण भारत वासी काफी संख्या में इंतजार कर रहे थे। सब लोगों ने स्वामी जी (बाबा जयगुरुदेव ) का भव्य स्वागत किया।

स्वामी जी प्रतिदिन पेनांग में सत्संग करते थे जिसमें काफी भारतवासी (सिंधी, पंजाबी, सिक्ख, गुजराती तथा मारवाड़ी) एकत्रित होकर दर्शन तथा प्रवचन का लाभ उठाते थे। स्वामी जी ने एक दिन कुंज बिहारी मन्दिर में सत्संग किया तथा दूसरे दिन चाडनी फिलासोफी ऐशोसियेशन में सत्संग किया जिसमें भारतवासियों के अलावा प्लेन वासी चाइनीज थे। स्वामी जी का भाषण हिंदी में था जिसका अनुवाद श्री दुर्गादेव सिंह ने अंग्रेजी भाषा करके सुनाया। 

भाषण सुनकर सभी श्रोतागण बहुत प्रभावित हुए। एक सत्संग सिख गुरुद्वारा में हुआ। इतने ज्यादा लोग एकत्रित हुए कि विशाल  हाल ठसाठस भर गया। बाबा जी ने बहुत से भारतवासियों को नामदान दिया। कैब्रेन हाईलैंड प्लेन पर बसा हुआ है। स्वामी जी वहां गये। रास्ते में टाईपिंग नाम दो शहर पड़े जहां पर रहते हैं।

बाबा जयगुरुदेव के आवाहन पर अहिंसा धर्म, प्रेम, सेवा सदाचार का जन जन में प्रचार करने के उद्देश्य से लाखों प्रेमियों की 1500 मील की साइकिल यात्रा नवम्बर 1971 में मुख्यता बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा राजस्थान से निकाली गई और इन यात्रियों का एतिहासिक सम्मेलन दिल्ली के रामलीला मैदान में 21 से 24 नवम्बर तक हुआ। 

21 नवम्बर की सांयकाल दिल्ली नगर के महापौर हंसराज जी गुप्ता ने रामलीला मैदान में बाबा जी एवं यात्रियों  का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि गतवर्ष 1970 में भी एक ऐसी ही यात्रा बाबा जयगुरुदेव जी ने निकाली थी। मैं स्वामी जी महाराज के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ था की  इस बार मेरी दिली इच्छा यही थी कि मैं मंच पर न जाऊं और आप लोगों के साथ जमीन पर ही बैठूं। लेकिन लोगों ने मेरे अनुरोध को नहीं माना और मुझे मंच पर आना ही पड़ा। 

स्वामी जी साधारण इंसान नही हैं और उनमें कोई आलौकिक शक्ति काम कर रही है। आप सभी लोगों का शौभाग्य है कि आस ऐसे महान पुरुष के चरणों में बैठे हैं। दिल्ली की जनता तथा अपनी ओर से मैं इन लाखों धर्म यात्रियों का स्वागत करता हूं।

साइकिल यात्रियों के सिर पर विशेष किस्म की लम्बी सफेद टोपी थी जिसे वे यात्रा के दौरान बराबर पहने हुए थे। बिहार से साइकिल यात्रियों की यात्रा 7 नबम्बर 71 को सोनपुर से प्रारम्भ हुई और छपरा में थावे, कसया, गोरखपुर, बस्ती, अयोध्या, बाराबंकी, लखनऊ, कानपुर, कन्नौज, छिबरामऊ, एटा, अलीगढ़, बुलन्द शहर, दिल्ली रामलीला मैदान, पलवल, मथुरा, आगरा, शिकोहाबाद, इटावा, औरैया होती हुई 3 दिसम्बर को कानपुर फूलबाग मैदान में सम्पन्न हुई। 

 लगभग 40-40, 50-50 मील का पड़ाव पड़ता था। गाजीपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर, बलिया, वाराणसी, जौनपुर, इलाहाबाद, नैनी आदि स्थानों के यात्रि पूर्वी उत्तरप्रदेश के किन्हीं नजदीक के पड़ाव स्थानों में सम्मिलित हो जाते थे। सैकड़ों बसें यात्रायें के साथ-साथ चल रही थीं। पड़ाव स्थान पर सायंकाल स्वामी जाी का सत्संग होता था, यात्री अपना बनाते खाते थे और फिर प्रातःकाल ही बोरिया बिस्तर बांधकर अपनी अपनी सवारियों से चल देते थे। साइकिल यात्री खाने का सामान लेकर चलते थे। स्वामी जी इस यात्रा के साथ साथ चल रहे थे।

मध्यप्रदेश की साइकिल यात्रा 13 नवम्बर को प्रातः 6 बजे इन्दौर से और शाजापुर, व्याबरा, शिवपुरी, ग्वालियर, आगरा, मथुरा, पलवल में पड़ाव डालती हुई 21 तारीख को दिल्ली पहुंची।
राजस्थान के हजारों साइकिल यात्री 17 नवम्बर से रवाना हुए और पहुंचे। राजस्थान यात्रियों का दूसरा झुण्ड 16 नवम्बर को चला था। 

दिन भर साइकिल चलाने के बाद जब सायंकाल पड़ाव स्थान पर पहुंचते थे और जयगुरुदेव की धुन लगाते थे तो सारी थकावट दूर हो जाती थी। रास्ते के जंगलों में एक स्थान पर शेर मिला तो प्रेमी जल्दी जल्दी स्वामी जी को याद करने लगे। मध्यप्रदेश में 20, 25 मील लगातार सायकिल चलाते चलाते यात्रियों का एक झुण्ड थक गया। ऊंची नीची घाटियां काफी पड़ी थीं। गांव कहीं देखने को नहीं मिला था। सभी प्यासे थे और जयगुरुदेव बोलते हुए धीरे धीरे चल रहे थे। 

एकाएक एक साधु की कुटी दिखाई पड़ी और बगल में कुआ भी, साधु जी ने सबको पानी पिलाया। इसके बाद जब यात्री चलने लगे तो साधु कुटी और कुआ सब गायब हो गया। अपने अपने झुण्ड में लाउडस्पीकर सायकिल में बांधकर प्रार्थनायें करते हुए, नारे लगाते हुए, बाजू गांवों में थोड़ी देर के लिए रुककर सबको समझाते हुए यात्री आगे बढ़ते चले जा रहे थे।

मध्यप्रदेश की एक बस इन्दौर से चली तो रास्ते में एक स्थान पर कुछ डाकुओं ने बस को रोक लिया। ड्राइवर घबड़ा गया। सभी डाकुओं के पास बन्दूकें थीं। बस के अन्दर पुरुषों ने औरतों को बीच में कर दिया डाकू बस के अन्दर आये और पूछने लगे इसमें क्या है, उसमें क्या है। 

यात्रियों के कहने पर इसमें राशनपानी है और हम लोग जयगुरुदेव बाबा के भण्डारे में जा रहे हैं तो डाकुओं ने कहा कि तुम लोग जयगुरुदेव बाबा के पास जा रहे हो तो जाओ। रास्ते में तुमसे अब कोई नहीं बोलेगा। हम सबके दिलों में बाबा के लिए पूर्ण श्रद्धा है।

दिल्ली रामलीला मैदान में स्वामी जी झण्डा फहराने वाले थे। फिर जब उन्होंने कहा कि मैंने झण्डा अभी नहीं खोला है और यह बंधा ही रहेगा। दिल्ली से यात्री मथुरा पहुंचे तो वहां भी नहीं खोला गया। वहां 26 से 28 नवम्बर 71 तक का पड़ाव था। 3 दिसम्बर को कानपुर फूलबाग मैदान में यात्रा सम्पन्न हुई और सत्संग में स्वामी जी ने इस बात की घोषणा की। इसी बीच खतरे का बिगुलबजा और सारा नगर अंधेरा कुप्प हो गया। पाकिस्तान ने हमला कर दिया था।

1500 मील यात्रा की फिल्म तैयार की गयी। बाराबंकी से लखनऊ तक स्वामी जी स्वयं सायकिल चलाते हुए आये। दूसरे दिन भी सायकिल से ही कानपुर के लिए प्रस्थान किया। इस यात्रा में लाखों सायकिल यात्रियों के अतिरिक्त कई सौ बसें, कारें, जीप, स्कूटरें, मोटरसायकिलें थीं और सभी गाड़ियों पर सफेद रंग के जयगुरुदेव के झण्डे लहरा रहे थे। 

दिल्ली में स्वामी जी सायकिल से ही गये और दिल्ली कार्यक्रमों की पूरी फिल्म ली गई। अरुण कुमार एक 11 वर्षीय बालक सोनपुर बिहार से पैदल ही चलकर दिल्ली पहुंचा और 22 नवम्बर को मंच पर रामलीला मैदान में उसका स्वागत किया गया। गोरखपुर से सायकिल चलाती हुई एक बुढ़िया तथा व्यक्ति जो एक हाथ का था, ये सायकिल से दिल्ली पहुंचे थे इनका भी स्वागत किया गया।

12 नवम्बर 71 को सायकिल यात्री अयोध्या पहुंचे तो वहां काफी लोगों के खिलाफ प्रचार करके भड़काया गया था। साधु भी काफी संख्या में खिलाफ में थे कि रामायण गीता की बाबा जी आलोचना करते हैें, राम रहीम गंगा जमुना को नहीं मानते हैं। यात्रा पहुंचने के पूर्व श्री राजेन्द्र मोहन सिन्हा जो गोण्डा में कस्टम विभाग के अधिकारी थे उन्होंने साधुओं के भ्रमों का काफी हद तक निवारण करने का प्रयास किया और वे सफल भी हुए। फिर क्या था बड़ा मंच बनाया गया।

अयोध्या के विभिन्न महात्माओं द्वारा प्रवचन समाप्त करने पर स्वामी जी महाराज मंच पर पधारे और जयगुरुदेव नाम किसका का उद्घोष किया। सभी जनता ने तुमुलनाद में उत्तर दिया परमात्मा का। स्वामी जी ने कहा कि अयोध्या निवासी नर-नारी, साधु भाव प्रेमी सज्जन सबसे निवेदन है कि अपने कान, आंख, मन और बुद्धि को इन शब्दों की तरफ दें। यह शुभावसर बार बार नहीं मिलता। 

मैं सबसे पहले अपना परिचय दूंगा। मैं आपके सामने एक साढे़ तीन हाथ का आदमी हूं। जिसका नाम माताओं ने तुलसीदास रखा। न जाने विद्वानों पण्डितों ने ऐसा क्यों नहीं समझा कि यह एक महापुरुष का नाम है और दूसरा नाम रखा जाय। साधु का कपड़ा पहने हुए हूं। मैं विदेशी नहीं हूं मैं भारत का हूं जहां गंगा जमुना बहती हैं। मैं गंगा जमुना के मध्य स्थान का हूं। 

आत्माओं को बनाने वाले सर्वेश्वर स्वामी जी को मानता हूं तथा उनका पुजारी हूं। मैं सत्य, अहिंसा, प्रेम, मानवता, समानता, समाज सुधार, आध्यात्मिकता का पुजारी हूं। यदि ऐसा न होता तो आज अयोध्या में आप जो लाखों लोगों का दृष्य देख रहे हैं वह देखने को न मिलता ।

जब महापुरुष शरीर में रहते हैं तो उन्हीं को साकार कहते हैं। शरीर छूटने पर वह ऊपर की दैविक शक्तियों मे मिल जाते हैें और तब उनको निराकार कहते हैं। परन्तु दिव्य नेत्र खुलने पर परमात्मा की निराकार सृष्टि साकार हो जायेगी।
व्यक्ति आत्माओं, वेदों और शास्त्रों और गीता और रामायण को मानता है, आदर्श सम्मान व समानता को मानता है, उसमें विषमता रहती ही नहीं। मैं मानव आत्माओं को मानता हूं।

जयगुरुदेव |
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Sabhar, yug mahapurush baba Jaigurudev, bhag 5

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज

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