आज भी देखो कुछ सतसंगी ऐसे हैं कि छोटे-छोटे बच्चों को प्रार्थना याद करा देते हैं, अपनी तोतली भाषा में ही बढ़िया प्रार्थना बोलते हैं जिससे मन, ये संतमत की प्रार्थना सुनकर के ही मगन हो जाता है। प्रेमियों इसका असर पड़ता है, इससे संस्कार बनते हैं। तो ऐसे ही बच्चे गिनती सुनते-सुनते ही याद कर लेते हैं।
नियत समय एवं सामूहिक ध्यान भजन का बड़ा लाभ मिलता है
इसीलिए नियम बनाया गया है कि एक साथ बैठकर के साधना करो। एक जगह बैठकर के करने में धरती भी जगती है क्योंकि जब आयतें उतरती हैं, आवाज आती है तो शरीर में से हो करके जमीन तक जाती है। शरीर ये सुचालक है। सुचालक और कुचालक दो तरह का होता है। देखो लकड़ी कुचालक है, लकड़ी में, रबर में, प्लास्टिक में अगर आप करंट दौड़ाओगे, नहीं दौड़ेगा लेकिन चांदी है, सोना है, लोहा है या अगर आदमी पकड़ता है। , करंट को तो पूरे शरीर में फैल जाता है। ये सुचालक है तो शरीर से होकर के सीधे जमीन में जाती है।
आपने पढ़ा होगा राजा विक्रमादित्य जिस जगह पर बैठकर के न्याय करते थे उस जगह पर उनके जाने के बाद गाय चराने वाला लड़का बैठकर के उसी तरह का न्याय कर दिया करता था। वहां से जब हटता तो उसका दिमाग उतना काम नहीं करता था। तो धरती का भी कुछ समय तक असर रहता है लेकिन कुछ समय बाद फिर वो खतम हो जाता है। जैसे इस धरती के अंदर कोई चीज आप डाल दो, जैसे आप नमक डाल दो या और कोई चीज इस धरती के ऊपर डाल दो। थोड़े समय तक तो असर रहता है लेकिन उसके बाद में उसी में घुल जाता है।
सन्तों के जगाये हुए स्थान का दुरुपयोग होने पर उस स्थान का असर खतम हो जाता है
यही कारण है कि महात्मा जहां साधन भजन खुद करते हैं, लोगों को कराते हैं और दुनिया संसार से चले जाते हैं और जगह को जगाये रखने वाले लोग जब नहीं मिलते हैं, गद्दी पर बैठकर के वहां कुछ और सोच बना लेते हैं धन कमाने का, ऐश आराम करने का या ऐसी चीजों की जब सोच बना लेते हैं। तो उस धरती का महत्व खत्म हो जाता है।
सन्त जब तक रहते हैं तब तक महत्व रहता है और जब चले जाते हैं तो वहां लोग आते हैं, मत्था पटकते हैं, धरती को यानी उठाकर के राख को मस्तक में लगाते हैं, फायदा होता है। लेकिन धीरे-धीरे धीरे वो चीज खत्म हो जाती है। फिर जब फायदा नहीं होता है, तो लोग आना-जाना बंद कर देते हैं। फिर उस जगह पर लोगों को बुलाने के लिए तरह-तरह से लोग उपाय करते हैं कि किसी तरह लोगों का आना-जाना यहां पर बना रहे।
ध्यान, भजन, सुमिरन अगर साथ किया जाय तो फायदा होता है। जैसे गृहस्थी का काम देखा-देखी करते हैं तो भई देखो ये दुकान खोले और दुकान चल रही है, इनकी आमदनी हो रही है। आप समझो कि आदमी प्रयास करता है और अगर उसको अनुभव हो गया और खोल दिया तो उसको भी आमदनी होने लगती है और अनुभव नहीं हुआ, जल्दबाजी में कर लिया, सीखा नहीं, तो नुकसान भी हो जाता है। कहने का मतलब ये है कि आदमी जब उस चीज में आगे बढ़ता है, सफलता मिलती है, मनोबल बढ़ जाता है।
गुरु महाराज जब मौजूद थे, हमको भेजते थे कि चले जाओ सतसंग कर आओ । उधर गुजरात सूरत की तरफ गया हुआ था। पास में गांव में गया हुआ था, वहां जब हमने पूछा कि भाई यहां सुमिरन, ध्यान, भजन आप लोग करते हो तो कोई कुछ मजबूरी बताया, कोई कुछ बताया, उसमें से एक आदमी ने कहा जो बन पड़ता है करता हूं लेकिन हमारे यहां जो महिलाएं हैं, वो रोज करती हैं और वो सुबह जाकर के लोगों को जगाती र्थी, साथ ले जाकर के सुमिरन, ध्यान, भजन, कराती थीं ।
चौरासी के चक्कर से बचने के लिए
सच्चा सुमिरन ध्यान भजन करना पड़ेगा
सुमिरन, ध्यान, भजन और ये जो असली चीज है वो आप सब लोग भूल जा रहे हो। इसको भूलने की जरूरत नहीं हैं। भूल जाओगे तो फिर इसी तरह से जैसे ठोकर खाना पड़ रहा है, ऐसे ही ठोकर खाना पड़ेगा। कहा गया है कि अगर चूक गये तो फिर यम से धक्के खाने पड़ेंगे।
लख चौरासी मरम कर, पग में लटको आय
अबकी पासा न फिरे, तो लख चौरासी जाय ।।
कितनी चौरासी लाख योनियां है? उन योनियों में जाने के बाद फिर ये मनुष्य शरीर मिला है। बहुत बार पैदा हुए बहुत बार मरे, कितनी बार मां बेटी बनी, भाई बाप बना, बाप बेटा बना, शरीर भी मिला लेकिन सतगुरु नहीं मिले और रास्ता बताने वाले भी मिल गये और रास्ते पर चले नहीं, उन्होंने नाम दिया और उस नाम को भजा नहीं, ध्यान लगाया नहीं और नाम यदि याद भी किया तो माता पिता का रखा हुआ नाम ही याद करते रह गये और इस नाम को नहीं पकड़ा।
गुरु जो नाम देते हैं, कर नहीं पाये तो भटकते रहे। अबकी बार मौका मिल गया है। अबकी बार अगर चूक गये तो फिर चौरासी में जाना पड़ेगा। "जन्मत मरत दुःसह दुख होई उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। मरते हुए आदमी की आवाज जो होती है, तोतली हो जाती है, हकलाता तो है लेकिन कुछ समझ में नहीं आता है। कहने का मतलब ये है कि अबकी बार चुकने की जरूरत नहीं है।
अब बुड्ढों से कुछ हो पाता है? सोचते थे कि अभी खाने-पीने, मौज-मस्ती की उम्र है, बाल-बच्चों को पढ़ा-लिखा कर नौकरी में लगाने की उम्र है, बुढापा जब आयेगा, हाथ-पैर जब कुछ काम नहीं कर पायेंगे, तब भजन करेंगे तो उस समय कुछ हो पाता है? उस समय हाथ, पैर, कान सब ढीले पड़ जाते हैं। केवल मन जवान होता है, मन कभी बुड्ढा नहीं होता। बुड्ढे का मन और जवान हो जाता है।
आप समझो तनिक देर में कामवासना. करने लायक कुछ नहीं, लेकिन कामवासना जागृत हो जाती है। क्रोध पल-पल में आने लग जाता है, अहंकार में डूब जाता है, जब अपने बनाये हुए मकान को देखने लग जाता है, ये नहीं सोचता है कि यह मकान मेरे काम आने वाला नहीं है, कौन रहेगा? लेकिन जब मकान को देखता है कि हमने ये बनाया, अपने दरवाजे पर गाड़ी, घोड़ा, अपने कमरे में ऐशो- आराम की चीजों को जब देखता है तो अहंकार से भर जाता है, मोह बहुत बढ़ जाता है।
मोह सकल व्याधिन कर मूला
मोह की तो सीमा ही नहीं रहती है। मोह तो एक ऐसी चीज है कि. आखिरी वक्त तक इस शरीर में रहती है। बुढ़ापे में कुछ हो पाता है? नहीं हो पाता है। लेकिन बुढ़ापे में याद करना ही है गुरु को मालिक को याद करना ही है। कहा- हम न मिल पाये आपसे बुड्ढे हो गये। अब तो कुछ नहीं हो सकता इस उमर में अब तो श्वांस पूरी हो जाये और हम चले जायें।
लेकिन एक काम हम करते हैं। सुबह ही सुबह 4 बजे लोगों को फोन कर देते हैं कि उठ जाओ, चलो समय निकल जायेगा, सुबह का समय बहुत अच्छा होता है, आवाज पकड़ में आती है, नींद नहीं आती है, दिल दिमाग ताजा रहता है, उठ जाओ, उठ जाओ, कर लो, हाथ मुंह धो लो एक बार में जब नहीं जगता है, दोबारा फिर जगाता हूं। मैं यही काम कर लेता हूँ।
कहने का मतलब प्रेमियों यह है कि करने वाले और कराने वाले दोनों को फायदा होता है। प्रचार करने वाले जीवों को जगाने वाले, प्रार्थना बताने वाले, साथ में ले जाने वाले, साथ में योजना बनाने वाले सबको लाभ मिलता है जैसे जानवरों की हत्या करने वाले, मांस निकालने वाले पकाने, खाने और खिलाने वाले सबको पाप लगता है। उसी तरह से परमार्थ के काम में लगाने वाले, करने वाले कराने वाले योजना बनाने वाले सबको लाभ मिलता है।
अबकी बार मौका मिला है
अबकी बार मौका मिला है, अब एक पग आगे बढ़ाना है। जैसे बार्डर है, किसी चीज का बार्डर होता है सीमा हो चाहे किले की हो, एक ही पर इधर से उधर रख दो तो समझो आप दूसरे देश में चले गये. दूसरे जिले में चले गये, गांव की सरहद में चले गये तो बस एक ही पैर तो आगे बढ़ाना है इसलिए 1 मौका है, मतलब ये है कि सुमिरन, ध्यान, भजन यहां आपने किया, यहां से जाने के बाद घर पर भी करना है और कराना है।
गांव में मान लो आपके सतसंगी हैं। अब यहीं से संकल्प बना के जाओ कि हम लोगों को करायेंगे और करेंगे। खुद जब बैठोगे, करोगे, लोग आने लगेंगे। तरीका होता है।
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