होली महोत्सव 2023 का सुहावना संदेश (4.)

✩ जयगुरुदेव ✩ 

युक्ति से काम होता है

बाबाजी ने बताया एक बार में प्रचार के लिए गया था. आज से चालीसो साल पहले की बात है। एक गांव में दो तीन ही प्रेमी थे। एक ठाकुर साहब थे, उनके यहां रुक गया था। बड़े आदमी थे, उनके वहां जगह ज्यादा थी। 
तो बोले यहां सतसंग हो जाये तो ज्यादा लोग आ जायेंगे। दूसरे जो प्रेमी थे वो प्रचार कर आये, फिर ये गये। फिर शाम को 7-8 लोग बैठे दिखाई पड़े, तो रास्ते में जिनका घर पड़ता था, तो चारा काट रहे थे तो ये पहुंचे। 

हम तो पीछे थे, थोड़ा अंधेरा भी था। यो चारा काट रहे थे, लाइट उस समय थी ही नहीं। कहा भाई चलो चलो! चल कर सुन आओ। वो बेचारे मेहनत कर रहे थे, पसीने से तरबतर थे, मेहनत में आदमी को अगर कोई विपरीत बात बोल दे उनके मन की बात अगर न हो तो क्रोध कर जाता है। क्रोध में बोले, ये क्या खायेंगे? बैल बंधे थे, काटकर के चारा उनको डाला। 

ठाकुर साहब हँसे और बोले अच्छालाओ- लाओ हम कटवा देते हैं। चारा कटवाने लग गये। हम और एक प्रेमी पीछे खड़े होकर देख रहे हैं। सोच नहीं पा रहे थे कि यहां रूके कि वहां आगे चलें तब तक वो चारा मशीन को दो चार बार जो काटी जाती है काटे, उसमें फिर वही बोले जो चारा काट रहे थे अच्छा! चलो चलो चलते हैं, लौट के आयेंगे फिर काट लेंगे, चले गये। 

अब लौट कर के जब आये और अपने घर में जाने लगे तब इन्होंने पूछा, तो बोले हमको क्या पता था कि बढ़िया सुनायेंगे। फिर ठाकुर साहब लौट कर के आये और कहा अगर वह आदमी समझ गया तो कितनों को समझा देगा, तो ये होता है तरीका ।

आप यहां आये हो तो किसी न किसी ने आपको बताया ही होगा, समझाया होगा और आपने आजमाया होगा, तब आप आये हो आप पहली बार आये हो, तो आजमाया नहीं, तो आजमाइश करके देख लेना। जो बातें बताई जाती है, उसे ध्यान से सुनोगे, आजमाइश के लायक है तो विश्वास कर लेना ।

कहने का मतलब ये है कि यही है सार, सार असली चीज को कहते है। ये दुनिया तो एक तरह से नकली है, ये किसी के काम आने वाली नहीं है, ये स्वप्नवत है। सत्य तो वो है भजन करना। इस दुनिया को छोड़कर के भगना कुछ समय के लिए ही इस दुनिया को छोड़ो, नहीं तो यह तो स्वप्नवत है। शंकर जी उमा को उपदेश कर रहे थे-

उमा कहहुँ में अनुभव अपना सतहरि भजन जगत सब सपना'

तो वो है भजन करना | सपना रात में देखता है और सुबह भूल जाता है।

"सपनेहूं पाये राजधन और जाप न लागत वार ।" 
ये दुनिया क्या है स्वप्नवत है। यह दुनिया छूट जाने वाली चीज है इसलिए

यह सार नहीं है।

"सार-सार को गहि रहे. थोथा देय उड़ाय"

जैसे आप अनाज को साफ करते हो, भोजन बनाने से पहले, चावल को चालते हो तो उसमें से जो किनकी होती है छोटे दाने होते हैं अगर उसमें से कहीं अगर धूल मिट्टी आ गई उसको फटक कर निकाल देते हो ।

सार क्या है? सुमिरन, ध्यान और भजन सन्तों ने इसको शोध करके इस तरह से निकाला है। किसी भी समय कलयुग में कहीं भी, कोई भी आदमी इसको कर सकता है। कोई सामान लाने की जरूरत नहीं है, किसी तरह से आचरण की जरूरत नहीं है। 

आचरण का मतलब क्या होता है। जैसे नहाना धोना, कपड़ा बदलना। टीका चंदन लगाना ये सब कुछ भी इसमें नहीं होता है। कभी भी, कोई भी कर सकता है। कभी भी कोई भी प्रार्थना, सुमिरन ध्यान, भजन जो ये चार चीजें हैं सन्तमत में प्रमुख हैं। इनको कर सकता है। प्रेमियों इसको अपना लो। यदि नहीं करते हो तो करना शुरू कर दो।

देखो अगर दुकान खोलकर बैठा, न चले तो बंद कर देता है। या उसमें उसका मन नहीं लगता है कुछ दिन देख लेता है, इसमें आमदनी हो रही है कि नहीं हो रही है। 7 बजे दुकान खोल के बैठता था, फिर 9 बजे जाने लगा, फिर 11 बजे जाने लगा, फिर 2 बजे जाने लग गया दिन में। लेकिन जब तब भी ग्राहक नहीं आये तब बंद कर देता है। 

निराश नहीं होना चाहिए। हमारी दुकान क्यों नहीं चल रही है, हमारा व्यवहार तो नहीं खराब है या हमको अनुभव नहीं है या व्यापारी ने अनुभवहीनता में हमें कोई गलत माल, छोटा माल तो नहीं दे दिया, नकली माल तो नहीं दे दिया।

 तो ऐसा नहीं है कोशिश करनी चाहिए। छोड़ना नहीं चाहिए, तब देख लिया जाय ये हम जल्दबाजी में तो नहीं कर गये, तो गलत दुकान बंद करो। ऐसे ही दो लोग नामदान, जिनको सस्ते में मिल जाता है, सतसंग भी ज्यादा नही सुनते हैं और आवाज कान में पड़ गई तो उन लोगों को जल्दी विश्वास नहीं होता है। लेकिन वो तुरंत का तुरंत फायदा चाहते हैं। 

अब इसमें होता है कर्मों का चक्कर, जो कर्म बाधा डालते हैं। बहुत तरह से कर्म आते हैं। जान में अनजान में भी आ जाते हैं। लेकिन कर्मों का विधान ऐसा बना हुआ जैसे जहर का असर जहर को कोई चाहे जान में खा ले चाहे अनजान में खा ले असर करता ही करता है तो मन जब कुकर्मी हो जाता है मन जब यदि कर्म खराब करने लग जाता है, तो मन बगैर बुरा कर्म किये हुए. बुराई, किये हुए मानता ही नहीं है। 

मन बगैर मांस खाये मानता ही नहीं है, शराब पीये बगैर मन मानता ही नहीं है। थोड़ी देर के लिए मन को ही मस्ती आती है. मगर मन के बगैर वो मानता ही नहीं है। निंदा बुराई में लग गया। दूसरों को नीचा दिखाने में, तंत्र, मंत्र में मन लग गया। ये कराता ही कराता है और उससे जो पाप कर्म बन गया उसका फल आदमी को भोगना ही पड़ता है। शरीर से भोगना पड़ता है, आत्मा को भोगना पड़ता है।


जिनकी प्रार्थना की जाये उसी का ध्यान किया जाये

नामदान मिल जाने के बाद भी सुमिरन, ध्यान, भजन नहीं बनता है। करता है, छोड़ देता है। अब आपको समझाने की जरूरत है। समझने की जरूरत है। कुछ दिखाई नहीं पड़ता है, सुनाई नहीं पडता है तो प्रार्थना बोलनी चाहिए। इससे मन थोड़ा सा स्थिर हो जाता है। 

प्रार्थना बोलना भी चाहिए और ऐसी प्रार्थना बोलना चाहिए जिससे मालिक के प्रति लगाव भी बढ़े, जिससे अंतर में प्रेम पैदा होता है तो जिनकी भी प्रार्थना बोली जाय उनका ध्यान किया जाय।

सन्तमत में तो गुरु को बहुत महत्व दिया गया गुरु ही सब कुछ हुआ करते हैं। गुरु ही मदद किया करते हैं, गुरु के मदद के बिना तो आगे बढ़ नहीं सकता है इसीलिए सबसे पहले गुरु को ही रिझाया जाता है, गुरु को ही खुश किया जाता है। 

प्रसन्न कर लोगे तो "जा पर कृपा गुरु की होई. ता पर कृपा करे सब कोई।" राम कृपा करते चले जाते है लेकिन उस समय पर जब प्रार्थना बोली जाय तो ध्यान किसका किया जाय गुरुमूर्ति मूर्ति का मतलब यह नहीं होता है कि पत्थर की मूर्ति बना दिया।


चेतन से चेतन की पूजा होती है

आप समझो कि जो नामदान देते हैं. मौजूदा रहते हैं। उनके चेहरे को याद किया जाये, उनको याद किया जाय, नामदान देते समय आप ये समझो उनको याद किया जाय, गुरु को याद किया जाय याद नहीं रहता है तो भूल जाते है लोग चेहरा वो उस समय पर लोग मूर्तियां बना दिया करते थे. केमरा चलाकर फोटो खींचकर लगा देते हैं। 

मतलब यह है कि ध्यान उनका करना चाहिए। किसका ध्यान करना चाहिए जिसकी प्रार्थना की जाये। इधर उधर ध्यान नहीं जाना चाहिए।

सुमिरन किसको कहते है? माला जपने को आठ माला का सुमिरन करना है। 108 दाने का माला ले लेना ये इस वक्त पर जरूरी हो गया है कबीर साहब खुद भी माला करते रहे।

"माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माहि
मनुवा तो चहुँ दिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं।" 

आपका मन जो इधर उधर रहा तो फिर वो कुबूल नहीं होता है।

"माला फेरत जुग भया मिटा न मन का फेर
कर का मनका छांड़ि के मन का मनका फेर।"

मन लगाकर के सुमिरन करना चाहिए और मन इधर उधर भटक जाता है। ध्यान उनका किया जाय जिनका नाम लिया जाय उनका ध्यान करेंगे, उनसे प्रार्थना करेंगे तो वो देखेंगे और जब देखते हैं तो खुश होते हैं। तो क्या करते हैं, जीवात्मा की सफाई करते हैं जिससे इनके कर्म कट जायें और इसको हम अपने पास बुला लें। 

जब छोटा बच्चा खेलता रहता है. धूल मिट्टी लग जाती है। पिताजी कहकर पुकारता है तो वो देखता है, बाप तो देखता है तो कहता है इसकी सफाई कर दे. घर के दूसरे लोगों को जो उसके मातहत होते हैं। बच्चे बच्चियां पत्नी नौकर होता है तो कहता है। कि इसका हाथ पैर धो दो, इसको मेरे पास ले आओ। इसी तरह से उधर वो दया बरसाते हैं। जीव उधर जाने का अधिकारी बन जाता है। इसलिए सुमिरन कराया जाता है। बराबर सुमिरन करना चाहिए।


जिन्होंने मार 'मन' डाला

ध्यान में भी बीच में कोई नहीं होना चाहिए। प्रार्थना में भी और भजन में भी इसी बात का ध्यान रखना चाहिए। सुमिरन में, ध्यान में बीच में क्या आ जाता है वही मन जो सोचता है। 

मन जहां चला जाता है. चाहे खाने की तरफ चला जाये, कपड़ों के बारे में. दोस्त, रिश्तेदार, परिवार के लोगों के बारे में बीच में यह नहीं होना चाहिए। ध्यान जब लगाओ तो एक ही जगह पर देखो। 

दोनो आंखों से देखो वहीं पर ध्यान रहना चाहिए। यह जो मन है यह जीवात्मा के साथ में है, जो शरीर को चलाती है और जीवात्मा के पावर से मन चलता है। जीवात्मा दोनों आंखों के मध्य बैठी है लेकिन इसका असर शरीर से होता हुआ यहां अंगूठे तक जाता है। 

मन नीचे की ही तरफ रहता है और आत्मा को भी नीचे की तरफ रखता है। जीवात्मा को भी नीचे की ही तरफ झुका कर रखता है। मन से ऐसी यारी हो गई कि एक सिक्के के दो पहलू हो गये।

जीवात्मा के साथ मन चिपक गया है। मन का झुकाव नीचे की तरफ हो गया। जिधर उसको सुख मिलने लग गया, खाने का सुख देखने का सुख, कान से सुनने के सुख में वो मस्त हो गया। 

यह सुख जो है वह क्षणिक सुख होता है। आदमी समझ नहीं पाता है मन जब उसमें लग जाता है। अगर इधर से ध्यान हटा दिया जाये, मन को ऊपर की तरफ यदि कर दिया जाये तो उसको ऊपर का रस जब मिलने लगता है जब मस्त हो जाता है, तो खूब ध्यान लगवाता है। यह उलटना कठिन हो जाता है।

✩ जयगुरुदेव ✩ 
साभार, (पुस्तक) होली  2023
Holi-book-2023

Jaigurudev amratvani 


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