✩ जयगुरुदेव ✩
समरथ गुरु के न मिलने पर बुरे कर्म बनते चले जाते हैं
अगर समरथ नहीं मिलता है, सतसंग नहीं मिलता है, साधकों का साथ नहीं मिलता है तो शरीर के अंगों से बुरे कर्म जाने-अनजाने बनते जाते हैं। सेवा के द्वारा वे कर्म कटते नहीं हैं। इसलिए ये सब नियम इस तरह बनाया गया। यह जीवात्मा का जो लगाव है नीचे की तरफ का, वह ऊपर की तरफ चला जाय ।
"उलटा नाम जपत जग जाना, वाल्मीकि भये ब्रम्ह समाना।"
उलट चाल का मतलब क्या होता है; इधर से ध्यान हटाओ। ऊपर की तरफ जब जायेगा, जिधर भी ध्यान जाता है वही चीज समझ में आती है, वही सुनाई पड़ती है। ध्यान जिधर लगाया जाता है, वहीं चीज समझ में आती है, वैसे दिखाई पड़ती है। इधर से ध्यान हटाओ, उधर की तरफ ध्यान लगाओ।
स्वामी समरथ को कहा गया जो अविनाशी है, शिवदयाल जी महाराज ने "राधा" कहा सुरत को, जीवात्मा को ये जहां से आई है, ऊपर से उतरी है। ऊपर की तरफ कर दो, ध्यान लगा दो तो ये स्वामी के पास पहुंच जायेगी। अभी मन के साथ है फिर स्वामी के साथ चली जायेगी। मन का जहां भंडार है, वहीं पर रूक जाता है फिर आगे नहीं बढ़ पाता है। इसका साथ मन से छूट जाता है।
उस शब्द को जीवात्मा पकड़ लेती है यह जीवात्मा जब शब्द को पकड़ती है तो इसकी चाल बहुत तेज हो जाती है। विहंगम मार्ग मिल जाता है। इस तरह से यह शब्द जीवात्मा को वहां पहुंचाता है। चारों शरीर जब उतरते हैं, स्थूल शरीर, कारण शरीर, सूक्ष्म शरीर, लिंग शरीर। तब यह शब्द को पकड़ के जाती है।
यह नियम है कि मानसरोवर में स्नान करना जरूरी है। अगर मानसरोवर में स्नान नहीं करेगी तो वहां जाने के लायक नहीं रह जायेगी। निर्वस्त्र हो जाती है, ये चार शरीर छूट जाते हैं। मानसरोवर में स्नान करके हंस रूप हो जाती है तो एकदम से सफेद होती है। जब तक इस शरीर के अंदर रहती है जीवात्मा, तो यह जीवात्मा कहलाती है। जब ये आगे बढ़ती है तो इसको सीव कहते हैं। मानसरोवर में नहाने धोने के बाद हंस कहलाती है।
सत देश में प्रवेश के लिए
वक्त के सन्त का पासपोर्ट होना आवश्यक है।
सत देश की जीवात्माएं ये देखती हैं कि आ रही है हमारे पास तो सफाई कराती हैं। सफाई करने के बाद एक दम निर्मल हो जाती है तो इसको ले जाते हैं खुशी के साथ। कभी ऐसा भी होता है कि अचानक नहा धोकर पहुंच गई तो वहां के जो द्वारपाल होते हैं, वहां का भी बार्डर है, वहां पूछते हैं कैसे आये, किसने भेजा, यहां पर कैसे पहुंचे, तो कहता है ये हमारे गुरु हैं ऐसे दिखा दिया जाता है तो अंदर प्रवेश मिल जाता है।
पासपोर्ट दिखा देता है, तो कहता है जाइये, सलाम किया जाता है। जो पुराने सन्त होते हैं उनके जीव होते हैं, गुरु जिनकी सम्भाल करने को कहकर के गये, तो वो भी ऐसे हो जाते हैं, अपना परिचय दे देते हैं। हम उनके हैं, स्वागत करते हैं कि जाइये जाइये। वहां पहुंच जाती है, जीवात्मा तो नीचे देखती भी नहीं है। इधर देखना भी नहीं पसंद करती है, इतनी गंदगी है, इतनी बदबू है यहां कि बर्दाश्त नहीं कर सकती है।
ऊपर से आई थी तभी नहीं बर्दाश्त कर पा रही थी। वहां शीतलता है, सुंदरता है, खुशबू है, वातावरण अलग है। शुरू में उतारी गई तो बहुत घबड़ाई । एक साथ उतारी गई। कुछ दिन यहां बर्दाश्त कर लें फिर उसे नीचे उतारा गया। ध्यान नीचे की तरफ से हटा करके दोनो आंखों को एक जगह पर टिकाओ। थोड़ी देर के लिए भी मन रुक गया और आंखें एकाग्र हो गई, रुक गई दोनों आंखें एक जगह पर तो समझो उतने में ही काम बन जाता है।
"पलटू सुमिरन सार है, घड़ी न बिसरै एक।"
उनको याद करते रहेंगे, एक जगह जब नजर टिकाये रहेंगे, एक घड़ी के लिए भी उधर नहीं हटेगी, बस तड़प जग गई तो काम बन गया। तड़प बड़ी चीज होती है। इच्छा अगर नहीं पैदा हुई तो कोई फायदा नहीं होता है इसलिए तड़प होनी चाहिए, इच्छा होनी चाहिए कि अब हमको दोबारा इस शरीर में, इस दुनिया में, इस दुख के संसार में दुख झेलने के लिए नहीं आना है। तड़प जब जगती है तो तड़प को मालिक बर्दाश्त नहीं कर पाता है। रोना बर्दाश्त नहीं कर पाता है। इसलिए कहा गया है-
"हँस हँस कंत न पाइया, जिन पाया तिन रोय"
जिसकी आंख से जो आंसू गिरे तो उसको मालिक बर्दाश्त नहीं कर पाता है। वो मदद कर देता है, खुद आ नहीं सकता ! किसके द्वारा मदद कराता है? अपने भेजे हुए संत के द्वारा वो मदद कराता है। जो मनुष्य शरीर में ही आते हैं, समझाते हैं, बताते हैं। ध्यान, भजन करने की युक्ति बताते हैं, नामदान देते हैं। उनके द्वारा मदद कराते हैं तो वो जब मदद कर देते हैं। कह देते हैं- तुम सहारा दे दो इनको, तो सहारा दे देते हैं, तो उनको वो बुला लेते हैं।
जिस धारा, जिस शब्द से यह जीवात्मा उतारी जाती है। यह जीवात्मा जब शरीर के अंदर रहती है तो शब्द को ये खींचती है और जब इससे निकलती है तो शब्द इसको खींचता है। जीवात्मा शब्द को पकड़ती है, खिंचती है, निर्मल हो जाती है, साफ हो जाती है। जब इससे वो निकल जाती है तो वो (शब्द) इसको खींचता है। तो समझो यह खिंच जाती है।
ध्यान का मतलब ये होता है कि सिमटाव करो। नीचे की तरफ से ध्यान को हटाओ और ऊपर ये शक्तियां फैली हुई हैं, जब ऊपर आ जायेंगी आंखों के साथ तब इसकी ताकत ज्यादा हो जायेगी ।
साभार, (पुस्तक) होली 2023
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अंतर्यामी बाबा उमाकांत जी महाराज |
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