बाबा जी की वाणी

जयगुरुदेव 

शिवनेत्र कलयुग में खुलता है।
सुरत शब्द योग में शिवनेत्र खुल जाता है। क्योंकि अन्तर ज्ञान नेत्र खुलने ही पर स्वर्ग बैकुण्ठ शक्ति लोेक ईश्वर धाम दिखाई देता है।
गुरु के चरन बिन्दु स्मरण करने से दिव्य आंख हो जाती है। केवल उदर पूर्ति अर्थ का प्रचार होने से और पैसे मांगने पर शिवनेत्र कोई नहीं खोल सकता है।

स्त्री पुरुषों के लिये कलयुग में शिवनेत्र सुरत शबद की साधना से खुल जाता है ऐसा मेरा निजी विचार है क्योंकि गुरु के पास मैं भी गया था हमारे ऊपर गुरु कृपा हुई।
साधक के लिये बहुत बाधायें हैं हर समय साधक को गुरु के सतसंग की जरूरत है जिस तरह बच्चा माता की क्षणरक्षता में  पलता है उसी तरह साधक गुरु की देखरेख में साधन करेगा तब पल सकेगा।

संसार में फंसना साधक के लिये बहुत सुगम है परन्तु फंस कर निकलना बहुत मुश्किल है संग दोष से हर मनुष्य बनता और बिगड़ जाता है इसी तरह परम सन्त से बिछुड़ा हुआ जीव संत सतगुरु का संग पाकर प्रभु के साथ जुड़ जाता है। और सर्वदा के लिये मुक्त तथा आनन्दित हो जाता है।
जब तक चार शरीरों के आवरण न उतरेंगे तब तक सुरत जन्म-मरण से कभी मुक्त नहीं हो सकती है।

सुरत ने चार कपड़े पहिन रखे हैं।
प्रथम-सुरत त्रिकुटी स्थान पर लाकर खड़ी की गयी है इसी त्रिकुटी ब्रह्म स्थान पर सुरत का बहुत बड़ा स्वागत हुआ और बहुत बारीक झिल्ली सुरत के ऊपर डाली गयी जिसमें सुरत सब कुछ देखती रहे और सुरत को बेकली मालूम न हो।
दूसरा कपड़ा- सहस दल कंवल में पहना दिया गया। 
तीसरा कपड़ा- स्वर्ग बैकुण्ठ में।
चैथा- मोटा कपड़ा मृत्यु लोक में।

अब बिना गुरु कृपा कैसे कपड़ों को उतारे और दुःख के देश से आजाद हो ।
अब तो गुरु कृपा का सहारा लेना ही होगा। गुुरु खोजो जो उस प्रभु को पा चुका है।

 सहसदल कंवल में पहुंचकर ज्योतिस्वरूप का दर्शन होता है उस समय यह मालूम होता है कि इसकी किरणें तीनों लोकों का काम देती हैं। इसी ने नर्क स्वर्ग बैकुण्ठ चौदह भवन चौदह तबक सूर्य लोक चन्द्रलोक तारागण लोक, सुमेर पर्वत काग भुसुण्डि नीला गिर पर्वत त्रिवेणी चैरासी चार खान अण्डज पिण्डज उष्मज अस्थावर तथा दुःख सुख न्याय अन्याय ऊंच नीच छोटा बड़ा और भी बहुुत सी जातियां बनाई हैं।

इनके मुख में होकर तुलसी दास जी ने बहुत से ब्रह्माण्ड देखे थे और तरह तरह की रचना का अनुभव शिवनेत्र खुलने पर किया था। प्रेमी जनों यदि शिवनेत्र पाना है और मनुष्य जीवन में रह कर शिवनेत्र खुलाना चाहते हो तो आओ।
गुरु ने साधना करते समय मुझ से कहा था कि किसी के कारोबार को शिवनेत्र प्राप्त करने हेतू छोड़ने की जरूरत नहीं है खाना अच्छा शुद्ध खाओ और कपड़े साफ पहिनो तथा अच्छे मकानों में रहो और फल फ्रूट चावल गेंहूँ चना सब्जियां खाओ।

शिवनेत्र प्राप्त करने के लिये या सुरत शब्द योग करने के लिये कुछ वस्तुओं का त्याग करना पड़ेगा।
जैसे- मांन्स मछली अण्डा गांजा भांग अफीम किसी जीव की हिंसा भी नहीं करनी है और न ये गन्दी वस्तुयें खायेंगे पीयेंगे। परमार्थ में यह वस्तुऐ बहुत हानिकारक हैं। गन्दी वस्तुओं को त्यागो।
शिवनेत्र पाने के वास्ते जप तप तीर्थ यज्ञ दान और अनेक प्रकार के संयम किये थे परन्तु वह नहीं खुला तो तुम्हारा जीवन सर्वथा व्यर्थ चला गया जो बचा है वह भी जाने वाला है।

जो लोग धर्म की पुस्तकें बनाते हैं उन्हें जरा सा अपनी आकबत के लिये सोचना चाहिये कि हमारा शिवनेत्र खुला हमने भगवान को पाया। पुस्तकें बहुत छांट छांट कर लिख मारी। और यह सत्य है कि धन कमा लिया परन्तु उनकी आत्मा अंधेरे में रही। और आज भी है आगे भी सजा होगी नर्क और चैरासी में जो पाप कर्म का फल पाते हैं।
नाम आवाज शब्द के साथ सम्बन्ध करके जीव अपने घर में पहुच सकता है।
शिवनेत्र की साधना जो भी पुस्तक को पढ़कर करेगा उसका अवश्य नुकसान होगा।
गुरु द्वारा साधना करना यह मेरा कहना मान लेना।

आज लोगों ने भौतिकवाद की बजह से पराविद्या को लोप कर दिया जो सुख की खान है लोग मशीनरी में उलझते जाते हैं। इसी से लोगो को चैन नहीं मिल रहा है काल भाव वाली शक्तियों का प्रादुर्भाव होगा और पवित्र शक्तियां छुपेंगी।
शिवनेत्र पाने वाली साधना में भूत भविष्य वर्तमान का दिखाई देता है मुझे विश्वास है। पर तुम कहीं इसलिए चले न आना कि धन पुत्र मुकदमा, बीमारी दूर कर दें या संसारी चीजें देवों। शिवनेत्र के लिये आओ ज्ञानचक्षु खुलेगा अवश्य तुम महान् काम के लिये आओ।

मुझे बहुत बड़ा विश्वास है कि लोग शिवनेत्र दिव्य दृष्टि नहीं चाहते हैं उन्हें स्वर्ग, बैकुण्ठ, जीते जी नहीं चाहिये, चाहिए क्या संसार की सब वस्तुयें स्वर्ग तो मरने की बाद मिल ही जायेगा।
कितना छोटा विचार है जीते जी नहीं मिला मरने पर स्वर्ग कभी नहीं कभी नहीं।
लोग धन के लोभी होने से सर्प बन कर उसी स्थान के इर्द गिर्द रहते है। जहां पर धन होता है यह सब रहस्य शिवनेत्र पाने पर दिखाई देता है।
जो लोग अधिक कामी होते हैं उनको जन्म बन्दर या कुत्ते की योनी मिलती है इसी प्रकार स्त्री के लिये है।
जो जीव हिन्सा करते हैं जैसे- गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी, मछली, खाते और पीते हैं उनको घोर नर्क  में जम पुलिस ले जाती है और हमेशा मार खाते हैें।
रिश्वत लेने का यही भोग भोगना होता है।

जयगुरुदेव 

परम बाबा जयगुरुदेव जी 



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