हमारे गुरु का सत्संगी कानपुर के पास एक गांव में रहता था उसका समय आने जाने में निकल जाया करता था क्योंकि उसको 150 रु. वेतन मिला करता था लेवन ऑफिस मे काम करता था भजन के लिये उसके पास समय बहुत कम या तो बिलकुल नहीं बचता था हमेशा सोचा करता था कि नौकरी छोड़ दूं दिन रात उधेड़ बुन में था।
कुछ दिन पीछे स्वामी जी कानपुर पहुंचे और संकटप्रसाद के निवास स्थान पर रहे उनसे मिलने वाले कोमल प्रसाद व्यक्ति ने कहा कि स्वामी जी समय नहीं मिलता है भजन कब होगा और जीवन नैया पार होगी या नहीं रात दिन सोच रहता है समय बहुत थोड़ा है क्योंकि 42 वर्ष की उम्र हो गई अब क्या होगा मुझे रात दिन सोच रहता है क्या करुं।
उत्तर देते हुये स्वामी जी ने कानपुर में कहा कि जब तुम टट्टी जाया करते हो उसी समय भजन पर बैठ जाया करो, वहां तुम्हें अवश्य समय निकल आयेगा दो काम एक साथ होंगे लेटरिंग और भजन एक साथ हो लेगा।
स्वामी जी की बात उसको ध्यान में आ गई और उसने इस बात को गह लिया, अब कोमल प्रसाद रोज लेटरिंग जाते समय भजन करने लगे और नित्य दफ्तर जाना समय से रात्रि 10 बजे पर पहुंचना बराबर चलता रहा हम सभी लोग अपने अपने स्थान चले गये।
कुछ दिन बाद मुझे आने का फिर मौका मिला और मैं उनके गांव कानपुर के पास गया रात्रि को कोमल प्रसाद के घर पर रुका। प्रातः काल हुआ वह जल्दी में लेटरिंग गये और साथ भजन पर बैठ गये एकाएक सुरत शब्द योग की साधना से सुरत ऊपर खिंच गयी और कोमल प्रसाद उसी गन्दी टट्टी में गिर गये बहुत देर होने पर मैंने उनकी धर्मपत्नि से पूछा कि आज कहां गये है उसने कहा कि लोटा लेकर लेटरिंग गये हैें।
मैं उन्हें खेतों की मेड़ पर खोजने गया तो देखता हूं कि कानों में अंगुलिया लगी हैं और अपने ही पाखाने में गिर गये उन्हें बिलकुल होश नहीं हैं मेरे बहुत हिलाने पर भी उन्हें होश न आया। तब मैेंने उनके लोटे का पानी उनकी आंखों मे मारा।
उस पर भी मुझे आधा घण्टा हो गया तब उन्होंने आंख खोली ओर मुझे अनजान अवस्था में मुझे एकाएक होकर देखते रहे जैसे एक नन्हा बच्चा किसी को एकटक देखता है कुछ देर बाद उन्होंने पहिचाना।
मैंने कोमल प्रसाद को उठाया और कहा कि आपको पाखाना करते हुए ही मौका भजन करने का मिला। कोमल प्रसाद ने कहा कि मैं गुरु के मुख से सुन चुका था कहीं मौका न मिले तो लेटरिंग के समय कर लेना। मेरे पास भजन करने का वहीं समय है।
फिर उन्होने सुनाया कि हमारी रूह यानी आत्मा ऊपर को चढ़ गयी और बहुत ऊंचे निरमल प्रकाश देश में होकर आयी है वहां बहुत आनंद है उसको क्या कहूं गुरुजी को सुनाउंगा।
मैंने कहा तुम छिपा कर रखना किसी से कहना नहीं साधना संभाल कर करो।
जय गुरु देव
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बाबा जयगुरुदेव जी महाराज |
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Jaigurudev