बाबा उमाकान्त जी ने दिया सन्देश- नदियों को गंदा मत करो

जयगुरुदेव

14.11.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.) 

बाबा जयगुरुदेव ने दिया आदेश- उमाकान्त नये लोगों को देंगे नामदान और पुरानों की करेंगे संभाल

आपको मनुष्य शरीर मिला है, अबकी बार चूकना नहीं है

बाबा उमाकान्त जी ने दिया सन्देश- नदियों को गंदा मत करो

निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 29 सितम्बर 2022 प्रातः हिसार (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि वक्त गुरु को खोज तेरे भले की कहूं। वक्त के शिक्षक, डॉक्टर, सन्त सतगुरु की जरूरत पड़ती है। कोई कहे कि जिन मास्टर साहब ने हमारे पिताजी को पढ़ाया और वो बड़े अधिकारी बन गए, अब हम भी उन्हीं से पढ़ेंगे, अधिकारी बनेंगे तो समझो वह मास्टर साहब तो अब रहे नहीं तो अब कैसे उनसे पढ़कर तुम अधिकारी बन सकते हो? इसीलिए समय के (जीवित) मास्टर, डॉक्टर, गुरु के पास जाना पड़ता है।

ये नये लोगों को नामदान देंगे, पुरानों की संभाल करेंगे

गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) जाने से पहले कह कर गए थे मुझ नाचीज के लिए कि यह नए लोगों को नामदान देंगे और पुरानों की संभाल करेंगे। अब सभांल की बात क्या है, जो नामदानी हो गुरु महाराज के, आप गुरु महाराज पर करो विश्वास, उनके आदेश का करो पालन। उनका बताया हुआ सुमिरन ध्यान भजन करना शुरू करो और अंतर में उनके रूप को देखो तो आपका भटकाव खत्म हो जाएगा, आपकी शंका खत्म हो जाएगी। अंतर में जब वह आपको मिल जाएंगे तो आपको उनसे प्रेम हो जाएगा और आपका काम बन जाएगा, नाम भी हो जाएगा। तो गुरु के आदेश के पालन को ही गुरु भक्ति कहते हैं, मन मुखता के पालन को नहीं।

अबकी बार चूकना नहीं है

अबकी बार दांव लग गया (मनुष्य शरीर मिल गया) तो दांव में बाजी जीत ही लेना है। इसलिए पूरे समरथ सन्त सतगुरु को खोजो जो (आत्म कल्याण का) रास्ता भी बतावे, रास्ते पर भी चलावे और मंजिल तक पहुंचावे भी। कबीर साहब ने कहा था- पानी पिए छानकर और गुरु करे जानकर। जब तक गुरु मिले नहीं सांचा तब तक गुरु करो दस पांचा। दत्तात्रेय ने 24 गुरु किए थे लेकिन जब असली गुरु समरथ गुरु मिल गए थे तो उनका काम बन गया और उसी पर उनको विश्वास हो गया था। सभी गुरु इसी हाड मांस के शरीर में रहते, मां के पेट में ही पलते, इस दुनिया में आते, धरती पर चलते, आसमान के नीचे रहते, यहीं का अन्न-जल खाते-पीते, टट्टी पेशाब करते हैं तो बाहर से हाड-मांस से उनकी पहचान नहीं हो पाती है। इसलिए कहा- जो कोई कहा सन्त हम चिन्हा (पहचान), (गो) स्वामी कान हाथ धर लीन्हा। कहा है- गुरु को मानुष जानते ते नर कहीये अंध, महा दु:खी संसार में, आगे यम के फंद। तो गुरु की पहचान बाहर नहीं, अंतर में होती है।

नदियों को गंदा मत करो

महाराज जी ने 1 जून 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि नदियों को आपने गंदा कर दिया तो आपको शुद्ध जल कहां से मिल पाएगा और कहां से स्वस्थ रह पाओगे? गंदा पानी अगर पीने लग जाए तो आदमी ऐसे ही रोगी हो जाएगा। तो सब लोग इसका बराबर ध्यान रखो कि प्रकृति की चीजों को हमको छेड़ना नहीं है। ये हमारे काम की चीज है। और यह शरीर भी बड़े काम की चीज बनाया है, इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। सही जगह पर इसका उपयोग करना चाहिए। खाने, पहनने इंतजाम के लिए मेहनत कर लेना चाहिए लेकिन इसके रहते-रहते जब इस जीवात्मा का कल्याण करने के लिए शरीर मिला तो उसके लिए इसका उपयोग ठीक ढंग से करना चाहिए।

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परम् संत बाबा उमाकांत जी महाराज 





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