जयगुरुदेव अमृतवाणी
*64. संस्कारी जीव*
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कुल मालिक दयाल पुरुष अनामी महाप्रभु के मौज से जब सतलोक से उतर कर इस मृत्युलोक में मनुष्य शरीर में आते हैं सन्त सतगुरु, तो उनको पूरा पता होता है कि किन किन जीवों को उन्हें सतलोक पहुचाना है। प्रकट होकर जब इस दुनयिा में प्रभु का सन्देश सुनाते हैं सतसंग करते हैं तो वो इस भूमण्डल के उन सभी जगहों में जाते हैं जहां जहां वे संस्कारी जीव जन्म लिए रहते हैं या रहते हैं। संत सतगुरु इसके लिये नाना प्रकार के जरिया देश-काल के अनुसार परिस्थितियों के मुताबिक बताते हैं वे जैसा उचित समझते हैं उसके अनुसार ही वे गांव, नगर, क्षेत्र, देश में विभिन्न विभिन्न तथाकथित जाति धर्म समाज मे जन्म धारण करते हैं और अपना भेष भूषा ग्रहण करते हैं।
वास्तव में वे जाति धर्म देश आदि इन सब भेदों से परे होते हैं। वे केवल मनुष्य रूप में परमात्मा होते हैं। और इस दुनिया में वे केवल विभिन्न रूप रंग के शरीरों में बैठायी गई आत्मा को ही देखते हैं। वे उस संस्कारी भाग्यशाली आत्मा के पास जाते हैं पास बुलाते हैं सम्पर्क करते हैं। उससे प्रेम करते हैं। फिर नाम दान देकर अपना भेद देते हैं। उनको अपने से जीते जी एकाकार करते हैं। और प्रेम की शब्द डोरी से जोड़कर अपने साथ उसके निज धाम सतलोक पहुंचाकर उसे मुक्त कर देते हैं।
*65. रूप रंग भिन्न*
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संत सतगुरु जब इस म्रत्युलोक में अपना पार्थिव देह छोड़कर चले जाते हैं तो फिर कभी उसी रूप में नहीं आते हैं। जब भी फिर आते हैं उनके चोले का मनुष्य शरीर का रूप रंग बदला होता है। और वे तभी इस संसार में जन्म ग्रहण करते हैं जब दया देश सतलोक से सतपुरुष उन्हें यहां कुछ जीवों को अपने लोक में वापस बुलाने हेतु लिवा लाने हेतु भेजते हैं। वे प्रकट सन्त जब जन्म यहां ले लेते हैं तो अनूकूल समय पर उनका स्वयं प्रकाटय प्रकाषित होने लगता है। प्रकट संत इस कलयुग में गत साढ़े सात सो वर्षों से ही आ रहे हैं। इसके पूर्व यानि संत कबीर साहब के पहले कोई भी प्रकट संत इस धरती पर नहीं आया।
66. भेष से अंजान
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बीसों साल दिन रात साथ रहो लेकिन बाबाजी के खोपड़ी में क्या है तुम कभी नहीं जान सकते । सैकडों साल भी महात्मा के पास रहो लेकिन जब तक वे कुछ अपना भेद नहीं बताते कोई उन्हें नही जान सकता। अनेक महात्मा आये आप के बीच में साथ में रहे लेकिन उन्हे कोई लेश मात्र भी नहीं समझ सका कि उनके पास क्या है। जब उनको आप नहीं समझते तो वे चुपचाप आपके ऊपर दया का संस्कार डालकर वापस अपने लोक में इस संसार से चले गये।
*67. सुस्ती नहीं*
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साधन भजन करने में सुस्ती और आलस मत करो। दरवाजे पर बिना नागा रोज बैठो। इतना आसान कर दिया गया कि भजन करने के लिये स्नान करना जरूर नहीं, किसी आसन पर बैठना जरूरी नहीं, बैठकर, सोकर, लेटकर, कुर्सी पर, बिस्तर पर, जमीन पर, रजाई ओढ़कर, जैसे सुगम हो वैसे रोजाना भजन करो। कभी समय न मिले तो पखाना करते हो वहीं भजन कर लो। बताओ सब नियम बंधन हटा दिया गया। तब भी भजन करने में सुस्ती तुम्हे आती है। तो थोड़ा सयंम से रहो। एक महीना ब्रह्मचर्य का पालन करो। संयम रखोगे ब्रह्मचर्य एक महीना रहोगे तो आलस नहीं आयेगा। सुस्ती नहीं होगी। बदन में फुर्ती आ जाएगी इसलिये भजन करलो। अपना काम करलो। और भव सागर से जीते जी निकल चलो। मैं तो ले चलने के लिये आया हूं ।
*68. नित्य अवतार*
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नित्त अवतार सन्त होते हैं। वे चौथे पद के निवासी हैं। वे चौथे पद सच्च खण्ड दयाल देश से इस दुनियां मे आते हैं
समय समय पर। और उनमें कोई भेद नहीं। वे एक ही होते हैं। इसीलिये कहते हैं मैं ही कबीर था, मैं ही तुलसीदास था, मैं ही राधास्वामी था। उनमें कोई भेद नहीं, पद में भेद नहीं, शक्ति में भेद नहीं, बस समय समय पर अलग भेष भूषा में अलग अगल स्थान पर आते हैं और सभी एक ही काम करते हैं, जीवात्माओं को बोध कराकर सच्चखण्ड में पहुंचाने का। लेकिन जो शरीर छोड़ कर चले गये उनसे काम अब नहीं होगा। जो वर्तमान हैं उनके साथ रहोगे तो काम बन जायेगा। इसलिये कहता हूं कि मैं समय समय पर तमाम गद्य पद्य लिखा लिखवाया गया अब जो सामने है उसको पढ़ो उसके आदेश में चलो तब काम होगा। सभी सन्तों का काम एक, सभी संतों का देश एक, सभी सन्तों का उपदेश एक और सभी सन्तों की शक्ति दया, कृपा एक ही है। प्रकाश एक ही है।
*69. निमित्त अवतार*
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निमित्त अवतार अलग अलग मण्डल से अलग अलग लोक से इस पाप पुण्य के मिलौनी के देश में आते हैं, उनके शक्ति में भिन्नता होती है। जो स्वर्ग बैकुण्ठ से आते हैं उनसे अधिक शक्ति शक्तिलोक से आने वाले महात्मा की होती है और उससे अधिक शक्ति ईश्वर लोक से जो आता है उसकी होती है। उससे ज्यादा शक्ति उसकी होती है जो ब्रह्म से या उसके भी ऊपर से आते हैं, अभी तक इस दुनिया में श्रीकृष्ण सबसे उंचे योगेश्वर पद से आये थे। इनसे नीचे राम, बुद्ध, ईसामसीह, मुहम्मद, महावीर ये सभी एक ही पद से आये थे। इनसे नीचे बराबर शक्ति वाले थे। इन्होंने समय समय पर अपना काम किया। निमित्त काम पूरा करके शरीर छोड़ कर वापस अपने लोक में चले जाते हैं।
ये किसी आत्मा को मुक्त नहीं करते। मुक्ति देने की शक्ति उनमें नहीं होती। जो आये उन्होंने किसी को मुक्ति नहीं दिया। हां जिस पर कृपा हुई, कर्म कराकर उपरी लोको में जरूर पहुंचा दिया जहां से भोग वहां का भोग कर फिर इस दुनिया में आना होता है।
*70. पराया देश*
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यह संसार काल का देश है। इस संसार में प्रकट सन्त का आना पिछले साढ़े सात सौ वर्षों से हो रहा है। पहले सन्त कबीर साहेब आये। इस संसार में दुनियादारों ने अभी तक किसी भी सन्त को नहीं पहचाना। दुनियादारों ने सभी सच्चे सन्तों को तन मन वचन से हर प्रकार के कष्टों को पहुंचाया है। सन्त जब गरीबी में आये तब नहीं पहचाना, अनपढ़ रहे तब नहीं पहचाना, अमीरी में आये तब नहीं पहचाना, पढ़े लिखे आये तब नहीं पहचाना, दुनिया के लोगों ने सदा ही सन्तों का निरादर किया, उन्हें दुत्कारा उनकी अवज्ञा की लेकिन सभी सन्तों ने दुनियादारों के दिये हर तकलीफ को बर्दाश्त किया, ख़ुशी ख़ुशी झेला और सभी सन्तों ने बर्दाश्त करने का बेमिसाल नमूना पेश किया।
वास्तव में दुनियादारों के लिये सन्तों को पहिचानना असंभव है, सन्तों को वहीं पहिचान पाता है जिसको वे अपना पहिचान स्वयं कराते हैं। सन्त इस दुनिया में आते हैं यहां के हर तकलीफ को बर्दाश्त करते हुए अपने उन जीवात्माओं को जिनको वापस निज सत्तलोक में आने का आदेश सत्तपुरुष ने दिया है, बोध कराकर इस दुनिया में रहते हुए इस दुनिया में से काल के देश में से निकाल कर उड़ा ले जाते हैं अपने साथ, और सत्लोक में पहुंचा देते हैं।
sant bodh
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जय गुरु देव |
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