✪ जयगुरुदेव अमृतवाणी ✪
➥ मैं वो इंसान हूं और तुम्हें यह विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुमने जैसा बताया है भजन, ध्यान, सुमिरन चित्त लगाकर लगन के साथ किया और तुम्हारी तीसरी आंख, दिव्य दृष्टि नही खुलती है तो मैं जिम्मेदार हूं लेकिन इसके पहले तुम्हें जिम्मेदार बनना होगा।
➥ अभी दुष्टों का विनाश नहीं हुआ है और दुष्टों का विनाश दुष्ट ही करते हैं। जब ऐसा होगा तब परिवर्तन हो जाएगा।
➥ यह बात जरूर बता देता हं कि विश्व के जितने मुल्क हैं सब जगह के लोग यहां आयेंगे। इस मन्दिर को जरा तैयार हो जाने दीजिए।
➥ यहां सुनने समझने और सोचने के लिए आये हो आप सुनो भी समझो भी उस पर विचार भी करो। सुनोगे समझोगे सोचोगे तो कुछ निष्कर्ष निकल आयेगा। सुनोगे नहीं समझोेगे नहीं, विचार नहीं करोगे तो कुछ भी समझ में नहीं आयेगा। यह सत्संग है।
➥ बड़े बड़े विद्धान हैं, बड़ी बड़ी विद्या पढ़ डाली है, बड़ी बड़ी चीजे बना डाली हैं पर उनसे पूछों कि यह बताओ कि पृथ्वी पानी पर है या पानी पृथ्वी पर है, कोई नहीं बता सकता। सच यह है कि सब एक दूसरे से जकड़े रहते हैं। जब शब्द खींचता है तो सब पृथ्वी बड़े बड़े पहाड़ भुर भुर होकर खत्म हो जाते हैं।
➥ महाभारत पांच हजार वर्ष का ही तो है। इसमे विश्व के सभी योद्धा युद्ध करने आये थे। और उनका सफाया हो गया। इतना ही नही जो बचे खुचे 53 करोड़ यदुवंशी थे उनका भी सर्वनाश हो गया। इसके पहले भगवान कृष्ण ने सभी को समझाया ओर उनके समझाने पर जब राजा प्रजा किसी से नहीं माना तो उन्होने सबका नाश कर दिया।
शक्तियां तो जिसका राज्य है उसी का हुक्म बजाती हैं। जब जब आबादी बढ़ती है तब तब ये शक्तियां समझा बुझा कर सही रास्ते पर ले आती हैं और नहीं मानती हैं तो उनका संहार कर देती हैं लेकिन महात्मा बार बार समझाते हैं बचाते हैं।
➥ इस वक्त आबादी बहुत बढ़ गयी है, यदि सन्त न होते तो अब तक कुछ का कुछ हो गया होता। सन्तों की वजह सेही कुछ नहीं हो पा रहा है आपको यह नहीं मालूम। बात नहीं मानोगे तो कोई न कोई घटना होगी ही।
➥ यदि तुम पूजा पाठ नहीं कर पा रहे हो तो यदि तुम्हारे यहां कोई भूखा प्यासा आ जाय तो उसको रोटी खिला दो, उसकी सेवा कर दो। इसके पुण्य से महात्मा को दया आ जायेगी और मालिक तुम्हारे ऊपर दया कर देगा।
➥ ये जो घटनायें आप सुन रहे हो ये समय की बात है। ऐसी घटनायें पहले भी होती रही हैं। पृथ्वी पर मनुष्य अपने नियम को भूल गया वो चाहे घर की हो, परिवार की हो, समाज या देश की हो, धर्म कर्म की हो। कुदरत जब छटनी करती है तो ऐसा ही होता है।
➥ कपटी मत बनो। गुरु से कोई दुराव छिपाव मत करो। कुछ उन्होंने पूछा तो सही सही बताओ। कुछ बताते हो कुछ छिपा लेते हो। वो समझते सब कुछ हैं। इशारे में सब समझाते हैं। खोलकर कह दें तो चले जाओगे। उनसे कोई दुराव मत रक्खो।
➥ महात्मा जो कुछ कहते हैं उसे न तो आप समझते हो और न ही पूछते हो, भ्रम में पड़ें रहते हो। इसी में समय निकल जाता है फिर पीछे पछताते हो।
➥ हमारे स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि सत्संग में हर प्रकार के जीव आते हैं। महात्मा सबकी भलाई की बात करते हैं। वो चाहते हैं कि सबकी भलाई हो जाय। आप लोग गन्दे विचारों से उल्टी सीधी बातें करते हो। सीधी सादी बातें करो, अपनी सेवा में चुस्त रहो। सेवा में चोरी करोगे तो भजन में भी चोरी करोगे।
➥ देश विदेश की सरकारें और सेठ साहूकारों को अब रोने के दिन आ गये।
➥ जो लोग अच्छा काम करते हैं उनसे लोग अक्सर नाराज रहते हैं लेकिन अपना सही काम करते रहना चाहिए, उससे हटना नहीं चाहिए।
➥ पक्का इरादा करके भजन में बैठो कि हमें कुछ करना है तो भजन बनेगा।
➥ चेला नहीं बनना है, भजनानन्दी बनो। चेला बनना आसान नहीं। सेवक बनो और सबसे छोटे होकर सेवा करो तो मालिक की प्रसन्नता हासिल होगी।
➥ जब जीवात्मा इस पंच भौतिक शरीर को छोड़कर साधना में लिंग शरीर धारण करती है तो लिंग लोक में आहार है केवल सुगन्धी यानी खुशबू। यहां इतनी खुशबू है कि खुशबू की बरसात हो रही है। अगर सुगन्धि नही मिले तो स्वर्ग बैकुण्ठ में कोई जीवात्मा नहीं रह सकती । सभी देवी देवता वहां सुगन्धि का आहार करते हैं।
➥ यह सारा संसार भ्रम का है, चलायमान है परिवर्तनशील है, क्षण भंगुर है। यह मनुष्य शरीर ही किराये का मकान है। इसमें रहकर कुछ कर लो। जब इस रास्ते पर लग जाओगे, चल पड़ोगे और शरीर छूट भी गया तो फिर दुबारा मानव जन्म मिल जायेगा।
➥ तुम दुनिया में रहो किन्तु तुम्हारे मन में दुनिया नही रहनी चाहिए। ऐसा होने पर ही ध्यान भजन कर सकोगे। तुम्हारे हर श्वांस पर भोग निश्चित है और वह तुम्हे मिलेगा।
➥ परेशानियां तो आयेंगी ही यह बराबर बताया जाता है लेकिन भजन करने लगो तो उनका असर तुम्हारे ऊपर कम होगा।
➥ लोग चिट्ठियां लिखते हैं कि आप हमारे माता पिता और गुरु हैं। हम आपके सहारे हैं, हमारा प्रेम आपसे हो चुका है, हमें कुछ अच्छा नहीं लगता है, हमारी सुरत आकाश मे चढ़ा दीजिए, हमें दर्शन दीजिए बड़ी बैचेनी है आदि आदि।
चिट्ठियां लिखकर और उत्तर मांगकर महापुरुषों को परेशान करते हैं। जो रास्ता दया करके दो घण्टा साधन का बताया गया है उसमे उनका मन पांच मिनट भी नहीं लगता है और बैठते भी नहीं हैं। नामदान देते वक्त बताया गया था कि चौबीस घण्टे में से कुछ समय निकालकर भजन ध्यान करना है।
यदि घाट पर बैठकर भजन करो तो दया का अनुभव भी मिले और आनन्द भी आवे लेकिन नहीं। महापुरुषों को पत्र बहुत सोच समझकर लिखना चाहिए।
जय गुरु देव...
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Jaigurudev |
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