"देखने वालों ने मूर्ति बनाकर इशारा किया है ..." - बाबा उमाकान्त जी महाराज

जयगुरुदेव
सतसंग सन्देश: दिनांक 07.फरवरी.2022

सतसंग दिनांक: 05.02.2022
सतसंग स्थलः आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश
सतसंग चैनल: Jaigurudevukm

"देखने वालों ने मूर्ति बनाकर इशारा किया है ..."
- बाबा उमाकान्त जी महाराज

जीते जी देवी-देवताओं के दर्शन करने का रास्ता नामदान बताने वाले, आदि से अंत तक का सारा भेद जानने वाले, इस समय के परम संत सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बसन्त पंचमी के पर्व पर दिये सतसंग में बताया कि,
आज बसंत पंचमी पर जिन सरस्वती का जन्म दिन मनाते हैं, जिनकी यहां मूर्ति और फोटो या कैलेंडर लगे हुए हैं, वो ये जड़ सरस्वती नहीं है। वो चेतन सरस्वती हैं और वह लिंग शरीर में रहती हैं।

आप लोग स्थूल शरीर में रहते हो। लिंग लोक में दृष्टि भोग से बच्चे पैदा होते हैं तो ऐसे ही सरस्वती पैदा हुईं हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश सृष्टि के रचयिता और चलाने वाले तथा संहार करने वाले हैं।
ये आद्या और ईश्वर काल भगवान के पुत्र हैं। यह सरस्वती ब्रह्मा की पुत्री मानी गई। यह ब्रह्म के साथ बराबर लगी रहती हैं और ब्रह्मा की आवाज को सुनती हैं।

जो ऊपर से आवाज उतरती है, उस ऊपर की वाणी को ब्रह्मा सुनते हैं। ब्रह्मा के मुंह से जो आवाज निकली उसको लोगों ने, ऋषि-मुनियों ने सुना और इस मृत्युलोक में लिख दिया तो वह वेद हो गया।
जैसे बोली गयी बातों को अगर कोई इकट्ठा करके लिख दे तो वही किताब तैयार हो जाएगी। ऐसे ही आवाज को इन्होंने सुना। इनके हाथ में किताब दिखाई पड़ती है।

चार हाथ हैं, इनके आपने फोटो देखा होगा। हाथ में किताब लिए हुए हैं। किताब में क्या है? वह सारा निचोड़ है इस सृष्टि का। जो ऊपर की आवाज उनको सुनाई पड़ती है, उस आवाज को उसमें वह प्रगट कर देती हैं।
एक हाथ में माला लिए हुए हैं तो यह भी संकेत देती हैं कि भाई भजन करोगे तो उद्धार होगा नहीं तो फंस जाओगे। माला जपना सबके लिए जरूरी होता है।

"जड़ चीजों से कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है..."
मूर्ति पूजा या कैलेंडर में छपे फोटो से कोई विशेष लाभ नहीं होता है। जितनी जिसकी श्रद्धा, भाव और भक्ति होती है, उतना ही लाभ मिलता है।
पहले के समय में लोग जब योग साधना करते थे तब इनकी दया और शक्ति लोगों में आ जाती थी। जो संत मत के आदमी हो वो इस चीज को समझोगे कि कर्म किस से होते हैं? इंद्रियों से। लेकिन जमा कहां होते हैं? ऊपर दोनों आंखों के बीचों-बीच में चतुर्थ अंत: करण पर कर्म जमा होते हैं।

यह शरीर को चलाने की उसने ऐसी प्रक्रिया बना दिया है कि जैसे आप समझो गाड़ी में कचरा आ जाता है, कहीं खून में गंदगी आ जाती है तो शरीर रुकने लगता है, लेकिन वह नहीं रुकता है। ऐसा सिस्टम बना दिया फंसाने का।

"पुरानी कठिन साधना से अति सरल सुरत शब्द योग की साधना से आज भी आपको सरस्वती के दर्शन हो सकते हैं..."
आपको पहले सतसंगों में बताया गया, यूट्यूब पर भी हैं, सुनते हो। कर्म लोगों के खराब होते गए।
जैसे-जैसे परिवर्तन होता गया, युग बदलता गया, बुरे कर्म जो हुए, वह जमा होकर इकट्ठा हो गए। अगर वह कर्म नहीं जलेंगे तो जो ज्ञान होना चाहिए, वह लोगों को नहीं हो पाएगा।

अब कर्म कैसे जलेंगे? इससे जब आगे बढ़ेंगे तब।
नीचे से चक्रों का भेदन करने वाली साधना या सुरत शब्द योग की साधना, जो आपको बताई गई है, वो करने वालों को इनका सरस्वती दर्शन हो जाएगा।
दर्शन करने से देवताओं की जो शक्ति मिलनी है, वह आप सब लोगों के अंदर आ जाएगी।


Satguru Jaigurudev 


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