*"ये नामदान रुपया-पैसा और धन-दौलत से खरीदी जाने वाली चीज नहीं है...."* *- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश: दिनांक 15.फरवरी.2022*

*सतसंग दिनांक: 07.01.2022*
*सतसंग स्थलः देवास, मध्यप्रदेश*
*सतसंग चैनल: Jaigurudevukm*
https://youtube.com/c/Jaigurudevukm

*"ये नामदान रुपया-पैसा और धन-दौलत से खरीदी जाने वाली चीज नहीं है...."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

इस अनमोल मानव जीवन के महत्व को, इसके असली उद्देश्य को, बताने और समझाने वाले, इस समय नामदान देने वाले एकमात्र अधिकारी, पूरे संत सतगुरु उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने मध्यप्रदेश के देवास में दिये गये सतसंग सन्देश में बतलाया कि,

गुरु महाराज इस दुनिया संसार से जाने से पहले मेरे लिए बोल कर के गए थे कि पुरानों की संभाल करना और नयों को नामदान देना।
मैं दोनों काम करता हूं। विदेशों में जब मैं गया तो थोड़े ही लोग मिले, सबको नामदान दिया। कुछ और देशों में अपने प्रेमी बहुत हो गए हैं।

जैसे आप यहां भंडारा चलाते हो, पैकेट बांटते हो, बैठाकर खिलाते हो, कंबल टोपा बांटते हो आदि ऐसे ही अन्य देशों में भी बहुत लोग करने लग गए।
कुछ देश ऐसे हैं जहां प्रेमी कम हैं। ज्यादा आना-जाना नहीं हो पाता है। बीस बीस घंटा हवाई जहाज में सफर करना पड़ता है। गर्मी-ठंडी के माहौल का असर होता है और परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती हैं।
तो वहां कम बार गया लेकिन पन्द्रह सोलह देशों में *नामदान* तो दिया ही दिया। आप यह समझो कमरे में ही बैठ गए तो उनको ही *नामदान* दे देता हूं। *क्योंकि गुरु का आदेश का पालन करता हूं।*

*नामदान लेकर भजन करने लग गए तो..."*
ये शरीर छूटने पर फिर मनुष्य चोला मिल जाएगा*
गुरु महाराज ने जाने के बाद कहा कि *नामदान* इनको देना शुरू कर दो और यह भजन करने लग जाएंगे।
शरीर भी छूट जाएगा भजन करते-करते तो, काम पूरा नहीं हुआ तो भी इनको मनुष्य शरीर मिल जाएगा। *मनुष्य शरीर का मिलना ही बहुत मुश्किल है।*

तो नाम दान सबको दे देता हूँ चाहे कोई कैसा भी हो। आज नहीं समझ पा रहा है तो कल कोई समझा-बता देगा। करने लगेगा तो फायदा तो उठा लेगा। *ये रुपया-पैसा और धन-दौलत से खरीदी जाने वाली चीज नहीं है।*

*"जन्म लेने में और मरने में असहनीय पीड़ा होती है..."*
इस नामदान को पहले के समय में दूसरे जन्म में देते थे। *जनमत मरत दुःसह दु:ख होई।* जनमते समय देखो! कितनी तकलीफ होती है। चाहे कीड़ा-मकोड़ा ही पैदा होते हैं, लेकिन उनको भी तकलीफ होती है।
गाय का, घोड़ी का बच्चा मां के पेट से जब बाहर निकलता है, झिल्ली के अंदर रहता है तो हाथ-पैर हिलाता है, पटकता है। और मरते समय छटपटा के मरते हैं, तकलीफ होती है।

आप चिल्लाते हो, आपकी आवाज को तो लोग समझ पाते हैं लेकिन जानवर चिल्लाते हैं, बकरा को काटते हैं। अगर लोग पहले से उनकी जीभ न काट दें तो गर्दन काटेंगे तो बड़ी देर तक ऐसे छटपटाता रहता है, चिल्लाता रहता है। आवाज निकलती रहती है तो बड़ी तकलीफ होती है।

*"पहले बगीचा लगाते फल देर में फलते, अब जल्दी फलने लगे..."*
ऐसे ही जीवों को नर्कों से बचाने के लिये नियम-कानून में ढिलाई देनी पड़ी। पहले दूसरा जन्म लेते थे तब नाम मिलता था। हम तो यह चाहते हैं कि आप पेड़ भी लगाओ और फल भी खाओ।

बगीचा बहुत देर में फलते थे, अब जल्दी फ़लने लग गए। वैरायटी ही चेंज हो गई, जिसको कहते हैं।
ऐसे ही अब नियम-कानून में ढिलाई देनी पड़ी क्योंकि सब अगर नर्क ही चले जाएं तो आखिर यहां रहेगा कौन?
*इस धरती पर भी रहना जरूरी है, इनको भी बचाना जरूरी है। कुछ लोगों को वहां नहीं भेजा जाएगा तो रास्ता ही बंद हो जाएगा, वह भी जरूरी है। यह दोनों काम जरूरी है।*




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