*"चरित्र मनुष्य की एक शोभा है, जैसे बादशाह का ताज शोभा है, औरत का गहना शोभा है..."* *- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश / दिनांक 16.जनवरी.2022*

*सतसंग दिनांक: 01.01.2022*
*सतसंग स्थलः आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश*
*सतसंग चैनल: Jaigurudevukm*

*"चरित्र मनुष्य की एक शोभा है, जैसे बादशाह का ताज शोभा है, औरत का गहना शोभा है..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

वक्त के महापुरुष परम पूज्य *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने नव वर्ष 2022 के कार्यक्रम में सतसंग वचनों में बताया कि,
देखो प्रेमियों! आप जो पढ़े लिखे लोग हो, आपको याद दिलाऊंगा कि *मनी इज लॉस्ट, नथिंग इज लाॅस्ट। हेल्थ इज लाॅस्ट, समथिंग इज लाॅस्ट। बट करैक्टर इज लॉस्ट, एवरीथिंग इज लाॅस्ट।*
इसलिए चरित्रवान रहो। चरित्र मनुष्य की एक शोभा है जैसे औरतों का आभूषण गहना है, बादशाह का ताज शोभा है, इसी तरह से मनुष्य का चरित्र शोभा है। चरित्र हीनता मत लाओ।

*आंखों से तिरयासी प्रतिशत अच्छे बुरे कर्म बनते हैं और अपराध होते हैं..."*
सोहबत के असर से, न जानकारी में, यदि चरित्रहीनता अगर आ गई है तो संकल्प बना लो। चाहे पुरुष हो, चाहे स्त्री हो कि जहां से कमी ये उत्पन्न होती है, जैसे मैंने आपको कल बताया था कि तिरयासी परसेंट अपराध आंखों से होते हैं तो आंखों में देखो ही क्यों ?

आंखों से ही अच्छाई झलकती है, अच्छाई मिलती है। आंखों से ही बुराई होती है। देखो ही नहीं।
देखो! चरित्रवान रहना। चाहे स्त्री हो, चाहे पुरुष हो, दूसरे के पुरुष, स्त्री के साथ बुरा काम मत करना। नहीं तो साधना नहीं कर सकते हो, कोई भी साधना नहीं कर सकता है, अंतर में चढ़ाई नहीं हो सकती है।
यह समझ लो। परहेज तो करना ही पड़ेगा। परहेज के साथ मन लगा कर करोगे तो गारंटी के साथ फायदा दिखेगा। लोक-परलोक दोनों बनता दिखेगा।
*अपने काम से काम रखो। क्यों इधर-उधर भटकाव में जाते हो।*

*"परमार्थी भाव रखकर तन, मन, धन गुरु को समर्पित कर दो..."*
जो गलती हो गई है तो उसके लिए प्रभु से, गुरु से माफी मांगो। नए वर्ष में संकल्प बना लो।
जो अपने और संगत के नुकसान का हो, वह काम हमको नहीं करना है। हमको परमार्थी भाव बनाना है। समझो कि हम अपने तन, मन, धन गुरु को समर्पित कर रहे हैं। 

गुरु तो तन भी किसी का नहीं मांगते हैं। कितने लोगों से सेवा करायेगें?
जो समरथ गुरु होते हैं उनके लिए *जो इच्छा किन्हीं मन माही। गुरु प्रताप कछु दुर्लभ नाहीं।।* उनके लिए किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है।
वह धन भी नहीं चाहते हैं, कहा न *संत न भूखा तेरे धन का। उनके तो धन है नाम रतन का।।* लेकिन जो प्रेमी, भाव भक्ति में परमार्थ के भाव से दे देते हैं तो *तेरे धन से कुछ काम करावें, भूखे रूखे को खिलवावें।*
वह कुछ अपना नहीं समझते हैं। वो ये समझते हैं कि तेरा तुझको अर्पण। इन्होंने दिया है तो इसका फल इनको दिलवा दिया जाए।
वह लेना-देना, कर्जा उसमें अदा करा देते हैं। परमार्थ करा करके अदा करा देते हैं। धन के भी भूखे नहीं होते हैं, लेकिन कहते हैं कि प्रेम बनाओ।

*"प्रेमियों! जब गुरु हमेशा ध्यान में रहेंगे तो आने वाले कुदरती जलजला से आपकी बचत हो जाएगी..."*
प्रेम एक ही से एक बार में बनता है। जैसे आपका प्रेम धन, पुत्र, परिवार में है, उसी समय कहो कि हम गुरु से भी प्रेम कर लें, गुरु को भी याद कर लें?
तो जिसको याद करोगे, प्रेम तो उसका उस समय पर उससे रहेगा। इसलिए कहते हैं कि सतगुरु तो प्रेम के भूखे होते हैं।

तो मन, तन, धन, कहते हैं तेरा तुझको अर्पण। कहते हैं कि आपका है तो मन को दूसरी तरफ क्यों ले जाते हो?
कहते हैं मन लगा कर पढ़ाई करो, काम करो, सतसंग सुनो, साधना करो तो वो चीज तभी मिलती है।
देखो प्रेमियों! मन उधर से हटा दो। मन आप गुरु की तरफ लगाओ। जब आपका ध्यान उधर नहीं जाएगा और *गुरु जब ध्यान में रहेंगे तो आप की बचत हो जाएगी।*

*"सतसंग में जब एक आदमी के लिए कोई बात कही जाए तो सबको समझना चाहिए कि मेरे लिए है..."*
देखो प्रेमियों! एक आदमी के लिए जब कोई बात कही जाए तो बहुत लोगों के समझ में वह बात आनी चाहिए।
हमको बहुत लोग चिट्ठियां लिख कर देते हैं तो चिट्ठियों का जवाब इन्हीं में आ जाता है। आज भी एक प्रेमी ने चिट्ठी लिख कर दिया तो देखो गुरु दया से उनके लिए जवाब इसी सतसंग में आ गया।
*लेकिन इस चीज को आप लोगों को समझना चाहिए। सबके लिए बात है। यह मत समझो कि दूसरों के लिए कहा जा रहा है, मेरे लिए नहीं कहा जा रहा है।*

gurujimaharaj





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