*"अपनी आत्मा के उद्धार के लिये गुरु सोच समझ कर और परख कर करें...."* *- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश / दिनांक 15.जनवरी.2022*

*सतसंग दिनांक: 14.04.2020*
*सतसंग स्थलः आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश*
*सतसंग चैनल: Jaigurudevukm*

*"अपनी आत्मा के उद्धार के लिये गुरु सोच समझ कर और परख कर करें...."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

आत्मा को परमात्मा से मिलाने का सरल मार्ग *नामदान* बताने वाले, इस समय धरती पर मौजूद सतपुरुष के साक्षात अवतार, पूरे समर्थ संत सतगुरु उज्जैन वाले परम पूज्य *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने आश्रम उज्जैन में दिए संदेश में गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि,
राजा जनक के पास सुखदेव जब पहुंचे तब उनको शंका हुई थी कि ये पूरे हैं या अधूरे हैं? गुरु किसको बनाया जाता है?
*गुरु जो जानकार हो, समझदार हो उसको। अधूरा गुरु नहीं बनाया जाता।*

*"पानी पियो छान कर, गुरु करो जान कर..."*
आपके दादू साहब महात्मा हुए हैं। वो छोटे कद के थे और चंदूले थे। चंदूले किसको कहते हैं? जिसके सर पर बाल नहीं होते हैं।
बहुत से लोग चंदूले को अच्छा नहीं समझते हैं जैसे कोई घर से निकले और सांप या बिल्ली रास्ता काट दे तो कहते हैं अच्छा नहीं है! लौट चलो। विधवा नारी अगर मिल गई रास्ते में, अकेले तो कहते हैं कि आज नहीं चलना चाहिए।
तो एक बार पड़ोस के गांव की तरफ से जब दादू साहब जा रहे थे, तब वहां दो आदमी, जो दादू साहब के बारे में सुने थे और कह रहे थे कि चलेंगे, उनसे नामदान दीक्षा लेंगे।

तो वो लोग भी आ रहे थे उधर से। तब तक दादू साहब दिखाई पड़ गए। उन्होंने दादू साहब को रोका तो सही, लेकिन सोचे कि यह तो अपशगुन हो गया है, चंदूला मिल गया।
फिर भी पूछा कि दादू साहब का घर किधर है?

तो दादू साहब ने बता दिया कि इधर चले जाओ। वहीं दूसरे ने सोचा कि चंदूला मिल गया, अब क्या घर खोजे? क्या मिलेगा? तो हाथ से उनके सिर पर मार दिया। दादू साहब कुछ नहीं बोले।
जब यह दोनों घर पहुंचे तो देखा कि दादू साहब वहां नहीं थे। पूछा कहां गए? तो जवाब मिला कि आ रहे हैं अभी।
दादू साहब जब उधर से आए, तब इन दोनों ने किसी से पूछा कि यह कौन हैं? तो बोले यही दादू साहब हैं। अब बड़ी ग्लानि हुई उनको।

लेकिन जब धनुष से तीर निकल जाती है तो वापस नहीं आता है। मुंह से निकली हुई बात भी वापस नहीं आती है। वो दोनों इसी तरह की गलती कर बैठे।
*लेकिन फिर सोचा क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।*
तो अब माफी मांग लेना चाहिए, क्षमा करेंगे या सजा दे देंगे, जो भी होगा, देखते हैं। असर तो बहुत पड़ा कि देखो! मैंने मारा और कुछ नहीं बोले।

तो जब इन दोनों ने दादू साहब से माफी मांगा, तब उन्होंने कहा कि जब एक हंडिया भी खरीदते हैं तो ठोक बजा कर के खरीदते हैं कि कहीं यह टूटी तो नहीं है?
तो तुमने ठोक बजा कर के गुरु किया, गुरु की खोज किया, तो कोई हर्ज नहीं है। कोई बात नहीं है, वह बात वहीं खत्म हो गई, निकल गई।
आप यह समझो कि ठोक बजा कर के गुरु किया जाता है। जो दुनिया संसार को समझ जाते हैं तो उनके समझ में तो आ जाता है। और जो मौत को सामने रखते हैं वह इससे बचे रहते है।

*"परमात्मा और मौत सत्य है। दोनो को हमेशा याद रखो तो गुनाह नहीं होंगे..."*
आदमी को जब निराशा होती है, तब इधर को भूलता है। अपनी मौत को याद करता है और यह सोचता है कि जो यहां पर आए, सब चले गए और हमको भी जाना पड़ेगा। तब उस मालिक की तरफ लगन लगती है।
रास्ता आदमी खोजता है कि उद्धार का, कल्याण का, जन्म मरण से छुटकारा का। रास्ता कहां मिलेगा? तो मिल ही जाता है कोई ना कोई।
*और जिसको जैसी जानकारी होती है, जब बताता है और लग जाता है, सच्चे मन से। तब उस मालिक कि दया हो जाती है।*

MereMalik


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