*"अंतर आत्मा की सफाई का रास्ता सतगुरु ही बताते हैं, उन्हीं के घाट पर स्नान करने से ही आत्म कल्याण होगा..."* *- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश / दिनांक 17.जनवरी.2022*

*सतसंग दिनांक: 17.01.2022*
*सतसंग स्थलः आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश*
*सतसंग चैनल: Jaigurudevukm*

*"अंतर आत्मा की सफाई का रास्ता सतगुरु ही बताते हैं, उन्हीं के घाट पर स्नान करने से ही आत्म कल्याण होगा..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

तीज-त्यौहारों, पर्व स्नान आदि मनाने के गूढ़ उद्देश्यों को सीधे और सरल शब्दों में समझाने वाले, इस समय के पूरे संत सतगुरु उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने पौष पूर्णिमा पर्व के अवसर पर दिए सतसंग में बताया कि,

पौष पूर्णिमा का विशेष महत्व है। आज नदियों में लोग स्नान करते हैं। आज जो सूर्य की किरण विशेष रूप से गंगा में पडती है।
उस जल से स्नान करने से शरीर को स्वस्थ रखने में एक विशेष तत्व मिलता है। जैसे शरीर को चलाने के लिए अन्न पानी की जरूरत होती है, ऐसे ही शरीर को स्वस्थ रखने के लिए तत्वों की जरूरत होती है।

*तत्व विशेष रूप से पांच है। कुछ चीजें ऐसी हैं, जिससे इनको बल मिल जाता है। ये नियम ऋषि-मुनियों ने बनाया था।*

*"इस समय पर तो मानव धर्म रहा ही नहीं...."*
अब तो हिंसा, हत्या और जानवरों की बलि चढ़ाना, यही धर्म मान लिए हैं लोग। पहले धर्म से लोग डरते थे। अभी मानव धर्म रहा ही नहीं।
अनेक धर्म हो गए हैं। बहुत से लोग हिंसा-हत्या, मार-काट, जानवरों की बलि चढ़ाना , इसी को धर्म मान लिए हैं। पहले लोग धर्म को समझते थे।

धर्म है क्या चीज़? पहले जब आत्मा-परमात्मा का ज्ञान था तब लोगों को धर्म मालूम था। असला धर्म क्या है?
इस आत्मा को परमात्मा तक पहुंचा देना। मानव शरीर का धर्म यही है। इसमें कितनी ही चीजें साधक बनेंगी? मदद करेंगी? उसी की शाखाएं लोगों ने बना लिया और उसको ॠषि मुनियों ने धर्म में परिवर्तित कर दिया।

जिससे लोगों की आदत में चीज आ जाए। जैसे छोटे बच्चों को माताएं कहती थीं कि हाथ, पैर, मुंह धो कर के आना, तब तुझ को खाने को देंगे।
ऐसे खाएगा तो तेरा धर्म खराब होगा। अन्न देवता नाराज हो जाएंगे, फिर रोटी नहीं मिलेगी। तो धर्म से लोग डरते थे। धर्म धारण करना चाहते थे।
*उसी में एक चीज लोगों ने जोड़ दिया था, जिससे लोग स्नान करने के लिए जाने लगे।*

*"सूर्य और चंद्रमा एक तरह से इस शरीर के रचयिता हैं..."*
अब तो लोग स्नान के पीछे का असला मतलब नहीं समझ पाते हैं। सूर्य और चंद्रमा ही एक तरह से इस मनुष्य शरीर के रचयिता है। इनकी ताकत और शक्ति से ये मनुष्य शरीर बना है और चलता है।
यही नहीं! प्रकृति की जितनी भी चीजें हैं, जैसे पेड़-पौधा, जितने भी जीव मनुष्य के फायदे के लिए हैं, *सब इनके द्वारा ही संचालित हैं, इनकी ताकत से और दया से ही चलते हैं।* तो सूर्य और चंद्रमा का विशेष महत्व है।

*"सूर्य और चंद्रमा, इनको खुश रखना जरूरी है..."*
अब आज पौष के दिन सूरज चलते हैं। वैसे तो यह स्थिर हैं, यह धरती चलती है, लेकिन वह कभी-कभी चलते हैं। चलायमान यह सब हैं।
सतलोक से नीचे के लोक के जितने भी धनी हैं, जीव, जंतु और जीवात्माएं सब चलायमान हैं। लेकिन इनका समय होता है।
आदमी का समय जल्दी पूरा होता है। पिशाचों का देर में और देवताओं का और भी देर में पूरा होता है। तो ये थोड़ा खिसकते हैं। समझो! इनको सूर्य और चंद्रमा को खुश रखने की जरूरत है।

यह कैसे खुश रहते हैं? इनकी जो व्यवस्था है, प्रकृति की जो व्यवस्था है, इससे छेड़छाड़ न किया जाए। इनसे छेड़छाड़ करोगे? *तो इनके यानि प्रकृति के नियम का उल्लंघन करोगे तो ऐसे स्नान से कोई फायदा होने वाला नहीं है।*

*"जानवरों को काट कर, उनको और उनके खून को नदियों में डाला जाएगा तो ऐसे स्नान का लाभ नहीं मिलेगा..."*
जब जानवरों को मार-काट करके, उनके खून को नदियों में डाला जाएगा तो जो सूर्य की किरणें जल पर पड़ेगीं तो वह भी फायदेमंद नहीं होंगी।
जो गंदी चीजें हैं, उनका काट कर देंगी। इसलिए पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा। कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं कर सकते हैं।
जब सतसंग जल मिलता है, तब जानकारी होती है कि अंतर में आत्मा की धुलाई कैसे होगी? कौन करेगा?

*पलटू जी ने कहा है कि, "धोबिया वो मर जायेगा, चादर लीजिए धोय, वो बहुत पुरानी, चल सतगुरु के घाट बहे जहां निर्मल पानी।"*
*यानी सतगुरु ही अंतर की सफाई का रास्ता बताते हैं।*
Baba umakant ji maharaj


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