*"गुरु आदेश से वो ही नामदान देता हूँ, जिस नाम के लिए मीरा ने कहा है कि* *पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो..."* *- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश / दिनांक 21.जनवरी.2022*

*सतसंग दिनांक: 04.03.2019*
*सतसंग स्थलः लखनऊ, उत्तरप्रदेश*
*सतसंग चैनल: Jaigurudevukm*

*"गुरु आदेश से वो ही नामदान देता हूँ, जिस नाम के लिए मीरा ने कहा है कि*
*पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

सोलह देशों में जा कर आध्यात्मिक विद्या का ज्ञान कराने वाले, इस समय मनुष्य शरीर में मौजूद उज्जैन के त्रिकालदर्शी पूज्य संत *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने शिवरात्रि पर्व के अवसर पर दिए सन्देश में बताया कि,

जब गुरु महाराज मौजूद थे, शरीर छोड़ने से काफी साल पहले मेरे लिए कह कर के गए थे कि यह पुराने लोगों की संभाल करेंगे और नए लोगों को *नामदान* देंगे।
गुरु महाराज के जाने के बाद काफी समय तक करता रहा, अब भी करता हूं। लेकिन फिर आदेश हो गया कि इनको *नामदान* दो।
*नामदान* दे दोगे, यह भजन करने लगेंगे। इनका शरीर भी छूट गया तो इनको मनुष्य शरीर तो मिल जाएगा।

*"देश और विदेश सभी जगह जाकर सभी आने वालों को 'नामदान' दे देता हूँ..."*
तो गुरु के आदेश का पालन करता हूँ। गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति है। जहां कहीं भी जाता हूं, सब जगह *नामदान* देता हूं।
दस बारह देशों में गया, किसी-किसी देश में कई बार गया और कई जगह कार्यक्रम किया। संख्या कम ज्यादा जरूर रही, लेकिन कमरे में भी जो लोग आ गए उनको भी *नामदान* दे दिया।
*क्यों दे देता हूं?*
एक तो आदेश का पालन करता हूं, दूसरा दया आ जाती है क्योंकि इस समय पर किसी की जिंदगी का ठिकाना नहीं है, कब कहां? आंख बंद हो जाए।

*"आजकल घर से निकल कर वापस लौटने की किसी की कोई गारंटी नहीं है ..."*
इसलिए सबको नामदान दे देता हूँ। सुबह आदमी घर से निकले तो कोई गारंटी है दो घंटे के बाद ठीक-ठाक घर में वापस आ जाएगा?
कुछ नहीं। किसी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। ऐसे समय में *नामदान* मिल गया और भजन करने लगा और शरीर भी छूट गया तो मनुष्य शरीर तो पा जाएगा क्योंकि *"संत वचन पलटे नहीं। पलट जाए ब्रह्मांड।।"*
गुरु का वाक्य है। पूरे संत थे, पूरे सतगुरु थे। गुरु महाराज कोई कमी नहीं सतगुरु होने में। उनकी बात गलत नहीं हो सकती है।
मनुष्य शरीर पा जाएगा नहीं तो नर्क में जाना पड़ेगा। चौरासी लाख योनियों में जाना और चक्कर काटना पड़ेगा। रोज कितनी बार मरो और पैदा हो। ऐसा होना पड़ेगा तो उससे तो बच जाएगा।

*"ये वोही अनमोल चीज है जो मीराबाई को उसके गुरु ने दी थी..."*
तो आपको भी *नामदान* दूंगा, अनमोल चीज दूंगा, जिसके लिए मीरा ने कहा है कि *"पायो रे मैंने नाम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, कृपा कर अपनायो।।"*
नाम रूपी रत्न दूंगा। नाम रूपी रत्न पाने के लिए कुछ तो दक्षिणा देनी चाहिए। दक्षिणा का तो विधान रहा ही है, दक्षिणा तो लिया जाएगा।
उसमें एतराज नहीं है। दक्षिणा देने की परिपाटी को भी खत्म नहीं करना चाहता हूं। तो दे दो। आज आपके लिए मौका है।
*देना क्या है?*
आप अपनी बुराइयों को यहीं छोड़ जाओ। बुरे कर्म अब मत करना। अभी तक आपने जो मांस, मछली, अंडा खाया, शराब पिया, ताडी-अफीम का सेवन किया, दूसरी औरत के साथ बुरा कर्म किया, अब मत करना।
*तौबा कर लो, कान पकड़ लो अब गलती नहीं करेंगे।*

Jaigurudev


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