स्वामी जी महाराज के सत्संग वचन

जयगुरुदेव अनमोल  सन्देश  

39. पहला काम 

जिनको प्रभु की कृपा से नामदान मिल गया है सुरत शब्द मार्ग पर चलने की युक्ति अपने वक्त के  सच्चे यानी पूरे सन्त सतगुरु से मिला है ऐसे  नामदानी सत्संगियों  को अपने जिभ्या और निभ्या का पालन करना चाहिए तभी गुरु की कृपा जल्दी पाने का पात्र  होता है।  
मैं जब साधना में था तो आटा को एक कपड़ें में ही सान लेता था और एक पत्थर पर टिक्कर  बना लेता था फिर आग पर सेक कर पका करके रख लेता था। जब भूख लगती थी तो एक टिक्कर लेता था और नमक के साथ रख कर पानी पी लेता था और साधना में लग जाता। 

हफ्ते  भर में टिक्कर जब सूख जाया करता था तो उसको पानी में भिगों देता था  जब थोड़ा टिक्कर नर्म हो जाता तो नमक के साथ खा लेता फिर साधना में बैठ जाता था।  तो जिसके लिये आये हो यानी यह मनुष्य शरीर पाये हो उस काम को पहले पूरा कर लो।  दुनियावी स्वाद लेने के चक्कर में पड़ोगे तो कुछ नहीं कर सकोगे।  इसलिए मन के धोखे से बचो और शब्द में अपने सुरत को जोड़ो। चौबीसों घण्टे शब्द तुमको पुकार रहा है।


40. जन्मना मरना
अनन्त काल से यानी जब से तुम अपने निज धाम सतलोक से इस मृत्युलोक में उतारे गये हो तब से अब तक नाना प्रकार के योनियों में तुमने बार बार जन्म पाया और भोगों को भोगा।
जन्में भोगे फिर मरे। फिर जन्में फिर भोगे फिर मरे। असंख्य युग तुमको भोगते बीत गया। कितनी बार पिता बने, माता बने, बच्चे बने लेकिन अभी तक तुम्हारा मन भरा नहीं यह मन सदा तुम्हारे इन्द्रियों के दरवाजे पर बैठ कर स्वाद  लेता है और तुम्हें नाना पाप पुण्य के कर्मो में बांधता है। 

पहले जो तुमने मनुष्य शरीर पाया उसमें नहीं चेते फिर नर्को और चौरासी के भोगों में गये। इस बार ईश्वर की महान कृपा हुई कि फिर से यह मनुष्य शरीर तुमने पाया है,  इसी शरीर से तुम अपने निज धाम में जा सकते हो जीते जी और आवागमन से छूट सकते हो। इसलिये मेरी बात को गांठ बांध लो और इस बार अपने मनुष्य शरीर को सफल कर लो। मैं तुम्हारी सेवा के लिये सदा तैयार  हूं, जो तुम्हें दे रहा हूं उसको ले लो और  जैसे बताता हूँ  वैसे चले चलो एक दिन अपने घर पहुंच जाओगे। हमेशा का रोना धोना छूट जायेगा। सीधी सादी बात है।

41. अंग संग गुरु
मृत्युलोक इस काल के देश से निकाल कर जीवात्मा को उसके निज धाम सतलोक में पहुंचाने का कार्य वह वर्तमान के सन्त सतगुरु ही होते हैं जो मनुष्य को नामदान देते हैं और  नामयोग का पूरा भेद बताते हैं । वे नामदान देने के वक्त से ही नामदानी मनुष्य के अंग संग हो जाते हैं और वे तब तक चुप नहीं बैठते जब तक कि वे नामदानी को सतलोक में नहीं पहुंचा लेते। मनुष्य के वक्त गुरु ही मददगार होते हैं जीते जी भी और इस मनुष्य शरीर के मर जाने के बाद भी। 

जिन्होंने नामदान दिया है उनके अतिरिक्त और दूसरा  कोई भी गुरु उस जीव को सतलोक पहुंचाने में मददगार  नहीं होते हैं चाहे वे सच्चे संत सतगुरु ही हों अथवा वे नाम दान देने वाले गुरु के गुरु या उनके भी गुरु क्यों नहीं हों। पहले के जो सन्त सतगुरु शरीर छोड़  दिये हैं तो भी वे अपने नामदानी शिष्य को अन्तर में मदद देते हैं साथ ले चलते हैं और सतलोक की यात्रा पूरी कराते हैं इसलिये शिष्य को अपने गुरु में पूरा विश्वास  रखना चाहिए । अपने पूरे गुरु के अलावा किसी अन्य गुरु से कोई आशा नहीं करनी चाहिए।

42. भारतवर्ष
अहो भाग्य उन नर नारी मनुष्यों का है जिनको ईश्वर ने इस धरती पर भारतवर्ष की भूमि पर पैदा किया है।  यहां की जमीन कर्म भूमि है बाकी दुनिया के जितने भी देश हैं वे भोग भूमियां हैं। भोग भोगने के लिये ही भोग भूमि में ऐसे आत्माओं को जन्म ईश्वर देता है जिन्हें भोग अपने कर्मो का भोगना होता है, उनके स्वभाव एवं संस्कार ऐसे नहीं होते कि वे अपने आत्मा को आसानी से जगा सकें। 
उनका स्वभाव प्रायः मनुष्य देह में होते हुए भी पशुवत हुआ करता है। हां उनमें से इक्का दुक्का मनुष्य सन्त महात्माओं के प्रभाव में कभी आ जाता है तो उसका संस्कार बदलता है।

भारतवर्ष जन्म पाया हुआ मनुष्य सन्त महात्मा के सम्पर्क में आता है और वह सच्चा मनुष्य बनने का अवसर पाता है। सच्चे सन्त से उसकी भेंट होती है तो उसको परमात्मा को पाने का सच्चा रास्ता  शब्द मार्ग मिलता है और वह गुरु कृपा से साधना करके सतलोक में जीते जी पहुंच कर मुक्त हो जाता है। वह स्वयं सन्त बन जाता है । इसलिये भारत में जन्म पाये हुए मनुष्य अत्यन्त भाग्यशाली होते हैं। सन्तों के सम्पर्क में आने पर वे भोगों से निरर्थक वासनाओं से अलग रह कर गुरु के बताने के अनुसार अपना जीवन जीकर जीते जी मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं।

43. स्वभाव
अपने स्वभाव के अनुसार प्राणी व्यवहार करता है। स्वभाव एक जन्म से दूसरे जन्म में चलता जाता है। पेड़ पौधे, कीट पतंगे,  पक्षी और पशुओं के प्राणियों में तो विवेक बुद्धि ही नहीं होती। इस कारण स्वभाव में परिवर्तन कम होता है। हां यदि किसी सन्त सतगुरु महात्मा का सानिध्य और कृपा मिल जाता है तो कुछ जीवों के स्वभाव में बदलाव आता है, वह भी कम। 

मनुष्य शरीर में विवेक होता है उसे अच्छे बुर कर्मों का ज्ञान होता है फिर भी मनुष्य अपनी पूर्व जन्मों से चले आ रहे बुरे स्वभाव एवं इस संसार में बुरे लोगों के संग दोष के कारण धड़ल्ले से बुरा से बुरा कर्म कर बैठता है। फिर किये गये पाप कर्मों का भागी बन कर फिर नरकों और निम्न  योनियों के शरीरों  में  जन्म पाकर भोग भोगता है. और मनुष्य शरीर में यदि वह किसी महात्मा, सन्त आदि के संग में आ जाता है तो सन्त महात्माओं के कृपा से उनके स्वाभाव में धीरे धीेरे बदलाव आता है वह अच्छा और बुरा  का विचार करने लगता है और इसके स्वभाव में पूर्व जन्मों से चले आ रहे जो बुरे स्वाभाव है वह नष्ट  हो जाता है। 

वह बुरे स्वभाव को सतसंग के प्रभाव से छोड़ता जाता है। और उसके जगह पर अच्छे कर्मों को करने लगता है। फिर धीरे धीरे मनुष्य अच्छे स्वभाव वाला बनकर सदैव अच्छा कर्म करने का ही प्रयास प्रतिक्षण करता हुआ, तन,  मन, धन से पवित्र  हो जाता है।

44 गाय बैल
गाय और बैल की हत्या कभी भी नहीं करनी चाहिये क्योंकि गाय मरने पर नारी के शरीर में मनुष्य जन्म पाती है और यदि बैल मरता है तो वह अगले जन्म में मनुष्य शरीर नर का पाता है।
गाय बैल की हत्या कर देने पर उसमें रहने वाली आत्माओं को गाय बैल की शेष आयु में प्रेतात्माओं का दुःखद शरीर लिंग शरीर का मिलता है। प्रेत योनि से निकलने पर गाय किसी घर में लड़की का जन्म पाती है और बैल किसी घर में लड़के का जन्म पाता है। 
इन आत्माओं का स्वभाव पूर्व जन्म के प्रभाव के कारण बुरा होता है इसलिये ऐसे लड़के और लड़कियां हमेशा बड़ों के अच्छी बातों को नहीं माना करते। वे प्रायः स्वभाववश दुराचरण में लिप्त होते हैं। बुरे से बुरा कर्म करने में  उनमें तनिक भी हिचक नहीं होता है। वे अधिकतर निन्दित कर्म में ही लिप्त रहा करते हैं।

उनके व्यवहार से उनके माता पिता उनका परिवार समाज और कहिये पूरा देश दुखी रहा करता है। वे लड़के लड़की दूषित कर्म करते कराते हैं फिर मरने के बाद वे पुनः कर्मानुसार नर्को और चौरासी के नीच योनियों में चले जाते  हैं।  इसलिये गाय बैल को मत मारो ।  
ये जीव चार खानि चौरासी लक्ष्य सब योनियेां में  भोग भोगने के बाद गाय बैल बने हैं, आगे मनुष्य बनेंगे जिसमें उन्हें आत्म उद्धार करने का सुअवसर प्राप्त हो सकता है।

Jaigurudev Sant bodh...
Jaigurudev Swami ji maharaj





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